शनिवार, 11 जनवरी 2014

तरकश, 12 जनवरी

बदले-बदले से. सरकार….

सरकार के हैट्रिक बनने का असर सीएम के तेवर और कंफिडेंस से झलकने लगा है। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने विपक्ष के सारे आरोपों को लच्छेदार भाषण से हवा में उड़ा दिया। सीएम को इससे पहले, इस तरह रौ में बोलते लोगों ने नहींे देखा होगा। वे बोलते गए और विपक्ष अनुशासित विद्यार्थी की तरह सुनता रहा। तो, शुक्रवार को अनुपूरक बजट पर बोलने के दौरान उनके मंत्रियों ने आपस में गुफ्तगू की तो उन्हें भी झिड़कने से नहीं चूके। असल में, सीएम बजट पर बोल रहे थे, बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप जैसे कुछ सीनियर मंत्री पीछे मुड़कर बातें करने में मशगूल थे। इस पर पहले तो सीएम ने घुरकर देखा। फिर, गुस्से में बोले, पहले आप लोग बात कर लो, फिर मैं बोलुंगा। इसके बाद सन्नाटा छा गया। विधानसभा परिसर में सीएम के बदले अंदाज की चर्चा भी खूब रही।

भाजपा और डीजीपी

राज्य बनने के बाद पांच आईपीएस ही ऐसे थे, जो छत्तीसगढ़ मांग कर आए थे। इनमें आरएलएस यादव, आरएल आम्रवंशी, राजीव माथुर, संतकुमार पासवान और गिरधारी नायक हैं। पांचों में अभी तक सिर्फ यादव किस्मती निकले, जो जोगी युग में डीजीपी बनने में कामयाब रहे। भाजपा शासनकाल में ऐसे अफसरों को डीजीपी बनने का मौका नहीं मिल सका। आम्रवंशी, माथुर और पासवान…..तीनों यूं ही बिदा हो गए। पांच में से आखिरी अब, गिरधारी नायक बच गए हैं। रामनिवास के इस महीने रिटायर होने के बाद नम्बर उन्हीं का आता है और उनके अलावा फिलहाल, कोई आईपीएस डीजीपी बनने का मापदंड पूरा नहीं करता। बावजूद इसके, यह देखना दिलचस्प होगा कि नायक भाजपा शासनकाल वाला मिथक तोड़ने में सफल होते हैं या……?

जैकेट प्रेम

ब्यूरोके्रट्स के ड्रेस की एक गरिमा होती है। खासकर सीएम या सीएस की मीटिंग हो तो हाफ शर्ट ना पहनना। कलरफुल कपड़ों से परहेज। पीएम या प्रेसिडेंट की विजिट में बंद गले का कोट। मगर अबकी विधानसभा के प्रथम सत्र में नौकरशाहों के जैकेट प्रेम से विधानसभा परिसर में नेताओं और उनमें फर्क करना मुश्किल हो गया। कुछ ब्यूरोक्रेट्स तो पांचों दिन सदन में बदल-बदलकर जैकेट पहनकर पहुंचे। राज्यपाल के अभिभाषण के दिन सीएम और नेता प्रतिपक्ष तक बंद गले का सूट पहनकर आए थे और अफसर रंगीन जैकेट में। कुछ अफसरों में तो होड़ मच गई थी। सदन की लाबी में तभी लोग चुटकी ले रहे थे, रमन सरकार के अफसर कहीं आम आदमी पार्टी ज्वाईन करने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं।

फंस गए राव

सरकार से रार ठानकर सीनियर आईएएस केडीपी राव अब बुरी तरह फंस गए हैं। पिछले साल 2 मई को बिलासपुर का कमिश्नर बनाए जाने के बाद सरकार के खिलाफ उन्होंने कानूनी लड़ाई छेड़ दी थी। मगर कैट के बाद अब, हाईकोर्ट में भी उनकी याचिका खारिज हो गई। राव के करीबी लोगों का कहना है, वे अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मगर इसकी संभावना अब कम ही लग रही है। वहां साल-दो साल और निकल जाएगा। वैसे भी वे आठ महीना से घर में खाली बैठे हैं। स्टे्रज्डी के तहत सरकार ने उन्हें सस्पेंड भी नहीं किया। सस्पेंड होते तो उनकी आधी तनख्वाह मिलती रहती। संस्कृति विभाग ने उनकी गाड़ी भी वापिस ले ली। बच गया है सिर्फ बंगला। हालांकि, राव को सबने समझाया था, सरकार से पंगा लेना अक्लमंदी नहीं है। मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब अगर वे ज्वाईन किए, तो यही कहा जाएगा, लौट कर बुद्धू घर…..। और सुप्रीम कोर्ट गए तो लंबे समय तक घर में बैठना पड़ जाएगा।

ट्रांसफर का सप्ताह

आमतौर पर सरकार बनने के बाद बडे़ स्तर पर ट्रांसफर-पोस्टिंग होते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के चलते सरकार के हाथ बंधे थे। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के कारण आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों का ट्रांसफर न करने के लिए कहा था। सो, एक साथ करने के लिए मंत्रालय में भी कुछ नहीं हुआ। अब, बुधवार को चुनाव आयोग की मियाद खतम हो जाएगी। संकेत हैं, इसके दो-एक दिन बाद लिस्ट निकल सकती है। विधानसभा का सत्र भी खतम हो गया है। कल रविवार को सूची पर मंत्रणा होने की खबर आ रही है। इसमें दर्जन भर कलेक्टर प्रभावित होंगे। छोटे जिलों के कई कलेक्टरों के दो साल हो गए हैं। पारफारमेंस के आधार पर उन्हें बदला जाएगा। बड़े जिले में बिलासपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह का नाम सबसे उपर है। राम सिंह इससे पहले रायगढ़ और दुर्ग जिला कर चुके हैं। सूबे के वे सबसे रसूखदार कलेक्टर माने जाते हैं, इसलिए बिलासपुर के बाद बेशक, उन्हें कोई बडा जिला ही मिलेगा। इसके अलावा मंत्रालय में भी आधा दर्जन विभागों के सिकरेट्री चंेज होंगे। इनमें फूड और होम सबसे उपर है। होम में एनके असवाल का छह साल से ज्यादा हो गया है।

सिर्फ रमन

लोकसभा चुनाव के पहले सरकार आक्रमक प्रचार अभियान में जुट गई है। जनसंपर्क विभाग द्वारा इसके लिए कई योजनाएं बनाई गई है। इसके तहत पूरे प्रदेश में लोक लुभावन योजनाओं के बड़े स्तर पर होर्डिंग्स लगाए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में चूकि सिर्फ रमन सिंह का चेहरा चला है, उन्हीं के नाम पर वोट मिले हैं। सो, लोकसभा चुनाव में भी इसे कैश करने के लिए होर्डिंग्स में सिर्फ रमन सिंह की ही फोटो होंगी। मंत्रियों की नहीं। बताते हैं, गुजरात समेत कुछ राज्यों में होर्डिंग्स में सिर्फ सीएम की फोटो रहती हैं।

नए चेहरे

गौरीशंकर अग्रवाल के स्पीकर बनने के बाद सोमवार को अपनी शुभेच्छा देते हुए बद्रीधर दीवान ने गलत नहीं कहा कि सदन में नए चेहरों को देखकर लग रहा है, मैं कहां आ गया हूं। वास्तव में, इस बार सदन का नजारा बदला हुआ है। बड़े चेहरे गायब हैं। सत्ता पक्ष की पहली पंक्ति तो कुछ बची हुई है। विपक्ष की अगली दो पंक्ति पूरी तरह साफ हो गई है। स्पीकर के बायी ओर पहली पंक्ति में नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे बैठते थे। उसके बाद बोधराव कंवर, प्रेमसाय सिंह, हरिदास भारद्वाज, शक्राजीत नायक, परेश बागबहरा। दूसरी लाइन में ताम्रध्वज साहू, मोहम्मद अकबर, धर्मजीत सिंह, अमितेश शुक्ल, प्रतिमा चंद्राकर। सभी चुनाव हार गए। वहीं, भाजपा के अग्रिम पंक्ति से रामविचार नेताम और चंद्रशेखर साहू इस बार सदन में नहीं हैं। उनकी जगह पर प्रेमप्रकाश पाण्डेय और पुन्नूराम मोहले आ गए हैं।

सलामी जोड़ी

सत्यनारायण शर्मा और भूपेश बघेल में से भले ही कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाया। मगर प्रथम सत्र के ट्रेलर से यह तय हो गया है कि कांग्रेस के ओपनिंग बैट्समैन शर्मा और बघेल ही होंगे। राज्यपाल का अभिभाषण हो या अनुपूरक बजट, दोनों ने आक्रमक बैटिंग की। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शर्मा के प्रहार से सरकार का बचाव करने के लिए एक-एक कर अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, केदार कश्यप और शिवरतन शर्मा सामने आए। मगर चुटिले और नुकीले तीरों से शर्मा ने सबको धराशायी कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर्ड ब्यूरोके्रट्स शरदचंद्र बेहार के आम आदमी पार्टी के सलाहकार बनने पर लोग अक्षय कुमार की खट्टा-मिठ्ठा फिल्म को क्यों याद कर रहे हैं?
2. एक आईएएस का नाम बताएं, जिनके बारे में चर्चा है कि वे चीफ सिकरेट्री बनने के लिए यज्ञ करा रहे हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें