28 की टिकिट
चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने जिस तरह दमदार पारी खेली, उसी दमदारी के साथ वे यहां से बिदा भी होना चाहते हैं। 28 फरवरी को उनका रिटायरमेंट है। इसके बाद वे यहां एक दिन भी नहीं रुकेंगे। उसी दिन शाम को वे छत्तीसगढ़ को बाय-बाय कर देंगे। पता चला है, शम की फ्लाइट की उनकी और टिकिट भी हो गई है। हालांकि, परंपरा फेयरवेल की रही है। मंत्रालय के साथ, आईएएस एसोसियेशन द्वारा बिदाई दी जाती है। मगर उनका फेयरवेल वगैरह नहीं होगा। वजह, सुनिल कुमार इस तरह की चीजें पसंद नहीं करते। दिल्ली में उनके पास सरकारी मकान है। मगर वे उसमें वे नियमानुसार चार महीने ही रह सकते हैं। फरीदाबाद में उनका मकान बन रहा है। तब तक उन्होंने दिल्ली में किराये के मकान में रहना तय किया है। उनके करीबी लोगों का कहना है, कहीं पोस्टिंग के बजाए अब, वे अपना समय लिखने-पढ़ने और समाज सेवा में व्यतीत करना चाहते हैं।
हाट इश्यू
ब्यूरोक्रेसी में इन दिनों भावी चीफ सिकरेट्री और डीजीपी हाट इश्यू बना हुआ है। मंत्रालय के हर कमरे में यही सवाल चल रहा है….नेक्स सीएस कौन होगा…..डीजीपी यहीं से बनंेगे या आयातित होंगे। सीएस के लिए दो नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। वो हैं, विवेक ढांड और डीएस मिश्र। ढांड 81 बैच के हैं और मिश्रा 92 बैच का। सो, सीनियरिटी में ढांड हैं। मगर यह भी अहम है कि सीनियरिटी के आधार पर सीएस बनने वाले रामप्रकाश बगाई आखिरी थे। सो, इस बार क्या होगा, उत्सुकता लाजिमी है। उधर, डीजीपी रामनिवास इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद गिरधारी नायक के अलावा और कोई नाम नहीं है। पीएचक्यू में पहली बार इस तरह वैक्यूम आया है। वरना, हमेशा डीजीपी के दो-एक दावेदार रहे हैं। असल में, एमडब्लू अंसारी अभी डीजी नहीं बने हैं और एएन उपध्याय की 30 साल की सर्विस पूरी नहीं हुई है। ऐसे में, मध्यप्रदेश से किसी आईपीएस को बुलाने की बात भी उड़ रही है। मगर सारे समीकरणों का देखते लगता है, नायक का नाम फायनल हो जाएगा।
स्वागत विहार-2
रायपुर में स्वागत विहार-2 का शिकार होने से रायपुर के लोेग बाल-बाल बच गए। दरअसल, कचना इलाके में एक नामी बिल्डर ने हाउसिंग बोर्ड की साढ़े सात एकड़ जमीन न केवल अपने पजेशन में ले लिया था, बल्कि उसने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एप्रूवल कराने के साथ ही नगर निगम से नक्शा भी पास करा लिया था। उसी दौरान स्वागत विहार एपीसोड हो गया। और संजय बाजपेयी को जेल जाना पड़ गया। इससे घबराकर बिल्डर ने हाउसिंह बोर्ड के अफसरों के पास यह कहते हुए जमीन सरेंडर कर दिया कि कोई कब्जा न कर लें, इसलिए उसने अपने घेरे में ले लिया था। सूत्रों का कहना है, रायपुर में कई बिल्डरों ने ऐसा खेल किया है। इसकी अगर जांच हो जाए, तो कम-से-कम दर्जन भर जेल में होंगे।
अब लोकसभा
विधानसभा चुनाव तो निबट गया मगर अब राजनीति पार्टियों को लोकसभा के लिए कंडिडेट ढूंढने में, ठंड में भी पसीना आ रहा है। दोनों ही प्रमुख पार्टियों के लिए 2014 का चुनाव चैलेंजिंग है। मगर, कांग्रेस का मामला और पेचीदा है। ऐसे में, उसे विधानसभा चुनाव में हारे हुए चेहरों पर भी दांव लगाना पड़ सकता है। बिलासपुर में धर्मजीत सिंह का नाम सामने आ ही रहा है। इसी तरह दुर्ग में रविंद्र चैबे और घनराराम साहू के बाद कांग्रेस को कोई नाम नहीं सूझ रहा है। राजनांदगांव में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। एक नाम है, देवव्रत सिंह। इसमें भी कहीं मुख्यमंत्री के बेटे अभिशेक खड़े हो गए तो चुनाव और टफ हो जाएगा। उधर, अजीत जोगी को रायगढ़ से उतारने के संकेत मिल रहे हैं। रायपुर की स्थिति भी अलग नहीं है। कांग्रेस के सूत्रों पर अगर यकीन करें तो सिचुएशन को समझते हुए पार्टी रायपुर से सत्यनारायण शर्मा को खड़ा करने के लिए विचार कर रही है। पार्टी के सभी नेताओं का मानना है कि शर्मा रायपुर से मजबूत दावेदार हो सकते हैं। और, कहना तो ऐसा भी है कि इस भूमिका के लिए ही नेता प्रतिपक्ष के लिए उनका नाम उस ढंग से नहीं चला, जैसा कि होना चाहिए था।
आम आदमी का डंडा
हमारे मंत्रियों को भी टीम केजरीवाल से कुछ नसीहत लेनी चाहिए। और कुछ ना सही, कम-से-कम सादगी ही सही। टीम केजरीवाल मेट्रो में शपथ लेने पहुंची। ना फैब का कुर्ता और ना ही चकाचक जैकेट। कार केट कौन कहंे, लाल बत्ती भी नहीं। प्रायवेट कार से मंत्रालय गए। एक अपने मंत्रीजी लोग हैं। पूरी ताकत शन-शौकत के जुगाड़ में लगा देते हैं। पसंद का पीए, पसंद का गनमैन और पसंद की गाड़ी। वाहन के आगे सायरन बजाते हुए जब तक पुलिस की गाड़ी नहीं चले, तब तक उन्हें यकीन नहीं होता कि वे मंत्री हैं। आगे तो आगे, पीछे भी पुलिस की गाड़ी होनी चाहिए। साथ में, विभाग की कुछ खाली गाडि़यां भी। ताकि, काफिले से लगे के फलां मंत्रीजी जा रहे हैं। काफिला बड़ा है मतलब जलवेदार हैं। जोगी सरकार में लाल बत्ती तो थी ही नहीं, 2003 में रमन सरकार ने सुरक्षा के लिहाज से केवल गृह मंत्री को पायलेटिंग और फालो गाड़ी की सुविधाएं दी थी। मगर बाद में सरकार पर प्रेशर बनाकर कई मंत्रियों ने यह सुविधाएं हथिया ली। अब, मंत्रीजी का काफिला निकलता है, तो पायलट गाड़ी का पुलिस वाला हाथ में डंडा लेकर आम आदमी को ऐसे हकालता है, जैसे किसी जानवर को सड़क से भगा रहा हो। मगर सवाल यह है कि अगले चुनाव में कहीं आम आदमी का डंडा चल गया तो हमारे मंत्रीजी लोगों का क्या होगा।
15 के बाद
अशोक जुनेजा के प्रमोशन के कारण आईपीएस की एक छोटी लिस्ट तो निकल गई मगर आईएएस में चुनाव आयोग का पेंच आ गया है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों को चेंज नहीं करने कहा है। सो, कलेक्टरों के चक्कर में आईएएस की लिस्ट अटक गई है। हालांकि, पहले यह खबर आ रही थी कि आयोग से परमिशन लेकर कुछ कलेक्टरों को बदला जाए। साथ में सिकरेट्रीज को भी। मगर अंदर से जैसी खबरें आ रही हैं, सरकार चाह रही है कि 15 के बाद एक साथ ही सिकरेट्रीज और कलेक्टरों की लिस्ट निकाली जाए। इसलिए, मामला आगे बढ़ सकता है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रियों के प्रायवेट होर्डिंग्स का भुगतान मंत्री अपने जेब से करते हैं या उसे सरकारी बिल में एडजस्ट किया जाता है?
2. इस चर्चा में कितना दम है कि दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी सूबे के एक नौकरशाह से संपर्क करने की कोशिश कर रही है?
2. इस चर्चा में कितना दम है कि दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी सूबे के एक नौकरशाह से संपर्क करने की कोशिश कर रही है?
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