डिनर डिप्लोमेसी
अभी तक राजनीति में डिनर डिप्लोमेसी की चर्चा सुनने में आती थी। मगर मलाईदार पोस्टिंग और पुनर्वास के लिए अब ब्यूरोक्रेसी में भी यह चालू हो गई है। पुलिस महकमे के हायर पोस्ट से रिटायर हुए एक आईपीएस ने पिछले हफ्ते सत्ता के शीर्षस्थ नेता को सपरिवार डिनर पर अपने घर बुलाया। इंवाइटी में सत्ता के सबसे ताकतवर अधिकारी भी शामिल थे। यही नहीं, बुधवार को राजधानी के एक खास भवन में भी आईपीएस के रिटायर होने पर भोज का आयोजन किया गया। इससे पहले, किसी आईएएस या आईपीएस के रिटायर होने पर भवन में कभी भोज नहीं हुआ। इसका मतलब यह हुआ कि फिल्डिंग में दम है। अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि रिटायर आईपीएस डिनर डिप्लोमेसी में सफल हो पाते हैं या नहीं। क्योंकि, हवा का रुख उनके बेहद प्रतिकूल है।
टफ
कांग्रेस के करिश्माई नेता अजीत जोगी के लिए महासमंुद सीट जितना आसान समझा जा रहा था, उतना आसान अब लग नहीं रहा। पार्टी को पिछड़ी जातियों का अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा। सराईपाली और बसना इलाके में अघरिया कुर्मी की बहुतायत हैं। नंदकुमार पटेल की मौत के बाद इस समाज के लोग कांग्रेस से खुश नहीं हैं। साहू समाज में गहरी पैठ रखने वाले मोतीलाल साहू ने भाजपा ज्वाईन कर लिया है। 11 चंदुओं का मामला भी मीडिया में इतना उछल गया कि उसका अब कोई लाभ नहीं मिलने वाला। 2008 के चुनाव में कुरुद में भी कांग्रेस के खिलाफ आधा दर्जन लेखराम खड़े हुए थे। इसके बावजूद, कांग्रेस के लेखराम चुनाव जीत गए थे। तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 87 हजार की लीड मिली थी। जोगी के सामने इस गड्ढे को पाटकर जीत दर्ज करने की चुनौती होगी। वीसी इस सीट से छह बार सांसद रहे और उनकी बेटी प्रतिभा का ऐन वक्त पर टिकिट कट गया। इसके असर से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, जोगी का चुनाव प्रचार सबसे सिस्टमेटिक चल रहा है। गांव-गांव में उनके लोग पहुंच चुके हैं। खुद जोगी रात 10 से 11 बजे तक दौरा कर रहे हैं। बावजूद इसके, लड़ाई एकतरफा तो एकदम नहीं है।
9/2 की चर्चा
16 मई को ईवीएम से भले ही नतीजे कुछ और आए, मगर सियासी गलियारों में 9/2 की चर्चा तेज है। राजनीतिक समीक्षक इसके पक्ष में अपनी-अपनी दलीलें भी दे रहे हैं। हालांकि, 2004 और 09 में 10 भाजपा और एक सीट कांग्रेस को मिली थी। मगर इस बार महासमुंद में अजीत जोगी के उतर जाने और विधानसभा चुनाव में सरगुजा में वोटों का अंतर एक लाख से अधिक हो जाने के चलते सियासी प्रेक्षक भी 10/1 का दावा करने में जरा हिचकिचा रहे हैं। उपर से दुर्ग में भी सरोज पाण्डेय की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि, यह मानने वालों की कमी नहीं है कि विधानसभा और लोकसभा के अलग मायने होते हैं। सो, जरूरी नहीं कि सरगुजा में विधानसभा का रिजल्ट रिपीट हो। ऐसे में, महासमंुद और दुर्ग में से एक सीट कांग्रेस को मिलने की चर्चा हो रही है। और, मोदी लहर जैसा कुछ है, तो कुछ भी हो सकता है। आखिर, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 85 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में पूरे 11 की 11 सीटें मिली थीं।
मोदी के साथ रमन
लोकसभा चुनावों के पोस्टर एवं होर्डिग्स में पहले सिर्फ भाजपा के पीएम कंडिडेट नरेंद्र मोदी की तस्वीरें थी। यह लिखा हुआ…. अबकी बार, मोदी सरकार। मगर सरकार के रणनीतिकारों को यह फीडबैक मिला कि होर्डिग्स में मोदी के साथ अगर रमन की फोटो लगाई जाएं, तो वोटरों पर इम्पेक्ट और ज्यादा पड़ेगा। इसके बाद भाजपा नेता हरकत में आए और उपर में बात करके सोमवार शाम से होर्डिग्स चेंज होना शुरू हो गया। अब, मोदी के बगल में कलरफुल जैकेट में रमन का खिला हुआ चेहरा दिख रहा है। जाहिर है, 2008 और 13 का चुनाव भाजपा ने रमन के चेहरे को सामने रखकर लड़ा था और उसे इसमें कामयाबी भी मिली। पार्टी को लगता है, इस बार भी शायद यह तकनीक काम आ जाएं।
गई भैंस पानी में
2009 के लोकसभा चुनाव में कांकेर में फूलोदेवी नेताम महज 18 हजार वोट से हारी थीं। और, इस बार विधानसभा चुनाव में इलाके की आठ विस सीटों में से छह कांग्रेस के खाते में गई थी। सो, अबकी उम्मीद पूरी थी और इसी गणित से फूलोदेवी को मैदान में उतारा गया था। मगर बी फार्म मिलने के बाद अजीत जोगी से आर्शीवाद लेने सीधे सागौन बंगले जाना नेताम के लिए भारी पड़ गया। असल में, पिछले लोकसभा चुनाव में जोगी खेमा ने नेताम के पक्ष में खुलकर काम नहीं किया था। नेताम को लगा संगठन खेमा तो उनके साथ है ही, जोगीजी का भी आर्शीवाद मिल जाए, तो फिर उन्हें जीतने से भला कौन रोक सकता है। संगठन खेमा को यह नागवार गुजरा। नतीजा यह हुआ कि संगठन खेमा ने इस बार पल्ला झाड़ लिया है। नेताम के लिए पिछले चुनाव में सबसे अधिक मेहनत करने वाले राजेश तिवारी इस बार जगदलपुर चले गए हैं। यही वजह है कि अब कांकेर के कांग्र्रेसियों ने भी यह मान लिया है कि विक्रम उसेंडी की किस्मत बुलंद है। बेमन से चुनाव लड़ा और रास्ता अपने आप बनते जा रहा है।
वंचित
धमतरी के कलेक्टर एनके मंडावी कलेक्टर रहते जिले से रिटायर होने का रिकार्ड बनाते-बनाते चूक गए। चुनाव आयोग ने उनका विकेट उड़ा दिया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोई आईएएस कलेक्टर रहते रिटायर नहीं हुआ है। एमएस परस्ते के लिए यह मौका था। कवर्धा में जब कलेक्टर पोस्ट हुए थे, तो चर्चा यही थी कि दोनों प्रमोटी आईएएस, परस्ते और मंडावी जिले से ही रिटायर होंगे। क्योंकि, दोनों का जुलाई मंे रिटायरमेंट था। मगर परस्ते हिट विकेट होकर राजधानी लौट गए थे। और, मंडावी चुनाव आयोग के शिकार हो गए। आयोग ने इस आधार पर उन्हें खिसका दिया कि उनके रिटायरमेंट में छह महीने से कम बचा है और आयोग के गाइडलाइन के अनुसार ऐसे जिला निर्वाचन अधिकारी चुनाव नहीं करा सकते।
भीम का लाटरी
चुनाव आयोग के चक्कर में एनके मंडावी हट गए मगर कांकेर जिला पंचायत के सीईओ भीम सिंह का कलेक्टरी का रास्ता खुल गया। हरियाणवी अफसर भीम 2008 बैच के आईएएस हैं। लोकसभा चुनाव के बाद कलेक्टर बनाने पर विचार होता। नम्बर लगता कि नहीं ये बाद की बात थी। मगर, इससे पहले ही उन्हें धमतरी मे मौका मिल गया। यह भी तय है कि चुनाव बाद भी वे कन्टीन्यू कर जाएंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. चुनाव आयोग में रिटायर आईएएस जब शीर्ष पदों पर रहकर पूरे देश में चुनाव का संचालन कर सकते हैं, तो छह महीने में रिटायरमेंट वाले कलेक्टर जिले में चुनाव क्यों नहीं करा सकते?
2. किस वजह से डीजीपी एएन उपध्याय के पास अभी भी प्रशासन का चार्ज है?
2. किस वजह से डीजीपी एएन उपध्याय के पास अभी भी प्रशासन का चार्ज है?
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