अच्छे दिन
तीसरी बार नगरीय प्रशासन मंत्रालय की कमान मिलने के बाद जाहिर है, सूबे की राजनीति में अमर अग्रवाल का ग्राफ उपर हो गया है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि नगरीय चुनाव के ठीक पहले उन्हें इस विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। अहम यह है कि अमूमन सभी सीनियर मंत्रियों की नजर इस विभाग पर थी। दिसंबर में जब तीसरी बार सरकार शपथ लेने जा रही थी, उस दौरान कम-से-कम चार मंत्रियों ने सीएम से इस महकमे के लिए इच्छा जताई थी। मुख्यमंत्री ने शायद इसीलिए, इस विभाग को अपने पास रख लिया था। अमर का कद ऐसे वक्त में बढ़ाया गया, जब कुछ मंत्रियों द्वारा कथित तौर पर सरकार विरोधी हवा बनाने की खबरें आ रही थीं। सो, इसके सियासी निहितार्थ से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे, नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद अमर का शीर्ष स्तर पर भी मजबूत हुए हैं। मोदी संघ के प्रचारक थे और स्व. लखीराम अग्रवाल जनसंघ और बीजेपी का बड़ा नाम। लखीराम के बिलासपुर स्थित विनोबा नगर निवास पर मोदी कई बार रुके हैं। कुछ बार वहीं वे पत्रकारों से भी मिले थे। सो, बढि़यां दिन आ गए हैं अमर के।
विस्तार टला
15 अगस्त से पहिले रमन कैबिनेट के विस्तार की चर्चा थी। तीन और मंत्री बनाए जाने थे। मगर 26 जुलाई को सीएम ने यकबयक अमर अग्रवाल को नगरीय प्रशासन का सिंगल आर्डर निकाल दिया। जाहिर है, विस्तार अब लंबे समय के लिए टल गया है। सूत्रों की मानें तो अब स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों के बाद ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा और सर्जरी भी। तब तक विधायकों को दिल थाम कर इंतजार करना होगा।
लाल बत्ती
लाल बत्ती के इंतजार की घड़ी और लंबी हो सकती है। सत्ता के गलियारों से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, दर्जन भर से अधिक बोर्ड और आयोगों में अब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के बाद ही पोस्टिंग होगी। एक तो राज्य के खजाने की स्थिति अच्छी नहीं है, ऐसे में वह सफेद हाथियों को अभी पालना नहीं चाहती। फिर, उसके पीछे पार्टी की अपनी रणनीति भी है। विधायक और नेता दोनों चुनावों में गंभीरता से काम करें। चुनाव के नतीजे आने के बाद ही अब लाल बत्ती बंटेंगी।
फेयरवेल
एके सिंह सिर्फ पीसीसीएफ ही नहीं, बल्कि प्रभावशाली आईएफएस थे। 31 अगस्त को उनके फेयरवेल में इसकी झलक भी दिखी। आईएफएस एसोसियेशन ने बिदाई समारोह का आयोजन किया था। उसमें चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड, समेत डीजीपी एएन उपध्याय, एसीएस डीएस मिश्रा, अजय सिंह, एनके असवाल जैसे कई आईएएस, आईपीएस ने शिरकत की। जिस हाईप्रोफाइल अंदाज में उनकी बिदाई हुई, मार्केट में यह चर्चा तो होनी ही थी कि रिटायरमेंट के बाद सिंह को सरकार अच्छी पोस्टिंग दे रही है। सूचना आयुक्त तो है ही, उससे कुछ बड़ा भी हो जाए, तो अचरज नहीं।
घर मत भेजो पति को
ट्रांसफर निरस्त कराने के लिए मंत्रियों और अफसरों के सामने लोग दिलचस्प तर्क दे रहे हैं। किसी को अचानक हर्ट प्राब्लम हो गया है, किसी की मां बीमार है तो किसी को बूढ़े पिताजी की सेवा करनी है। बहुओं को सास-ससुर भले ही बला से कम नहीं लगते, मगर तबादला होते ही उन्हें सास-ससुर की बीमारी की चिंता सताने लगी है। पंचायत विभाग के एक केस की महकमे में जबर्दस्त चर्चा है। रायपुर से लगे एक जिले की भाजपा नेत्री के हसबैंड का ट्रांसफर उनके गृह नगर हुआ है। पति घर आ गए, इससे नेत्री को खुश होना चाहिए तो उल्टे वे अफसरों पर दबाव बना रही है कि मेरे मिस्टर को वहीं रहने दिया जाए। याने घर से दूर ही। कारण? यह पंचायत, कृषि और श्रम विभाग वाले बता सकते हैं या फिर पार्टी वाले।
प्रेशर
राशन कार्ड विवाद को देखते भाजपा के भीतर नगरीय निकाय चुनाव कराया जाए या नहीं इस पर मंथन शुरू हो गया है। हिमाचल और उत्तराखंड में जिस तरह हुआ, उसको देखते पार्टी को आशंका है कि राशन कार्ड की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ सकती है। पार्षदों ने ही फर्जी राशन कार्ड बनवाया, और कार्ड निरस्त होने पर वे अपने वार्ड में किस मुंह से वोट मांगने जाएंगे। चिंता स्वाभाविक है। सो, चुनाव स्थगित करने सरकार पर प्रेशर बन सकता है।
हफ्ते का एसएमएस
लड़का, ज्योतिष से, बाबाजी मेरी शादी क्यों नहीं हो रही है? ज्योतिष, पगले तेरी किस्मत में सुख-ही-सुख है, तो शादी कैसे होगी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पीडब्लूडी विभाग का सिकरेट्री चेंज होने से कौन खुश होगा, राजेश मूणत या आरपी मंडल?
2. राज्य शासन के कर्मचारियों का रिटायरमेंट 60 से 62 करने का आर्डर सरकार क्या वापिस ले लेगी?
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