तरकश, 20 सितंबर
संजय दीक्षित
अशोक जुनेजा के खुफिया चीफ बनने के बाद स्पोट्र्स कमिश्नर का पोस्ट वैकेंट हो गया है। इस पोस्ट के लिए सरकार की मेरिट में चार नाम हैं। दो आईपीएस, दो आईएफएस। आईपीएस में राजीव श्रीवास्तव और जीपी सिंह और आईएफएस में संजय शुक्ला और राकेश चतुर्वेदी। राजीव श्रीवास्तव पहले भी डायरेक्टर स्पोट्र्स रह चुके हैं। पीएचक्यू में वे अभी एडीजी सीआईडी हैं। जाहिर है, ये पोस्ट किसी को रास नहीं आता। ऐसे में, कोई भी जोर मारेगा। जीपी सिंह भी डायरेक्टर स्पोट्र्स रह चुके हैं। अभी आईजी रायपुर हैं। वैसे, स्पोट्र्स कमिश्नर के लिए संजय शुक्ला का नाम सबसे उपर था। मगर बताते हैं, वे अपना नाम विड्रो कर चुके हैं। बचे राकेश चतुर्वेदी। राकेश अभी डायरेक्टर कल्चर हैं। स्पोट्र्स मिनिस्टर भैयालाल राजवाडे़ के क्लोज भी हैं। फिर लोकल भी। खांटी रायपुरिया। खुद भी बास्केट बाल के खिलाड़ी रहे हैं और खिलाडि़यों के बीच पैठ भी गहरी है। सो, उनका पलड़ा भारी बैठ रहा है। अगर ऐसा हुआ तो राज्य में पहली बार कोई आईएफएस स्पोट्र्स कमिश्नर बनेगा। बहरहाल, मामला आईपीएस वर्सेज आईएफएस हैं। इसमें जो जीता, वो सिकंदर।
फस्र्ट लेडी एसआरपी
पारुल माथुर राज्य की पहली महिला रेलवे एसपी अपाइंट की गई हैं। इससे पहले, मध्यप्रदेश के समय 1993 में अरुणा मोहन राव रायपुर में एसआरपी थीं। पारुल हाल ही में लंबी छ्ट्टी से लौटी हैं। इससे पहले वे बेमेतरा की एसपी रहीं। हालांकि, उनके बाद स्टेट में किसी महिला आईपीएस को एसपी बनने का मौका नहीं मिला। जबकि, महिला आईएएस गजब की होड़ कर रही हैं। छह जिलों की कलेक्टर आखिर वही हैं। इनमें दुर्ग, रायगढ़ और अंिबकापुर जैसे जिले हैं। पारुल राज्य के रिटायर आईपीएस राजीव माथुर की बेटी हैं। राजीव माथुर रायपुर के आईजी, एडीजी प्रशासन और डीजी होम गार्ड जैसे अहम पदों पर रहे। बाद में, डेपुटेशन पर वे डीजी आरपीएफ बनकर दिल्ली चले गए थे। चलिये, उनके पिता आरपीएफ में शीर्ष पद पर रहे हैं। तो इसका लाभ पारुल को भी मिलेगा। जीआरपी और आरपीएफ में टकराव के हालात तो नहीं बनेंगे।
दो पीसीसीएफ और
हालांकि, मीडिया में ये खबर अभी नहीं आई हैं। मंगलवार को कैबिनेट ने पीसीसीएफ के दो पदों की मंजूरी दे दी है। वन प्लस, वन। एक कैडर, एक एक्स कैडर। एक पीसीसीएफ हर्बल बोर्ड के लिए दूसरा स्टेट रिसर्च सेंटर के लिए। अभी चार पीसीसीएफ हैं। अब, छह हो जाएंगे। नए दो पदों के लिए तीन दावेदार हैं। दिवाकर मिश्रा, प्रदीप पंत और बीके सिनहा। दिवाकर अभी एसईसीएल में डेपुटेशन पर हैं। उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन मिल जाएगा। बचे पंत और सिनहा। दोनों की लाटरी निकलना तय है। हालांकि, यह भी सही है सिनहा जोर नहीं लगाते तो ये कदापि नहीं हो पाता। एडिशनल से तीनों को रिटायर होना पड़ता। जीतेंद्र उपध्याय टाईप। उन्होंने हाउस को तो साधा मगर हाउस से ही सब कुछ नहीं होता। ब्यूरोक्रेसी में फाइल जाकर डंप हो गई। सिनहा ने पूरी सरकार को साधा और काम बन गया। तभी तो उन्हें वन विभाग का चाणक्य कहा जाता है।
उपध्याय युग
अशोक जुनेजा को खुफिया चीफ बनवाकर डीजीपी अमरनाथ उपध्याय ने पुलिस महकमे में अब अपनी स्थिति और सुदृढ़ कर ली है। पुलिस मुख्यालय में अब जितने आईपीएस हैं, वे सभी या तो उनके रिकमांडेशन से लाए गए हैं या फिर उनके भरोसेमंद हैं। सो, ऐसा कहा जा सकता है कि राज्य बनने के बाद पहली बार पीएचक्यू में सिर्फ डीजीपी का गुट होगा। ऐसा तो सबसे ताकतवर डीजीपी विश्वरंजन के समय भी नहीं रहा। उनके समय भी विरोध के दबे स्वर लोग महसूस करते रहे। वैसे, पीएचक्यू में डीजीपी के बाद तीन पोस्ट अहम होते हैं। खुफिया चीफ, प्लानिंग एन प्रोविजनिंग याने पीएनपी और प्रशासन। उपध्याय ने डीजीपी बनते ही साफ-सुथरी छबि के आईपीएस संजय पिल्ले को पीएनपी मंे ले आए थे। खुफिया में अब, जुनेजा आ गए हैं। बहुत कम लोगों का पता होगा कि जुनेजा को खुफिया में लाने के लिए उपध्याय शिद्दत से लगे थे। पुराने पीएचक्यू के समय से ही। जुनेजा के लिए प्लस यह रहा कि वे डीजीपी के पसंद थे तो सीएम और सीएम सचिवालय के भी। सिंगल नाम था। मुकेश गुप्ता का पांच साल हो भी गया था। इसलिए, जुनेजा का नाम ओके होने में दिक्कत नहीं हुई। और अब तीसरे अहम पोस्ट, प्रशासन में राजेश मिश्रा एडीजी हैं। वे जुनियर हैं। सो, अब कह सकते हैं पीएचक्यू में उपध्याय युग शुरू हो गया है। इससे पहले, विश्वरंजन बेहद पावरफुल रहे। तो अपने हाईप्रोफाइल कैरियर के चलते। उपध्याय की सुनवाई इसलिए हो रही है कि उनका अपना कोई एजंडा नहीं है।
हाईप्रोफाइल कैरियर
नए खुफिया चीफ अशोक जुनेजा का हाई प्रोफाइल कैरियर रहा है। बिलासपुर और रायगढ़ के एसपी, रायपुर और दुर्ग के एसएसपी। बिलासपुर और रायपुर के आईजी। एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, स्पोर्ट्स कमिश्नर। सेंट्रल डेपुटेशन। कामनवेल्थ गेम के सिक्यूरिटी इंचार्ज भी रहे। पोस्टिंग के मामले में उन्हें छत्तीसगढ़ का सबसे किस्मती आईपीएस कहा जा सकता है। मगर उस समय वे बुरे वक्त के शिकार हो गए, जब दुर्ग आईजी से पीएचक्यू लौटने के महीना भर के भीतर उन्हें होम सिकरेट्री बनाकर दूसरी बार मंत्रालय में डंप कर दिया गया। तब वे भी नहीं समझ पाए थे, ये हुआ कैसे? इसके पीछे दो वजह मानी गईं। एक तो मंत्रालय में लंबे समय से पोस्टेड एएन उपध्याय को एडीजी प्रशासन बनाना था। और दूसरा, डा0 आनंद कुमार का तब डीजीपी बनना लगभग तय हो गया था। जुनेजा के कुमार से अच्छे रिश्ते हैं। सो, उनके विरोधियों को लगा कि कुमार के चलते कहीं वे आवश्यकता से अधिक कहीं पावरफुल ना हो जाएं। सो, उन्हें पहले ही ठिकाने लगा दिया गया। हालांकि, कुमार ने बाद में खुद ही आने से इंकार कर दिया। इधर, जुनेजा की किस्मत ने फिर चमक गई।
इंम्पोटेंस क्यों?
इंटेलिजेंस चीफ की अहमियत इसलिए नहीं है कि उसे हर साल सिक्रेट सर्विस के नाम पर आठ करोड़ रुपए मिलते हैं और उसका कोई हिसाब नहीं मांगता। खुफिया चीफ का मतलब बेहिसाब पावर है। सीएम से उसे मिलने के लिए टाईम लेने की जरूरत नहीं पड़ती। दिन में कम-से-कम एक बार वह सीएम से अनिवार्य तौर पर मिलकर उन्हें ब्रीफ करता है। सारे एसपी और आईजी सुबह फोन करके इंटेलिजेंस इनपुट्स देते हैं। वीआईपी सुरक्षा से लेकर फोर्स की तैनाती तक खुफिया विभाग हैंडिल करता है। वैसे भी, फोन टेप करने वाली मशीन खरीदकर डीएम अवस्थी खुफिया विभाग को और मजबूत कर गए थे। इसके कारण नेता हो या अधिकारी, सब खुफिया विभाग से चमकते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सीनियर आईपीएस डीएम अवस्थी क्या पुलिस मुख्यालय लौट रहे हैं?
2. मुकेश गुप्ता इंटेलिजेंस में पूरे पांच बरस रहे, इसके बाद भी उनके हटने पर कहानियां क्यों गढ़ी जा रही है?
2. मुकेश गुप्ता इंटेलिजेंस में पूरे पांच बरस रहे, इसके बाद भी उनके हटने पर कहानियां क्यों गढ़ी जा रही है?
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