7 अगस्त
संजय दीक्षित
अपने मंत्रालय याने महानदी भवन में फाइलें किस तरह मूव होती हंै, इसकी एक बानगी आपको बताते हैं। दुर्ग कलेक्टर आर संगीता को पिछले साल मई में दो महीने की ट्रेनिंग पर जाना था। सरकार ने दुर्ग के तत्कालीन सीईओ जिला पंचायत जीपी पाठक को प्रभारी कलेक्टर बनाने का आर्डर निकाला। लेकिन, संगीता ऐसा नहीं चाहती थी। उन्होंने रायपुर कमिश्नर को आपत्ति करते हुए लिखा कि पाठक ठीक नहीं हैं…..हार्टिकल्चर विभाग का पेमेंट रोक दिया है, इन्हें किसी भी सूरत में जिले का प्रभार न दिया जाए। कमिश्नर अशोक अग्रवाल ने इस लेटर को पोस्टमैन की तरह सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया। अब, इसके बाद का क्लास देखिए। इस एपीसोड के के दो महीने बाद पाठक का रायपुर ट्रांसफर हो गया। पिछले अगस्त से वे रजिस्ट्रार सहकारिता हैं। और, उधर मंत्रालय में दुर्ग के प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग की फाइल मोटी होती जा रही है। जीएडी और हार्टिकल्चर के अफसर नियमों की किताबें खंगाल कर नोटिंग पर नोटिंग लिखे जा रहे हैं। दरअसल, जीएडी के अफसरों ने देखा कि संगीता ने हार्टिकल्चर का पेमेंट का जिक्र किया है, तो फाइल हार्टिकल्चर को भेज दिया। जबकि, हार्टिकल्चर याने एग्रीकल्चर विभाग के अफसरों का कहना है मेन इश्यू पाठक को प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग है, सो जीएडी जाने। और, जीएडी का कहना है कि हार्टिकल्चर का पेमेंट रोकने के कारण संगीता ने प्रभारी कलेक्टर बनाने पर आपत्ति की है, इसलिए डिसाइड वो करें। इस चक्कर में फाइल 200 पेज से भी ज्यादा मोटी हो गई है। ये तो सूत न कपास, जुलाहों में लठ्मलठ्ठ वाला मामला हो गया है। संगीता ट्रेनिंग करके पिछले साल जुलाई में लौट आई। पाठक भी साल भर से रायपुर में हैं। और, जीएडी एवं एग्रीकल्चर विभाग गुत्थमगुत्था हो रहे हैं।
होना क्या था-जीएडी के अफसरों को संगीता और पाठक की बात सुनकर फाइल को नस्तीबद्ध कर देना चाहिए था।
अपने मंत्रालय याने महानदी भवन में फाइलें किस तरह मूव होती हंै, इसकी एक बानगी आपको बताते हैं। दुर्ग कलेक्टर आर संगीता को पिछले साल मई में दो महीने की ट्रेनिंग पर जाना था। सरकार ने दुर्ग के तत्कालीन सीईओ जिला पंचायत जीपी पाठक को प्रभारी कलेक्टर बनाने का आर्डर निकाला। लेकिन, संगीता ऐसा नहीं चाहती थी। उन्होंने रायपुर कमिश्नर को आपत्ति करते हुए लिखा कि पाठक ठीक नहीं हैं…..हार्टिकल्चर विभाग का पेमेंट रोक दिया है, इन्हें किसी भी सूरत में जिले का प्रभार न दिया जाए। कमिश्नर अशोक अग्रवाल ने इस लेटर को पोस्टमैन की तरह सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया। अब, इसके बाद का क्लास देखिए। इस एपीसोड के के दो महीने बाद पाठक का रायपुर ट्रांसफर हो गया। पिछले अगस्त से वे रजिस्ट्रार सहकारिता हैं। और, उधर मंत्रालय में दुर्ग के प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग की फाइल मोटी होती जा रही है। जीएडी और हार्टिकल्चर के अफसर नियमों की किताबें खंगाल कर नोटिंग पर नोटिंग लिखे जा रहे हैं। दरअसल, जीएडी के अफसरों ने देखा कि संगीता ने हार्टिकल्चर का पेमेंट का जिक्र किया है, तो फाइल हार्टिकल्चर को भेज दिया। जबकि, हार्टिकल्चर याने एग्रीकल्चर विभाग के अफसरों का कहना है मेन इश्यू पाठक को प्रभारी कलेक्टर की पोस्टिंग है, सो जीएडी जाने। और, जीएडी का कहना है कि हार्टिकल्चर का पेमेंट रोकने के कारण संगीता ने प्रभारी कलेक्टर बनाने पर आपत्ति की है, इसलिए डिसाइड वो करें। इस चक्कर में फाइल 200 पेज से भी ज्यादा मोटी हो गई है। ये तो सूत न कपास, जुलाहों में लठ्मलठ्ठ वाला मामला हो गया है। संगीता ट्रेनिंग करके पिछले साल जुलाई में लौट आई। पाठक भी साल भर से रायपुर में हैं। और, जीएडी एवं एग्रीकल्चर विभाग गुत्थमगुत्था हो रहे हैं।
होना क्या था-जीएडी के अफसरों को संगीता और पाठक की बात सुनकर फाइल को नस्तीबद्ध कर देना चाहिए था।
अंदर की बात
भले ही भारत सरकार ने आईएएस डा0 आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के खिलाफ अपराधिक मुकदमा चलाने की इजाजत दे दी हो मगर कम-से-कम टुटेजा को इससे राहत मिल सकती है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग की वह प्वाइंट पकड़ ली है, जिसे भारत सरकार को भेजने में चूक हो गई। 28 अगस्त 2014 के गाइडलाइन में भारत सरकार ने अभियोजन के लिए अनुशंसा करने के लिए चेक प्वाइंट निर्धारित किया था। जीएडी ने इसे ओवरलुक कर दिया। सो, सिंगल बेंच में मामला खारिज होने के बाद टुटेजा ने डबल बेंच में जो रिट दायर की है, उसमें इसी प्वाइंट को बेस बनाया है। उन्होंने तर्क दिया है कि अभियोजन की अनुमति के लिए जीएडी ने भारत सरकार के नार्म के अनुसार अनुशंसा नहीं की। कानून के जानकारों की मानें तो यह बड़ा ग्राउंड है। अब, आप ये मत पूछिए कि जीएडी ने यह चूक क्यों की। यह अंदर की बात है।
बेचारे कुजूर
छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह दूसरा मौका होगा कि कोई आईएएस प्रमोशन ड्यू होने के आठ महीने बाद भी टकटकी लगाए बैठा हो। इससे पहिले विवेक ढांड के साथ ऐसा हुआ था। उन्हें एक साल बाद एसीएस बनने का मौका तब मिला, जब डीएस मिश्रा एसीएस बनने के लिए एलीजेबल न हो गए। विवेक 81 बैच के और डीएस 82 बैच के आईएएस थे। लेकिन, विवेक और डीएस एक साथ प्रमोट हुए। इस स्थिति से 87 बैच के सुनील कुजूर भी दो-चार हो रहे हैं। वैसे तो इस बैच में उनके अलावे डा0 आलोक शुक्ला और अजयपाल सिंह भी हैं। लेकिन, शुक्ला नान केस में फंस गए हैं। लिहाजा, जीएडी ने कुजूर औैर अजयपाल का नाम भारत सरकार को भेजा है। अगर आईएएसवाद नहीं चला तो सीआर के कारण अजयपाल कट सकते हैं। अब, बचे कुजूर। उनकी हालत क्लास के पुअर विद्यार्थी की हो गई है। जनवरी में उन्हें कायदे से एडिशनल चीफ सिकरेट्री बन जाना था। मगर आठ महीने बाद भी कोई चर्चा नहीं है। जबकि, इससे पहले अधिकांश आईएएस ने जोर-जुगाड़ लगाकर छह महीने, साल भर पहिले प्रमोशन करा लिया। चीफ सिकरेट्री खैर इस दर्द को जानते हैं कि इसलिए 87 बैच को अब उन्हीं से उम्मीद है।
सरोज का बढ़ता कद!
बीजेपी नेत्री सरोज पाण्डेय भले ही लोकसभा चुनाव में शिकस्त खा गई पर, पार्टी के राष्ट्रीय कैनवास पर उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले उन्हें महाराष्ट्र का प्रभारी महासचिव बनाया। इस बार गुजरात के सीएम चुनने के लिए अमित शाह और नीतिन गडगरी के साथ पर्यवेक्षक बना दी गईं। खबर है, वे अमित शाह की क्लोज होती जा रही हैं। जाहिर है, छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं के लिए यह चिंता का सबब हो सकता है।
दो और दावेदार
इस महीने दो और आईएएस रिटायर हो जाएंगे। सिकरेट्री phe बीएल तिवारी और सिकरेट्री लोक सेवा आयोग डा0 बीएस अनंत। याने पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए दावेदारों की संख्या और बढ़ जाएगी। इस साल अभी तक पांच आईएएस रिटायर हो चुके हैं। दिनेश श्रीवास्तव, डीएस मिश्रा, एसएल रात्रे, ठाकुर राम सिंह और राधाकृष्णन। दो और मिलाकर अब सात हो जाएंगे। इनमें से रात्रे और अनंत को छोड़ दें तो सभी लाल और नीली बत्ती के प्रबल दावेदार हैं। सरकार जैसे-जैसे पोस्टिंग को लंबा खींच रही है, कांपीटिशन टफ होता जा रहा है। इस महीने रिटायर हो रहे बीएल तिवारी को भी कम मत आंकिएगा। कवर्धा में एसडीएम रहे हैं। सरकार से पुराना ताल्लुकात हैै। नान आईएएस में पीपी सोती और आईएएस में बीएल ऐसा फेस है कि दरबार में खड़े होने की देर है। पोस्टिंग की बाट जोह रहे अफसरों को यही तो चिंता खाए जा रही है। पुनर्वास क्भ् जगह सीमित है और विकल्प बढ़ता जा रहा है।
मंत्रियों का विरोध
9 अगस्त के आदिवासी सम्मेलन के लिए सरकार ने ट्राइबल मिनिस्टर्स रामसेवक पैकरा, केदार कश्यप और महेश गागड़ा को यह सोचकर जिम्मेदारी सौंपी है कि वे आदिवासी समाज की नुमाइंदगी करते हैं, तो इसमें घोखा भी हो सकता है। क्योंकि, तीनों मंत्रियों का समाज के भीतर स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। सीएम बोलते हैं, इलाके से आए कार्यकर्ताआंें को मंत्री चाय पिलाएं। मगर इन मत्रियों से मिलना भी टेढ़ा काम है। यही कारण है कि 9 अगस्त के कार्यक्रम में शरीक न होने के लिए बीजेपी के भीतर का एक धड़ा सामने आ गया है। यह खेमा लोगों पर जोार डाल रहा है कि वे रायपुर के सम्मेलन में न जाएं। सो, अगर सरकारी मदद न मिला तो कार्यक्रम फ्लाप भी हो सकता है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. कांग्रेस में मीडिया चेयरमैन पोस्ट को खतम करने के लिए पीसीसी पर प्रेशर क्यों बनाया जा रहा है और, क्या शिव डहरिया को जोगी पर बोलने के लिए प्रवक्ता बनाया जाएगा?
2. एक आईएफएस अफसर का नाम बताएं, जो सीएस आफिस के नजदीक तो हैं ही, सीएम सचिवालय के भी क्लोज हो गए हैं?
2. एक आईएफएस अफसर का नाम बताएं, जो सीएस आफिस के नजदीक तो हैं ही, सीएम सचिवालय के भी क्लोज हो गए हैं?
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