12 फरवरी
संजय दीक्षित
भारत सरकार के गृह सचिव हो या प्रदेश के, दोनों का अपना ओहरा होता है। गृह सचिव के इशारे के बिना पुलिस में पत्ता नहीं हिलता। लेकिन, बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी एपीसोड में लगा ही नहीं कि राज्य में कोई सिकरेट्री होम भी है। सरकार ने जबकि बीबीआर सुब्रमण्यिम को इसी भरोसे से गृह विभाग की कमान सौंपी थी कि पीएमओ में लंबे समय तक रहे हैं, पुलिस के साथ नक्सल मूवमेंट को आसानी से हैंडिल कर लेंगे। लेकिन, पुलिस के आला अधिकारी भी मानते हैं, पीएस होम ने बस्तर के घटनाक्रम को इंटरेस्ट लेकर हैंडिल किया होता तो ये सिचुएशन सरकार को फेस नहीं करने पड़ते। हो सकता था कि कल्लूरी को वहां से हटाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। जाहिर है, बस्तर के संवेदनशीलता को देखते गृह विभाग लगातार रिव्यू किया होता तो ये परिस्थितियां निर्मित नहीं होती। वैसे, गृह मंत्री रामसेवक पैकरा भी अंत तक कहते रहे, कल्लूरी काबिल आफिसर हैं, वे बस्तर के आईजी बनें रहेंगे। याने उन्हें पता ही नहीं था कि वहां क्या रहा है। खैर, उनका दूध-भात। हालांकि, इस प्रकरण में ग्राफ पुलिस महकमे का भी गिरा है। क्योंकि, जिस विभाग में विवाद जितना कम होता है, सरकार उससे उतना ही प्रसन्न रहती है। कल्लूरी प्रकरण में सरकार की जमकर किरकिरी हुई। ऐसे में उसके गुस्से का आप अंदाजा लगा सकते हैं।
भारत सरकार के गृह सचिव हो या प्रदेश के, दोनों का अपना ओहरा होता है। गृह सचिव के इशारे के बिना पुलिस में पत्ता नहीं हिलता। लेकिन, बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी एपीसोड में लगा ही नहीं कि राज्य में कोई सिकरेट्री होम भी है। सरकार ने जबकि बीबीआर सुब्रमण्यिम को इसी भरोसे से गृह विभाग की कमान सौंपी थी कि पीएमओ में लंबे समय तक रहे हैं, पुलिस के साथ नक्सल मूवमेंट को आसानी से हैंडिल कर लेंगे। लेकिन, पुलिस के आला अधिकारी भी मानते हैं, पीएस होम ने बस्तर के घटनाक्रम को इंटरेस्ट लेकर हैंडिल किया होता तो ये सिचुएशन सरकार को फेस नहीं करने पड़ते। हो सकता था कि कल्लूरी को वहां से हटाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। जाहिर है, बस्तर के संवेदनशीलता को देखते गृह विभाग लगातार रिव्यू किया होता तो ये परिस्थितियां निर्मित नहीं होती। वैसे, गृह मंत्री रामसेवक पैकरा भी अंत तक कहते रहे, कल्लूरी काबिल आफिसर हैं, वे बस्तर के आईजी बनें रहेंगे। याने उन्हें पता ही नहीं था कि वहां क्या रहा है। खैर, उनका दूध-भात। हालांकि, इस प्रकरण में ग्राफ पुलिस महकमे का भी गिरा है। क्योंकि, जिस विभाग में विवाद जितना कम होता है, सरकार उससे उतना ही प्रसन्न रहती है। कल्लूरी प्रकरण में सरकार की जमकर किरकिरी हुई। ऐसे में उसके गुस्से का आप अंदाजा लगा सकते हैं।
जय हो!
कल्लूरी एपीसोड में सबसे ज्यादा कोई नफे में रहा तो वे हैं 86 बैच के आईपीएस डीएम अवस्थी। पिछले साल स्पेशल डीजी नक्सल बनने के बाद से अवस्थी डिफेंसिव खेल रहे थे। कल्लूरी के रहते उनके फास्ट खेलने का मौका भी नहीं था। बस्तर में उनका ऐसा ओहरा बन गया था कि डीएम को वहां कौन पूछता। लेकिन, कल्लूरी के हटने एवं सुंदरराज पी के बस्तर के प्रभारी आईजी बनने के बाद एक तरह से कहें तो नक्सल मूवमेंट की कमान डीएम के हाथों में आ गई है।
किस्मत का खेल
आईपीएस अफसरों के लिए 2017 की ग्रह दशा ठीक नहीं है। साल की शुरूआत ही खराब हो गई….सेकेंड वीक ऑफ जनवरी आईजी राजकुमार देवांगन को सरकार ने जय राम जी कर दिया। इसके बाद जशपुर एसपी गिरिजाशंकर की किस तरह सरकार ने छुट्टी की, बताने की जरूरत नहीं। नक्सलियों को बैकफुट पर जाने के लिए विवश करने वाले एसआरपी कल्लूरी की स्थिति लाइन अटैच जैसी हो गई है। उस कल्लूरी की, जिसके काम के बल पर दिल्ली की मीटिंगों में सरकार अपनी पीठ थपथपाती थी। सूबे के सबसे डेसिंग वाले आईपीएस मुकेश गुप्ता को बेहद मामूली मैटर में हाईकोर्ट का चक्कर लगाना पड़ गया। ज्योतिषियों की मानें तो पुलिस के गुरू में मंगल बैठा है। इसलिए, कम-से-कम जून तक ये चलता रहेगा। इसके बाद ही आईपीएस के दिन फिरेंगे।
सूचना आयोग में दलित कार्ड?
सरकार ने मिड जनवरी में रेवन्यू सिकरेट्री केएम पिस्दा को पीएससी को चेयरमैन बनाकर बड़ा दांव चला था। इसका न केवल आदिवासियों में अच्छा मैसेज गया बल्कि, आदिवासी एक्सप्रेस चलाने की धमकी देने वाले आदिवासी नेताओं के हथियार की धार भी कम कर दिया। पीएससी के बाद अब राज्य में कोई बड़ा संवैधानिक पद बचा है तो वह है, सूचना आयोग। आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी पिछले 11 महीने से खाली पड़ी है। और, ऐसा माना जाता है कि किसी खास अफसर के लिए कुर्सी पर रुमाल रखा गया है। लेकिन, ध्यान दीजिएगा…..राजनीति में समय-काल महत्वपूर्ण होता है। सरकार का चौथा साल याने सेमीफायनल शुरू हो गया है। इस दौरान जो भी नियुक्तियां होंगी, निश्चित रूप से उसके राजनीतिक मायने होंगे। ऐसे में, सूचना आयोग के दावेदारों में इस बात की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है कि सरकार कहीं दलित कार्ड चलते हुए किसी अजा वर्ग के आईएएस को सीआईसी न बना दें। एसीएस ट्राईबल एनके असवाल दो महीने बाद रिटायर होने वाले हैं। सरकार जिस मोड में बैटिंग कर रही है, भरोसा भी नहीं है। आखिर, महीने भर पहिले कल्लूरी नक्सल मोर्चे पर वापिस आएंगे….कल्लूरी आईजी बनें रहेंगे, बयान देने वाली सरकार ने किस तरह उनसे पल्ला झाड़ लिया। संकेत मिल रहे हैं, बजट सत्र के बाद कोई अफसर अब नहीं खेलना है, बोलकर खुद ही पेवेलियन लौट जाए। ताकि, सीआईसी की कुर्सी उसके हाथ न चली जाए। जाहिर है, अप्रैल, मई महीना ब्यूरोक्रेसी के लिए काफी चौंकाने वाला रहेगा। तब तक उत्सुकता तो बनी रहेगी कि सूचना आयोग में सरकार दलित कार्ड चलती है या जिसके नाम का रुमाल रखा है, उसकी ताजपोशी करेगी।
बिदा हुए बैजेंद्र
सहवाग स्टाईल में बैटिंग कर आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट एन बैजेंद्र कुमार बिदा हुए। राजधानी रायपुर में आज शुरू हुए आईएएस कानक्लेव के जनरल बॉडी मीटिंग में 83 बैच के आईएएस अजय सिंह को एसोसियेशन का नया प्रेसिडेंट चुना गया। अजय सिंह सूबे के दूसरे सबसे सीनियर आईएएस हैं। बैजेंद्र आईएएस के लिए हितों के लिए कभी पीछे नहीं हटे। सुनील कुजूर को एसीएस बनाए बिना स्टेट पुलिस सर्विस के अफसर राजीव श्रीवास्तव को जब स्पेशल डीजी बनाया जा रहा था तो बैजेंद्र अड़ गए। जीएडी के अफसरों को उन्हांने जमकर हड़काया। उनके कड़े विरोध का नतीजा रहा कि सरकार को पहले कुजूर को एसीएस बनाया गया। फिर, राजीव को स्पेशल डीजी। अजय सिंह रवि शास्त्री और अंशुमन गायकवाड़ स्टाईल के बैट्समैन हैं। इसलिए, अब वैसे शार्ट्स देखने नहीं मिलेंगे।
रैंक सुधार
कलेक्टर कांफें्रस में मुख्यमंत्री ने कलेक्टर्स एवं सीईओ को पुअर पारफारमेंस वाले अफसरों को रैंक सुधारने के लिए तीन महीने का समय दिया था। अप्रैल में डाक्टर साब इसका रिव्यू करेंगे। और, उसी आधार पर फिर कलेक्टर्स एवं सीईओज को नई पोस्टिंग मिलेंगी। यही वजह है कि सूबे के समूचे कलेक्टर रैंक सुधार में जुट गए हैं। बस्तर में पार्टियां होनी बंद हो गई है। 10 जनवरी को काफें्रस था और 12 को बस्तर में एक बड़ी पार्टी होनी थी। तत्काल उसे कैंसिल किया गया।
विकल्प-ही-विकल्प
एसआरपी कल्लूरी को जब हटाया गया तो सरकार ने भी नहीं सोचा होगा कि एक आईजी की इतनी टीआरपी होगी। आईजी राजकुमार देवांगन की बर्दी उतर गई तो दो दिन में वे मीडिया से आउट हो गए। कल्लूरी के बारे में लोग रोज अनुमान लगाते हैं, अब मामला खतम है। मगर अगले दिन वे दूसरे रूप में प्रगट होकर चौंका देते हैं। सरकार ने जिस दिन उनकी छुट्टी स्वीकृत किया था और वे सभी मित्रों को राम-राम करते हुए इलाज कराने गए थे, किसने सोचा होगा कि वे लौटकर फिर अचंभित करेंगे। पीएचक्यू में कल उनकी ज्वाइनिंग हुई तो समझा गया, मामले की इतिश्री हो गई। लेकिन, उन्होंने तो कौन है भूपेश…..पूछकर ब्यूरोक्रेसी ही नहीं, सियासी नेताओं को भी हिला दिया। इस लहजे में तो बीजेपी के किसी नेता ने भी भूपेश पर पलटवार नहीं किया होगा। नौकरशाह तो ऐसा दुःसाहस कर ही नहीं सकता। कल्लूरी के बयान को देखते ही राजधानी में आज अफवाह फैली कि वे जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़ सकते हैं। इस पर बीजेपी के एक नेता की टिप्पणी दिलचस्प रही…..भूपेश के अंदाज में बात करने वाले आदमी की हमारे पास कमी है…। याने कल्लूरी के लिए विकल्प ही विकल्प है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. निधि छिब्बर के दिल्ली जाने के बाद जीएडी का अगला सिकरेट्री कौन होगा?
2. एसआरपी कल्लूरी को हटाने के बाद सरकार ने किस समीकरण को देखते तमिलियन आईपीएस सुंदरराज पी को बस्तर भेजा?
2. एसआरपी कल्लूरी को हटाने के बाद सरकार ने किस समीकरण को देखते तमिलियन आईपीएस सुंदरराज पी को बस्तर भेजा?
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