11 अगस्त 2019
किसी भी सरकार की कामयाबी के पीछे फिफ्टी परसेंट राजनीतिक इच्छाशक्ति होती है और फिफ्टी परसेंट रोल ब्यूरोक्रेसी का होता है। सरकार फैसला लेती है और ब्यूरोक्रेसी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का काम करती है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में ऐसा हो नहीं रहा। विधानसभा, लोकसभा चुनाव के आचार संहिता के बाद ब्यूरोक्रेसी में ऐसी जड़ता आ गई है कि पूछिए मत! रिचार्ज ही नहीं हो पा रही। सरकार जो धरातल पर कुछ करती दिख रही है, वह सिर्फ और सिर्फ सीएम भूपेश बघेल के चलते…. सीएम अकेले 80 परसेंट काम कर दे रहे तो ब्यूरोक्रेसी 20 परसेंट से उपर नहीं जा पा रही। मंत्रालय से लेकर जिलों में कलेक्टरों तक यही हाल है। कलेक्टर्स गोठानों को तड़क-भड़क बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिए हैं, उसके अलावा कुछ और नहीं। तो मंत्रालय के सिकरेट्रीज शतरंज के घोड़े की तरह ढाई घर ही चल रहे…इससे ज्यादा नहीं। मंत्रालय का आलम यह है कि मंत्रियों का अभी तक सचिवों से तालमेल नहीं बैठ पाया है। लब्बोलुआब यह है कि ब्यूरोक्रेट्स आगे बढ़कर बाॅल को मारने की कोशिश नहीं कर रहे हंै। सीएम बीच-बीच में चैका, छक्का जड़कर सरकार का रन रेट जरूर ठीक कर देते हैं। वरना, स्थिति विकट हो जाती। ऐसे में ये सवाल मौजूं है, ब्यूराके्रसी की शिथिलता आखिर कब तक बनी रहेगी….आगे बढ़कर खेलने से वे हिचक क्यों रहे हैं….सरकार को इसके निदान ढंूढने चाहिए। क्योंकि, इसका नुकसान सरकार को भी तो होगा। सरकार जनता से जुड़े नित बड़े फैसले ले रही है मगर उसका प्रोजेक्शन नहीं हो पा रहा।
सरकार की भी उलझनें
ब्यूरोक्रेसी को लेकर सरकार की भी अपनी दिक्कतें हैं। 15 साल भाजपा का शासन रहा है। सूबे में जो चंद अच्छे अफसर हैं, वे या तो रमन इफेक्ट वाले हैं या फिर उनके दामन साफ नहीं है। तीसरे केटेगरी के अफसरों पर सरकार दांव लगाएगी, तो उनसे रिजल्ट की उम्मीद नहीं की जा सकती। और, रमन टैग वालों को आगे लाने कंशस एलाउ नहीं करेगा….हल्ला भी मचेगा। जैसे मुकेश गुप्ता को रायपुर का आईजी बनाने पर भाजपा के समय कोहराम मचा था। ऐसे में सरकार करें तो क्या करें।
सीएम नाराज क्यों
निगम-मंडलों में लाल बत्ती के दावेदारोें ने सीएम भूपेश बघेल को नाराज कर दिया है। दिल्ली जाने के दौरान एयरपोर्ट पर उन्हें कहना पड़ गया….जो ज्यादा आगे-पीछे होगा उसकी दावेदारी खतम समझो। दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद दावेदारों के डिमांड ने उन्हें परेशान कर दिया है। निगम भी ऐसी मांग रहे कि दिमाग चकरा जाए। पार्षद का इलेक्शन नहीं निकाल सकते और बात बड़े-बड़े बोर्ड की। सीएम हाउस की देहरी पर पहंुचने वाले हर दूसरे नेता को या तो अपने आदमी की ट्रांसफर, पोस्टिंग चाहिए या फिर भूपेश भैया…..मुझे ये बना दीजिए। और, सिर्फ रायपुर के ही नहीं। बलरामपुर से लेकर सुकमा तक के लोग तगादा मारने पहंुच जा रहे। सीएम किसी सरकारी कार्यक्रम में जा रहे तो वही लोग और किसी पारिवारिक कार्यक्रम में जाएं तो वहां भी यही स्थिति। ऐसे में, किसे झल्लाहट नहीं आएगी।
इन्हें मौका नहीं
लाल बत्ती के लिए पहली लिस्ट जल्द निकलने वाली है। पता चला है, पहली सूची में उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी, जिन्हें विधानसभा या लोकसभा चुनाव का टिकिट नहीं मिला था। विधायकों को वैसे भी मौका नहीं मिलने वाला। सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है, विधायकों को निगम-मंडल में जिम्मेदारी नहीं जाएगी। पहली सूची में बिलासपुर के अटल श्रीवास्तव जरूर अपवाद हो सकते हैं। उन्हें पहली लिस्ट में एडजस्ट किया जा सकता है। हालांकि, सरकार के ध्यान में ये बात भी है, बीजेपी साल-डेढ़ साल के पहिले नेताओं को पोस्टिंग नहीं देती थी। तीनो बार अरबन चुनाव के बाद ही नेताओं को लाल बत्ती मिली। तीसरी पारी में तो नगरीय चुनाव के तीन महीने बाद नियुक्ति प्रारंभ हो पाई थी। भाजपा की पाॅलिसी थी, लाल बत्ती के लिए ही सही नेता नगरीय चुनाव में ठीक से काम करेंगे। आईडिया तो अच्छा है। अब सरकार पर यह निर्भर करत है….कुछ लोगोें को नियुक्ति दे दे। या फिर, नवंबर में नगरीय चुनाव के बाद एक साथ करें।
नो ब्यूरोक्रेट्स
राज्य सूचना आयोग में एके सिंह के पिछले महीने रिटायर होने से सूचना आयुक्त का एक पद खाली हुआ है। सिंह रिटायर पीसीसीएफ थे। जाहिर है, इस पोस्ट पर रिटायर या रिटायर होने वाले नौकरशाहों की नजरें होंगी। लेकिन, उन्हें यह जानकार निराशा हो सकती है कि उनके लिए सूचना आयोग में चांस बहुत कम है। ज्यादा संभावना है, किसी गैर नौकरशाह की इस पद पोस्टिंग हो जाए। वह एक्टिविस्ट भी हो सकता है।
पहली बार पत्रकार
कुशाभाउ पत्रकारिता यूनिवर्सिटी में जल्द ही नए कुलपति की नियुक्ति हो सकती है। संकेत हैं, पहली बार किसी पत्रकार को इस विवि का कुलपति बनने का अवसर मिलेगा। निधिश त्यागी, सुदीप ठाकुर के नाम चल भी रहे हैं। दोनों छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। फिलहाल, दिल्ली में है। बहरहाल, निधिश हों, सुदीप हों या कोई और….यह पक्का है, नया वाइस चांसलर कोई जर्नलिस्ट ही होगा। सरकार ने पत्रकारों के अनुकूल सलेक्शन पाॅलिसी में एमेडमेेंट कर भी दिया है।
मंत्रियों के नाते-रिश्तेदार
कांग्रेस के कैडर में दो तरह के लोग हैं। एक राजनांदगांव के नवाज खान के केटेगरी के। उनका वीडियो आपमें से ज्यादतर लोगों ने देखा होगा। ऐसे लोग अपनी परंपरागत भाषा और शैली का इस्तेमाल कर अपना काम करा लेते हैं। दूसरा है, दरी बिछाने वालों का। दरी बिछाने वाले पहले भी हांसिये पर रहे हैं और अब भी कमोवेश उसी स्थिति में हैं। मंत्रियों के यहां इनकी कोई सुनवाई नहीं है। हाल ही की बात है, एक कार्यकर्ता अपने भांजे के ट्रांसफर के लिए मंत्री के बंगले गया था। ट्रांसफर का काम मंत्रीजी के साले देख रहे हैं। साले साब ने कार्यकर्ता को समझाया, जानते हो कितनी मुश्किल में जीजाजी मंत्री बनें हैं, सिस्टम तो फाॅलो करना ही पड़ेगा। अधिकांश मंत्रियों के यहां यही सिचुएशन है। भाई-भतीजे या ससुराल वाले ट्रांसफर की सूची तैयार कर रहे हैं। दरी बिछाने वालों की वहां कोई पूछ नहीं है। जबकि, असली कांग्रेसी वही हैं। व्हाइट काॅलर वाले कांग्र्रेसियों को ठेका, सप्लाई या ट्रांसफर, पोस्टिंग के काम रमन सरकार में भी हो जाते थे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पुलिस वाले आईएएस सुब्रत साहू को क्यों अपना अगला गृह सचिव मान कर चल रहे हैं?
2. किस एसपी ने एक बड़े आसामी को एक केस में छोड़ने की एवज में धमतरी के पास 40 एकड़ जमीन अपने नाम करा लिया?
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