रविवार, 17 अक्टूबर 2021

तेरे घर के सामने-1

 एनआरडीए ने घर के सामने रेलवे स्टेशन बनने का हवाला देकर  नया रायपुर में सेक्टर-15 के लगभग सारे प्लाट सेल कर डाले। प्लॉट लेने वालों में ढाई दर्जन से ज्यादा छत्तीसगढ़ के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस हैं। कई दूरदर्शी अफसरों ने दो-दो प्लॉट परचेज कर डाले कि आज नहीं तो 20 साल बाद सही, नाती-पोतों के लिए हैंडसम एसेट खड़ा हो जाएगा। लेकिन, उन्हें झटका तब लगा, जब रोकड़ा के अभाव में एनआरडीए ने स्टेशन का प्रोजेक्ट बाइंडअप करने का फैसला ले लिया। जाहिर है, इससे ब्यूरोक्रेट्स नाराज होंगे ही....घर के सामने स्टेशन बनेगा, यह सोचकर ही तो पैसा फंसाए थे। अब सुनने में आ रहा...अफसरों की नाराजगी को भांपते हुए एनआरडीए के अधिकारियों ने रास्ता निकाला है। अब चार स्टेशनों के पुराने टेण्डर को निरस्त कर सिर्फ सेक्टर-15 के सामने एक स्टेशन बनाने के लिए नया टेंडर निकाला जाएगा। याने अब चार की जगह सिर्फ एक स्टेशन बनेगा....अधिकारियों के घर के सामने।

तेरे घर के सामने-2

एनआरडीए के पास जब धन की कमी है तो सवाल उठता है, सेक्टर-15 के सामने रेलवे स्टेशन बनाने के लिए पैसा किधर से आएगा। पता चला है, इसके लिए स्मार्ट सिटी से 45 करोड़ रुपए निकाला जाएगा। हालांकि, ये भी असान नहीं है। क्योंकि, पहले ये एनआरडीए का टेंडर था। अब स्मार्ट सिटी से बनाने के लिए इसके बोर्ड आफ डायरेक्टर से पारित कराना होगा। ठीक है....अफसरों का मामला है तो सब हो जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे पिछली सरकार को झांसा देकर नौकरशाहों ने अपनी धरमपुरा कालोनी के सामने से फोर लेन निकाल दिया। तब सरकार को समझाया गया...साहब वीआईपी रोड का चौड़ीकरण करना बेहद कठिन काम है...बड़े-बड़े होटल हैं, उन्हें तोड़ने पर विवाद होगा। लिहाजा, एयरपोर्ट के लिए वैकल्पिक रोड बनाना बेहद जरूरी है। और फिर पीडब्लूडी ने 200 करोड़ का फोर लेन बनाकर अफसरों के 200 रुपए फुट की जमीन को तीन हजार रुपए फुट कर दिया। इसमें क्लास यह हुआ कि धरमपुरा में जैसे ही नया रोड बना, वीआईपी रोड की चौड़ीकरण की बाधाएं दूर हो गई और वहां सिक्स लेन रोड का प्रारुप तैयार कर दिया। व्हाट एन आइडिया....! 

अफसर को घर नहीं!

जिले के कलेक्टर, एसपी को अगर सरकारी आवास न मिले तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी में सरकारी आवासों की क्या स्थिति है। बताते हैं, रायपुर के एसएसपी को महीने भर बाद भी अभी मकान फायनल नहीं हुआ है। तो जांजगीर कलेक्टर से रायपुर आने के बाद आईएएस यशवंत कुमार को लंबे समय तक कृषि विभाग के गेस्ट हाउस में गुजारना पड़ा। उन्हें न तो देवेंद्र नगर के आईएएस कालोनी में आवास मिल सका और न कचना के जीएडी कालोनी में। थक-हार कर उन्होंने एग्रीकल्चर कालोनी में अपना आशियाना बनाया है। वो भी ग्रेड से नीचे का मकान में। लेकिन, यशवंत क्या करें...मजबूरी है। दरअसल, आवासों की दिक्कत इसलिए पैदा हुई है कि कई अफसर ट्रांसफर हो जाने के बाद भी मकान खाली नहीं कर रहे। संपदा विभाग ने उन्हें कई बार नोटिस सर्व कर चुका है। फिर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। दूसरी वजह है...देवेंद्र नगर कालोनी में राजनीतिज्ञों को भी आवास आबंटन किया जाना। हालांकि, पिछली सरकार में इसकी शुरूआत हो गई थी। सबसे पहिले वहां चरणदास महंत और स्व0 नंदकुमार पटेल को आवास दिया गया। अब संख्या और बढ़ गई है। ऐसे में, किल्लत तो होगी ही। 

सैल्यूट या नमस्ते!

राज्य सरकार ने सूबे में नया प्रयोग करते हुए सीनियर आईपीएस दिपांशु काबरा को जनसंपर्क आयुक्त की कमान सौंपी है। चूकि सूबे में यह पहली बार हुआ है लिहाजा लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। और शायद इसीलिए दिपांशु की पोस्टिंग पर खूब चुटकी ली जा रही। जनसंपर्क अधिकारियों से लोग पूछ रहे आपलोग नए साब को नमस्ते ठोकते हो या सैल्यूट। मजाक भी चल रहा...अब बंदूक के साये में कलम...। हालांकि, छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है। दीगर राज्यों के लिए यह नया नहीं है। पड़ोसी या यों कहें कि अपने पुराने राज्य मध्यप्रदेश में आशुतोष प्रताप सिंह दूसरी बार डीपीआर हैं। 2010 बैच के आशुतोष को सीएम शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री की अपनी तीसरी पारी में डीपीआर बनाया था। बाद में कमलनाथ ने उन्हें हटा दिया। मगर शिवराज फिर सत्ता में आए तो आशुतोष को दूसरी बार जनसंपर्क की कमान सौंप दी। दिपांशु काबरा के बैचमेट बृजेश सिंह महाराष्ट्र में पूरे चार साल जनसंपर्क प्रमुख रहे। दिपांशु को सरकार की छबि चमकाने वाले विभाग की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे समझा जाता है मीडिया से उनके फेंडली टर्म एक वजह होगी।  

आईपीएस की पोस्टिंग

अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह ने आईपीएस अधिकारियों को दीगर विभागों में पोस्ट करना शुरू किया था। याद होगा, तब कई आईपीएस जिला पंचायतों में सीईओ बनाए गए थे तो विभागों के प्रमुख भी। लेकिन, छत्तीसगढ़ बनने के बाद आईएफएस अधिकारियों ने पोस्टिंग में आईपीएस अफसरों को किनारे कर दिया। दिपांशु अगर जनसंपर्क में कामयाब रहे तो आईपीएस अधिकारियों के पुलिस के इतर दूसरे विभागों में भी पोस्टिंग के विकल्प खुलेंगे। जाहिर है, इससे पुलिस वाले प्रसन्न होंगे।  

ये कैसी कार्रवाई?

बिलासपुर में पुलिस अधिकारियों के बियर-बार में हंगामा और मारपीट मामले में मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद दो महिला डीएसपी की रवानगी डाल दी गई। मगर आश्चर्यजनक तौर पर एक महिला सीएसपी को न केवल बख्श दिया गया। बल्कि, कप्तान ने ईनाम देते हुए सीएसपी को चार और थाने की जिम्मेदारी सौंप दी। सवाल उठता है, आखिर न्याय में ये दोहरा मापदंड क्यों? अगर मंत्री पुत्रों को जात-भाई का संबंध निभाना था तो फिर बाकी दोनों के खिलाफ कार्रवाई क्यों?

कांग्रेस के कमलप्रीत

पिछले हफ्ते कांग्रेस के जनरल सिकरेट्री वेणुगोपाल ने एक के बाद एक कई आदेश निकाले। एक रोज तो तीन-तीन। ठीक उसी तरह जैसे बैक-टू-बैक आदेश जीएडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह निकालते हैं। वेणुगोपाल का आदेश देख कांग्रेसी चुटकी लेने से नहीं चूके....कांग्रेस के कमलप्रीत सिंह बन गए हैं वेणुगोपाल।

इत्तेफाक ऐसा भी

भले ही ये इत्तेफाक हो सकता है....मगर इस पर लोग खूब मजे ले रहे हैं। दरअसल, झारखंड के बॉडर स्टेट जशपुर में कलेक्टर भी अग्रवाल और एसपी भी अग्रवाल हो गए हैं। सरकार ने पहले विजय अग्रवाल को एसपी बनाकर भेजा फिर रितेश अग्रवाल को कलेक्टर। हालांकि, टेम्परामेंट के मामले में दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं। मगर काम और ऑनेस्टी में मिलता-जुलता माना जा सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्हें सर्विस से बर्खास्त किया जा सकता है?

2. समाज कल्याण विभाग के कथित घोटाले में अफसरों को राहत मिली है या उलझनें बढ़ी है?

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