संजय के. दीक्षित
तरकश, 12 दिसंबर 2021
2014 बैच के आईएएस अमृत टोपनो ने नौकरी से इस्तीफा तो भेजा है मगर दिक्कत यह है कि मजमूं क्लियर नहीं हो पा रहा। चीफ सिकरेट्री, एसीएस टू होम और जीएडी सिकरेट्री को व्हाट्सएप पर आए मैसेज में उपर इस्तीफा लिखा तो है मगर नीचे में उसका कोई उल्लेख नहीं। टोपनो के व्हाट्सएप से मंत्रालय के अधिकारी भी उलझन में पड़ गए हैं....यंग आईएएस का किया क्या जाए। अलबत्ता, जीएडी ने टोपनो को हार्ड पेपर में लेटर भेजने कहा है, मगर अभी तक उनका कोई रिप्लाई नहीं आया है। टोपनो को प्रॉब्लम क्या है, इस बारे में उनके बैच वाले भी कुछ बता नहीं पा रहे। सिर्फ इतना ही पता है कि वे झारखंड लौट चुके हैं।
शैलेष की याद
आईएएस अमृत टोपनो ने इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे से शैलेष पाठक का इस्तीफा जेहन में आ गया। अजीत जोगी सरकार में काफी पावरफुल अधिकारी रहे शैलेष पाठक 2005 में इस्तीफा देकर प्रायवेट सेक्टर में चले गए थे। लेकिन, ढाई-तीन साल बाद उनका वहां जमा नहीं, मन भी बदला। चूकि दिल्ली में अच्छा कंटेक्ट था, सो वहां उन्होंने जमा लिया। मगर पेंच यह था कि राज्य सरकार अनुमोदन करें। डीओपीटी ने शैलेष को भरोसा दिया था कि आप राज्य सरकार से लेटर ओके करा लाओ, बाकी यहां कोई दिक्कत नहीं। मगर यहां सीएम सचिवालय ने उन्हें दो टूक इंकार कर दिया। सीएम सचिवालय के एक सीनियर और दबंग आईएएस ने मुख्यमत्री रमन सिंह से दो टूक कह दिया...सर, इससे गलत परिपाटी बन जाएगी...नौकरी से त्यागपत्र देकर प्रायवेट में चले जाओ और फिर घूम फिरकर लौट आओ। इस तरह पाठक की वापसी का एपीसोड खतम हो गया।
सीएम की मारुति
नया रायपुर में इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईविंग एंड रिसर्च के लोकापर्ण समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भाषण दे रहे थे...उन्होंने बताया मेरे पास पहले मोटर सायकिल थी। 93 में जब पहली बार विधायक बना तो नया मोटर सायकिल लेने गया। बाइक एजेंसी वाले ने सलाह दी...भैया अब आप विधायक बन गए हो, मोटरसायकिल में मजा नहीं आएगा...अब तो कार होना चाहिए। बाइक एजेंसी वाले की मारुति की एजेंसी भी थी। उसने मुझे मारुति 800 खरीदवा दी। सीएम ने बताया, मारुति ने उनका काफी साथ दिया। चूकि इंस्टीट्यूट को मारुति के साथ पीपीपी मोड में चालू किया जा रहा। सो, समारोह में मारुति के जेपेनिज एमडी और सीओओ भी मौजूद थे। राज्य के मुखिया द्वारा मारुति की तारीफ मिलने से वे बेहद खुश हुए।
दूसरे आईपीएस
धार्मिक हिंसा के बाद कवर्धा एसपी मोहित गर्ग आखिरकार हटा दिए गए। उनकी जगह पर लाल उमेद सिंह ने वापसी की है। उमेद पहले भी करीब ढाई साल वहां एसपी रह चुके थे। कवर्धा में ये उनकी दूसरी पारी होगी। आईपीएस मेें उनसे पहले सिर्फ रतनलाल डांगी को एक ही जिला में दो बार कप्तान रहने का मौका मिला है। वे कोरबा में दो बार एसपी रहे। वहीं, कलेक्टरों में जिला रिपीट केवल सुबोध सिंह ने किया। वे रायपुर से बिलासपुर गए थे और वहां से लौटकर फिर बिलासपुर।
बेचारे सिकरेट्री
सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी के पहले हफ्ते में आईएएस का प्रमोशन हो सकता है। इस बार 2006 बैच के आईएएस सिकरेट्री बनेंगे और 97 बैच वाले प्रिंसिपल सिकरेट्री। 97 बैच में छत्तीसगढ़ कैडर में तीन आईएएस हैं। सुबोध सिंह, एम गीता और निहारिका बारिक। सुबोध सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। निहारिका बारिक डेढ़ साल की छुट्टी पर। और गीता भी लगभग डेपुटेशन पर ही। लगभग का मतलब ये कि वे छत्तीसगढ़ भवन ही सही, हैं तो दिल्ली में। और यह भी सही है कि किसी भी दिन भारत सरकार से उनका डेपुटेशन का आर्डर आ सकता है। 2006 बैच में अंकित आनंद, श्रुति सिंह, दयानंद, सीआर प्रसन्ना, अलेक्स पाल मेनन, भूवनेश यादव और भारतीदासन हैं। ये सभी सिकरेट्री बन जाएंगे। हालांकि, 2005 बैच को सिकरेट्री बनने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे लेकिन इस बैच में नहीं लगता कि कोई दिक्कत होगी। याने एक साथ सात सिकरेट्री मिलेंगे सरकार को। 26 तो पहले से हैं, ये सात और। याने अब 33 सिकरेट्री। पता नहीं...इतने थोक में सिकरेट्री उपलब्ध होने पर बेचारों को क्या विभाग मिलेंगे।
नए कलेक्टर, एसपी
तीन नए जिलों का नोटिफिकेशन तो हो गया मगर अभी तक ओएसडी की तैनाती नहीं हुई है। अगर 26 जनवरी के आसपास भी अगर नए जिलों का इनॉग्रेशन करना हो, तब भी अब ओएसडी की नियुक्ति का अब समय आ गया है। जाहिर है, नए जिलों में कलेक्टर, एसपी बनने वाले आईएएस, आईपीएस सरकार के आदेश पर टकटकी लगाए बैठे हैं।
मखाना और मैडम
बैठकों में सीएम भूपेश बघेल सिर्फ भृकुटी ही नहीं चढ़ाते...अगर किसी अधिकारी का दिन खराब हो तो बात अलग है....वरना, चुटकी, हंसी-ठिठोली भी हो जाती है। इसी हफ्ते सीएम हाउस में आयोजित गोधन न्याय योजना के भुगतान की बैठक में आरंग के एक किसान वीवीआईपी के लिए मखाना लेकर आए थे। लेकिन, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को देने के बाद अधिकारियों का नम्बर आया तो मखाना खतम हो गया। मुख्यमंत्री इसको समझ गए। जैसे ही बैठक खतम हुई उन्होंने अपना मखाना दो सीनियर आईएएस को यह कहते हुए दे दिया कि ले जाओ, आपलोगों की मैडम खुश हो जाएंगी। इस पर जमकर ठहाके लगे।
अफसरों का भगवा ड्रेस
पिछले हफ्ते राजधानी में मैराथन दौड़ हुआ। इसमें हिस्सा लेने एक एक्स चीफ सिकरेट्री समेत कई बड़े अधिकारी पहुंचे। मैराथन को हरी झंडी दिखाने के ठीक पहले आयोजकों ने प्रतिभागियों को चटख भगवा रंग का टीषर्ट पहना दिया। अब अधिकारियों को टीशर्ट निकालते बने, न पहनते। कार्यक्रम में मीडिया वाले भी थे, सो टीशर्ट उतार भी नहीं सकते थे। लिहाजा, कई अफसर बीच में ही मैराथन छोड़ टीशर्ट उतार दिया तो कुछ लोग जैसे ही दौड़ खतम हुई, सबसे पहले ड्रेस बदला। डर था, कहीं कोई देख लिया तो....।
तीन उमेश
सरकार की छबि चमकाने वा
ले जनसंपर्क विभाग में पहले दो उमेश थे। दोनों उमेश मिश्रा। इनको आईडेंटीफाई करने के लिए कहा जाता था दिल्ली वाले उमेश और दूसरे को संवाद वाले उमेश। एक को दिल्ली वाले इसलिए क्योंकि वे लंबे समय तक दिल्ली में पोस्टेड रहे। जनसंपर्क में अब एक और उमेश की इंट्री हो गई है। याने तीसरा उमेश। ये उमेश पटेल डिप्टी कलेक्टर हैं। पोस्ट है संवाद महाप्रबंधक। इन्हें अब क्या कहा जाए...ये दुविधा दूर की...सीपीआर ने। उन्होंने व्यवस्था दी है, इन्हें फुल नेम उमेश पटेल से आईडेंटिफाई किया जाए।
रायपुर की पोलिसिंग
6 दिसंबर की रात राजधानी के टिकरापारा इलाके में तनाव की स्थिति निर्मित हुई। स्थिति बिगड़े मत, एसएसपी प्रशांत अग्रवाल सुबह पांच बजे तक टिकरापारा थाने में मोर्चा संभाले रहे। कहने का आशय यह कि अगर सीनियर और संजीदा अफसर होते तो एसएसपी की वहां जरूरत ही नहीं पड़ती। दरअसल, राज्य तो अलग बन गया मगर 21 साल गुजर गए...राजधानी की पोलिसिंग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। रायपुर जैसे 12 लाख से अधिक आबादी वाले शहर को कंट्रोल करने के लिए सिर्फ एसएसपी से हमाली नहीं कराई जा सकती। जब भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो गया, उसके उलट रायपुर के कप्तान के पास अदद एक सिटी एसपी तक नहीं है। 13 साल पहले स्व0 विनोद चौबे जरूर अषोक जुनेजा के एसएसपी रहने के दौरान सिटी एसपी रहे। लेकिन, उनके ट्रांसफर के बाद यह पद खतम हो गया। रायपुर जैसे शहर को संभालने के लिए अब जरूरी हो गया है, कप्तान को मजबूत हैंड दिया जाए। कम-से-कम दो एसपी याने एक सिटी और एक एसपी ग्रामीण की पोस्टिंग हो। दोनों आईपीएस हो। उसके बाद फिर चार जोन में शहर को बांटकर चार एडिशनल एसपी। 18 लाख की आबादी वाले भोपाल में एडीजी रैंक का पुलिस कमिश्नर। फिर डीआईजी रैंक के चार एडिशनल कमिश्नर। एसपी रैंक के 12 डिप्टी कमिश्नर और एडिशनल एसपी लेवल के 30 एएसपी। और 12 लाख वाले रायपुर की सुरक्षा....? एक एसएसपी और दो एडिशनल एसपी के भरोसे। वक्त आ गया है, सरकार को राजधानी की पोलिसिंग सेटअप को दुरूस्त करने पर विचार करना चाहिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. डेपुटेशन से लौट रहे राजेश मिश्रा को क्या कोई महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिलेगी?
2. क्या ये सही है कि एनआरडीए ने नया रायपुर में नौकरशाहों की जमीनों का रेट बढ़ाने उनके सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनाने का टेंडर कर दिया है?
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