संजय के. दीक्षित
तरकश, 17 जुलाई 2022
छत्तीसगढ़ में ट्रांसफर पर बैन के बावजूद तीन साल में हजारों की संख्या में तबादले हो गए। बिना समन्वय की मंजूरी के। जबकि, नियमानुसार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समन्वय समिति के अनुमोदन के बाद ही ट्रांसफर होने चाहिए। लेकिन, अगर बाड़ ही खेत खा जाए तो क्या किया जा सकता है। कई विभागों के मंत्रियों और सचिवों ने नियमों को दरकिनार करते हुए बड़ा खेल कर डाला। एक विभाग में हजार से अधिक ट्रांसफर हो गए। ठीक है, समन्वय के बिना अनुमोदन ट्रांफसर हुए तो क्या विभागों के सचिवों को नहीं पता था कि ट्रांसफर पर बैन लगा है। आखिर, आदेश तो सिकरेट्री की हरी झंडी देने पर ही अंडर सिकरेट्री निकालते हैं। ऐसे में, सिकरेट्री की जिम्मेदारी नहीं बनती? सरकार ने अब तीन साल में हुए ट्रांसफर की जानकारी मंगाई है। कुछ विभागों की रिपोर्ट देखकर सरकार के अफसर दंग रह गए। तो क्या ऐसे सचिवों पर कार्रवाई होगी? सवाल तो उठते ही हैं।
खटराल पीए
सरकार पिछले दिसंबर से बोल रही कि मंत्रियों के निजी स्थापना में पोस्टेड अधिकारियों को दीगर दायित्वों से हटाया जाए। आठ महीने में जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो इस हफ्ते जीएडी सिकरेट्री डीडी सिंह ने सचिवों को फिर पत्र लिख 24 घटे के भीतर कार्रवाई कर अवगत कराने कहा। इसके बावजूद कई मंत्री अपने निजी सहायकों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं। एक डिप्टी कलेक्टर मंत्री के पीएस के साथ ही मलाईदार बोर्ड में बैठे हैं। मंत्रीजी ने उन्हें कह दिया है, कोई चिंता नहीं। एक आदिवासी मंत्री के निजी स्थापना में कार्यरत अधिकारी के पास चार-चार विभाग है। वे भी अपने प्रिय पीए को छोड़ने तैयार नहीं। यही स्थिति अमूमन मंत्रियों के साथ हैं।
3.1 फीसदी कमीशन का राज
एक मंत्री अपने डिप्टी कलेक्टर पीएस को इसलिए छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहे कि उसका मुंह काफी छोटा है। मुंह छोटा का मतलब बेहद कम कमीशन लेना। उसने विभाग में होने वाले निर्माण कार्यो या सप्लायरों से 3.1 प्रतिशत कमीषन तय कर दिया है। तीन परसेंट मंत्रीजी को और प्वाइंट वन परसेंट खुद। मंत्रीजी के पास ईमानदारी से तीन परसेंट पहुंचा दिया जाता है। अब ऐसा पीएस कहां मिलेगा। कई पीएस एक परसेंट तक झटक लेते हैं।
बेचारा कलेक्टर!
हेडिंग पर आपत्ति हो सकती है...कलेक्टर बेचारा कैसे? मगर मुंगेली जैसे जिले के लिए ये शब्द एप्रोपियेट लगता है। एक तो छोटा-सा जिला...हंड्रेड परसेंट सूखा, न्यूसेंस उतने ही ज्यादा। डीएमएफ भी मात्र पांच करोड़। अब पांच करोड़ में कलेक्टर क्या खाएगा, क्या निचोड़ेगा। जिले के एक हिस्से में अचानकमार का टाईगर रिजर्व। तो एक बडा़ इलाका बेहद संवेदनशील। वहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है। देखा ही आपने...जिला पंचायत के आईएएस सीईओ के साथ क्या हुआ। उपर से जिले के तीन विधायक...तीनों विपक्ष के और अनुभवी तथा सीनियर। एक तो नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक। दूसरे चार बार के सांसद और चार बार से अधिक के विधायक पूर्व मंत्री पुन्नूराम मोहिले। तीसरे तो और बड़े वाले...धाकड़ नेता धरमजीत सिंह। इनके उपर कलेक्टरी नहीं झाड़ी जा सकती। अब आपही बताइये, ऐसे जिले के कलेक्टर को और क्या कहा जाएगा?
पंगा नहीं
बात मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की निकली है तो ये बताना लाजिमी होगा कि ब्यूरोक्रेसी में अगर पति-पत्नी दोनों आईएएस, आईपीएस हैं तो लोग पंगा लेने से बचते हैं। क्योंकि, एक नाराज हुआ तो फिर जाहिर है, उसके पति या पत्नी से दुष्मनी मोल लेनी पड़ेगी। ब्यूरोक्रेसी में ऐसे कपल काफी ताकतवर माने जाते हैं। मुंगेली कलेक्टर राहुल देव की पत्नी आईपीएस हैं। अंबिकापुर जैसे ब़ड़े जिले की एसपी। इसके बाद भी सूरजपुर के कांग्रेसियों ने गलत शिकायत करके जिला पंचायत पद से राहुल को निबटवा दिया। ठीक है...वक्त सबका आता है।
डीएमएफ से रैकिंग
छत्तीसगढ़ में डीएमएफ की मीनिंग बदल गई है। डीएमएफ मतलब डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड नहीं डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फंड हो गया है। और इसी फंड से आजकल जिले की रैंकिंग तय की जा रही है। जिस जिले में डीएमएफ ज्यादा, वह सबसे बड़ा जिला। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक कोरबा में डीएमएफ है, उसके बाद दंतेवाड़ा। और फिर रायगढ़। पहले बताया जाता था इतने ब्लाक का जिला है। अब पूछा जाता है, डीएमएफ कितना है। कलेक्टर भी यह बोलकर गर्वान्वित होते हैं कि हमारे जिले में इतना डीएमएफ है।
ब्यूरोक्रेसी का हफ्ता
पिछला हफ्ता छत्तीसगढ़ की नौकरशाही के लिए अच्छा रहा। डीजीपी अशोक जुनेजा केंद्र में डीजी इम्पेनल किए गए। विश्वरंजन के बाद डीजी इम्पेनल होने वाले वे छत्तीसगढ़ के दूसरे आईपीएस होंगे। उधर, आईएएस में एडिशनल चीफ सिकेरट्री रेणु पिल्ले भारत सरकार में सिकरेट्री इम्पेनल हुईं। वहीं, 2005 बैच के दो आईएएस ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल किए गए। इस बैच की संगीता आर और एस प्रकाश पहले ही ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल हो चुके हैं। हालांकि, 2005 बैच में कुछ प्रमोटी आईएएस भी हैं लेकिन, उनका नम्बर नहीं लगा। वैसे भी प्रमोटी आईएएस में केंद्र में ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल होने वालो में दो ही अफसर रहे हैं। एक दिनेश श्रीवास्तव और दूसरे डीडी सिंह।
राज्यपाल सहमत नहीं
राज्य सरकार ने रोजगार मिशन और मितान क्लब के संचालन के लिए स्टाम्प ड्यूटी पर एक फीसदी उपकर लगाने के लिए अध्यादेश लाया था। इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी। लेकिन, राज्यपाल अनसुईया उइके इस पर सहमत नहीं हुई। उन्होंने अध्यादेश को लौटा दिया। हो सकता है सरकार अब इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश करें। विधानसभा में सरकार के पास बहुमत भी है, पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
मंत्री की मीटिंग
एक मंत्री अपने जिले में अधिकारियों की मीटिंग लेनी चाही। इसके लिए उनका स्टाफ जिला प्रशासन से संपर्क किया। मीटिंग का टाईम तय हो गया और आदेश भी निकल गया। इसके कुछ देर बार अपर कलेक्टर ने दूसरा आदेश निकालकर मीटिंग केंसिल कर दी। इससे ये सवाल पैदा नहीं होता कि जिला प्रशासन मंत्री को खामोख्वाह सहानुभूति अर्जित करने का मौका नहीं दे रहा है। मंत्री भी कम चतुर थोड़े ही हैं, अभी से जनता क बीच माहौल बनाना शुरू कर दिए हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग का त्याग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, सरकार ने अगर इसे स्वीकार नहीं किया तो संवैधानिक प्रक्रिया क्या होगी?
2. किस विभाग में मंत्री के भाई को पूरा काम मिल रहा है?
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