रविवार, 14 अगस्त 2022

मुझको भी लिफ्ट करा दे...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 14 अगस्त 2022

अदनान सामी का एक बड़ा हिट सांग है...तेरी उंची शान मौला...मेरी अर्जी मान मौला...मैं हूं तेरा मान मौला...मुझको भी लिफ्ट करा दे....कैसे-कैसो को दिया है...ऐसे-वैसो को दिया है...बंगला, मोटर, कार दिला दें...मुझको भी...। छत्तीसगढ़ के जिला पंचायतों के पदाधिकारियों पर अदनान सामी का ये गाना फिट बैठता है। उनका दर्द भी कुछ वैसा ही है...निगमों, मंडलों में मनोनित हुए नेताओं को राज्य और कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया और उनकी...निर्वाचित होने के बाद हैसियत कुछ नहीं। खटारी गाड़ी, महीने में 200 लीटर तेल की लिमिट। कहने के लिए पंचायती राज, मगर सीईओ के इशारे के बिना पत्ता नहीं खड़कता। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के समय जिपं अध्यक्षों का जो शानो-शौकत रहा, राज्य बनने के बाद एक-एक कर सब छीनता गया। पहले अजीत जोगी सरकार ने कद कम किया फिर बाद की बीजेपी सरकार ने। हालांकि, इस सरकार ने जिपं पदाधिकारियों को सीईओ का सीआर लिखने के साथ ही वित्तीय अधिकार देने का ऐलान किया था। उनका वेतन तो बढ़ गया मगर पावर नहीं मिला। अगर चेक पर दस्तखत करने का अधिकार मिल जाता तो, खुरचन पानी का बंदोबस्त हो जाता। तभी तो वे लिफ्ट कराने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

प्रमुख सचिव का टोटा

छत्तीसगढ़ में सिकरेट्री तो तीन दर्जन के करीब हो गए हैं मगर प्रमुख सचिव लेवल पर आईएएस अधिकारियों का बड़ा टोटा हो गया है। कुल जमा चार प्रमुख सचिव हैं। डॉ0 आलोक शुक्ला, मनोज पिंगुआ, गौरव द्विवेदी और डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी। इनमें से मनिंदर सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रही हैं। भारत सरकार ने उन्हें पोस्टिंग दे दी है। जाहिर है, उनके पति गौरव द्विवेदी भी देर-सबेर दिल्ली जाएंगे ही। बचेंगे सिर्फ आलोक शुक्ला और मनोज पिंगुआ। दरअसल, राज्य बनने के दौरान जूनियर लेवल पर आईएएस बडे़ कम मिले थे...एक बैच में एक। किसी में वो भी नहीं। मसलन, 88 बैच में सिर्फ केडीपी राव थे। वे रिटायर हो चुके हैं। 89 बैच में भी सिर्फ अमिताभ जैन। वे सीएस हैं। उसके बाद 90 बैच जीरो। 91 में रेणु पिल्ले, 92 में सुब्रत साहू, 93 में अमित अग्रवाल। अमित डेपुटेशन पर हैं। रेणु और सुब्रत एसीएस प्रमोट हो चुके हैं। 94 बैच में जरूर चार आईएएस हैं। मगर मनोज पिंगुआ को छोड़ ऋचा शर्मा, विकासशील और निधि छिब्बर प्र्रतिनियुक्ति पर। 95 बैच के द्विवेदी दंपति यहां से जाने ही वाले हैं। इसके बाद 96 बैच जीरो है। 97 में तीन आईएएस हैं। इनमें से सुबोध और एम गीता डेपुटेशन पर हैं और निहारिका बारिक दो साल से छुट्टी पर। 98 बैच में डॉ0 एसके राजू थे, वे कैडर चेंज करा पंजाब चले गए। 99 बैच में सोनमणि बोरा इसी साल दिल्ली गए हैं। 2000 बैच में शहला निगार हैं। 2002 बैच में रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह। इनमें रोहित पीएमओ में पोस्टेड हैं। 2003 से आईएएस अधिकारियों की संख्या जरूर थोड़ी ठीक-ठाक होनी शुरू हुई। इस बैच में चार आईएएस हैं। सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, ऋतु सेन, रीना बाबा कंगाले और अविनाश चंपावत।

मिडिल आर्डर

क्रिकेट में पारी को संवारने के लिए जो भूमिका मध्य क्रम के बल्लेबाजों की होती है, वहीं रोल मंत्रालय में प्रमुख सचिवों की होती हैं। चूकि 25 साल की सेवा के बाद आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव प्रमोट होते हैं, लिहाजा उनके पास फील्ड के साथ ही मंत्रालय का भी खासा तर्जुबा हो जाता है। बड़े राज्यों में आज भी अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव को ही विभाग का हेड बनाया जाता है। स्पेशल सिकरेट्री को तो कतई नहीं। सचिवों को अगर विभाग दिया भी गया तो पशुपालन टाईप के। याद होगा, आईसीपी केसरी यहां पीडब्लूडी सिकरेट्री थे। मध्यप्रदेश वापिस लौटे तो उन्हें दुग्ध जैसा कोई विभाग मिला था। वैसे, छत्तीसगढ़ में भी पंचायत, हेल्थ, फायनेंस, उर्जा, होम, पीडब्लूडी, फॉरेस्ट जैसे अहम विभागों में प्रमुख सचिव या एसीएस बिठाए जाते थे। सिर्फ एक बार अपवाद को छोड़कर...रमन सिंह की तीसरी पारी के आखिरी समय में जूनियर अफसरों को स्पेशल सिकरेट्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार दिया गया था। बहरहाल, अब सीनियर आईएएस के नाम पर एसीएस में रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू तथा प्रमुख सचिव में मनोज पिंगुआ बचेंगे। कमोवेश यही स्थिति 2028 तक रहेगी। 28 में 2003 बैच के चार आईएएस प्रमुख सचिव प्रमोट होंगे। उसके बाद फिर दिक्कत नहीं होगी। क्योंकि, फिर सभी बैचों में अधिकारियों की संख्या बढ़ती चली गई हैं।

अच्छी बात...मगर

एक समय था, जब छत्तीसगढ़ के दो-एक से अधिक आईएएस अधिकारी दिल्ली में नहीं होते थे। तब डेपुटेशन की अनुमति मिलनी भी थोड़ी कठिन थी। निधि छिब्बर को एनओसी देने के बाद भारत सरकार ने डिफेंस में पोस्टिंग दे दी। लेकिन, स्टेट का अचानक मन बदल गया...रिलीव करने से नो कर दिया गया। सेंट्रल डेपुटेशन से डिबार होने के खतरे को देखते निधि कैट की शरण ली। कैट के आदेश पर राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव किया। मनिंदर कौर जब 2009 में जब पहली बार डेपुटेशन पर गई थीं तो बहुत कम लोगों को पता है कि एनओसी मिलने में उन्हें कितनी कठिनाई हुई थीं। अब स्थिति बदली है। डेपुटेशन के लिए एनओसी मिलने में अब कोई दिक्कत नहीं। कांग्रेस की सरकार आने के बाद पौने चार साल में 12 आईएएस अधिकारियों को केंद्र और इंटर स्टेट डेपुटेशन की अनुमति मिली। इनमें मनिंदर कौर और नीरज बंसोड़ भी शामिल हैं। इन 12 में से सिर्फ तीन आईएएस इंटर स्टेट डेपुटशन पर हैं। अलेक्स पाल मेनन, श्रुति सिंह और संगीता पी0। बाकी इस समय 15 आईएएस केंद्र में हैं और सभी ठीक-ठाक पोजिशन में हैं। मगर ये अवश्य है कि नीरज जैसे काम करने वाले अच्छे अधिकारियों की जरूरत यहां भी है।

राइट टाईम

पहले सेंट्रल डेपुटेशन बड़ा आसान था। ज्वाइंट सिक्रेट्री याने जेएस लेवल तक बिना किसी किंतु परंतु के केंद्र में पोस्टिंग मिल जाती थी। मगर मोदी सरकार ने अब सलेक्शन प्रकिया में काफी कसावट कर दिया है। चौतरफा छानबीन के बाद ही केंद्र में पोस्टिंग मिल रही। ऊपर से नया नियम आ गया है...ज्वाइंट सिक्रेट्री वही इंपेनल हो पाएगा, जो डायरेक्टर के रूप में दो साल केंद्र में सेवा देगा। 2007 बैच से ये नियम प्रभावशील हुआ है। इसे आप ऐसे समझिए...17 साल की सर्विस के बाद आईएएस अफसर केंद्र में जेएस इंपेनल होते हैं। 2005 बैच के मुकेश और रजत पिछले महीने जेएस बने हैं। नए नियम के तहत अब जेएस के पहले दो साल डायरेक्टर के रूप में काम करना होगा। इस दृष्टि से 2007 बैच को अगर 2024 में जेएस इंपेनल होना है, तो ये राइट टाइम है। कह सकते हैं, नीरज ने सही वक्त पर सही डिसिजन लिया।

पहली बार

यह पहला ऐसा मौका होगा, जब सरकार को सिकरेट्र्री हेल्थ और डायरेक्टर हेल्थ एक साथ पोस्ट करना पड़ेगा। सिकरेट्री हेल्थ डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी और डायरेक्टर नीरज बंसोड़ प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। दोनों जिम्मेदार अधिकारियों के एक साथ जाने से हेल्थ के कामकाज में परेशानी तो आएगी। वैसे भी, खब्बू बैट्समैन की तरह नीरज तीन साल से क्रीज पर जमे हुए थे। उनके डायरेक्टर रहते चार सिकरेट्री बदल गए...निहारिका बारिक, आलोक शुक्ला, रेणु पिल्ले। मनिंदर कौर द्विवेदी नीरज की चौथी सिकरेट्री थीं। अब डायरेक्टर भी नए होंगे और सिकरेट्री भी। तो क्या ये समझा जाए कि सरकार अनुभवी अफसर डॉ0 आलोक को हेल्थ की कमान सौंपेगी। आलोक तीन बार हेल्थ की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। दो बार पिछली सरकार में और एक बार इस सरकार में। वो इसलिए कि सरकार के पास विकल्प सीमित हैं। सुब्रत साहू का विभाग अभी हाल में चेंज हुआ है। हालांकि, वे भी एक बार हेल्थ में रह चुके हैं। दूसरी एसीएस ह,ैं रेणु पिल्ले। रेणु के पास कोई बड़ा विभाग नहीं है। रेणु पिल्ले कोविड के दूसरे दौर के दौरान हेल्थ सिकरेट्री रहीं। इसी साल सरकार ने उनके स्थान पर मनिंदर को बिठाया था। मनोज पिंगुआ पहले से ओवर लोडेड हैं। अब देखना है, सरकार आलोक को जिम्मा सौंपती है या किसी और नाम पर टिक लगाती है।

अरुण की चुनौती

बीजेपी ने सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष अपाइंट किया है। अरुण साफ-सुथरी छबि के...जमीनी नेता हैं। पढ़े-लिखे भी। बीजेपी सरकार में 15 साल तक डिप्टी एजी रहे। मुगेली के रहने वाले अरुण पार्टी के कई नेताओं के कांटे रहे हैं। 2013 के लोस चुनाव में भी उनका नाम टिकिट के लिए चला था। मगर कुछ नेताओं ने खतरे को देखते विरोध कर दिया था। 2019 में बिलासपुर संसदीय सीट से टिकिट मिली भी तो उन्हें हराने की कम कोशिशें नहीं हुई। बहरहाल, उनके अच्छे समय आने की चर्चा तो लंबे समय से चल रही थी। मगर अध्यक्ष नियुक्ति की खबर कई बड़े नेताओं को रास नहीं आई। आज एयरपोर्ट पर अरुण का स्वागत करने जरूर बड़े नेताओं का जमावड़ा लगा। लेकिन, 9 अगस्त को तो नियुक्ति की खबर आते ही सन्नाटे जैसी स्थिति रही। बीजेपी के प्रदेश कार्यालय में कैसा उत्साह था, आप इससे समझ सकते हैं कि अरुण के लिए प्रोफाइल तक जारी नहीं किया गया। कहने का आशय यह है कि अरुण भले ही प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं मगर उनके समक्ष खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश में 15 साल वाले मुख्यमंत्री हैं तो 15 साल वाले दर्जन भर मंत्री भी। इन सबसे बीच उन्हें अपनी जगह बनानी होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या मुख्यमंत्री के 15 अगस्त के भाषण में पत्थलगांव, सराईपाली और कटघोरा में से किसी जिले का ऐलान हो सकता है?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि 15 अगस्त के बाद किसी पुलिस अधीक्षक की छुट्टी होगी?


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