संजय के. दीक्षित
तरकश, 24 जुलाई 2022
छत्तीसगढ़ में ताजा सियासी विवाद अब मंत्रिमंडल की सर्जरी तरफ बढ़ता दिख रहा है। हालांकि, सरकार ने सिंहदेव का पंचायत विभाग मुख्यमंत्री ने मंत्री रविंद्र चौबे को सौंप दिया है। मगर सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की भी है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के जरिये विवाद का रास्ता निकालने की कोशिश की जा सकती है। दरअसल, इसकी दो वजहें मानी जा रहीं। पहला, अभी तक भूपेश मंत्रिमंडल में एक बार भी फेरबदल नहीं हुआ है। अमरजीत भगत जब मंत्री बने थे, तब 13 में से एक जगह खाली थी। सो, अमरजीत भूपेश कैबिनेट के तेरहवें मंत्री बने थे। पिछले साल सत्ता के गलियारों में कुछेक बार मंत्रिमंडल में परिवर्तन करने की चर्चा अवश्य चली मगर बात अंजाम तक नहीं पहुंची। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी एकाधिक बार यह कहते हुए फेरबदल की चर्चाओं की तस्दीक कि जो भी होगा हाईकमान की अनुमति के बाद किया जाएगा। मंत्रिमंडल में फेरबदल की दूसरी वजह सिंहदेव हो सकते हैं। उन्होंने चार पन्नों में आरोप लगाते हुए पंचायत विभाग छोड़ने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। इस पत्र को लेकर छत्तीसगढ़ की सियासत में खलबली मची। वैसे, कांग्रेस हाईकमान को भी कोई दिक्कत नहीं होगी कि विधानसभा चुनाव के पहिले भूपेश बघेल अपनी टीम की कसवाट कर लें।
बेचारे मंत्री परेशान
मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से भूपेश मंत्रिमंडल के दो मंत्री सबसे अधिक परेशान हैं। वो हैं खाद्य मंत्री अमरजीत भगत और महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया। हालांकि, खतरा पीएचई मिनिस्टर रुद्र गुरू पर भी मंडरा रहा है मगर अमरजीत और अनिला भेड़िया पर ज्यादा है। उसकी वजह यह है कि सरगुजा से तीन-तीन मंत्री हो गए हैं। टीएस सिंहदेव, डॉ0 प्रेमसाय सिंह और अमरजीत भगत। इसके उलट बस्तर का प्रतिनिधित्व कम है। बस्तर से सिर्फ कवासी लखमा हैं। अनिल भेड़िया आदिवासी मंत्री जरूर हैं, मगर बालोद बस्तर में नहीं आता। राज्य बनने के बाद हमेशा बस्तर से दो मंत्री रहे हैं। पहली बार कांग्रेस सरकार में बस्तर से सिर्फ एक को मंत्री बनने का मौका मिला। अनिला भेड़िया की जगह बस्तर टाईगर कहे जाने वाले स्व0 महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा को मंत्री बनाकर सरकार बड़ा मैसेज देना चाहेगी। हालाकि, अमरजीत के साथ दोनों बातें हैं...या तो आउट हो जाएंगे या फिर और ताकतवर। सियासत को समझने वाले इस बात को बेहतर समझ रहे हैं।
अधिकारियों के मजे
विधानसभा शुरू होने पर खासकर बड़े अधिकारियों के लिए मौज लेने का मौका होता है। मंत्री को ब्रिफिंग के अलावा और कुछ काम होते नहीं। ऑफिस का काम ठप्प....किसी काम के लिए गए तो जवाब मिलेगा...मालूम नहीं, विधानसभा चल रहा है। स्टाफ का भी रटा-रटाया जवाब...साब विधानसभा गए हैं। मगर साब न विधानसभा में होते और न आफिस में। वे घर में बेव सीरीज देखते रहते हैं।
शराब दुकान में झंडा
मनसून सत्र के दूसरे दिन का प्रश्नकाल बड़ा गुदगुदाने वाला रहा। सूबे में मिलावटी शराब की बिक्री को लेकर दोनों पक्षों के विधायकों द्वारा खूब चुटकी ली गई...तो इशारे-इशारे में तंज भी कसे गए। एक विधायक ने यह पूछकर स्पीकर और मंत्री को उलझन में डाल दिया कि सरकार शराब बेच रही तो क्या शराब दुकानें सरकारी संपत्ति हुई और सरकारी संपत्ति है तो 15 अगस्त को वहां झंडा फहराया जाएगा। जाहिर है, इस सवाल का कोई जवाब दे नहीं सकता। सदन में इस पर जमकर ठहाके लगे। हालांकि, स्पीकर भी पूरे मूड में थे। उन्होंने सवाल पूछने वाले नारायण चंदेल से पूछ डाला मिलावटी शराब की बातें सुनी-सुनाई है या आपका व्यक्तिगत अनुभव है? तो धर्मजीत सिंह ने भी चुटकी ली, मंत्रियों द्वारा कॉकटेल जवाब क्यों दिया जा रहा है। दरअसल, कवासी लखमा सवालों में उलझने लगे तो बगल में बैठे मोहम्मद अकबर ने मोर्चा संभाला। इसी पर धर्मजीत ने चुटकी ली।
ट्रांसफर पर मुश्किलें
ट्रांसफर पर बैन के बावजूद हजारों की संख्या में किए गए ट्रांसफर की वजह से छत्तीसगढ़ के मंत्रियों और सचिवों की मुश्किलें बढ़ सकती है। इसको लेकर आम आदमी पार्टी हाईकोर्ट में रिट दायर करने डिटेल जुटा रही है। जाहिर है, इससे मंत्रियों और सचिवों की परेशानी तो बढ़ेगी। दरअसल, मंत्रियों के निर्देश पर करीब आधा दर्जन विभागों ने बिना समन्वय के अनुमोदन के ट्रांसफर का बड़ा खेल कर डाला। ताज्जुब इस बात का है कि आखिर किस मजबूरियों के चलते सचिवों ने आंख मूद लिया, जबकि उन्हें पता है कि बिना समन्वय ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। सरकार को इनकी मजबूरियों की जांच करनी चाहिए।
ऐसे हुआ खेल!
बैन के बावजूद धड़ल्ले से ट्रांसफर करने के लिए पता चला है, अधिकारियों ने फर्जीवाड़े का सहारा लिया। बताते हैं, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के समन्वय से दो-एक ट्रासफर की स्वीकृति मिली, उसमें विभागीय अधिकारियों ने नीचे में कई और नाम जोड़ डाले। और ये बताते हुए कि समन्वय से अनुमोदन मिल गया है, आदेश निकाल दिया। यदि ऐसा है तो यह चार सौ बीसी है।
नियुक्ति के मायने
भाजपा ने अजय जामवाल को क्षेत्रीय संगठन मंत्री नियुक्त किया है। खास बात यह है कि उनका मुख्यालय रायपुर रहेगा। जाहिर सी बात है, अगले साल विधानसभा चुनाव को देखते बीजेपी ने छत्तीसगढ़ पर ध्यान देना शुरू किया है। वैसे भी संगठन की दृष्टि से देखें तो सूबे में पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। जो हाल केंद्र में भाजपा और कांग्रेस का है, सेम स्थिति छत्तीसगढ़ में है। कांग्रेस यहां एकतरफा मजबूत है तो भाजपा उतना ही कमजोर। अगले चुनाव की चर्चा होती है तो एक ही जवाब सुनने को मिलता है, भाजपा यहां है ही नहीं तो टक्कर क्या देगी। अलबत्ता, जामवाल की नियुक्ति बड़े नेताओं को रास नहीं आएगी। संगठन महामंत्री पवन साय के ऊपर अब जामवाल बैठ गए हैं। पवन हैं सज्जन व्यक्ति। लेकिन, कुछ खटराल टाइप लोगों से वे घिर गए थे। जामवाल विद्यार्थी परिषद बैकग्राउंड से रहे हैं, इसलिए चीजों को समझते हैं। इससे महत्वपूर्ण यह कि थोड़ा तेज भी हैं। तभी कार्यकर्ताओं में अच्छे की उम्मीद जगी है।
सरकारें बदनाम हुई...
सरकार तीन साल बाद ट्रांसफर पर से बैन खोलने राजी हो गई है। संकेत हैं, एक अगस्त से बैन हट सकता है। लेकिन, सवाल ये भी है कि सरकारें बैन लगाना क्यों शुरू की। उसकी बड़ी वजह बदनामी है। मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा सरकार के समय सरकार की बड़ी छीछालेदर हुई थी। उसके बाद दिग्विजय सिंह की सरकार में भी। दिग्गी सरकार में एक मंत्री इतने बदनाम हुए कि उनकी कुर्सी चली गई। इसके बाद ही दिग्गी राजा ने बैन प्रारंभ किया। राज्य सरकार अब बैन खोलने जा रही तो उसे अलर्ट रहना पड़ेगा...पानी सिर के ऊपर न बहे। क्योंकि, मंत्री और कार्यकर्ता तीन साल से खखुवाये बैठे हैं।
सीएम के तेवर
मुख्यमंत्री के निर्देश पर जीएडी ने पिछले साल दिसंबर में मंत्रियों के निजी सहायकों को दोहरे, तिहरे दायित्वों से मुक्त करने पत्र लिखा था। मगर, मंत्रियों ने तब अनसुना कर दिया। इस बार सीएम ने कड़े तेवर दिखाए। जीएडी ने एक दिन का अल्टीमेटम दिया और मंत्री लोग बेचारे निजी सचिवों को दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त करने विवश हो गए। सारे निजी सहायकों के मुंह अब लटके हुए हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. भाजपा के अविश्वाश प्रस्ताव के पीछे क्या कोई कहानी है?
2. छत्तीसगढ़ में कौन-कौन मंत्री भाई और भतीजावाद से ग्रसित हैं?
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