संजय के. दीक्षित
तरकश, 11 दिसंबर 2022
एक अफसर, दो कलेक्टर
हेडिंग से आप चौंकिये मत! ये बिल्कुल सही है। छत्तीसगढ़ में नए गठित पांच जिलों में कमोवेश यही स्थिति है...जिला दो, कलेक्टर दो और आफिस एवं अफसर एक। दरअसल, सितंबर में नए जिले तो बन गए मगर अभी तक आफिसों का बंटवारा नहीं हुआ और न अफसरों की पोस्टिंग। ऐसे में, हो ये रहा कि एक अफसर से दोनों कलेक्टरों को काम चलाना पड़ रहा है। मसलन, पीडब्लूडी के ईई पुराने जिले में हुकुम बजा रहे तो नए जिले में भी। कलेक्ट्रेट में हफ्ते में एक दिन टाईम लिमिट याने टीएल मीटिंग होती है। सूबे के सरकारी दफ्तरों में एक तो पांच दिन का वीक हो गया है, उपर से अफसरों का दो दिन दो जिले की टीएल मीटिंग में निकल जा रहा। अधिकारियों को कभी पुराने जिले के कलेक्टर बुलाते हैं तो कभी नए जिले के...अफसरों का पूरा दिन दोनों जिला मुख्यालयों के दौड़ भाग में निकल जा रहा है। ज्ञात है, सूबे में पांच नए जिले बने हैं, उनमें मोहला-मानपुर, खैरागढ़-छुईखदान-गुंडरदेही, सारंगढ़-बिलाईगढ़, सक्ती और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर शामिल है। राजस्व और जीएडी विभाग को इसे संज्ञान में लेते हुए आफिसों का बंटवारा कर देना चाहिए।
तीन कलेक्टर, कलेक्ट्रेट तय नहीं
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला अस्तित्व में आए लगभग तीन बरस हो गए। इस दरम्यान तीन कलेक्टर आए और चले गए। शिखा राजपुत पहली कलेक्टर रहीं। फिर, डोमन सिंह। उनके बाद नम्रता गांधी। और अब ऋचा प्रकाश चौधरी चौथी कलेक्टर। मगर अभी तक यह तय नहीं हो सका कि कलेक्ट्रेट किधर बनेगा। असल में तीन ब्लॉकों को मिलाकर जीपीएम जिला बना है। सो, जिला मुख्यालय बनाने को लेकर खींचतान मची हुई है। गौरेला में हालांकि, पहले से कुछ ठीक-ठाक सुविधाएं हैं। गुरूकुल में जिला मुख्यालय बनाने की तैयारी हो रही है। मगर अधिकारिक तौर पर अभी कुछ नहीं। गौरेला से मरवाही की दूरी करीब 35 किलोमीटर है। जाहिर है, गौरेला में कलेक्ट्रेट बनने से मरवाही वाले खुश नहीं होंगे। मरवाही महंत दंपति का संसदीय इलाका है। सो, प्रेशर दाउ पर भी है। अब देखना है, कलेक्ट्रेट आखिरकार कहां फायनल होता है।
24 कैरेट के कलेक्टर
छत्तीसगढ़ के कलेक्टरों की प्रतिष्ठा कितनी रह गई है और क्या अपनी स्थिति को लेकर वे खुद जिम्मेदार नहीं है...इस पर बाद में कभी। मगर अभी आपको राज्य बनने से जस्ट पहले हम मध्यप्रदेश के समय का वाकया बता रहे हैं। तब बिलासपुर सियासी द्ष्टि से काफी संजीदा और वजनदार इलाका माना जाता था। संभाग से छह से सात कबीना मंत्री होते थे। खुद बिलासपुर से ही तीन-चार। सबसे अपने-अपने गुट। जब इन मंत्रियों, नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में अराजकता बढ़ने लगी तो सीएम दिग्विजय सिंह ने 1998 में शैलेंद्र सिंह को कलेक्टर और विजय यादव को एसपी बनाकर भेजा। शैलेंद्र और विजय ने मिलकर दो साल में सब ठीक कर दिया। कांग्रेस नेताओं को भी जेल भेजने में दोनों ने गुरेज नहीं किया। मगर वे इसलिए ऐसा कर पाए कि खुद 24 कैरेट के थे। 20 कैरेट, 22 कैरेट के अफसर होंगे, तो नेता हॉवी होंगे ही। बिलासपुर जिले में एक पानी वाले कलेक्टर की और सुनिये। नाम था उदय वर्मा। बात पुरानी है...तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह तब बिलासपुर के चकरभाटा हवाई पट्टी पर आने वाले थे। सीनियर मंत्री चित्रकांत जायसवाल ने किसी बात पर उदय वर्मा को झिड़क दिया। उदय वर्मा सीएम को रिसीव करना छोड़ हवाई पट्टी से वापिस आ गए। बाद में अर्जुन सिंह ने उदय वर्मा को बुलाकर बात की। वर्मा बाद में भारत सरकार में कई साल तक अहम विभागों के सिकरेट्री रहे।
आईपीएस अवार्ड
राज्य प्रशासनिक सेवा के 2008 बैच के अधिकारियों को आईएएस अवार्ड करने डीपीसी का प्रासेज शुरू गय है। मगर प्रमोशन के मामले में राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की स्थिति ठीक नहीं है। रापुसे में अभी तक 98 बैच के सभी अधिकारियों को आईपीएस अवार्ड नहीं हो पाया है। इस बैच के सिर्फ विजय अग्रवाल, राजेश अग्रवाल और रामकृष्ण साहू को आईपीएस मिल पाया है। अभी आठ अफसर बचे हुए हैं। याने राप्रसे की तुलना में रापुसे प्रमोशन में एक दशक पीछे चल रहा है। बहरहाल, रापुसे अधिकारियों की नजर अब कैडर रिव्यू पर टिकी है। छत्तीसगढ़ में पांच नए जिले बन गए हैं। लिहाजा, अब कैडर बढ़ाने एमएचए तैयार हो जाएगा।
परमानेंट होम सिकरेट्री!
92 बैच के आईपीएस अरुणदेव गौतम ने गृह सचिव के तौर पर पूर्व डीजीपी अमरनाथ उपध्याय का रिकार्ड ब्रेक कर दिया है। उपध्याय छह साल तक गृह सचिव रहे। गौतम का गृह सचिव के रूप में सात साल हो गया है। पिछले सरकार से वे मंत्रालय में मोर्चा संभाले हुए हैं। बीच में कुछ दिन के लिए पीएचक्यू गए मगर फिर उन्हे मंत्रालय भेज दिया गया। अब तो उनके मित्र भी चुटकी लेने लगे हैं...गौतम को परमानेंट होम सिकरेट्री घोषित कर देना चाहिए। हालांकि, इसमें एक ट्वीस्ट यह भी है कि उपध्याय सिकरेट्री होम से डीजी पुलिस बनकर पुलिस मंत्रालय से पुलिस मुख्यालय लौटे थे। मगर इस संयोग को दोहराने में अभी टाईम है। अशोक जुनेजा अगस्त 2024 तक पुलिस प्रमुख रहेंगे। जुनेजा के बाद 90 बैच के राजेश मिश्रा जनवरी 2024 में रिटायर हो गए होंगे। 91 बैच के लांग कुमेर भी नागालैंड में रिटायर होकर एक्सटेंशन पर डीजीपी हैं। याने जुनेजा के बाद 92 बैच को डीजीपी बनने का मौका मिलेगा। इस बैच में पवनदेव भी हैं। पवनदेव और गौतम में से कोई एक जुनेजा के बाद डीजीपी बनेगा। दोनों का टाईम भी लंबा है। पवनदेव का रिटायरमेंट जुलाई 2028 है तो गौतम का जुलाई 2027।
सीएस-डीजीपी की जोड़ी
चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और डीजीपी अशोक जुनेजा लंबे समय बाद एक साथ बस्तर के नारायणपुर में एक साथ दिखे। मौका था नक्सलियों के गढ़ में सड़क निर्माण के निरीक्षण का। सीएस कमीज की आस्तिन चढ़ाए हुए थे तो डीजीपी फुल वर्दी में। फोटो और वीडियो में दोनों के बॉडी लैंग्वेज...मुख मुद्रा से प्रतीत हो रहा था...ललकारने के अंदाज में...मसलन नक्सलियों के खिलाफ बड़ा कुछ होने वाला है। बता दें, अमिताभ और अशोक दोनों न केवल एक ही बैच के आईएएस, आईपीएस हैं, बल्कि मध्यप्रदेश में राजगढ़ जिले में एक साथ कलेक्टर-एसपी रह चुके हैं। और अब छत्तीसगढ़ में सीएस और डीजीपी हैं।
कर्मचारियों के लिए गुड न्यूज
फरवरी में पेश होने वाले राज्य के बजट में अनियमित कर्मचारियों के लिए गुड न्यूज हो सकता है। करीब डेढ़ लाख अनियमित कर्मियों को रेगुलर करने इस बजट में ऐलान हो सकता है। जाहिर है, बजट की तैयारी प्रारंभ हो चुकी है। इसमें अनियमित कर्मचारियों के रेगुलर करने कितनी धनराशि की जरूरत प़ड़ेगी, इस पर विचार किया जा रहा है। मुख्यमत्री भूपेश बघेल ने पिछले दोनों बजट में शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए बड़ी घोषणा की थी। 2021 के बजट में शिक्षाकर्मियों का संपूर्ण संविलियन और 2022 के बजट में ओल्ड पेंशन शुरू करने का। अनियमित कर्मचारियो को भी इस बजट से काफी उम्मीदें हैं। इससे पहले रमन सिंह की सरकार ने 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले अनियमित कर्मचारियों का नियमितिकरण किया था। 2018 में भी अनियमित कर्मचारी बाट जोहते रह गए मगर रेगुलर नहीं हो पाए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. किस नए जिले में 35 फीसदी के कमीशन पर फर्नीचर परचेज किया जा रहा?
2. कलेक्टर, एसपी की लिस्ट अब विधानसभा के शीत्र सत्र के बाद निकलेगी या उससे पहले?
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