संजय के. दीक्षित
तरकश, 25 दिसंबर 2022
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और 2022
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के लिए 2022 बहुत अच्छा नहीं रहा। बल्कि कह सकते हैं यह साल जाते-जाते बड़ा दर्द दे गया। सितंबर में प्रिंसिपल सिकरेट्री एम. गीता का निधन हो गया। गीता काफी अच्छी और रिजल्ट देने वाली अफसर थीं। गीता के जाने के दुख से कैडर उबर नहीं पाया था कि ईडी धमक आई। जाहिर है, कई आईएएस अधिकारी ईडी के निशाने पर हैं। आधा दर्जन से अधिक आईएएस को ईडी पूछताछ के लिए तलब भी कर चुकी है। 2009 बैच के आईएएस समीर विश्नोई जेल पहुंच चुके हैं। यही नहीं, पूरा कैडर पिछले दो महीने से खौफ के साये में गुजर रहा...पता नहीं किस दिन राहु की दशा बिगड़ जाए और ईडी वाले घर का कॉल बेल बजा दें। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे कैडर में आईएएस अफसरों में की खौफ का ये आलम है तो साल 2022 खराब ही कहा जाएगा न।
2023 भी अच्छा नहीं!
ब्यूरोक्रेसी के लिए 2022 अच्छा नहीं रहा तो नया साल 2023 भी बहुत बढ़ियां नहीं रहने वाला। जाहिर है, अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव है। चुनावी साल वैसे भी नौकरशाही के लिए परीक्षा की घड़ी होती है। एक तो सरकार को रिजल्ट देने का प्रेशर....उपर से किसकी सरकार बनेगी...कैसे दोनों पार्टियों को साधकर रखें....ताकि मौका आते ही गुलाटी मारी जाए....इसका अलग तनाव। उधर, पंडित कमलकिशोर की भविष्यवाणी है कि 2023 भी छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के लिए बहुत अच्छा नहीं रहने वाला। कुंडली के हिसाब से देखें तो छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी के घर में शनि बैठा है। जनवरी में ये झटका दे सकता है...एकाध और आईएएस की स्थिति भी समीर विश्नोई जैसी हो सकती है।
कुछ पूजा-पाठ हो जाए
छत्तीसगढ़ का नारायणपुर ऐसा जिला है, जहां कलेक्टर-एसपी टिक नहीं पा रहे। तू चल, मैं आया...के अंदाज में कलेक्टर, एसपी पोस्टिंग में जाते हैं और फिर चंद दिनों में लौट आ रहे। बता दें, इस जिले में चार साल में पांच कलेक्टरों की पोस्टिंग हुई है तो एसपी सात बदल गए। एसपी की संख्या सात तब हैं, जब मोहित गर्ग का कार्यकाल करीब ढाई साल रहा है। याने बाकी छह की छुट्टी डेढ़ साल में हो गई। मतलब तीन महीने में एक एसपी। सात में जीतेंद्र शुक्ला, कल्याण ऐलेसेला, रजनेश सिंह, मोहित गर्ग, गिरिजाशंकर, उदय किरण और सदानंद शामिल हैं। जीतेंद्र शुक्ला की पोस्टिंग पिछली सरकार ने की थी। कांग्रेस सरकार बनते ही वे हटे। फिर ऐलेसेला आए। उनके बाद रजनेश, मोहित गर्ग, गिरिजाशंकर, उदय किरण और अब सदानंद। कलेक्टरों की स्थि्ित भी जुदा नहीं। 2019 की शुरूआत में टीपी वर्मा को दंतेवाड़ा भेजकर उनकी जगह पीएस एल्मा को कलेक्टर बनाया गया। फिर अभिजीत सिंह, धमेंद्र साहू, ऋतुराज रघुवंशी और अब अजीत बसंत। सीएस और डीजीपी साब को नारायणपुर के लिए कुछ पूजा-पाठ करवाना चाहिए। क्योंकि, इतना छोटा जिला...मात्र दो ब्लाक का। उसमें भी अबूझमाड़ में नक्सलियों का वर्चस्व। मतलब एक ही ब्लॉक। उसमें भी तू चल, मैं आया। अजीत बसंत की पोस्टिंग के साथ ही सवाल उठने लगा है, वे कितने दिन वहां टिकेंगे। अजीत जरा ईमानदार किस्म के हैं...वहां के विधायक के निशाने पर वे न आ जाएं। जाहिर है, अभिजीत की छुट्टी विधायक ने कराई थी।
इसलिए हटाए गए पाठक
सरकार ने रजिस्ट्रार कोआपरेटिव सोसाइटी जनकराम पाठक को ज्वाईन करते ही न केवल काम करने से रोक दिया बल्कि महीने भर में उन्हें रुखसत कर दिया। दरअसल, सरकार ने जब पाठक को तीसरी बार रजिस्ट्रार बनाया तो किसी का ध्यान नहीं था कि अपेक्स और सहकारी बैंकों के सेलरी घोटाले के दौरान पाठक ही रजिस्ट्रार थे। उन्हीं की कलम से बैंकों की सेलरी दुगुनी करने का आदेश हुआ था। बहरहाल, अक्टूबर लास्ट में जब आईएएस की लिस्ट जब जारी हुई तो कुछ अफसरों ने सरकार की नोटिस में ये बात लाई। यही वजह है कि एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू ने तुरंत फोन करके पाठक को काम करने से रोका। सेलरी घोटाले में बैंक के खटराल अधिकारियों ने अपना वेतन दुगुना करने बोर्ड से प्रस्ताव पास करवा लिया...और रजिस्ट्रार से हरी झंडी भी। आलम यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में चीफ सिकरेट्री के बराबर अपेक्स और सहकारी बैंकों के डीजीएम को वेतन मिलने लगा तो कलेक्टर के बराबर बैंकों के ड्राईवर को। रिव्यू मीटिंग में सीएम भूपेश बघेल को जब इसका पता चला तो वे बेहद नाराज हुए। सीएम के निर्देशा पर चार सदस्यीय जांच कमेटी ने जांच प्रारंभ कर दी है। कई अधिकारियों के लिए यह जांच गले का फांस बनने वाला है क्योंकि बैंकों की बेसिक सेलरी पांच साल में तीगुनी बढ़ गई तो डीए 200 परसेंट से अधिक दिया जाने लगा। अपेक्स बैंक के डीजीएम को मध्यप्रदेश के डीजीएम से एक लाख रुपए अधिक वेतन मिल रहा है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक के डीजीएम बेचारे सुबह से लेकर देर रात तक काम करते हैं, तो उनके डीजीएम को पौने दो लाख वेतन मिलता है। और अपेक्स बैंक के डीजीएम को 2.93 लाख रुपए। पराकाष्ठा यह है कि आईएएस एमडी को अपेक्स बैंक में 1.45 लाख वेतन मिलता है और बैंकिंग सर्विस के डीजीएम को उनसे दुगुना से भी अधिक। कभी-न-कभी इसका भंडा तो फूटना ही था।
बड़ी सर्जरी
जनवरी में विधानसभा सत्र के बाद कलेक्टर, एसपी की एक बड़ी लिस्ट निकलने की चर्चा है। एसपी की लिस्ट तो पहले से ही अपेक्षित है। भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव की वजह से एसपी की लिस्ट रुक गई थी। अब सुनने में आ रहा...चुनावी साल को देखते सरकार नए सिरे से कलेक्टर्स, एसपी की जमावट करना चाहती है। ताकि, और बेहतर रिजल्ट मिल सकें। विधानसभा का शीत सत्र जनवरी के पहले सप्ताह में क्लोज हो जाएगा। उसके बाद लिस्ट कभी भी आ सकती है। क्योंकि, जनवरी में नहीं आई तो फिर फरवरी में बजट सत्र आ जाएगा। जिन जिलों में अपराध तेजी से पांव पसार रहे हैं, वहां के पुलिस अधीक्षकों को हटाया जाएगा। ऐसे अफसरों की सूची तैयार कराई जा रही है।
सबसे बड़ी पोस्टिंग
राज्य सरकार ने सीनियर आईएफएस आलोक कटियार पर भरोसा करते हुए २५ हजार करोड़ के जल जीवन मिशन की कमान सौंप दी है। उनके पास क्रेडा का चार्ज यथावत रहेगा। याने सौर बिजली-पानी अब उनके जिम्मे। जल जीवन मिशन भारत सरकार का प्रोजेक्ट है, जिसके लिए 25 हजार करोड़ रुपए सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए स्वीकृत है। इसमें से पिछले साल 1800 करोड़ के काम हुए और उससे पहले 2021 में करीब सात सौ करोड़ के। अभी 22500 करोड़ के काम बचे हैं। इससे पहले किसी आईएफएस अफसर को इतने बड़े बजट वाले काम की जिम्मेदारी नहीं मिली। बहरहाल, कटियार के लिए यह चुनौती भरा काम होगा। क्योंकि, मार्च 2024 तक इसे कंप्लीट करना है। 22 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च करना आसान नहीं होगा। कई जिलों में अभी नल कनेक्शन का 25 फीसदी काम पूरा नहीं हुआ है। सबसे अधिक खराब स्थिति बलरामपुर, सूरजपुर, कोरिया, अंबिकापुर और कोरबा की है। ये जिले नीचे से टॉप 5 हैं। दूसरी दिक्कत यह है कि टंकी बनाने का काम यहां के मजदूर नहीं करते। उसके लिए झारखंड, बिहार के श्रमिक बुलाए जाते हैं। बिहार, झारखंड में इस वक्त तेजी से जल जीवन मिशन के काम चल रहा, सो मजदूर इधर आ नहीं रहे। मिशन के पास पीएचई का सेटअप है, जिसे इतना बड़ा काम करने का तजुर्बा नहीं। पहले सूबे में साल भर में तीन से चार सौ करोड़ का काम होता था। अब इतना एक जिले में हो रहा है। फिर कटियार आईएफएस अफसर हैं। जिलों में कलेक्टरों से रिजल्ट लेने में उन्हें स्मार्टनेस दिखानी होगी।
शनिवार की छुट्टी केंसिल
सरकार ने अधिकारियों, कर्मचारियों की सुविधा के लिए फाइव डे वर्किंग डे वीक किया तो कर्मचारियों ने इसमें आधा दिन अपने तरफ से डंडी मार ली है। याने साढे़ चार दिन कर दिया है। वो इस तरह कि पहले शनिवार जब वर्किंग रहता था तो शनिवार दोपहर से आफिस खाली होने लगता था और अब शुक्रवार दोपहर के बाद आफिसें बियाबान दिखाई देने लगता है। उपर से फाइव डे वीक के फार्मेट में आधा घंटे पहले आना और आधा घंटे बाद जाने का नियम बना था। याने सुबह दस बजे आफिस पहुंचने का टाईम था। मगर अभी भी वही हाल है...11 बजे के पहले कोई दिखेगा नहीं। लिहाजा, दफ्तरों में फाइलें डंप होने लगी हैं। एनआरडीए ने कुछ अधिकारियों, कर्मचारियों को फाइलों के निबटारे के लिए बुलाना चाहा तो नेतागिरी शुरू हो गई। ऐसे में, एनआरडीए ने आदेश निकालकर शनिवार की छुट्टी रद्द कर दी है। हालांकि, कहने वाले कहेंगे कि ये सरकार के आदेश के खिलाफ हुआ...सरकार ने फाइव डे वीक लागू किया हुआ है। मगर कर्मचारी, अधिकारी काम नहीं करेंगे तो और चारा क्या है?
अंत में दो सवाल आपसे
1. चार साल मलाईदार पोस्टिंग करने के बाद स्मार्ट अफसर चुनावी साल में किनारे हो जाना क्यों पसंद करते हैं?
2. सीनियर मंत्री टीएस सिंहदेव चुनाव से पहले भविष्य के लिए फैसला लेने का बयान दिए हैं। वे क्या फैसला लेंगे?
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