संजय के. दीक्षित
तरकश, 16 अप्रैल 2023
डीजीपी के 16 महीने
डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। नए पुलिस प्रमुख की अटकलें तक। वायरल खबरों के अनुसार ढाई महीने बाद जून में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे। मगर ऐसे लोगों को शायद पता नहीं कि जुनेजा के रिटायरमेंट में अभी 16 महीने बचे हैं। अगले साल पांच अगस्त को वे सेवानिवृत होंगे। हालांकि, इस साल जून में वे 60 बरस के हो जाएंगे। ऑल इंडिया सर्विसेज में 60 साल में रिटायरमेंट है। मगर सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के अनुसार डीजीपी की पोस्टिंग दो साल के लिए होती है। जाहिर है, राज्य सरकार ने 11 नवंबर 2021 को डीएम अवस्थी को हटाकर जुनेजा को प्रभारी डीजीपी बनाया था। वे 11 नवंबर को ही अगर पूर्णकालिक डीजीपी बन गए होते तब भी दो साल के नियम के अनुसार इस साल 11 नवंबर को रिटायर होते। लेकिन जुनेजा डीएम अवस्थी की तरह पोस्टिंग के मामले में किस्मती हैं। लोग उनके प्रभारी पोस्टिंग पर तंज कसते रहे। और उन्हें 10 महीने का बोनस मिल गया। दरअसल, यूपीएससी से डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल लेट में आया। इस वजह से राज्य सरकार ने पांच अगस्त 2022 को पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकाला। गृह विभाग के आदेश में स्पष्ट तौर पर लिखा है....पुलिस बल प्रमुख का पदभार ग्रहण करने के डेट से दो साल अथवा कोई अन्य आदेश तक वे डीजीपी रहेंगे। याने जुनेजा को प्रभारी डीजीपी के तौर पर 10 महीने काम करने का मौका मिल गया और उसके बाद दो साल पूर्णकालिक तौर पर। वे न केवल इस साल विधानसभा चुनाव कराएंगे बल्कि अगले साल लोकसभा का चुनाव भी। अलबत्ता, आदेश में दो साल अथवा कोई अन्य आदेश लिखा है। अन्य आदेश का मतलब है कि सरकार कहीं किसी वजह से हटा दें। तो ऐसी कोई परिस्थिति फिलहाल दिखाई नहीं पड़ रही।
एसपी की लिस्ट
एसपी की ट्रांसफर लिस्ट लगभग तैयार बताई जा रही है। पेंच सिर्फ रायपुर को लेकर फंसा है। दरअसल, विधानसभा के बजट सत्र के तुरंत बाद ही तबादले होने थे। लिस्ट भी ज्यादा लंबी नहीं थी। जिन पुलिस अधीक्षकों को जिले में डेढ़ से दो साल हो रहे हैं, उन्हें बदला जाना है। मगर रायपुर किसे लाया जाए, ये बड़ा सवाल बन गया है। रायपुर में प्रशांत अग्रवाल एसपी हैं। उलझन यह है कि प्रशांत को किस जिले में भेजा जाए और उनकी जगह राजधानी की कमान किसे सौंपी जाए। पारूल माथुर का नाम रायपुर के लिए पहले चला था। उस समय फार्मूला यह था कि पारुल को रायपुर लाकर प्रशांत को दूसरी बार बिलासपुर का दायित्व दिया जाएगा। लेकिन, बिलासपुर में बढ़ते अपराधों की वजह से पारूल को वहां से हटाकर एसीबी भेज दिया गया। तब भी खबरें यही थी कि कुछ दिन बाद उन्हें रायपुर का कप्तान बनाया जाएगा। लेकिन, पारुल खुद ही हिट विकेट होकर सरगुजा चली गईं। रायपुर के लिए किसी प्रमोटी आईपीएस के नाम भी विचार किया जा रहा है। हालांकि, जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा भी हो सकता है विकल्प के अभाव में प्रशांत ही कंटीन्यू करें।
आईएएस के बुरे दिन
2003 बैच के प्रमोटी आईएएस गोविंद चुरेंद्र कभी रायपुर, बस्तर और सरगुजा के डिविजनल कमिश्नर रहे। मगर सरगुजा में उन्होंने ऐसा कुछ कर डाला कि उनकी गर्दिशों के दिन शुरू हो गए। सरकार ने उन्हें हटाकर बिलासपुर कमिश्नर डॉ0 संजय अलंग को सरगुजा डिविजन का एडिशनल चार्ज दे दिया। चुरेंद्र को नॉन कैडर पोस्ट पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में सचिव बनाया गया और अब राज्य सूचना आयोग के सचिव। इस आयोग में उपेक्षित केटेगरी के डिप्टी कलेक्टर पोस्ट होते रहे हैं। उस पद पर 2003 बैच के आईएएस। जाहिर सी बात है कि 2003 बैच पांच साल पहले सिकरेट्री बन चुका है। अब तो 2007 बैच भी सिकरेट्री प्रमोट हो गया है। मगर चुरेंद्र को अभी तक सचिव पद पर प्रमोशन नहीं मिला। एक पुरानी विभागीय जांच लंबित होने की वजह से उनका प्रमोशन रूक गया।
हार्ड लक!
2011 बैच के आईपीएस अधिकारी इंदिरा कल्याण ऐलेसेला तीन जिलों के एसपी रहे हैं और तीनों बार उनका हार्ड लक रहा। पहली बार रमन सरकार ने उन्हें सुकमा का पुलिस अधीक्षक बनाया था। मगर बस्तर में एक ऑटोमोबाइल शोरूम के उद्घाटन में उनकी जुबां फिसल गई थी। भाषण में उन्होंने कह डाला...बस्तर में माओवादियों को सपोर्ट कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गाड़ी से कुचल देना चाहिए। जाहिर है, इस पर बवाल मचना ही था। तब विस सत्र चल रहा था। रमन सिंह ने विधानसभा के अपने आफिस से कल्याण को हटाने का आदेश जारी किया था। इसके बाद भूपेश सरकार ने उन्हें बलौदा बाजार का एसपी अपाइंट किया। वहां उन्हें एक सिपाही ने ट्रेप कर लिया। क्वार्टर अलॉटमेंट के सिलसिले में सिपाही को एसपी ने कुछ अपशब्द कह दिए थे और सिपाही ने उसे रिकार्ड कर वायरल कर दिया। ऑडिया वायरल होने के बाद सरकार ने उन्हें हटा दिया। तीसरी बार उन्हें बेमेतरा जिले के एसपी बनाया गया। बेमेतरा में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। इसमें तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसमें भी उनका हटना तय माना जा रहा है। क्योंकि, इस तरह की हिंसा के बाद सरकारें अधिकारियों को बदलती हैं।
व्हाट एन आइडिया!
रायपुर के टपरी वाले होटलों में भी 25 रुपए प्लेट से नीचे समोसे नहीं मिलते। और 10 रुपए से नीचे एक कप चाय नहीं। मगर 10 रुपए में भरपेट थाली मिल जाए, तो क्या कहेंगे। इसे चरितार्थ किया है, बिलासपुर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने। वो भी बिना अपना एक पैसा लगाए। स्वाभिमान थाली नाम की यह योजना सिर्फ स्टूडेंट्स के लिए है। कंसेप्ट यह है कि पांच-छह घंटे यूनिवर्सिटी में रहेंगे तो भूख लगेंगी। और भूखे पेट पढ़़ाई कैसे होगी? कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल ने इसके लिए अच्छा आईडिया निकाला। दरअसल, विवि के पास छात्रों को सस्ता भोजन कराने का कोई फंड नहीं होता। जेएनयू जैसे देश के शीर्ष विवि को सब्सिडी मिलती है फिर भी वहां इतना सस्ता भोजन नहीं मिलता। जेएनयू के कैंटीनों में भी एक बार के सामान्य भोजन में 40 से 50 रुपए जेब से निकल जाते हैं। प्रो0 चक्रवाल ने विवि के शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बच्चों के भोजन के लिए स्वेच्छा से अंशदान करें। और देखते-देखते 60 लाख रुपए जमा हो गए। अब तो आउटर लोग भी दान के लिए विवि से संपर्क कर रहे हैं। अर्थशास्त्री कुलपति का है यह आइडिया है। बाकी शैक्षणिक संस्थान के प्रमुखों को भी इस तरह बिना खर्चे वाली अनुकरणीय योजनाएं चलानी चाहिए। क्योंकि, सरकारी संस्थानों में धनाढ्य नहीं बल्कि हर वर्ग के बच्चे बढ़ते हैं।
33 जिले, 77 दावेदार
छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़ गई है तो आईएएस की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। इस समय कलेक्टर बनने की केटेगरी में 77 आईएएस हैं। 2008 बैच कलेक्टर के लिए लगभग क्लोज हो चुका है। 2009 बैच से सौरव कुमार और प्रियंका शुक्ला कलेक्टर हैं। 2016 बैच को कलेक्टर बनने का मौका मिल चुका है। 2017 बैच वेटिंग में है। 2009 से 2017 के बीच कैलकुलेट किया जाए, तो 77 आईएएस होते हैं। इन 77 में से ही इस समय 33 जिलों के कलेक्टर हैं। याने ये 33 आईएएस अपनी कलेक्टरी बचाने की दौड़ में हैं ही, बचे 44 आईएएस कलेक्टर बनने की दौड़ में हैं। बता दें, 2010 बैच के कभी चारों आईएएस कलेक्टर होते थे। इस समय सभी रायपुर वापिस लौट चुके हैं। इस बैच के दो-एक आईएएस कलेक्टर की दौड़ में शामिल हैं, तो प्रमोटी आईएएस में भी कई अधिकारी लंबे समय से वेटिंग में हैं। इनमें एडीएम के तौर पर रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव और कोरबा जैसे जिलों को संभालने वाले संजय अग्रवाल जैसे मैच्योर अफसर भी शामिल हैं। 2017 बैच के आईएएस की प्रतीक्षा अब लंबी होती जा रही है। दूसरा, चुनावी साल है...सरकार सोच-समझकर जिलों में कलेक्टरों को बिठाती है। ऐसे में, पोस्टिंग लिस्ट फायनल होना आसान नहीं है। उपर से तब, जब बेमेतरा जैसी घटना हो गई है, तो सरकार पदुम सिंह एलमा जैसों को कलेक्टरी से उपकृत करने से बचेगी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक जिले का नाम बताइये, जहां के कलेक्टर, एसपी में समन्वय की स्थिति यह है कि दोनों आपस में बात नहीं करते?
2. क्या किसी प्रमोटी कलेक्टर को सरगुजा का संभागीय आयुक्त बनाया जाएगा या संजय अलंग अभी कंटीन्यू करेंगे?
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