तरकशः 18 जून 2023
संजय के. दीक्षित
आईएएस पर डिप्टी कलेक्टर भारी
ये स्टोरी हाल ही में हुए 23 आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर से जुड़ी हुई है। जैसे ही ट्रांसफर का आदेश निकला, अगले दिन आईएएस दफ्तर पहुंचे और संबंधित क्लर्क को बुलाकर बोले...95 लाख की सप्लाई के पेमेंट का नोटशीट तैयार कर दो...मैं आज बैकडेट पर साइन कर दूंगा। क्लर्क ने ये बात अपने जीएम को बताया। डिप्टी कलेक्टर इस समय वहां जीएम हैं और चार साल से वहां जमे हुए हैं। वो भी ऐसे दौर में जब छह महीने, साल भर में छुट्टी हो जा रही। इससे आप समझ सकते हैं कि वे कैसे फनकार होंगे। आईएएस बॉस की चतुराई वे तुरंत भांप गए। रुटीन में अगर ये पेमेंट होता तो 95 लाख में से कम-से-कम पांच लाख आईएएस को देना ही पड़ता। मगर जाते-जाते सप्लायर को पेमेंट कर जाते तो 20 फीसदी के हिसाब से पूरा पैसा वे एकतरफा ले जाते। सो, डिप्टी कलेक्टर ने फोन पर ही क्लर्क को इशारा किया। संकेत समझते ही बाबू ने अचानक स्वास्थ्य खराब होने का लीव अप्लीकेशन लिखा और फाइल अलमारी में बंद कर घर निकल गया। मोबाइल भी बंद। ऐसे में, आईएएस क्या करते। अगले दिन नए वाले चार्ज ग्रहण कर लिए। कह सकते हैं, आईएएस पर एसएएस अफस सवा सेर साबित हुए।
नेताओं और उद्योगपतियों का गठजोड़
छत्तीसगढ़ में एक बड़े तेज नेता थे...बेहद चौकस और तीव्र दृष्टि वाले। आमतौर पर इंडस्ट्री वाले लोग सियासी नेताओं के साथ बड़ी चतुराई से गठजोड़ बना लेते हैं। उन्हें पता होता है कि नेता लोग लक्ष्मीजी को उस लेवल में कभी देखें नहीं होते। जाहिर है, उनके कुर्सी पर बैठते ही लक्ष्मीजी की बरसात होने लगती है। सो, वे नेताओं को आइडिया देते हैं...सर, फलां जगह हमारी फैक्ट्री लग रही...आप कहें तो इसे वहीं लगा दें...आपका इतना परसेंट...बाकी आप जहां बोलेंगे आपका परसेंटेज वहां पहुंचता रहेगा। और एक बार नेताजी ने हां...कहा तो समझिए उद्योगपति के चक्कर में फंस गए। खुद भी बदनाम और बाल-बच्चे भी। छत्तीसगढ़ में भी नेताओं को ट्रेप करने वाले इंडस्ट्रलीज खूब हैं। मगर हम जिस नेता की बात कर रहे हैं...उद्योगपतियों को उनसे पार पाना मुश्किल काम था। बंगले पहुंचे कारोबारियों को उन्होंने दो टूक कह दिया...ज्ञान मत दो...थैली रखो और चुपचाप निकल लीजिए...मुझे सब आता है।
पहचान का संकट
लगातार 15 बरस तक सत्ता में रही बीजेपी इस समय बेहद कठिन दौर से गुजर रही है। आलम यह है कि विधानसभा चुनाव में चार महीने बच गए हैं और अभी तक यह तय नहीं है कि भूपेश बघेल जैसे सियासी योद्धा के सामने वह किसके लीडरशिप में चुनाव में उतरेगी। पार्टी में सबसे बड़ा संकट पहचान का है। शिवप्रकाश और अनिल जामवाल बड़े नेता हैं, उनसे कार्यकर्ताओं का अभी सीधा कनेक्शन बन नहीं पाया है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, दोनों नए हैं। पवन साय पुराने जरूर हैं, मगर उन पर कई तरह के लेवल लग गए हैं। सबसे अधिक दुखी रायपुर वाले हैं। प्रदेश मुख्यालय में रायपुर वालों का दबदबा रहता था। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल में पहली बार संगठन में रायपुर वाले हांसिये पर चले गए हैं।
कर्नाटक की चूक
बीजेपी की चुनावी तैयारियों को देखकर प्रतीत हो रहा कि छत्तीसगढ़ में पार्टी के नेता मोदी और अमित शाह की बदौलत किसी चमत्कार की उम्मीद पाल रखे हैं। क्योंकि, सरकार पलटने के लिए जो जोश और जुनून दिखना चाहिए, उस पर ठंडा पानी पड़ा परिलक्षित हो रहा है। याद कीजिए, 2003 में इस समय तक पूरी पार्टी सड़क पर उतर आई थी। लखीराम जैसे बुजुर्ग नेता नारे लगा रहे थे...आग लगी है आग...भाग जोगी भाग। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, संजय श्रीवास्तव जैसे नेता बेहद उग्र तेवर दिखा रहे थे। भिलाई में प्रेमप्रकाश पाण्डेय तो कोरबा में बनवारी लाल अग्रवाल आक्रमक थे। बस्तर में बलिराम कश्यप अकेले माहौल बनाए हुए थे। और अभी...? बड़े नेताओं को भी नहीं मालूम क्या हो रहा और क्या होगा? 15 साल सरकार में रहे कई नेता इसलिए चुप्पी साधे हुए हैं कि न जाने कौन सा पुराना पेपर निकल जाए। असल में, सियासी प्रेक्षक कर्नाटक चुनाव का वेट कर रही थे...वहां के बाद पार्टी नेता छत्तीसगढ़ पर फोकस बढ़ाएंगे। मगर महीना भर से अधिक हो गया कर्नाटक के नतीजे आए, छत्तीसगढ़ में कोई सुगबुगाहट नहीं है कि चुनाव जीतने के लिए कोई व्यूह बनाई जा रही है। हाल की खबर है...अमित शाह और राजनाथ सिंह का दौरा होने वाला है। मगर सियासी पंडितों का मानना है कि पार्टी को लोकल नेतृत्व को मजबूत करने पर विचार करना चाहिए। लोकल में जिसको दायित्व दिया गया है, वे खुद कंफ्यूज हैं उन्हें करना क्या है। ऐसे में, कर्नाटक की चूक कहीं छत्तीसगढ़ में भी न दुहरा जाए। कर्नाटक में यही हुआ, लोकल इश्यू और लोकल लीडरशिप को मजबूत करने पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी चक्कर में मोदी और अमित शाह के लाख प्रयास के बाद भी नतीजा सिफर आया। नरेंद्र मोदी और अमित शाह नाव को वैतरणी पार लगा सकते हैं मगर नाव भी तो मजबूत होना चाहिए।
हार्ड लक
छत्तीसगढ़ के 2004 बैच के चार आईपीएस केंद्र में आईजी इम्पेनल हुए हैं। इनमें अजय यादव, अभिषेक पाठक, नेहा चंपावत और संजीव शुक्ला शामिल हैं। लिस्ट में संजीव शुक्ला का नाम लोगों को जरूर चौंकाया। इसलिए...क्योंकि पिछले 25 साल में अविभाजित मध्यप्रदेश में स्टेट सर्विस से आईपीएस बना कोई अफसर भारत सरकार में आईजी इंपेनल नहीं हुआ है। लिहाजा, संजीव के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। मगर बद्री मीणा और अंकित गर्ग का इंपेनलमेंट न होना उससे ज्यादा चौंकाया। जबकि, बद्री और अंकित केंद्र में काम कर चुके हैं। अंकित पिछले महीने ही डेपुटेशन से लौटे हैं। अंकित एनआईए में रहे तो बद्री आईबी में। इस मामले में दोनों का हार्ड लक रहा। हालांकि, हो सकता है दूसरी लिस्ट में इनका नाम आ जाए।
एक आईजी और
2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत डेपुटेशन से अगले हफ्ते छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। राज्य सरकार ने उन्हें डीआईजी से आईजी पद पर प्रोफार्मा प्रमोशन दिया था। यहां आने के बाद उन्हें आईजी की पोस्टिंग मिलेगी। हालांकि, पिछले महीने सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे अंकित गर्ग को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। वे पीएचक्यू में समय गुजार रहे हैं। सल्वा जुडूम के समय जब नक्सली गतिविधियां चरम पर थी, तब अंकित दंतेवाड़ा और बीजापुर के एसपी रहे। दंतेवाड़ा में उन्होंने नक्सलियों को सप्लाई होने वाले नोटों का जखीरा पकड़ा था। राहुल भगत भी अच्छे अफसर माने जाते हैं। वे कांकेर, नारायणपुर, रायगढ़, कवर्धा समेत कई जिलों के एसपी रह चुके हैं। वे गिने-चुने आईपीएस में होंगे, जिन्हें केंद्र में पुलिस से विभाग से बाहर की पोस्टिंग मिली। वे डायरेक्टर लेबर रहे। इसके बाद डायरेक्टर सोशल सिक्यूरिटी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कुल मिलाकर पुलिस में आईजी लेवल पर अफसरों की संख्या अब बढ़ते जा रही है। एक समय था, जब जितने रेंज, उतने ही आईजी थे। सरकार के पास अब फुल च्वाइस है।
एसपी की वर्दी
वर्दी फोर्स की शान होती है। उस पर भी आईपीएस लिखा हुआ...बेहद किस्मत वालों को ही तो आईपीएस अवार्ड होता है...आईएएस के बाद दूसरी सबसे प्रतिष्ठित सर्विस आईपीएस होती है। पहले के जमाने में पुलिस के लोग वर्दी से बड़ा प्यार करते थे। आफिसों में भी आईपीएस अधिकारी एक सेट वर्दी रखते थे कि कहीं लॉ एंड आर्डर की स्थिति निर्मित हो जाए, तो तुरंत पहन लेंगे। बिलासपुर में जब कोरबा और जांजगीर शामिल था, उस समय डॉ0 आनंद कुमार एसपी होते थे। वे एंबेसडर कार में हैंगर में वर्दी लटका कर रखते थे। मगर समय के साथ आईपीएस अधिकारियों को वर्दी से अधिक गांधीजी से प्यार बढ़ता गया। डीजीपी पिछली मीटिंग में ऐसे ही नहीं भड़के। उनसे अधिक खुफिया चीफ अजय यादव ने पुलिस अधीक्षकों की क्लास ली। वे इस बात से नाराज थे कि बड़े साब की वीसी में दो एसपी टीशर्ट पहनकर आ गए थे। हालांकि, ये पहली बार नहीं हो रहा। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन के समय की बात आपको बताते हैं। वे एक जिले के दौरे पर पहुंचे। वहां के एसपी सिविल ड्र्रेस में उन्हें रिसीव करने हेलीपैड आए थे। नरसिम्हन चूकि खुद भी आईपीएस रहे थे। सो, बुरी तरह बिगड़े। एसपी ने सफाई दी...सर तबियत ठीक नहीं है। नरसिम्हन बोले...तबियत खराब थी तो फिर आए क्यों? बहरहाल, कह सकते हैं छोटा राज्य बनने से सबसे अधिक नुकसान पुलिस की गरिमा और पोलिसिंग का हुआ।
इलेक्शन नोडल ऑफिसर
रायपुर देहात के आईजी आरिफ शेख को विधानसभा चुनाव का प्रभारी नोडल आफिसर बनाया गया है। हालांकि, ये फौरी तौर पर है। पूर्णकालिक नोडल आफिसर के लिए आयोग ने एडीजी लेवल के आईपीएस अफसरों का पेनल मंगाया है। समझा जाता है, अगले महीने तक नोडल आफिसर की नियुक्ति हो जाएगी। पिछले चुनाव में आईजी लेवल के अधिकारियों को नोडल आफिसर बनाया जाता था। इस बार चुनाव आयोग ने इसे बदलकर एडीजी कर दिया है। अत्यधिक संभावना है कि एडीजी प्रदीप गुप्ता के नाम पर चुनाव आयोग टिक लगा दे। नोडल आफिसर का काम चुनाव आयोग और स्टेट के बीच सिक्यूरिटी कोआर्डिनेशन का रहता है। वीवीआईपी मूवमेंट को भी नोडल आफिसर हैंडिल करते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक प्रमोटी आईएएस में इतना पानी कहां से आ गया कि उन्होंने जूनियर के अंदर काम करने से अनिच्छा जता दी?
2. एक कांग्रेस विधायक का नाम बताइये, जो दो नाव की सवारी कर रहे हैं....कांग्रेस से अगर टिकिट नही तो बीजेपी से?
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