शनिवार, 2 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: सबसे अधिक लड़ैया

 तरकश, 3 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

सबसे अधिक लड़ैया

बिलासपुर जिले की बेलतरा विधानसभा सीट से सीएम के एडवाइजर प्रदीप शर्मा के चुनाव लड़ने की माउथ पब्लिसिटी हुई मगर दावेदारी जताने का मौका आया तो प्रदीप को छोड़ 99 दावेदार मैदान में कूद पड़े। बता दें, सूबे की 90 सीटों पर 1900 नेताओं ने दावेदारी की है, उनमें सर्वाधिक संख्या बेलतरा की है। दरअसल, 15 साल मंत्री रहे अमर अग्रवाल की वजह से बिलासपुर हाई प्रोफाइल सीट हो गई है, लिहाजा, बिलासपुर के अधिकांश नेता बिलासपुर से लड़ना नहीं चाहते। इसके बनिस्पत बेलतरा उन्हें ज्यादा मुफीद लगता है। ये अलग बात है कि, तीन दशक से इस सीट से कांग्रेस जीती नहीं है। आखिरी जीत 1993 में मिली थी, जब चंद्रप्रकाश बाजेपेयी विधायक बने थे। ब्राम्हण बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने बाजपेयी के बाद किसी ब्राम्हण को टिकिट दिया भी नहीं। अब देखना है, सबसे अधिक दावेदारों वाली इस सीट पर कांग्रेस अबकी किसे प्रत्याशी बनाती है...ब्राम्हण को या किसी गैर ब्राम्हण को?

ठाकुरों में जंग

जोगी कांग्रेस से विधायक रहे धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। और जैसी चर्चाएं है...तखतपुर से उन्हें चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो वहां दो ठाकुरों में दिलचस्प मुकाबला होगा। इस समय रश्मि सिंह बाजपेयी कांग्रेस से विधायक हैं। और सुनने में आ रहा इस बार उनके पति आशीष सिंह तखतपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी हो सकते हैं। रश्मि के साथ आशीष ने भी दावेदारी की है। जाहिर तौर पर धर्मजीत सिंह बिलासपुर जिले का एक बड़ा नाम है। विद्याचरण शुक्ल के सियासी स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं...बात रखने का अपना प्रभावशाली अंदाज है। तो 18 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट बन गए आशीष भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके पिता बलराम सिंह तखतपुर से विधायक रहे हैं। और, सबसे बड़ी बात...प्रदेश का कोई विधायक जितना अपने इलाके का दौरा या संपर्क नहीं बनाकर रखा होगा, उससे कहीं ज्यादा विधायक पति आशीष अपने इलाके में सक्रिय रहे। कुल मिलाकर चुनावी रण में दो बड़े ठाकुरों की लड़ाई देखने लायक होगी।

छत्तीसगढ़ के अजातशत्रु

छत्तीगसढ़ में पांच बार से अधिक कोई ऐसा विधायक जो लगातार चुनाव जीत रहा है तो वह नाम है बृजमोहन अग्रवाल का। प्रदेश के कांग्रेस और भाजपा के सारे दिग्गज एक या एक से अधिक बार पराजित हो चुके हैं मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने हुए हैं। पहली बार वे 1990 में कांग्रेस के स्वरूपचंद जैन को हरा कर विजयी हुए थे। तब रायपुर में दो सीट होती थी। एक रायपुर शहर और दूसरा रायपुर ग्रामीण। रायपुर शहर से स्वरुपचंद जैसे नेता को हराने का उन्हें ईनाम मिला और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। इसके बाद वे इस समय सातवी बार विधायक हैं। भाजपा के ही पुन्नूराम मोहले अभी तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। वे चार बार लोकसभा और चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के कवासी लखमा आएंगे। वे भी पिछले पांच बार से लगातार जीत दर्ज करा रहे हैं। रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे इस समय बृजमोहन से आगे होते। बृजमोहन का प्लस यह है कि उन्होंने अपना ऐसा औरा बनाया है कि टिकिट मिलेगी, तब तक वे जीतेंगे। हालांकि, कांग्रेस के प्रमोद दुबे बृजमोहन को टक्कर देने का एक मौका गंवा दिए। 2018 के चुनाव में प्रमोद को टिकिट मिल रही थी मगर उन्होंने ठुकरा दिया। तब कांग्रेस की आंधी में प्रमोद कुछ भी कर भी सकते थे।

चिंता का विषय!

राष्ट्रपति के विजिट की वजह से राजधानी रायपुर हाई सिक्यूरिटी मोड पर रही। बाहर से एक आईजी, दो डीआईजी समेत कई आईपीएस, एसपीएस अधिकारियों को बुलाया गया...दीगर जिलों से आए दो हजार से अधिक जवान भी रहे तैनात। बावजूद इसके रायपुर में नए अंदाज में लूट की घटना हो गई...राखी बांधकर लौट रहीं दो बहनों से अनाचार की शर्मनाक घटना भी। पुलिस महकमे को इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए...अपराधियों में पुलिस की बर्दी का खौफ क्यों खतम होते जा रहा है। राजधानी में क्राइम बढ़ने का एक बड़ा कारण नशीले पदार्थों की बिक्री है। पिछले साल हुई एसपी कांफ्रें्रस में भी नशे में युवती द्वारा चाकू मारकर एक युवक की हत्या का हवाला देते पुलिस अधिकारियों से सवाल-जवाब किया गया था। मगर नशे का कारोबार का ये हाल है कि पान ठेलों में धड़ल्ले से चल रहा है।

नशे का ठेला

राजधानी के खम्हारडीह थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित पान दुकान। एक रात, यही कोई 10 बजे...एक गेस्ट के साथ टहलते हुए पहुंच गए पान ठेला कि बहुत दिनों से चमन चटनी पान नहीं खाए हैं। मगर वहां का नजारा देखकर हिल गया। ग्रीन नेट से पान ठेला ढका हुआ...अंदर में धुंआ उड़ाते हुए लाल...डरावने आंखों वाले लंपट टाईप युवक...मदहोशी में धुंए के छल्ले उड़ा रहे थे। परिस्थितियों को देखते वहां से लौट जाना ही मुनासिब समझा। बता दें, ये पान दुकान उस रोड पर स्थित है, जहां से रोज कई आईपीएस और सीनियर एसपीएस अधिकारी गुजरते हैं। ऐसे में, राखी के दिन दो सगी बहनों के साथ दुष्कर्म की घटना के लिए मंदिर हसौद थाने को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बेचारे थानेदार क्या-क्या करें...। मंदिर हसौद रायपुर के टॉप थ्री थानों में से एक जो माना जाता है।

पहले आईपीएस

जुलाई में रिटायर हुए 1988 बैच के रिटायर आईपीएस संजय पिल्ले को राज्य सरकार ने उसी जेल विभाग में बतौर डीजी संविदा पोस्टिंग दी है, जहां से वे रिटायर हुए थे। सरकार ने कुछ आईपीएस अधिकारियों को सुपरसीड करके अशोक जुनेजा को डीजी पुलिस बनाया था, उनमें संजय पिल्ले भी शामिल थे। इस बात का ध्यान में रखते हुए रिटायरमेंट के अगले महीने सरकार ने उन्हेंं पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दे दी। संजय इस मामले में किस्मती हैं कि राज्य बनने के 23 साल में अभी तक डीजी लेवल पर सुपरसीड होने वाले किसी आईपीएस को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग नहीं मिली। वासुदेव दुबे, राजीव माथुर, संत कुमार पासवान, गिरधारी नायक, डब्लूएम अंसारी ऐसे नाम हैं, जो डीजीपी की दौड़ में पिछड़ गए। इन अफसरों को कोई पोस्टिंग नहीं मिली। नायक को रिटायमेंट के कुछ समय बाद मानवाधिकार आयोग में अपाइंट किया गया मगर उसमें संजय पिल्ले जैसी बात नहीं। जिस विभाग से रिटायर हो रहे, उसी कुर्सी पर पोस्टिंग मिलना ऑनर की बात है।

राडार पर कलेक्टर, एसपी

मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकलना तय है। इसमें खासतौर से उन कलेक्टर, एसपी के नाम होंगे, जो निर्वाचन आयोग की बैठक में निशाने पर रहे। जाहिर सी बात है, आचार संहिता लगने के बाद आयोग द्वारा अफसरों को हटाने पर मामला पेचीदा हो जाता है। आयोग को तीन नामों का पेनल भेजना पड़ता है। चुनाव आयोग जिस नाम पर टिक लगाएगा, उसे कलेक्टर अपाइंट करना होगा। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय ऐसा ही हुआ था। सरकार जिसे रायपुर का कलेक्टर बनाना चाहती थी, आयोग उसके लिए तैयार नहीं हुआ। सरकार को दोबारा पेनल भेजना पड़ा। इसके लिए चतुराई पूरी की गई...तीन में से नीचे के दो ऐसे अफसरों का नाम डाला गया, जिस पर आयोग कतई राजी नहीं होता। मगर आयोग ने दूसरा पेनल मंगा लिया। और, इसमें से आयोग ने बसव राजू का नाम फायनल किया। बहरहाल, ऐसी स्थिति से बचने सरकार चाहेगी कि आचार संहिता लगने से पहले ही उन अधिकारियों को शिफ्थ कर दिया जाए, जिन पर गाज गिरने की आशंका है। ऐसे में, कलेक्टरों की संख्या आधा दर्जन से उपर जा सकती है। लगभग इसी तरह की संख्या एसपी में होगी।

28 दिन के आईजी

दूसरी बार खुफिया चीफ बनकर रायपुर आ रहे आईजी आनंद छाबड़ा बिलासपुर में 28 दिन आईजी रह पाए। सरकार ने उन्हें दुर्ग से बिलासपुर ट्रांसफर किया था। वे एक अगस्त को बिलासपुर रेंज ज्वाईन किए और 28 अगस्त को उनका एज ए इंटेलिजेंस चीफ रायपुर ट्रांसफर हो गया। सबसे कम दिनों की आईजी पोस्टिंग वालों में दिपांशु काबरा का भी नाम शामिल हैं। पिछली सरकार में सरगुजा से उनका एक महीने चार दिन में दुर्ग ट्रांसफर हो गया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अगला पीएससी चेयरमैन कोई आईएएस होगा या शिक्षाविद?

2. वन नेशन, वन इलेक्शन का बिल पारित हो गया तो विधानसभा चुनाव कब तक के लिए टल जाएगा?


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