रविवार, 10 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: निर्वाचन आयोग की तलवार

 तरकश, 10 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

निर्वाचन आयोग की तलवार

विभागों और जिम्मेदारियों के मामले में छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी जनकराम पाठक को सरकार ने यकबयक हटाकर लोगों को चौंका दिया। चरित्र को तार-तार करने वाले गंभीर किसिम के केस दर्ज होने के बाद पाठकजी सिकरेट्री नहीं बन पाए। लेकिन, छत्तीसगढ़ में उनकी तरक्की वैसी ही रही, जैसे हवाई जहाज टेकआफ करता है। पाठक जी इस तरह सस्ते में क्यों निबट गए...इस पर फिर कभी। मगर उनके पांचों मलाईदार विभाग महादेव कांवरे को सौंप दिए गए हैं। याने कावरे साब ही हैसियत भी बढ़ गई है। उन्हें इसका कभी सपना भी नहीं आया होगा कि आवास पर्यावरण सिकरेट्री, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग कमिश्नर, एक्साइज सिकरेट्री, एक्साइज कमिश्नर, एमडी ब्रेवरेज कारपोरेशन, शराब खरीदी करने वाली कंपनी के एमडी में से कभी एक के भी वे मुखिया बन पाएंगे। मगर वक्त है...बन गए। हालांकि, चुनाव के समय कावरे पर कुर्सी बचाने के खतरे भी होंगे। शराब जब्ती को लेकर निर्वाचन आयोग बेहद सख्त है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार थी तो आयोग ने एक्साइज सिकरेट्री और एक्साइज कमिश्नर डीडी सिंह को हटा दिया था। सो, कावरे को सतर्कता से काम करना होगा।

आप के मिशनरी प्रत्याशी

आम आदमी पार्टी ने अपने 10 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। इनमें पत्थलगांव और कुनकुरी से दो ईसाई उम्मीदवार शामिल हैं। इन दोनों विधानसभा सीटों पर मिशनरीज का अच्छा प्रभाव है...बल्कि जीत-हार तय करने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। कुनकुरी में यूडी मिंज 2018 के कांग्रेस की लहर में 4500 वोट से जीत पाए थे। किंतु, पत्थलगांव में रामपुकार सिंह की मार्जिन अच्छी रही। फिर भी आप के इन मिशनरी उम्मीदवारों से इन दोनों सीटों पर सत्ताधारी पार्टी की चुनौतियां बढ़ सकती है। आम आदमी पार्टी का अकलतरा का कंडिडेट भी ठीक-ठाक है। इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के आनंद प्रकाश मिरी की दलित समुदाय में अच्छी पैठ है। वैसे सूबे में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होगा। पूर्व की तरह बसपा को दो-एक सीटें मिल जाएंगी। आप के लिए जरूर इस बार कोई स्कोप नहीं दिख रहा...सिवाय वोट परसेंटेज बढ़ाने के। हां...ये जरूर होगा कि कुछ सीटों पर नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में वह रहेगी। ऐसे में, आप को बीजेपी का बी टीम बोलना है तो लोग बोलते रहे...आखिर, बसपा को तो लोग बोल ही रहे हैं।

मंत्री, पूर्व मंत्री फायनल

रुलिंग पार्टी किसी भी मंत्री का टिकिट नहीं काट रही...सभी 12 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने पर सहमति बन गई है। इसी तरह रमन सरकार के 12 में से 9 मंत्रियों की टिकिट निश्चित समझी जा रही हैं। इनमें सीनियर मंत्री तो लगभग सभी हैं। रामविचार नेताम को मिल ही गई है...बचे बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, पुन्नूराम मोहले, केदार कश्यप। हालांकि, पहले ये संदेश दिए गए थे कि पुराने नेताओं की बजाए अब नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा। मगर ओम माथुर के प्रभारी बनने के बाद क्रायटेरिया में बदलाव हुआ है। माथुर से जुड़े लोगों का मानना है कि 15 साल मंत्री रहे नेताओं का अपना एक प्रभाव है।

कलेक्टर की छुट्टी

बात 2003 के विधानसभा इलेक्शन की है। चुनाव की रणभेड़ी बज चुकी थी। आचार संहिता लागू होने के बावजूद सूबे के एक कलेक्टर ने ऐसी गलती कर डाली कि चुनाव आयोग ने उनका विकेट उड़ा दिया। दरअसल, 19 नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जशपुर में सभा थी। इसके बाद उन्हें लोदाम जाना था। प्रमोटी आईएएस डॉ. बीएस अनंत तब जशपुर के कलेक्टर थे। आचार संहिता में कलेक्टर ने न केवल सीएम की हेलीपैड पर अगुवानी की बल्कि जशपुर से लोदाम जाने के लिए सीएम के हेलिकाप्टर पर सवार हो गए। सोशल मीडिया का वो युग नहीं था। 20 नवंबर को अखबारों में सीएम के हेलिकाप्टर में बैठते-उतरते कलेक्टर की फोटो छपी। बीजेपी ने चुनाव आयोग को फैक्स के जरिये पेपरों की कटिंग भेज दी। फैक्स मिलते ही चुनाव आयोग ने कलेक्टर की छुट्टी कर दी। केके चक्रवर्ती उस समय राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी थे। उनके पास दिल्ली से फोन आया...चीफ सिकरेर्टी से बात करके दो घंटे के भीतर तीन नामों का पेनल भेजिए। चक्रवर्ती ने पेनल भेजा और उसी दिन शाम को आयोग ने गौरव ि़द्ववेदी को कलेक्टर अपाइंट कर दिया। उस समय भी जशपुर पहुंचना कठिन काम था...रायपुर से सुबह निकलिए तो देर शाम से पहले संभव नहीं...20 साल बाद भी स्थिति वही है...रायपुर से उड़ीसा होकर जाएं तब भी 10 से 11 घंटा लगेगा ही। बहरहाल, कनेक्टिविटी के प्राब्लम को देखते आयोग ने चीफ सिकरेट्री को आदेश दिया कि गौरव को जशपुर जाने के लिए हेलिकाप्टर मुहैया कराई जाए। गौरव द्विवेदी 21 नबवंर को हेलिकाप्टर से ज्वाईन करने जशपुर पहुंचे और 19 दिसंबर को चुनाव संपन्न कराकर रायपुर लौटे।

सबसे अधिक चुनाव

कलेक्टर के रूप में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक आम चुनाव कराने का रिकार्ड ठाकुर राम सिंह के नाम दर्ज है। राम सिंह लगातार नौ साल कलेक्टर रहे। इनमें रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर जैसे जिले शामिल हैं। उन्होंने 2008 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा तथा 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव कराया। दूसरे नंबर पर दयानंद हैं। वे दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव कराए हैं। बिलासपुर कलेक्टर रहते उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव कराया मगर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हट गए। अभी 33 जिलों में से सिर्फ दो ही ऐसे कलेक्टर हैं, जो 2018 का विधानसभा चुनाव कराए हैं। प्रियंका शुक्ला और डोमन सिंह। तब प्रियंका जशपुर में कलेक्टर थीं और डोमन कांकेर में। ये अलग बात है कि निर्वाचन आयोग ने डोमन सिंह के सीनियरिटी और काबिलियत का सम्मान नहीं किया। यूपी के एक्स सीएस और निर्वाचन आयुक्त अनूप पाण्डेय तो लगभग टूट ही पड़े।

चार यार...

इस समय 33 में से चार कलेक्टर ऐसे हैं, जिन्हें 2019 का लोकसभा चुनाव कराने का अनुभव है। इनमें रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश भूरे, बिलासपुर कलेक्टर संजीव झा, बलौदा बाजार कलेक्टर चंदन कुमार और कोंडागांव कलेक्टर दीपक सोनी। दिलचस्प यह है कि चारों सेम बैच के आईएएस हैं...2011 के। 2019 के जनवरी में चारों एक ही लिस्ट में पहली बार कलेक्टर बनें और अभी भी क्रीज पर जमे हुए हैं। इस दौर में पौने पांच साल से कलेक्टरी की पिच पर जमा रहना आसान काम नहीं है।

फरवरी में चुनाव!

यद्यपि, ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि पांच राज्यों के इलेक्शन नीयत समय याने नवंबर में होंगे...क्योंकि, वन नेशन, वन इलेक्शन इतना आसान नहीं है। मगर पीएम नरेंद्र मोदी हमेशा चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों के पालिटिशियन सांस रोक कर 18 तारीख के विशेष सत्र का इंतजार कर रहे हैं। राजनेताओं को डर सता रहा...कुछ भी हो सकता है। वैसे भी, पीएम नरेंद्र मोदी जी-20 में बड़े-बडे राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी कर अपना विल और स्ट्रांग कर लिए हैं। भारत सरकार में बैठे अफसर भी इस बात से इंकार नही ंकर रहे कि इलेक्शन फरवरी तक जा सकता है। लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के भी चुनाव होते हैं। सरकार एक फार्मूला बना सकती है कि जिन सरकारों का चार साल हो गया है, वहां लोकसभा के साथ ही इलेक्शन करा दिया जाए। ऐसे में, दो-चार राज्य और शामिल हो सकते हैं। बहरहाल, क्लियर अभी कुछ भी नहीं। 18 सितंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा कि विशेष सत्र के बिल में क्या है। जाहिर है, तब तक राजनेताओं की धड़कनें बढ़ीं रहेंगी।

ताकतवर अफसर!

सात सीनियर अफसरों को सुपरसीट करके राज्य सरकार ने एडिशनल पीसीसीएफ श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ बनाया था। अब तीन महीने के भीतर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स याने हॉफ बन गए। ऐसा प्रभाव पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी और संजय शुक्ला का भी नहीं रहा। उन्हें भी हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने में वक्त लगा था और मशक्कत भी। राज्य में तीन शीर्ष स्केल वाले पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ। श्रीनिवास राव अब सूबे के तीन सबसे बड़े अफसरों में शामिल हो गए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जीएडी द्वारा कुछ अधिकारियों को शंट किया जा रहा है, इसकी क्या वजह है?

2. कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी में मंत्री जय सिंह अग्रवाल के लोगों को सबसे अधिक जगह कैसे मिल गई?


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