Chhattisgarh Tarkash: 21 जनवरी 2024
संजय के. दीक्षित
अपमानजनक विदाई
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के इन 23 बरसों में र्शीष पदों से दो अफसरों की विदाई बड़ी अपमानजक रही। इनमें पहला है छत्तीसगढ़ के सबसे हाई प्रोफाइल डीजीपी रहे विश्वरंजन की। डीजीपी ओपी राठौर के देहावसान के बाद रमन सरकार ने आईबी में पोस्टेड विश्वरंजन को मनुहार करके लाया था। विश्वरंजन चार साल पुलिस प्रमुख रहे। जुलाई 2007 से जुलाई 2011 तक। इनमें तीन साल उनका एकतरफा जलजला रहा। औरा ऐसा था कि सीएस, एसीएस उनके सामने जाने में हिचकते थे...विधानसभा के अधिकारिक दीर्घा में प्रथम पंक्ति में सीएस के बगल में उनकी कुर्सी सुरक्षित रहती थी। तब के एसीएस होम एनके असवाल उनके लिए कुर्सी छोड़ देते थे। अमन सिंह जैसे ताकतवर ब्यूरोक्रेट्स पुराने मंत्रालय में विश्वरंजन को लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे। मगर आखिरी साल में उनका ग्रह-नक्षत्र ऐसा बिगड़ा कि सरकार से दूरियां बढ़ती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए उनकी छुट्टी कर दी। वो भी ऐसे समय जब वे अपनी बेटी से मिलने अहमदाबाद रवाना हुए थे। वे जैसे ही अहमदाबाद एयरपोर्ट पर लैंड किए, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री पी. जाय उम्मेन ने उन्हें फोन किया...सरकार ने आपकी जगह अनिल नवानी को डीजीपी बना दिया है। विश्वरंजन सन्न रह गए। उम्मेन ने तब कुछ लोगों से शेयर किया था...मेरे फोन पर विश्वरंजन कुछ देर तक कुछ बोल नहीं पाए...फिर बोले...ओके और फोन डिसकनेक्ट कर दिए। हालांकि, बाद में पी जॉय उम्मेन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उम्मेन को सीएस बने करीब साढ़े तीन साल हो गए थे। सरकार ने प्रशासनिक कड़ाई के लिए तय कर लिया था कि सुनिल कुमार को सेंट्रल डेपुटेशन से बुलाया जाए। पीएस टू सीएम बैजेंद्र कुमार और अमन सिंह ने दिल्ली जाकर सुनिल कुमार को इसके लिए तैयार किया। सुनिल छत्तीसगढ़ लौटे तो उन्हें स्कूल शिक्षा दिया गया। उसके दो महीने बाद उम्मेन जब छुट्टी पर केरल गए थे, प्रशासनिक सत्ता पलट हो गया। दिन याद नहीं, मगर पुराने मंत्रालय में शाम पांच, छह बजे का समय होगा। सुनिल कुमार के पास उस समय मैं मौजूद था। इसी बीच बैजेंद्र और अमन आए। दोनों का यकबयक...एक साथ आना खटका...कोई बात अवश्य है। सो, वक्त की नजाकत को समझते दुआ-सलाम के बाद मैं वहां से निकल गया। इसके ठीक आधे घंटे बाद किसी का फोन आया...एसीएस नारायण सिंह को मंत्रालय से हटाकर माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बना दिया गया है। जाहिर सी बात थी...सुनिल कुमार के लिए रास्ता बनाया जा रहा था। और नारायण सिंह के आदेश के 15 मिनट बाद पता चला उम्मेन की जगह सुनिल कुमार को सूबे का प्रशासनिक मुखिया बना दिया गया है। याने पी0 जा उम्मेन की विदाई भी सम्मानजनक नहीं रही। हालांकि, उम्मेन को चेयरमैन बिजली कंपनी कंटीन्यू करने कहा गया। मगर वे स्वाभिमान अफसर थे। उन्हांंने सरकार के इस ऑफर को न केवल ठुकरा दिया बल्कि आईएएस से वीआरएस ले लिया। कुल मिलाकर विश्वरंजन और उम्मेन के कैरियर का एंड अच्छा नहीं रहा।
पुरुषस्य भाग्यमं...
छत्तीसगढ़ में डीजीपी को लेकर अटकलों का दौर जारी है। स्वागत दास से लेकर राजेश मिश्रा, अरुणदेव गौतम और पवनदेव के नामों की चर्चाएं गर्म है। हालांकि, स्वागत दास की भारत सरकार से रिलीव करने की फाइल मूवमेंट में है। मगर जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक उम्मीदें खतम नहीं होती। राजेश मिश्रा का तो इसी महीने रिटारमेंट है। अगर उन्हें पोस्टिंग के साथ एक्सटेंशन मिल जाए तो बोनस के तौर पर उन्हें करीब सवा दो साल एक्स्ट्रा मिल जाएगा। इसको ऐसा समझिए कि सरकार अगर उन्हें प्रभारी डीजी बना दें तो प्रॉसेज कंप्लीट होने में बहुत फास्ट हुआ, तब भी दो-एक महीने का टाईम लगेगा। क्योंकि, पूर्णकालिक पोस्टिंग के लिए एमएचए को पेनल भेजा जाएगा। एमएचए फिर यूपीएससी को भेजेगा यूपीएससी डीपीसी के लिए डेट डिसाइड करेगा। यूपीएससी से हरी झंडी मिलने के बाद फिर उसे डेट से दो साल के लिए उनका आदेश निकलेगा। याने इस प्रॉसिजर के लिए राजेश को पहले एक्सटेंशन दिलाना होगा। क्योंकि, उनके पास टाईम अब सिर्फ 9 दिन बच गए हैं। इसलिए उनकी उम्मीदें लगभग नहीं की स्थिति में पहुंच गई है। फिर भी...पुरूषस्य भाग्यम। यूपी के चीफ सिकरेट्री दुर्गाशंकर मिश्रा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत सरकार ने सिकरेट्री मिश्रा को रिटायरमेंट के दो दिन पहले दो साल का एक्सटेंशन दिया और यूपी सरकार ने प्लानिंग के तहत उन्हें चीफ सिकरेट्री बनाने में एक मिनट भी देर नहीं लगाई। सो, उम्मीद पर पूरी दुनिया टिकी हुई है। स्वागत, राजेश, पवन, गौतम से लेकर प्रदीप गुप्ता तक उम्मीद से होंगे।
जो होता है, अच्छे के लिए...
इंटर स्टेट डेपुटेशन पर गए एक आईएएस ऑफिसर ने एक्सटेंशन के लिए बड़ा प्रयास किया कि सरकार से एनओसी मिल जाए। पर ऐसा हुआ नहीं। आखिरकार, चुनाव से छह महीने पहले उन्हें छत्तीसगढ़ लौटना पड़ा। हालांकि, उन्होंने कोशिशें छोड़ी नहीं। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने अपना पीएस बनाने के लिए खुद सरकार को फोन लगाया। मगर फाइल इधर उधर होती तब तक चुनाव का ऐलान हो गया। इसके बाद सरकार बदल गई। आईएएस को अब ऐसी पावरफुल जगह सेक्रेटरी की पोस्टिंग मिल गई है, जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। लॉबिंग से दूर रहने वाले इस अफसर को पिछली बीजेपी सरकार में भी खास पोस्टिंग नहीं मिली थी। चुनाव आयोग के चक्कर में जरूर उन्हें एक बड़े जिले की कलेक्टरी मिल गई थी। बहरहाल, इसे मानकर चलना चाहिए कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है।
प्रमोशन में पीछे
पिछले साल आश्चर्यजनक तौर पर जनवरी फर्स्ट वीक में आईपीएस अफसरों का प्रमोशन हो गया था। मगर इस बार आईएएस आगे निकल गए। आईएएस में इस बार नीचे से लेकर ऊपर तक, एक साथ सभी का प्रमोशन हो गया। अलबत्ता, आईपीएस का बुरा हाल यह है कि 2011 बैच को सलेक्शन ग्रेड भी नहीं मिला है। जबकि, इसमें डीपीसी का भी झंझट नहीं। इसके अलावा डीआईजी से आईजी और एडीजी से डीजी का भी प्रमोशन होना है। 92 बैच के बेचारे पवन देव और अरुण देव पिछले साल से डीजी प्रमोट होने की बाट जोह रहे हैं। जनवरी 2022 से उनका प्रमोशन ड्यू है। दोनों डीजी पुलिस के दावेदार हैं। अब जरा समझिए, साल भर से ये डीजी बनने टकटकी लगाए बैठे हैं, और कोई पैराशूट डीजीपी बैठ जाएगा, तो इन दोनों पर क्या गुजरेगा।
पत्नी का सहारा
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐसी लहर थी कि जो पार्षद का चुनाव नहीं जीत सकता था वो विधायक बन गया। इन एक्सीडेंटल विधायकों ने पांच साल बढ़िया जलवा भी काटा। इनोवा में हूटर, बड़ी-बड़ी लाइटें...और इतने लार्ज प्वाइंट में आगे पीछे विधायक लिखा कि एक किलोमीटर दूर से दिख जाए कि माननीय की गाड़ी आ रही है। मगर पांच साल में ही इनमें से कई बेचारे पूर्व हो गए। दूर से पहचानी जानी वाली इनकी गाड़ियां वैधव्य गति की हो गई है। टोल नाकों में पहले सायरन बजाते हुए निकल जाती थी, अब कोई वेटेज नहीं मिल रहा। ऐसे में कुछ पूर्व विधायकों ने रास्ता निकाला है...गाड़ियों के नेम प्लेट पर विधायक के ऊपर इतना छोटा पूर्व लिखवाए हैं कि एक बरगी नजर नहीं आए, तो कुछ की पत्नी किसी पद पर है तो पत्नी के पदनाम गाड़ियों में लिखवा लिए हैं। चलिए, आइडिया अच्छा है।
जीत का मैनेजमेंट
बिलासपुर संभाग में अभी तक चुनाव के मैनेजमेंट गुरु अमर अग्रवाल माने जाते थे। 77 में जहां कांग्रेस नहीं हारी, ऐसे गढ़ में वे लगातार चार चुनाव जीते। हालांकि, 2018 में ओवर कांफिडेंस में वे झटका खा गए। मगर इस बार ताकत इतना जोर का लगा दिए कि लीड का रिकार्ड बन गया। बहरहाल, इस बार सरकार पलटने की खबरों की वजह से बिलासपुर से लगी एक यूनिक मैनेजमेंट वाली कोटा सीट की चर्चा दब गई। कोटा कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। मगर पिछले साल जोगी कांग्रेस के खाते में ये सीट गई थी। और अजीत जोगी के निधन के बाद यह पहला चुनाव हो रहा था, सो सहानुभूति वोटों की गुंजाइश पर्याप्त थी। मगर कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव ने ऐसी चकरी घुमाई कि रेणु जोगी को मात्र आठ हजार वोट से संतोष करना पड़ा। रेणु जोगी के नामंकन के दौरान जो चेहरे थे, प्रचार शुरू होने पर वे अटल के लिए काम करते नजर आए। सो, कह सकते हैं कांग्रेस से ज्यादा ये अटल की जीत रही। जिसने ओम माथुर से लेकर बीजेपी के बड़े रणनीतिकारों को भी हैरान कर दिया। बीजेपी का दीगर सीटों पर जोगी कांग्रेस वाला दांव प्लस रहा मगर कोटा में पार्टी गच्चा खा गई।
खुफिया चीफ का औरा
सीएम विष्णुदेव ने भले ही खुफिया चीफ अपाइंट करने में टाईम लिया मगर इस सलेक्शन पर कोई उंगली उठाने की गुंजाइश नजर नहीं आती। अमित कुमार छत्तीसगढ़ में बीजापुर के साथ ही सबसे बड़े जिले रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग की कप्तानी किए हैं। उधर, जांजगीर और इधर बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट राजनांदगांव के भी एसपी रहे। उपर से सीबीआई में 12 साल। उसमें भी ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी के पोस्ट पर करीब चार साल। जेडी पॉलिसी मतलब बड़े-बड़े राजनेताओं और नौकरशाहों के यहां रेड का काम इसी विभाग से होता है। इसीलिए, जेडी पॉलिसी हमेशा पीएमओ के कंटेक्ट में रहता है। सो, खुफिया चीफ के तौर पर उनका प्रभाव तो रहेगा। मुकेश गुप्ता का भी एक समय जलजला रहा...ब्यूरोक्रेट्स भी उनसे घबराते थे। हालांकि, अमित कुमार की वर्किंग स्टाईल अलग है, मगर औरा तो इनका रहेगा। सीबीआई के नाम से लोग वैसे भी घबराते हैं। ये तो एक दशक से अधिक वहां गुजारे हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या एसपी और आईजी की लिस्ट अब 26 जनवरी के बाद निकलेगी?
2. पिछली सरकार की तरह विष्णुदेव सरकार भी देर रात ट्रांसफर, पोस्टिंग क्यों कर रही है?
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