शनिवार, 27 जनवरी 2024

Chhattisgarh Tarkash: अफसरों का ड्रेस कोड

 तरकश, 28 जनवरी 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों का ड्रेस कोड

राजस्थान के चीफ सिकरेट्री ड्रेस को लेकर बेहद सख्त हैं। एक बार जिंस पहनकर मीटिंग में आने वाले तीन अफसरों को उन्होंने पैंट बदलने घर भेज दिया था। इस वाकये से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की याद आ गई। सरकार बनने के दो ही महीने हुए थे कि पुराने मंत्रालय की एक बैठक में प्रमुख सचिव स्तर के एक आईएएस फुल टीशर्ट नुमा कुछ पहनकर आ गए थे। जोगी जी इस पर बेहद नाराज हुए। उन्होंने उस अफसर को मीटिंग से उठाया तो नहीं मगर यह कहते हुए क्लास जमकर ली थी कि ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों को पहनावे का ध्यान रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से ठीक इसका उलट हो रहा है। मुख्यमंत्री की बैठकों में कोई हाफ शर्ट पहनकर पहुंच जाता है तो कोई आस्तिन चढ़ाकर। पहले के अफसर ड्रेस को लेकर बड़ा संजीदा रहते थे। खासकर सीएम की जिस दिन मीटिंग है, उस दिन हाफ शर्ट बिल्कुल नहीं। पहनावा भी गरिमापूर्ण। एक तरह से ये सिस्टम और सीएम का सम्मान होता है। राजभवन के कार्यक्रमों में भी आज कल लोग ड्रेस का ध्यान नहीं रख रहे। चीफ सिकरेट्री को इसके लिए अपने अधिकारियों को ताकीद करना चाहिए...कम-से-कम सीएम की मीटिंग और राजभवन के कार्यक्रमों में ड्रेस की मर्यादा का ध्यान रखा जाए।

मीटिंग से GO...GO

चूकि बात मीटिंग से अफसरों को उठाने और अजीत जोगी की निकली है तो एक पुराना वाकया याद हो आया। 2001 की बात होगी। यही धान खरीदी का कोई समय था। नवंबर या दिसंबर का। तब बारदाना का शार्टेज हो गया था, किसान हलाकान थे। जोगी जी ने पुराने मंत्रालय में फूड, नॉन, और मार्कफेड के अफसरों की बैठक बुलाई। अब जोगी जी जोगी जी थे, उन्हें कोई मिसगाइड कहां कर सकता था। अफसरों ने यह कहते हुए उन्हें भटकाने की कोशिश की कोलकाता की कंपनी बारदाना भेज नहीं रही है...इस पर वे बिगड़ उठे। उन्होंने दो आईएएस को भरी मीटिंग से उठा दिया। बोले...अभी कोलकाता जाओ। अफसर इसे समझ नहीं पाए। लगा कि जाने को बोल रहे तो कल चल देंगे। पुराने लोगों को याद होगा, जोगीजी को जब गुस्सा आता था तो वे कांपने लगते थे। ऐसा ही कुछ उस मीटिंग में हुआ। बोले...उठ क्यों नहीं रहे हो, चलो अभी जाओ...गो...गो। जोगीजी के चेहरे की भाव भंगिमा देख दोनों अफसर तुरंत मीटिंग छोड़ कोलकाता भागे। उस समय फ्लाइट नहीं थी और न सरकार के पास इतने पैसे होते थे कि अफसर यहां से दिल्ली जाए और वहां से फिर कोलकाता। रामचंद सिंहदेव जैसे सख्त वित्त मंत्री थे। किसी सप्लायर या ठेकेदार से टिकिट करा लें, ऐसा भी उस समय नहीं होता था। लिहाजा, दोनों आईएएस अफसरों ने शाम की मुंबई-हावड़ा मेल में इमरजेंसी कोटे से दो बर्थ कराया और कोलकाता रवाना हुए।

वक्त की दोहरी मार

ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दिन एक बराबर नहीं होते। वैसे भी नौकरशाही में माना जाता है, आईएएस की लगभग 30 साल की सर्विस में 20 साल कमाल के होते हैं तो पांच साल मीडियम और पांच साल मुश्किल के। छत्तीसगढ़ में भी सरकार बदलने के बाद कुछ अफसरों का अच्छा नहीं चल रहा। खासकर, सात आईएएस अधिकारियों पर वक्त की दोहरी मार बोल सकते हैं। कुछ कलेक्टरों को चुनाव आयोग ने आचार संहिता लगते ही हटा दिया था, और कुछ को नई सरकार ने। इसके बाद सरकार ने सात अफसरों को मिड टर्म ट्रेनिंग के लिए महीने भर के लिए मसूरी भेज दिया। अब बेचारे छत्तीसगढ़ के आईएएस, मसूरी के एक डिग्री टेम्परेचर में कैसे रह रहे होंगे, आप समझ सकते हैं। रात में हीटर ऑन करते हैं तो बेचैनी होती है और न जलाएं तो डबल रजाई भी असर नहीं कर रहा। उसमें भी सुबह उठ जाना...मुंह से भाप निकलते कभी देखा नहीं। सात में एक माताजी भी हैं। सातों आईएएस देवों के देव विष्णुदेव से प्रार्थना कर रहे...भगवान तकलीफ दे रहे हो तो मसूरी से लौटने के बाद कुछ काम धाम भी दे देना।

छुट्टियों में याद रखना

पिछली सरकार ने डीए, एचआर देने में भले ही विलंब किया मगर छुट्टियां इतनी दे डाली कि छत्तीसगढ़ के कर्मचारी मौज काट रहे हैं। साल में कई हफ्ते ऐसे निकल जा रहे कि दो-एक दिन की अर्जी लगा दिए तो दसेक दिन का सैर-सपाटा। हालांकि, एक पहलू यह भी है कि कर्मचारियों, अधिकारियों के घरों में पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़े हैं। पहले हफ्ता में एकाध दिन छुट्टी होती थी तो उसका ब़ड़ा चार्म होता था। अब तीन-तीन, चार-चार दिन घर में रहेंगे तो दिक्कतें तो होगी ही। बहरहाल, तीज-त्यौहारों की छुट्टियां इतनी ज्यादा हो गई है कि छुट्टी घोषित करने वाला जीएडी भी कंफ्यूज्ड हो जा रहा। पिछली सरकार ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया हुआ है, जीएडी ने इसी दिन नागपंचमी का लोकल अवकाश दे दिया। जीएडी भी आखिर क्या करें...इतनी छुट्टियों से भ्रमित होना स्वाभाविक है। फिर भी, छुट्टियों को लेकर शिक्षक और कर्मचारी पिछली सरकार को जरूर याद रखेंगे।

मगर वोट नहीं...

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक रिटायर चीफ सिकरेट्री शिक्षाकर्मियों का संविलियन न करने पर अड़ गए थे। जबकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह इस पक्ष में थे कि पुराना वादा है, इसे पूरा कर दिया जाए। फिर सवाल चौथी बार सरकार बनाने का भी था। रिटायर सीएस तब एक कमीशन में पोस्टेड थे और अघोषित तौर पर सरकार के सलाहकार का काम भी देख रहे थे। वे इस बात से काफी नाराज थे कि शिक्षाकर्मी मर्यादा को ताक पर रखकर रायपुर के बूढ़ापारा तालाब में अधनंगे प्रर्दशन कर दिए थे। उनका ये भी तर्क था कि बिना किसी भर्ती प्रक्रिया के लोकल लेवल पर चुने गए इन शिक्षकों से छत्तीसगढ़ का ह्यूमन रिसोर्स चरमरा जाएगा। मगर रमन सिंह उनकी दलीलों को न मानते हुए शिक्षाकर्मियों को रेगुलर करने का फैसला ले लिया। बावजूद इसके शिक्षकों के वोट एकतरफा कांग्रेस को पड़े। उसके बाद आई कांग्रेस सरकार ने रमन सरकार की शर्तो को शिथिल करते हुए सबको एकमुश्त संविलियन कर दिया। इसके बाद छुट्टियों की मौज। फिर भी शिक्षकों और कर्मचारियों का वोट कांग्रेस को नहीं मिला। ऐसे में, पीसी सेठी की चर्चा यहां मौजूं लगता है। मध्यप्रदेश के एक पुराने मुख्यमंत्री थे प्रकाशचंद सेठी...बेहद सख्त और अनुशासन के पक्के...ब्यूरोक्रेसी से लेकर कर्मचारी संगठन उनसे घबराता था। वे अक्सर कहा करते थे, सरकार की प्राथमिकता आम आदमी होना चाहिए, कर्मचारी, अधिकारी नहीं। बाद में वे इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में देश के गृह मंत्री बनाए गए थे।

मजबूत आईएएस?

एसीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ के पास पहले तीन हैंड थे। सिकरेट्री बसव राजू, स्पेशल सिकरेट्री देवेंद्र भारद्धाज और ज्वाइंट सिकरेट्री पुष्पा साहू। सरकार ने पहले बसव को वहां से सीएम सचिवालय भेजा, फिर देवेंद्र और पुष्पा को भी शिफ्थ कर दिया। वन विभाग में अब वन मैन आर्मी वाली स्थिति है। याने पिंगुआ ही सब कुछ। उनके पास गृह विभाग है और माध्यमिक शिक्षा मंडल के साथ व्यापम चेयरमैन का चार्ज भी। उपर से ठीक परीक्षा के टाईम माशिमं सचिव को खो कर दिया गया। चलिये, पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी हैं...भारत सरकार में काम भी किए हैं। जाहिर है, उनका कंधा मजबूत तो होगा ही।

बड़ी चूक?

तीन दिन पहले पुराने पुलिस मुख्यालय में सड़क सुरक्षा का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय उसके चीफ गेस्ट थे। बताते हैं, पीएचक्यू के एक बड़े अफसर को इसकी जानकारी नहीं दी गई। वे रुटीन में नए पीएचक्यू पहुंच गए। वहां पता चला कि सीएम साहब ओल्ड पीएचक्यू में आए हुए हैं। वे भागते हुए वहां पहुंचे तब तक काफी लेट हो चुका था। खबर है, उन्होंने अफसरों की जमकर क्लास ली। खैर जो भी है, सिस्टम के लिए ये ठीक नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इसमें कितनी सत्यता है कि विष्णुदेव सरकार के दो मंत्रियों को पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है?

2. क्या ये सही है कि पुराने मंत्री अपने विभागों से खुश नहीं हैं तो कुछ नए मंत्रियों पर सत्ता का अहंकार हॉवी होने लगा है?



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