शनिवार, 20 जुलाई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की पूजा खेडकर

 तरकश, 21 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ के किस्मती आईएएस अफसर 

डोमन सिंह को राज्य सरकार ने बस्तर का डिवीजनल कमिश्नर नियुक्त किया है। डोमन भारत देश के पहले प्रमोटी कलेक्टर हैं, जिनके नाम सात जिलों की कलेक्टरी करने का रिकार्ड दर्ज है। छत्तीसगढ़ में इतने जिलों की कलेक्टरी किसी आरआर याने डायरेक्टर आईएएस को भी नसीब नहीं हुआ। सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, पी. दयानंद, ठाकुर राम सिंह चार जिलों से आगे नहीं बढ़ पाए। नए वालों में भीम सिंह, किरण कौशल और चंदन कुमार चार जिले के कलेक्टर रहे हैं। और नीलेश क्षीरसागर, दीपक सोनी फोर्थ डिस्ट्रिक्ट क्लब में अभी पहुंचे हैं। याने छत्तीसगढ़ में कोई आईएएस कलेक्टरी में चार जिलों को क्रॉस नहीं कर पाया। मगर डोमन सिंह को पिछली सरकार में पांच साल में पांच जिलों की कलेक्टरी करने का गौरव प्राप्त हुआ। हालांकि, रमन सिंह सरकार में डोमन की कलेक्टरी की पारी शुरू हुई थी। बीजेपी सरकार में वे मुंगेली और कोरिया कलेक्टर रहे। फिर भूपेश बघेल सरकार में कांकेर, महासमुंद, जीपीएम और राजनांदगांव के कलेक्टर बनाए गए। दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की नई सरकार गठन होने के बाद उन्हें राजनांदगांव से हटाया गया। डोमन 2009 बैच के आईएएस हैं। उनका भाग्य कितना प्रबल है, इस बात से आप समझ सकते हैं कि एक तरफ वे कलेक्टरी का कीर्तिमान बना डाले और उनके बैच के बेचारे आरआर अवनीश शरण, डॉ0 प्रियंका शुक्ला और अय्याज तंबोली को दो-तीन जिले से आगे मौका नहीं मिल पाया। बहरहाल, सात जिलों के कलेक्टर रहे डोमन को अब सात जिलों वाले बस्तर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही...डोमन पोस्टिंग प्राप्ति का ज्ञान बढ़ाने कौन सा चूरण खाते हैं...जिले के बाद क्या अब कमिश्नरी में पोस्टिंग का रिकार्ड बनाएंगे।

एक लिस्ट और

राज्य सरकार ने कल चार आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर किया। इसमें बस्तर कमिश्नर डोमन सिंह की पोस्टिंग देखकर प्रतीत हो रहा कि जल्द ही एक लिस्ट और आएगी। दरअसल, डोमन सिंह के बैच वाले दो प्रमोटी आईएएस बस्तर में कलेक्टर हैं। अब एक ही बैच का कमिश्नर और कलेक्टर कैसे होगा? दरअसल, डोमन 2009 बैच के आईएएस हैं और बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय और नारायणपुर कलेक्टर विपीन मांझी भी उन्हीं के बैच के। अलबत्ता, मांझी तो डोमन से बैचवाइज सीनियर हैं। अनुराग पाण्डेय चूकि अगले महीने रिटायर हो रहे, इसलिए उतना चल सकता है। मगर मांझी का रिटायरमेंट अगले साल है। ऐसे में सीनियर कलेक्टर रहेगा, और जूनियर कमिश्नर, इसमें सीनियरिटी का इश्यू तो आएगा ही। सवाल यह भी है कि जूनियर अफसर सीनियर का सीआर कैसे लिखेगा? सो, लिस्ट देखकर लगता है...पोस्टिंग में सीनियरिटी और जूनियरिटी का फर्क मिटाने बस्तर में सरकार कुछ और कलेक्टरों को चेंज करेगी। वैसे भी रायपुर और बिलासपुर के कमिश्नर डॉ. संजय अलंग इस महीने रिटायर होने जा रहे हैं। विधानसभा का मानसून सत्र और अलंग का रिटायरमेंट लगभग एक साथ समाप्त होगा। सत्र का उल्लेख करने का आशय यह है कि इसके बाद 31 जुलाई को आईएएस पोस्टिंग की लिस्ट निकलेगी, जिसमें रायपुर और बिलासपुर में नए कमिश्नर अपाइंट किए जाएंगे।

छत्तीसगढ़ की पूजा खेड़कर-1

छत्तीसगढ़ में भी कई पूजा खेड़कर हैं, जिन्होंने फर्जी जाति, विकलांगता और ईडब्लूएस के सर्टिफिकेट के जरिये नौकरी हथियाने में कामयाब हो गईं। एक लेडी डिप्टी कलेक्टर के खिलाफ मामला बिलासपुर हाई कोर्ट तक मामला पहुंचा। महिला अफसर ने कान से कम सुनाई देने का हवाला दिया और विकलांग कोटे से पीएससी में उप जिलाधीश सलेक्ट हो गई। दिव्यांगों की समिति ने उनका कोटा हड़पने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट ने मेडिकल टेस्ट कर रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया। मगर जिला अस्पताल के डॉक्टरों से किसी बीमारी के कागज पर साइन कराना कितना आसान है, इसे बताने की जरूरत नहीं। महिला अफसर ने कागज जमा कर दिया। हालांकि, मामला अभी खतम नहीं हुआ है। मगर यही टेस्ट अगर एम्स में कराया गया होता तो जाहिर है, महिला डिप्टी कलेक्टर को नौकरी बचाना मुश्किल हो जाता।

छत्तीसगढ़ की पूजा खेड़कर-2

पुराने लोग पोरा बाई को भूले नहीं होंगे। पोरा बाई 2008 में बारहवीं बोर्ड में मेरिट में टॉप आई थी। सेकेंड, थर्ड डिवीजन से हमेशा परीक्षा पास करने वाला अगर प्रदेश में टॉप आ जाएगा, तो कोहराम मचना ही था। बलौदा बाजार जिले की रहने वाली पोरा बाई ने नकल के नाम पर कुख्यात जांजगीर के बिर्रा स्कूल से परीक्षा में बैठी थी। मेरिट में टॉप आने के बाद लोगों के कान खड़े हो गए...टॉपर स्टूडेंट परीक्षा में बैठने के लिए स्कूल तो नहीं बदलते। माध्यमिक शिक्षा मंडल के तत्कालीन चेयरमैन बीकेएस रे ने जांच हुई तो पता चला आंसरशीट में हैंडराईटिंग किसी और की निकली। पुलिस ने पोरा बाई समेत स्कूल के प्रिंसिपल और परीक्षक समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया। पोरा बाई जेल भी गई। मगर 12 साल बाद इस आधार पर कोर्ट ने बरी कर दिया कि पुलिस ने अभियोजन को साबित नहीं किया। पराकाष्ठा तो यह हो गई कि जांच में हैंडराईटिंग किसी और का पाए जाने के बाद भी माशिमं ने पोरा बाई का रिजल्ट केंसिल नहीं किया। और वे इस समय बलौदा बाजार में शिक्षिका बन गई हैं।

मंत्री की बेटी, मंत्री की पोती

देश में जब नीट परीक्षा और पूजा खेड़कर का मामला सुर्खियो में है तो छत्तीसगढ़ का पीएमटी परीक्षा कांड कैसे विस्मित हो सकता है। मामला 2011 पीएमटी का है। तब नीट प्रारंभ नहीं हुआ था। राज्य अपने-अपने हिसाब से प्री मेडिकल टेस्ट लेते थे। 2011 में राज्य सरकार को दो बार पीएमटी परीक्षा निरस्त करनी पड़ी। एक बार गलत पेपर बंटने की वजह से। और दूसरी बार यूपी के एक गैंग ने पर्चा हथिया उसे 13-13 लाख रुपए में बेचने पर। दूसरी बार भंडाफोड़ तब हुआ, जब बिलासपुर जिले के तखतपुर के एक बड़े हॉल में 72 बच्चे पीएमटी का पर्चा हल करते पकड़े गए थे। इनमें मुंगेली से बिलांग करने वाले एमपी के समय के एक पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की पोती भी शामिल थी। इतने के बाद अब परीक्षा रद्द तो बनता ही था। ले-देकर तीसरी बार में परीक्षा जाकर संपन्न हो पाई, जब सरकार ने प्रदीप चौबे को परीक्षा नियंत्रक बनाया। मगर छत्तीसगढ़ में जैसा कि होता है, इतने बड़े कांड के बाद भी कुछ हुआ नहीं। तमाम साक्ष्यों के बाद भी पुलिस ने ऐसा केस बनाया कि सारे आरोपी बरी हो गए। जबकि, मध्यप्रदेश के व्यापम कांड में मंत्री तक जेल चले गए थे। उससे पहले एक स्वास्थ्य मंत्री की बेटी कोटे के चलते पीएमटी क्लियर कर ली थी। मगर बारहवी बोर्ड परीक्षा में फेल हो गई, क्योंकि उसमें कोटा होता नहीं। बाद में सप्लीमेंट्री परीक्षा में पास कराकर एमबीबीएस में दाखिला करा दिया गया, तब तक मेडिकल की सीट रोक रखी गई। मेडिकल एजुकेशन के डायरेक्टर ने नियमों को ताक पर रख सेंट्रल कोटे से अपनी बेटी का रायपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिला करा दिया। कोर्ट ने इस आधार पर 50 हजार रुपए फाइन करके छोड़ दिया कि अब दो साल की पढ़ाई पूरी कर ली है उनकी बेटी। प्रायवेट कालेज में उस समय 60 लाख फीस थी। अब 60 लाख की जगह 50 हजार में सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़कर बेटी डॉक्टर बन गई, डीएमई साब फायदे में ही रहे। कहने का मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ का परीक्षाओं का ट्रेक रिकार्ड पोरा बाई और मुन्ना भाई, मुन्नी बहनों से भरा पड़ा है।

कलेक्टर से रिटायर

बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय अगले महीने 31 अगस्त को रिटायर हो जाएंगे। चूकि उनके रिटायरमेंट में अब एक महीना 10 दिन बच गए हैं, सो नहीं लगता कि उनका अब कहीं और ट्रांसफर किया जाएगा। याने कलेक्टर से ही वे सेवानिवृत्त होंगे। कलेक्टर से रिटायर होने वाले अनुराग छत्तीसगढ़ के दूसरे आईएएस होंगे। उनसे पहिले गरियाबंद कलेक्टर छतरसिंह देहरे 2021 में गरियाबंद कलेक्टर से रिटायर हुए थे।

उमेद पर भरोसा

पिछली सरकार से एसपी सीएम सिक्यूरिटी की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रफुल्ल ठाकुर को राज्य सरकार ने हटा दिया है। उन्हें चौथी बटालियन में कमांडेंट बनाकर भेजा गया है। उनकी जगह पर बलरामपुर जिले के एसपी लाल उमेंद सिंह को सीएम सिक्यूरिटी की कमान सौंपी गई है। उमेंद मैच्योर पुलिस अधिकारी हैं। राजधानी रायपुर में लंबे समय तक पोस्टेड रहे हैं। मगर इससे इतर लोगों की उत्सुकता इस बात को जानने में है कि आईपीएस राजेश अग्रवाल कैसे उमेंद को खो कर बलरामपुर एसपी बनने में कामयाब हो गए?

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएएस विनीत नंदनवार को ब्रेवरेज कारपोरेशन का एमडी बनाकर सरकार ने पहले उपर चढ़ाया और फिर तीन महीने के भीतर पूर्व की स्थिति में पहुंचा दिया, ऐसा क्यों?

2. SAS अफसर अभिषेक अग्रवाल शराब मार्केंटिंग कंपनी से हटाकर बिना विभाग क्यों कर दिए गए?

शनिवार, 13 जुलाई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: क्या इसलिए टला छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार!

 तरकश, 14 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

क्या इसलिए टला छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार!

राजधानी रायपुर में बीजेपी की हाई प्रोफाइल बैठक हुई और उसी दिन देर रात राज्य सरकार ने मंत्री केदार कश्यप को संसदीय कार्यमंत्री का अतिरिक्त प्रभार सौंपने का आदेश जारी कर दिया। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यह विभाग खाली था। कुछ दिन बाद छत्तीसग़ढ़ विधानसभा का मानसून सत्र है। विपक्ष खामोख्वाह इसे इश्यू बनाता, इसलिए सरकार को अतिरिक्त प्रभार का फैसला करना पड़ा। केदार कश्यप को संसदीय कार्य विभाग देने के बाद जाहिर है कम-से-कम विधानसभा सत्र से पहले अब मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं होगा। मगर उसके बाद कब...? बीजेपी के शीर्ष सूत्रों की मानें तो कैबिनेट का विस्तार अब नवंबर के बाद तक जा सकता है। दरअसल, पार्टी को लग रहा कि मंत्रियों के दो पद खाली रखने का परिणाम नगरीय निकाय चुनावों में देखने मिल सकता है। मंत्री बनने की आस में सारे विधायक अपने-अपने इलाकों में लगकर काम करेंगे। जैसे लोकसभा चुनाव में काम हुआ। विधानसभा चुनाव में बिलासपुर में अमर अग्रवाल की लीड थी 28959 हजार, मगर लोकसभा चुनाव में बढ़कर 52432 हजार हो गई। याने लगभग डबल। इसी तरह रायपुर पश्चिम में राजेश मूणत की विस की लीड थी 41229 और लोस में 87 हजार, कुरूद में अजय चंद्राकर जीते थे 8090 वोटों से और लोस चुनाव में लीड मिली 24929 वोटों की। याने तीगुनी। इससे लगता है, नगरीय निकाय में भी पार्टी को फायदा होगा। मगर सवाल यह भी है कि जिन मंत्रियों के इलाके में लोकसभा चुनाव में पार्टी की लीड बुरी कदर कम हुई या पिछड़ गई....नगरीय निकाय चुनावों में पारफर्मेंस नहीं आया, तो क्या ऐसे मंत्रियों के लिए भी पार्टी रिप्लेसमेंट का कोई फार्मूला बनाएगी? क्योंकि, लोकसभा चुनाव में मोदी का भी असर था, नगरीय निकाय चुनाव विशुद्ध तौर पर मंत्रियों के लिए लिटमस टेस्ट होगा। बहरहाल, बात कैबिनेट विस्तार की, तो कुर्ता, पायजामा और जैकेट सिलवाकर शपथ लेने का इंतजार कर रहे विधायकों को अभी और वेट करना होगा।

एक पोस्ट, 5 का पेनल

एडीजी पवनदेव का बंद लिफाफा खुलने से अब डीजी पुलिस की दौड़ में एक नाम और शामिल हो गया है। दरअसल, डीजी प्रमोशन में डीपीसी ने अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के नाम को हरी झंडी देते हुए आईपीएस पवनदेव के नाम का लिफाफा बंद कर दिया था। मगर जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पवनदेव का नाम ओके कर दिया। सरकार से सहमति मिलने के बाद गृह विभाग ने लिफाफा ओपन कर उन्हें डीजी प्रमोट करने की नोटशीट चला दी है। आजकल में कभी भी पवनदेव को डीजी बनाने का आदेश हो जाएगा। इसके साथ ही अगले महीने 4 अगस्त को खाली हो रहे डीजी पुलिस के लिए अब तीन दावेदार हो जाएंगे। अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के साथ पवनदेव भी। हालांकि, गृह विभाग पांच नामों का पेनल यूपीएससी को भेजने जा रहा है। इनमें एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम भी शामिल है। डीजीपी सलेक्शन का प्रॉसेज यह है कि यूपीएससी चेयरमैन की अध्यक्षता में डीपीसी बैठेगी। इनमें एमएचए के ज्वाइंट सिकरेट्री के साथ ही छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री और वर्तमान डीजीपी होंगे। डीपीसी के बाद यूपीएससी तीन नामों का पेनल फायनल कर राज्य सरकार को भेजेगी। राज्य सरकार उनमें से किसी एक नाम को ओके कर डीजीपी अपाइंट करेगी। लोगों की उत्सुकता इस बात को लेकर है कि विष्णुदेव सरकार इन पांच में से किस पर भरोसा कर छत्तीसगढ़ पुलिस की कमान सौंपती है।

आईपीएस की ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग इस समय बेहद बुरे दौर से गुजर रही तो इसके लिए नए आईपीएस की ट्रेनिंग भी काफी कुछ जिम्मेदार है। आरआर याने डायरेक्ट आईपीएस अधिकारियों को इस तरह पोस्टिंग और दायित्व नहीं मिल रहा, जिससे वे विपरीत परिस्थितियों को कुशलता से हैंडिल कर सके। अब सवाल ट्रेनिंग कमजोर क्यों...तो इसके लिए पीछे चलना होगा। मध्यप्रदेश के दौरान सब कुछ ठीक था। वहां के सिस्टम का असर करीब-करीब 2002-03 तक दिखा। मगर इसके बाद डायरेक्टर आईपीएस की ट्रेनिंग बेपटरी होती गई। दरअसल, एमपी के दिनों में आईपीएस को एडिशनल एसपी का टेन्योर पूरा करने के बाद ही जिले की कमान याने एसपी बनाया जाता था। खुद डीजीपी अशोक जुनेजा बिलासपुर और रायगढ़ के एडिशनल एसपी रहे। मगर राज्य बनने के बाद एडिशनल वाला कल्चर खतम होता गया। प्रोबेशन के बाद बड़े शहरों में आईपीएस अधिकारियों को सीएसपी बनाया जाता है मगर उसके बाद कुछ दिनों के लिए बस्तर भेज फिर सीधे कप्तान अपाइंट कर दिया जा रहा। अब बस्तर में नक्सल को छोड़ और कोई लॉ एंड आर्डर का प्राब्लम नहीं है। इसलिए, वहां के एडिशनल एसपी का अनुभव मैदानी इलाकों में काम नहीं आता। डायरेक्ट आईपीएस को बड़े शहरों में सीएसपी बनाया जाता है मगर सीएसपी के अधिकार क्षेत्र में दो-चार थानों से अधिक कुछ होता नहीं। उन्हें पूरे शहर का अनुभव नहीं मिल पाता। आप याद कीजिए...मध्यप्रदेश के दौर में अमूमन सभी जिलों में दो एडिशनल एसपी होते थे....एक शहर और दूसरा ग्रामीण। डायरेक्ट आईपीएस अफसर को शहर की जिम्मेदारी दी जाती थी और स्टेट सर्विस वाले ग्रामीण की। यह अब पुरानी बात हो गई। लॉ एंड आर्डर की स्थिति हो या फिर कोई वीवीआईपी मूवमेंट का...डायरेक्ट आईपीएस की जगह स्टेट सर्विस वाले आईपीएस को भेज दिया जाता है। प्राईम मिनिस्टर या प्रेसिडेंट का जब भी दौरा होता है तो विजय अग्रवाल का स्कवॉड अफसर बनाया जाता है या फिर शशिमोहन सिंह को। डायरेक्ट आईपीएस को बचा कर रखने की छत्तीसगढ़ में जो परिपाटी सेट हो गई है, वह छत्तीसगढ़ पुलिस की सेहत के लिए अच्छी नहीं। विजय अग्रवाल और शशिमोहन आठ-दस साल में रिटायर हो जाएंगे...वक्त की जरूस्त है नए अफसरों को ट्रेंड किया जाए। वरना, छत्तीसगढ़ पुलिस पोलिसिंग का नहीं, करप्शन का प्रतीक बनकर रह जाएगी।

कका जिंदा हे

बीजेपी और कांग्रेस में फर्क यह है कि कांग्रेस नेता बड़े जीवट होते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी सीना तानकर खड़े रहने वाले। देख ही रहे हैं, पराजय के बाद भी सरकार पर हमला बोलने में कांग्रेस नेता पीछे नहीं। जिन विधायकों पर कई आरोप, वे भी दहाड़ रहे। जबकि, 2018 में जब बीजेपी की करारी पराजय हुई थी, मंत्री समेत सारे नेताओं की बिल में घुसने जैसी स्थिति थी। कई नेताओं का तो अगले विधानसभा चुनाव तक मुंह नहीं खुला। सभी डरे-सहमे सिमटे रहे...कहीं कुछ बोल दिया और फाइल खुल गई तो फिर क्या होगा? आखिरी समय में राजेश मूणत ने कुछ तेवर दिखाने की कोशिश की तो रायपुर पुलिस ने उनके साथ क्या किया, मूणतजी ही जानते हैं...उनके लिए रमन सिंह को थाने जाना पड़ गया। मगर अब तो सरकार बन गई है...10 मंत्री भी हैं लेकिन अधिकांश मंत्री पता नहीं क्यों...डिफेंसिव और बैकफुट पर...। इसके उलट कांग्रेस 2003 से लेकर 2018 तक याने 15 साल सत्ता से बाहर रही...बावजूद इसके, अंदरखाने में भले ही बीजेपी नेताओं के साथ गलबहियां करते करते रहे हो मगर पब्लिक के बीच हमेशा तने रहे। अलबत्ता, इस समय पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकारी निवास में पोस्टर-बैनर लगाए गए है, काबर चिंता करथस...कका अभी जिंदा हे। बलौदा बाजार की पुलिस विधायक देवेंद्र यादव को पूछताछ़ के लिए इंतजार कर रही थी। और देवेंद्र मीडिया को दमदारी के साथ बयान दे रहे थे। इसे ही बोलते हैं जीवटता। बीजेपी के मंत्रियों को भी अब खोल से बाहर निकलना चाहिए।

किस्मती इंजीनियर

कैबिनेट ने सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से चीफ इंजीनियर के प्रमोशन में वन टाईम के लिए अनुभव में एक साल की छूट देते हुए पांच साल से चार साल कर दिया है। इससे राज्य के कितने एसई लाभान्वित होंगे ये तो नहीं पता, मगर ये सही है कि रायपुर में पीडब्लूडी के एक एसई का रुतबा बढ़ गया है। कैबिनेट के फैसले के बाद उनके पास ट्रांसफर, पोस्टिंग की सिफारिशें लेकर लोग पहुंचने लगे हैं। सबको लग रहा कि एसई साब बेहद पावरफुल हैं...तभी उनके लिए कैबिनेट ने प्रमोशन नियम को शिथिल कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस महिला अफसर को जिले से शिफ्थ कर सरकार ने एक कलेक्टर को मुकेश के गाने सुनने की स्थिति में ला दिया है?

2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि एसीबी की शराब घोटाले की सप्लीमेंट्री चार्जशीट बडे़ धमाकेदार होगी?

शनिवार, 6 जुलाई 2024

Chhattisgarh Trakash 2024: छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP


 तरकश, 7 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP

डीजीपी अपाइंटमेंट का टाईम है, सो इस शीर्षक से आप चौंकिएगा मत! छत्तीसगढ़ में कोई बाहर से डीजीपी नहीं आ रहा। इस खबर का तात्पर्य आपको स्मरण कराना है कि छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के भी आईपीएस डीजीपी रह चुके हैं। आईपीएस थे आरएलएस यादव। राज्य बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस का सेटअप ठीक करने उन्हें यहां भेजा गया था। यादव का रिटायरमेंट करीब था, जाहिर है उन्हें एमपी में डीजीपी बनने का मौका नहीं मिलता। इसलिए वे यहीं रुक गए। उस समय डीजीपी नियुक्ति के न तो कड़े नियम थे और न ही कैडर को लेकर भारत सरकार सख्त थी। तभी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री जोगीजी ने उन्हें 26 मई 2001 को सूबे का डीजीपी अपाइंट कर दिया। याने राज्य बनने के छह महीने के भीतर ही। मगर इसके लिए जोगीजी को मानसिक झंझावतों से गुजरना पड़ा। उनके समक्ष धर्मसंकट यह था कि छत्तीसगढ़ के फर्स्ट डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला, जिन्हें उन्होंने ही नियुक्त किया था, उन्हें वे बेहद चाहते थे और आरएलएस यादव तो उनके अपने थे ही। उधर, यादव का रिटायरमेंट भी करीब था। ऐसे में जोगीजी ने श्रीमोहन शुक्ला से आग्रह किया पीएससी चेयरमैन बनने के लिए। आग्रह शब्द का इस्तेमाल यहां इसलिए किया जा रहा कि जोगीजी ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर एक मैसेज देने के लिए सबके सामने कहा था कि ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं। मैसेज यह था कि वे शुक्ला को हटा नहीं रहे हैं, उनका सम्मान करते हैं। तब शुक्ला के रिटायरमेंट में छह महीने से अधिक समय बचा था। उन्होंने जोगीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए आईपीएस से वीआरएस ले लिया और 26 मई 2001 को उन्हें पीएससी का फर्स्ट चेयरमैन बना दिया गया। यादव भी करीब छह महीने ही डीजीपी रहे। जनवरी 2002 में वे सेवानिवृत हो गए। रिटायरमेंट के बाद जोगीजी ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया था। बहरहाल, जोगीजी नहीं रहे। मगर उनके इस फैसले की आज भी ब्यूरोक्रेसी में चर्चा होती है कि उन्होंने आरएलएस यादव को डीजीपी बनाने का वादा भी निभाया और श्रीमोहन शुक्ला का सम्मान भी बरकरार रखा। याने जोगीजी ने दोनों को खुश कर दिया।

DGP: संयोग या दुर्योग

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश बंटवारे में जो आईपीएस खुद की इच्छा से छत्तीसगढ़ आए थे, उनमें से एक को भी डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला। और जो आईपीएस सुप्रीम कोर्ट जाकर केस जीत गए, वे सभी छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुख बने। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने भी डीजीपी बने हैं, वे अगर एमपी में होते तो उनमें से कोई भी वहां डीजीपी नहीं बनता। क्योंकि, एमपी में कैडर बड़ा है। अभी 87 बैच के आईपीएस वहां डीजी हैं। और छत्तीसगढ़ में 91 बैच से नीचे के अफसर इस पद पर पहुंचने वाले हैं। दरअसल, नवंबर 2000 में आईपीएस कैडर का बंटवारा हुआ, उसे छत्तीसगढ़ कैडर के 16 आईपीएस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि गलत रोस्टर के चलते उन्हें छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में वे केस जीत गए। आदेश यह हुआ था कि दोनों राज्यों की सहमति से 16 आईपीएस एमपी जाते और उनके बदले एमपी से 16 अफसर छत्तीसगढ़ आते। मगर एमपी के सीएम दिग्विजय सिंह ने सहमति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद 16 आईपीएस अधिकारियों को मन मारकर छत्तीसगढ़ रहना पड़ा। तब छत्तीसगढ़ नक्सल और आदिवासी स्टेट माना जाता था। आईएएस हो या आईपीएस...छत्तीसगढ़ कैडर उनके लिए बज्रपात समान था। अब बात उनकी जो इच्छा व्यक्त कर छत्तीसगढ़ आए थे। इनमें राजीव माथुर, संतकुमार पासवान और गिरधारी नायक प्रमुख हैं। ये तीनों सारे एजिबिलिटी के बाद भी डीजीपी नहीं बन पाए। नायक को भाग्य इतना खराब था कि भूपेश बघेल उन्हें डीजीपी बनाना चाहते थे मगर उसमें छह महीने का रोड़ा आ गया। दरअसल, उस समय नियम यह था कि जिसके रिटायरमेंट में अगर छह महीने से कम समय बचा है, उसे डीजीपी नहीं बनाया जा सकता। और जैसे ही भूपेश सरकार ने डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाया, महीने भर बाद छह महीने वाला नियम हट गया। अब इसे संयोग बोलिये या दुर्योग।

एसपी, आईजी का नुकसान

एसीबी ने राजधानी रायपुर के महिला थाना प्रभारी को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। ये तब हुआ, जब एसीबी चीफ अमरेश मिश्रा खुद रायपुर रेंज के आईजी हैं। बहरहाल, इस कार्रवाई से टीआई लोग भारी दुखी और नाराज हैं। ठीक भी है...अमरेश ने अच्छा नहीं किया। सूबे के टीआई लोग अगर ईमानदार हो जाएंगे तो फिर एसपी और आईजी साहबों का क्या होगा? जिस प्रदेश में थानों की बोली लगती हो, वहां एसीबी इस तरह की कार्रवाई करने लगे तो फिर पोस्टिंग के लिए पैसा कोई क्यों देगा? लेकिन, अमरेश के साथ दिक्कत यह है कि वे अपनों को भी नहीं बख्शते। कोरबा में एसपी थे तो रिश्वत के मामले में एक सब इंस्पेक्टर की थाने के भीतर जमकर धुलाई कर डाले थे। जाहिर है, अमरेश अगर दो-एक साल एसीबी में टिक गए तो कोई आश्चर्य नहीं की राजस्थान की तरह दो-चार आईएएस और आईपीएस भी सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।

एचओडी पर वर्कलोड

सरकार के दो विंग होते हैं। पहला सिकरेट्री...जो सचिवालय में बैठते हैं...एक तरह से उन्हें सरकार ही कहा जाता है। इनका काम है नीतियां बनाना और उसकी मानिटरिंग करना। दूसरा, सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने के लिए विभागीय एचओडी होते हैं। इसमें सेटअप के हिसाब से डायरेक्टर और कमिश्नर बिठाए जाते हैं। चूकि सरकार की योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाने का जिम्मा विभागीय कार्यालयों का होता है, इससे आप समझ सकते हैं कि एचओडी का पद कितना महत्वपूर्ण है। मगर इस समय डायरेक्टर लेवल के अफसरों की कमी कहेंं या सक्षम अफसर न होने से एचओडी पर लोड बढ़ता जा रहा है। सिकरेट्री की संख्या चूकि काफी बढ़ गई है, लिहाजा वे विभाग के लाले पड़ गए हैं और उधर एक-एक एचओडी के पास दो-दो, तीन प्रभार। जाहिर है, इससे काम की गुणवता पर असर पड़ सकता है।

दो नए कमिश्नर

आईएएस की बहुप्रतीक्षित लिस्ट छोटी हो या बड़ी...ये अवश्य यह है कि इस महीने के लास्ट में दो संभागों में नए कमिश्नर की पोस्टिंग की जाएगी। रायपुर के साथ बिलासपुर संभाग की कमान संभाल रहे डॉ0 संजय अलंग इस महीने 31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं। उनके रिटायर होने से पहले सरकार दो कमिश्नर अपाइंट करेगी। हो सकता है, अफसरों को इधर-से-उधर करने के क्रम में दो-एक और कमिश्नरों के नाम जुड़ जाएं।

गुस्से में सांसदजी

राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने दिल्ली में हाई प्रोफाइल डिनर कराकर अपनी ताकत दिखा दिए। इससे छत्तीसगढ़ में उनका रुतबा बढ़ना था। मगर उल्टा हो गया। कवर्धा में दो करोड़ की लागत से थाना भवन का लोकार्पण हुआ, उस कार्यक्रम में उन्हें पूछा तक नहीं गया। राजनांदगांव में आईजी आफिस का लोकार्पण करने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह पहुंचे थे, उस कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र से सांसदजी का नाम गोल था। ऐसे में, सांसद का भड़कना स्वाभाविक था...चार दिन पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री से लेकर बीएलए संतोष, शिवप्रकाश जैसे दिग्गजों को अपने घर पर डिनर कराने के बाद ये हाल...। पता चला है, सरकार से भी अफसरों को इसके लिए तीखी झिड़की मिली है। मगर इसमें अफसरों का क्या कसूर? कसूर यही कि दो बड़ों के विवाद में सरकारी मुलाजिम पिसता ही है।

मंत्रिमंडल का विस्तार?

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार जुलाई फर्स्ट वीक में होना तय माना जा रहा था। मगर पूरा हफ्ता निकल गया, अभी इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सत्ता प्रतिष्ठान से भी खामोश है। जानकारों की मानें तो, विधानसभा के मानसून सत्र तक कैबिनेट का विस्तार टल सकता है। तब तक जैसा चल रहा है, वैसा चलता रहेगा। सत्र भी सिर्फ पांच दिन का है। सो, इसमें संसदीय कार्य मंत्री का बहुत रोल नहीं है। बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यही एक विभाग ऐसा है जिसका भूमिका सदन में होती है।

खटराल अफसर

बात करीब दो दशक पुरानी होगी...बिल्डरों और भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने रजिस्ट्री विभाग के एक खटराल आईजी ने ऐसा नियम दिया, जिससे न केवल राज्य सरकार को बल्कि इंकम टैक्स को भी चुना लग रहा है। नियम है...अगर कोई अपने जमीन से लगा अनडायवर्टेड जमीन खरीदता है, तो बाजार दर एकड़ रेट से निर्धारित किया जाएगा। ऐसा नासमझी भरा नियम देश के किसी भी प्रांत में नहीं है। असल में, एकड़ में रेट कर देने से बाजार मूल्य 5 से 10 गुना कम हो जाता है। हकीकत यह है कि बाजार का प्राइस मेकैनिज्म लगे हुए भूमि की कीमत कभी कम नहीं कर सकता। बल्कि यह हास्यपद है। इस नियम के आड़ में भूमि चाहे लगा हो, चाहे ना लगा हो, जमीन माफिया अपने छोटे टुकड़ों का एकड़ रेट में बाजार मूल्य निकालता है और इनकम टैक्स, रजिस्ट्री आदि कई विभागों को नुकसान पहुंचता है। इस नियम के संरक्षण में बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग होता है। रजिस्ट्री सिकरेट्री को इस पर गौर करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि किसी बड़े नौकरशाह को पीएससी का चेयरमैन बनाने सरकार विचार कर रही है?

2. क्या जातिगत समीकरणों की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार का मामला फंस गया है?