शनिवार, 24 अगस्त 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: ब्यूरोक्रेट्स, बायोमेट्रिक और हाय-तोबा

 तरकश, 25 अगस्त 2024

संजय के. दीक्षित

ब्यूरोक्रेट्स, बायोमेट्रिक और हाय-तोबा

कहा जाता है, सिस्टम में किसी चीज की शुरूआत उपर से होनी चाहिए। तभी नीचे उसका मैसेज पहुंचता है। बॉस अगर कर्मठ और ईमानदार है तो मुलाजिम से भी ऐसी अपेक्षा की जा सकती है। मगर उपर के लोग अगर बायोमेट्रिक अटेंडेंस को लेकर हाय-तोबा मचा देंगे तो फिर कर्मचारियों से ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है। मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा ही हो रहा है। एक तरफ तो आबकारी, पंजीयन, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, पौल्यूशन बोर्ड में बायोमेट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य किया जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ सबसे पहले मंत्रालय से इसकी शुरूआत करने की बात की गई थी, मगर अब उसे कोई याद नहीं कर रहा। दरअसल, सरकार चाह रही थी कि डिजिटल अटेंडेंस की शुरूआत मंत्रालय से हो। ई-ऑफिस के साथ ही बायोमेट्रिक को भी लांच किया जाना था। किन्तु अधिकारियों के विरोध के बाद यह ठंडे बस्ते में चला गया। आईएएस अधिकारियों की बायोमेट्रिक के विरोध के पीछे दलील यह है कि उनके पास कई-कई विभाग हैं, वहां उन्हें जाना पड़ता है। फिर, उन्हें लाइन लगाकर बायोमेट्रिक में हाजिरी लगानी होगी। जबकि, नौकरशाहों की सुविधा के लिए ऐसा बायोमेट्रिक डिजाइन किया गया था कि उन्हें कर्मचारियों की तरह लाइन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ उन्हें अपने मोबाइल में ऐप डाउनलोड करना था। वे जैसे ही मंत्रालय या किसी और आफिस में पहुंचते, मोबाइल के स्क्रीन पर सिर्फ एक क्लिक करना था। उसमें सुविधा ये भी थी कि वे जिस आफिस में जाएंगे, वहां का सर्वर ऑन हो जाएगा। और वहां भी अपने मोबाइल से ही अटेंडेंस लगा सकते थे। अफसरों को आरटीआई का डर भी सता रहा है। कोई आरटीआई में अगर जानकारी मांग लिया तो क्या होगा? यही वजह है कि मंत्रालय में बायोमेट्रिक पर फिलहाल ब्रेक लग गया है।

20 फीसदी को परेशानी

छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में सभी आईएएस बायोमेट्रिक का विरोध नहीं कर रहे। कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें सांस लेने की फुरसत नहीं। साढ़े दस से पहले आफिस पहुंच जाते हैं और और वहां से लौटने का कोई टाईम नहीं। ब्यूरोक्रेसी के लोग भी मानते हैं कि 10 परसेंट अफसर आउट स्टैंडिंग हैं। 40 परसेंट अवेरेज। दोनों को मिलाकर हुआ 50 प्रतिशत। इसके बाद 30 फीसदी अफसर ऐसे हैं, जिनमें संभावनाएं हैं मगर देखादेखी वे डिरेल्ड हो गए हैं...थोड़े प्रयास से उन्हें पटरी पर लाया जा सकता है। सो, बायोमेट्रिक से प्राब्लम सिर्फ 20 प्रतिशत नौकरशाहों को है, जो यूपीएससी क्लियर करके आईएएस तो बन गए मगर उनमें काम करने वाला जिंस नहीं है। वे पैसा कमा शाही ठाठबाट मेंटेन करने को ही आईएएस का उद्देश्य समझ बैठे हैं। इनमें कई ऐसे भी मिलेंगे, जो एकाध घंटा के लिए मंत्रालय जाते हैं और उसके बाद फिर घर। उन्हें बायोमेट्रिक से ज्यादा दिक्कत है।

कलेक्टर, एसपी और कबूतर

छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में 15 अगस्त के कार्यक्रम में एसपी के हाथों कबूतर गिर कर मर जाना देश के मीडिया में सुर्खियों में रहा। दरअसल, चीफ गेस्ट और कलेक्टर का कबूतर उड़ गया मगर एसपी ने जैसे ही उसे उड़ाया, वह लूढ़ककर जमीन पर गिरा और दम तोड़ दिया। सोशल मीडिया में जब इस वायरल वीडियो पर मजाक बनना शुरू हुआ तो एसपी ने इसकी जांच के लिए कलेक्टर को पत्र लिखा और कलेक्टर ने भी आनन-फानन में जांच अधिकारी नियुक्त कर डाला। याने ब्यूरोक्रेसी का फुल जोक हुआ मुंगेली में। उधर, नौकरशाही के लोगों का कहना है कि कबूतर उड़ाना अब बैन कर दिया गया है। जाहिर है, रायपुर में न मुख्यमंत्री कबूतर उड़ाए और न ही राज्यपाल राजभवन में। फिर सवाल यह भी उठता है कि मुख्य अतिथि कबूतर उड़ाए या कौवा....उन्हें राजनीति करनी है। साथ में खड़े कलेक्टर, एसपी को कबूतर उड़ाने का शौक क्यों पालना? 15 अगस्त और 26 जनवरी के समारोह में कलेक्टर, एसपी का काम असिस्ट करना होता है, न कि जो चीफ गेस्ट करें, वो करने लगें। जीएडी को इसके लिए गाइडलाइन जारी करनी चाहिए। ताकि, आगे अब इस तरह की मजाक न बनें।

सीनियर, जुनियर का फर्क

निश्चित तौर पर ऑल इंडिया सर्विस में आईएएस फर्स्ट और आईपीएस दूसरे पायदान पर आता है। इसलिए जिलों में एसपी से दो-तीन साल जूनियर आईएएस को कलेक्टर बना दिया जाता है। मगर इसकी भी एक लिमिट होनी चाहिए। मुंगेली में कुछ ज्यादा हो गया है। वहां कलेक्टर हैं 2016 बैच के और एसपी 2010 के। एसपी डीआईजी रैंक के आईपीएस बन चुके हैं। उपर से कलेक्टर से छह साल सीनियर। आमतौर पर मुंगेली किसी आईपीएस के लिए एसपी के तौर पर पहला जिला होता है। मगर अभी जो वहां एसपी हैं, उनका यह चौथा जिला है। पिछली सरकार में ये परिपाटी शुरू हुई थी। तब डीआईजी रैंक के आईपीएस को जशपुर, गरियाबंद और बलौदा बाजार का एसपी बनाया गया था। आमतौर पर एसपी की पोस्टिंग में उनके रैंक का ध्यान रखा जाता है। डीआईजी या सलेक्शन ग्रेड के आईपीएस अफसरों को अगर एसपी बनाया भी जाता है, तो फिर बड़े जिलों में। सिस्टम को इसके सनद रखना चाहिए।

पोस्टिंग में चूक?

राज्य सरकार ने नौ महीने में सबसे बड़ी लिस्ट निकालते हुए नगरीय प्रशासन विभाग के 166 अधिकारियों, कर्मचारियों को बदल दिया। इसमें रायपुर में एक राजस्व निरीक्षक को रायपुर का जोन कमिश्नर बना दिया गया। राजस्व निरीक्षक का पद क्लास थ्री का है। एक जोन कमिश्नर के नीचे कई-कई राजस्व निरीक्षक होते हैं। जाहिर है, जिस जोन में राजस्व निरीक्षक को कमिश्नर बनाया गया है, वहां पहले से कई राजस्व निरीक्षक होंगे। अब एक समान रैंक का व्यक्ति बॉस होगा और उसी के बराबर के लोग उसके नीचे काम करेंगे। ऐसा एक बार पिछली सरकार में भी हुआ था, जब राजस्व निरीक्षक को जोनल कमिश्नर बना दिया गया था। लगता है, यह आइडिया पिछली सरकार से मिला होगा, मगर मंत्रियों को इसका ध्यान रखना चाहिए। वरना सिस्टम खराब होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि जिन कलेक्टरों का दो साल हो गया है, उनका नंबर अगली लिस्ट में लग सकता है?

2. बड़े-बड़े आईजी साहबों को बिना काम के भारी-भरकम पगार देना क्या सही है?


रविवार, 18 अगस्त 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: दमदार अफसर, दमदार नेता

 तरकश, 18 अगस्त 2024

संजय के. दीक्षित

दमदार अफसर, दमदार नेता

बात 87 की होगी। रायपुर में उस समय सिर्फ एक सीएसपी होते थे। लेकिन, उस समय के सीएसपी आज के एसपी, आईजी से ज्यादा धाक रखते थे। और वो भी रुस्तम सिंह जैसे आईपीएस सीएसपी हो तो क्या कहने। बहरहाल, रायपुर के एक बड़े नेताजी उस समय प्रभावशाली स्टूडेंट लीडर हुआ करते थे। किसी मामले को लेकर उन्होंने रायपुर बंद का आयोजन किया था। रविवार का दिन होने की वजह से रुस्तम सिंह ने बंद के आयोजकों को समझाने के लिए अपने घर बुलाया। छात्र नेताओं को वहां पहुंचने में कुछ विलंब हो गया। तब तक रुस्तम सिंह भोजन करने बैठ गए। रुस्तम जब बाहर निकले तो छात्र नेताओं से हॉट-टॉक हो गया...नेताओं ने कहा कि हम हड़ताल करेंगे ही और लगे नारेबाजी करने। रुस्तम सिंह ने फिर समझाया, मगर छा़त्र नेताओं ने कुछ कड़ा जवाब दे दिया। इस पर रुस्तम सिंह तमतमा गए। उन्होंने खटाक से पिस्तौल निकाला और एक बड़े नेता पर तान दिया। सारे स्टूडेंट लीडर हक्के-बक्के रह गए। हालांकि, बाद में मामला ठंडा हो गया। रुस्तम सिंह कुछ साल बाद फिर रायपुर के एसपी बनकर आए और इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा गए। उनके लॉ एंड आर्डर को रायपुर ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के पुराने लोग आज भी याद करते हैं।

हड़ताल और एसीबी का खौफ

पंजीयन विभाग ने जमीनों की रजिस्ट्री में व्यापक गड़बड़िया उजागर होने पर बड़ा एक्शन लेते हुए तीन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। चूकि इस विभाग में कभी ऐसी कोई कार्रवाई हुई नहीं थी, इसलिए खलबली मचनी ही थी। ट्रिपल सस्पेंशन के अगले दिन रविवार था, इसके बाद भी दोपहर से लेकर आधी रात तक फैसले के विरोध को लेकर मीटिंगें होती रही। पंजीयन अधिकारी संघ ने हड़ताल पर जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। तभी रात एक बजे कहीं से प्वाइंट चला...और भी कई अफसरों की फाइलें तैयार है...सभी केस एसीबी को सौंप दिए जाएंगे। इतना सुनते ही अधिकारियों के हाथ-पांव फुल गए। व्हाट्सएप ग्रुप में सुबह से क्रांतिकारी बातें करने वाले अधिकारियों ने अपनी वीरता दिखाने वाली पोस्टों को फटाफट डिलीट मार दिया। फिर अगले दिन अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी से क्षमा याचना करने मंत्रालय पहुंच गया। मंत्री ने अफसरों से दो टूक कहा, आठ महीने में मैं आठ रुपिया लिया हूं तो बताओ...मेरे आईजी, सचिव इनलोगों ने लिया क्या? पहले क्या हुआ, ये मैं नहीं जानता...पर मेरे कार्यकाल में करप्शन होगा तो फिर बख्शा नहीं जाएगा। इसके बाद निलंबित अधिकारियों ने सर गलती हो गई...माफी मांगी और फिर बैठक समाप्त हो गई। बताते हैं, पंजीयन विभाग के अधिकारियों की स्वाभाविक तौर से भूमाफियाओं, बिल्डरों और सफेदपोश लोगों से निकटता है, सो कार्रवाई के खिलाफ अधिकारियों को कहीं से उर्जा मिल रही थी, मगर सब गुड़ गोबर हो गया। अब देखना है...मंत्री की चमकाइटिस का कितन असर होता है।

प्लीज...नो पॉलिटिक्स

छत्तीसगढ़ के एक रेंज आईजी ने छत्तीसगढ़ की बेहतरी और फोर्स पर भरोसा कायम रखने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए 100 से अधिक कांस्टेबलों का ट्रांसफर कर दूसरे जिलों में भेज दिया है। दरअसल, आईजी को अपने रेंज में कांस्टेबलों का तबादला करने का अधिकार है मगर आईजी साब लोग हिम्मत नहीं दिखाते। और उधर नेताजी लोग फोर्स का लोकलाइजेशन करने का मोह नहीं छोड़ पाते। कायदे से गृह गांव से 40 किमी के भीतर कांस्टेबलों की पोस्टिंग नहीं होनी चाहिए। मगर फोर्स के सारे नियम-कायदों को ताक पर रख छत्तीसगढ़ में कांस्टेबलों की पोस्टिंग उनके गृह इलाके के थानों में हो जा रही है। अलबत्ता, कांस्टेबलों का अब प्रयास ये होने लगा है कि खुद के गांव में कोई चौकी खुल जाए, जिससे लोग उनका जलवा देख सकें। नेताओं को भी यह भाता है...उनकी ड्यूटी बजाने वाले सिपाही मिल जाते हैं। किंतु इसका खामियाजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर सरगुजा और रायगढ़, सारंगढ़ से लेकर बलौदा बाजार तक 50 प्रतिशत से अधिक लोकल पुलिस हो गई है। सूबे के लिए यह खतरनाक संकेत है। ऐसा ही रहा तो बलौदा बाजार जैसी घटनाओं की जगह-जगह पुनरावृत्ति होगी। चाहे बीजेपी के नेता हो या कांग्रेस के...फोर्स के मामले में सिस्टम को कड़ा स्टैंड लेना होगा...पुलिस की पोस्टिंग में नो पॉलिटिक्स।

गलत पंरपरा

छत्तीसगढ़ निर्माण के 24 बरसों में कभी वर्क कल्चर बनाने का प्रयास नहीं हुआ। उपर से फाइव डे वीक से लेकर सरकारी छुट्टियों की बरसात कर दी गई। अब एक गलत परंपरा की शुरूआत हो रही है...सरकार कड़ाई करे या सुधार की दिशा में कोई कोशिश हो तो उसका विरोध। अभी कुछ दिनों पहले पटवारियों ने हड़ताल की। राजस्व विभाग ने उन्हें हाथ-पैर जोड़कर हड़ताल तोड़वाया। कुछ और विभाग भी सुधार के कार्यों के विरोध में आंदोलन प्रारंभ करने की तैयारी कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की भलाई के लिए सिस्टम को सख्त होना पड़ेगा। तभी अंतिम व्यक्ति तक गुड गवर्नेंस का लाभ पहुंच पाएगा।

पेटी लाओ, आदेश ले जाओ

डॉ0 रमन सिंह की पहली पारी में डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था। वे पहली बार विधायक बने थे और सीधे मंत्री। हेल्थ का सिस्टम चरमराने लगा तो रमन सिंह ने अमर अग्रवाल को विभाग की कमान सौंपी थी। इस समय भी हालत जुदा नहीं है। मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल अच्छे व्यक्ति हैं, मगर उन्हें थोड़ा अलर्ट रहना पड़ेगा, वरना उनके अधिकारी और आसपास रहने वाले लोग मुसीबतें पैदा कर देंगे। आखिर, लोकसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान अधिकारियों ने संविदा अधिकारियों का ट्रांसफर कर डालने का कारनामा किया ही था। उसमें जीएडी की जांच कमिटी बनी। मगर चुनाव निबट जाने के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। और अभी सीएमओ और सिविल सर्जन के ट्रांसफर में ऐसा ही खेला हुआ। सीएमओ का रेट 35 पेटी तो सिविल सर्जन का 20। एक सीएमओ 25 पेटी देने तैयार था मगर 35 से नीचे लोग टस-से-मस नहीं हुए, लिहाजा प्रभारी सीएमओ की छुट्टी कर जिसने ज्यादा बोली लगाई, उसकी पोस्टिंग कर दी गई। ऐसे में फिर स्वास्थ्य विभाग को भगवान भी नहीं बचा पाएगा।

एक अनार, ....

छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए संघ, संगठन और सरकार पर बड़ा प्रेशर है। दावेदारों में रिटायर आईएएस, आईपीएस से लेकर वकीलों और पत्रकारों की एक लंबी सूची है। हर आदमी अपने-अपने स्तर पर जैक लगा रहा है। इस समय नरेंद्र शुक्ला रिटायर आईएएस के कोटे से सूचना आयुक्त हैं। मगर ऐसा समझा जा रहा कि मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी रिटायर आईएएस या आईपीएस को मौका दिया जा सकता है। हालांकि, ऐसा कोई नियम नहीं है कि पूर्व नौकरशाहों को ही मुख्य सूचना आयुक्त बनाया जाए। छत्तीसगढ़ में भले ही तीनों मुख्य सूचना आयुक्त रिटायर आईएएस रहे हैं। मगर कई राज्यों में सीनियर वकीलों और पत्रकारों को भी सीआईसी बनाया गया है। गोवा में एक विधायक सीआईसी रहे। इसका सलेक्शन पूरी तरह सरकारों पर निर्भर करता है। कमेटी तो सिर्फ नाम के लिए बनती है। बहरहाल, राज्य सरकार अगर पुरानी लीक पर चलते हुए अगर रिटायर आईएएस, आईपीएस को ही सीआईसी बनाना चाहेगी तो फिर पत्रकारों, वकीलों या अन्य वर्गो के लिए सिर्फ एक पद बचेगा। सूचना आयुक्त का। जाहिर तौर पर इसमें पत्रकारों का पलड़ा भारी रहेगा। पिछली सरकार में भी प्रेस कोटे से दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया गया था। अब देखना है, सरकार क्या फैसला करती है।

सुनील और संजय में भिड़ंत

रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट पर चुनावी भिड़त से पहले बीजेपी के सुनील सोनी और संजय श्रीवास्तव के बीच भिडं़त होगी। जाहिर है, इस उपचुनाव के लिए ये दो ही तगड़े दावेदार है और ये भी तय है कि इन दोनों में से किसी एक को प्रत्याशा बनाया जाएगा। सुनील सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी हैं। सुनील रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, महापौर और सांसद रह चुके हैं। वहीं पार्टी के पढ़े-लिखे और जुझारू चेहरा संजय श्रीवास्तव को रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन के साथ ही नगर निगम में एक बार सभापति रहने का मौका मिला है। हालांकि, 2003 में छत्तीसगढ़ बीजेपी के पितृ पुरूष लखीराम अग्रवाल ने राजेश मूणत के लिए वीटो नहीं लगाया होता तो उस समय संजय श्रीवास्तव को टिकिट मिल गया होता। बहरहाल, अब देखना है कि संजय की किस्मत का ताला इस बार खुलेगा या फिर पार्टी सुनील सोनी पर दांव लगाएगी। पलड़ा इसमें सुनील का भारी है क्योंकि पार्टी का एक वर्ग नहीं चाहता कि कोई दमदार नेतृत्व रायपुर में खड़ा हो।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एक्स सीएम भूपेश बघेल को राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री टीएस सिंहदेव को पीसीसी चीफ बनाया जा रहा?

2. सरगुजा आईजी अंकित गर्ग बस्तर के नए आईजी होंगे या किसी और को पोस्ट किया जाएगा?


रविवार, 11 अगस्त 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: जी उठा सीआईडी

 Chhattisgarh Tarkash, Agust 11, 2024:

संजय के. दीक्षित

जी उठा सीआईडी

एक जमाने में सीआईडी पुलिस का बड़ा क्रेज होता था। पुलिस मुख्यालय का सबसे महत्वपूर्ण विभाग। पीएचक्यू के सबसे तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी को इसकी कमान सौंपी जाती थी। जिस तरह इस समय पीएचक्यू में इंटेलिजेंस चीफ का रुतबा होता है, सीआईडी चीफ का जलवा उससे ज्यादा ही होता था। कठिन और हाईप्रोफाइल मामलों की जांच सीआईडी को सौंपी जाती थी। बिल्कुल सीबीआई की तरह। मगर दुर्भाग्य की बात यह कि छत्तीसगढ़ में सीआईडी को खतम कर दिया गया। अब ये डेटा हब बनकर रह गया है। विधानसभा के प्रश्नों का जवाब तैयार करना सीआईडी का प्रमुख काम रह गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस के जिलों से लेकर रेंज तक के सारे डेटा आजकल सीआईडी संभाल रहा। प्रमोटी आईपीएस इस समय सीआईडी के आईजी हैं। इससे आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं। मगर बात सीआईडी के जी उठने की...तो छत्तीसगढ़ के सीआईडी के लिए आज बड़ा दिन है। बिलासपुर के चर्चित डॉ0 पूजा चौरसिया केस में हाई कोर्ट ने आठ हफ्ते में सीआईडी जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। राज्य बनने के करीब ढाई दशक में मुझे याद नहीं कि हत्या जैसे किसी मामले की जांच सीआईडी को किसी सरकार ने सौंपी होगी। जो काम सरकारों ने नहीं किया, वह हाई कोर्ट ने कर दिया। चलिये, उम्मीद करते हैं कि सीआईडी का अब कुछ होगा। वैसे भी बड़े अपराधों की जांच के लिए स्टेट लेवल की एक एजेंसी होनी ही चाहिए। मगर इसके लिए सरकार को सीबीआई या एनआईए रिटर्न आईपीएस को ढूंढना पड़ेगा।

कलेक्टर और क्राइम

बात राज्य बनने के थोड़े ही पहले की है। शायद 1999 की बारिश का महीना होगा। बिलासपुर जिले के बिल्हा के एक पहुंचविहीन गांव में एक छात्रा की हत्या हो गई थी। पहुंच विहीन इसलिए याद कि करीब दो किलोमीटर तक कठिन रास्तों पर पैदल चलकर गांव जाना पड़ा था। वहां पता चला गांव के प्रभावशाली परिवार के युवक ने कालेज जा रही छात्रा की रास्ते में गला दबाकर शव को नाले में फेंक दिया था। आरोपी का परिवार दबंग था, सो उसके खिलाफ मुंह खोलने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। मैंने बिल्हा थाना फोन लगाया तो खैनी मूंह में दबाए मुंशीजी बोले, कैसे हुआ, कुछ पता नहीं चल रहा, क्या कर सकते हैं...गीता में लिखा है, जो आया है, वह जाएगा ही। जिस अखबार में उस समय मैं काम करता था, उसमें अगले दिन आठ कॉलम में यह खबर प्रकाशित हुई। खबर छपते ही सुबह-सुबह तत्कालीन एसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव का लैंडलाइन पर फोन आया। लैंडलाइन ही उस समय संचार का साधन था। एसपी साब बोले, क्या छाप दिए हो...कलेक्टर साब पूछ रहे हैं। फिर उन्होंने मुझसे घटना का ब्रीफ लिया और दोपहर बाद आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। राज्य बनने के बाद दोनों शैलेंद्र मध्यप्रदेश चले गए। बहरहाल, अबके कलेक्टर क्राइम की तरफ झांकते नहीं...कोई घटना हुई तो जाने एसपी साब। बलौदा बाजार में अगर कलेक्टर ने इनिशियेटिव लिया होता, तो कलेक्ट्रेट जलाने की घटना नहीं हुई होती।

कलेक्टर कमजोर क्यों-1

कलेक्टर के चेम्बर और कार में पहले वायरलेस सेट लगा होता था। जिले में क्राइम के सारे अपडेट कंट्रोल रुम से सीधे कलेक्टर को मिलते रहते थे। कलेक्टर के पावर को बताने के लिए शैलेंद्र सिंह को यहां एक बार और उद्धृत करना जरूरी होगा। बिलासपुर में यूथ कांग्रेस के एक प्रेसिडेंट का बड़ा जलजला था। यूनिर्वसिटी में आए दिन उठापटक चलती रहती थी। शैलेंद्र सिंह एक दिन गाड़ी से लंच के लिए निकले, रास्ते में वायरलेस पर संदेश आया, यूनिर्वसिटी में यूथ कांग्रेस ने तोड़फोड़ कर दिया है। कलेक्टर को पता था कि पुलिस की यूथ कांग्रेसी पर कुछ ज्यादा मेहरबानी है, ऐसे में कोई कार्रवाई होगी नहीं। कलेक्टर ने अपनी गाड़ी यूनिर्वसिटी की तरफ मोड़ दी। उन्होंने एसपी को भी सूचित कर दिया। पीछे-पीछे एसपी भी भागते हुए यूनिर्वसिटी पहुंचे। उसके बाद रुलिंग पार्टी के जिला अध्यक्ष और उसके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कहने का मतलब यह है कि कलेक्टरों की भी ड्यूटी होती है कि वह क्राईम पर नजर रखें। चीफ सिकरेट्री और डीजीपी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कलेक्टर-एसपी मिलकर काम करें और अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन करें। राज्य बनने के 24 साल बाद भी आखिर यह सुनने में क्यों आता है कि पुराने मध्यप्रदेश में सिस्टम रन कर रहा है और छत्तीसगढ़ में? सिस्टम शीर्षासन कर रहा है। कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में साल में एक बार कह देने से नहीं होगा कि दोनों मिलकर काम करें। उसका फॉलोअप भी लेना चाहिए। वरना, छत्तीसगढ़ को बिहार, यूपी के रास्ते पर जाने से कोई रोक नहीं पाएगा।

कलेक्टर कमजोर क्यों-2

छत्तीसगढ़ में कलेक्टर-एसपी में तालमेल का बड़ा अभाव है। कई जिलों में आलम यह है कि हफ्ता निकल जाता है, दोनों में बातें नहीं होती। सरकार के निर्देशों के बाद भी एसपी कलेक्टर की टीएल मीटिंग में नहीं जाते। कलेक्टर भी चाहते हैं...एसपी से दूर ही रहे। दरअसल, उसकी एक बड़ी वजह करप्शन हैं। खासतौर से डीएमएफ ने कलेक्टर सिस्टम को पंगु बना दिया। डीएमएफ से हर साल करोड़ों रुपए बरस रहे हैं। और कलेक्टर इसके मालिक हैं, वही चेक काटते हैं। इसमें 20 से 30 परसेंट ही जमीन पर काम होता है। 70 परसेंट से ज्यादा का कलेक्टर साब लोग खेला कर डालते हैं। ऐसे में उन्हें चोर की दाढ़ी में तिनका की तरह डर सताता रहता है....एसपी कहीं उसे ट्रेप न कर लें। लिहाजा, वे क्राइम की तरफ देखना नहीं चाहते...एसपी साब कहीं नाराज हो गए तो।

सम्मान से विदाई की तैयारी

छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा को भारत सरकार ने छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया है। सर्विस पूरी होने के बाद भारत सरकार से एक्सटेंशन मिलने का यह पहला केस है। बहरहाल, 5 अगस्त 2022 को डीजीपी जुनेजा को दो साल की पूर्णकालिक नियुक्ति मिली थी, सो 4 अगस्त को उनका टेन्योर कंप्लीट हो रहा था। उस दिन रविवार था। अब जुनेजा जैसे डीजीपी छुटटी के दिन विदा होते तो अच्छा नहीं लगता। सो, सरकार में सेपरेट नोटशीट चलाई गई। इसमें रविवार का हवाला देते हुए उनके रिटायरमेंट को एक दिन बढ़ाया गया ताकि उन्हें सम्मान पूर्वक ग्रेंड फेयरवेल दिया जा सकें। मगर दिल्ली से ऐसी चकरी घुमी कि रिटायरमेंट डेट बढ़ाने का कोई मतलब नहीं हुआ। अचानक जब दिल्ली से एक लाईन का संदेश आया कि अशोक जुनेजा के छह महीने का एक्सटेंशन का प्रापोजल भेजिए...छत्तीसगढ़ के लोग हतप्रभ रह गए। हतप्रभ इसलिए कि उसी दिन सुबह गृह विभाग ने दो नामों को पेनल यूपीएससी को भेजा गया था और अरूणदेव गौतम को प्रभारी डीजीपी बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। दरअसल, नक्सल मोर्चे पर मिली अभूतपूर्व कामयाबी के बाद दिल्ली में जुनेजा का खासा औरा कायम हो गया है। जुनेजा दो बार सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के वे सिक्यूरिटी इंचार्ज थे और तत्कालीन कैबिनेट सिकरेट्री अजीत सेठ चेयरमैन। वे सीधे कैबिनेट सिकरेट्री को रिपोर्ट करते थे। तात्पर्य यह है कि दिल्ली की ब्यूरोक्रेसी में उनके अच्छे रिश्ते हैं। इसका उन्हें लाभ मिला।

कमिश्नर मटेरियल

छत्तीसगढ़ सरकार ने महादेव कांवरे को रायपुर का कमिश्नर बनाया है। वे पहले भी कमिश्नर रह चुके हैं। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में कुछ आईएएस अधिकारी कमिश्नर के लिए पेटेंट हो गए हैं। इनमें पहला नाम है जी चुरेंद्र। चुरेंद बिलासपुर छोड़कर छत्तीसगढ़ के चारों संभाग के कमिश्नर रह चुके हैं। सरगुजा में वे कमिश्नर की दूसरी पारी खेल रहे हैं। उनके बाद नाम आता है दसेक दिन पहले रिटायर हुए संजय अलंग का। संजय का नया रिकार्ड बनाया, डबल कमिश्नर का। पहले बिलासपुर कमिश्नर रहते उनके पास सरगुजा का भी चार्ज रहा। और अभी रायपुर के साथ ही बिलासपुर संभाग भी उनके पास था। दिलीप वासनीकर भी बस्तर, रायपुर और दुर्ग के कमिश्नर रहे। इससे पहिले महादेव कांवरे भी दुर्ग के कमिश्नर रह चुके हैं। इस कड़ी में अब नीलम एक्का का नाम जुड़ गया है।

नीलम का कद बढ़ा या घटा?

नीलम एक्का को बिलासपुर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। पहली बात, आप नीलम के नाम पर मत जाईयेगा, नीलम अच्छी छबि के पुरूष अधिकारी हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमोटी आईएएस में सबसे सीनियर। 2005 बैच में दो अधिकारी हैं। टीपी वर्मा और नीलम एक्का। नीलम इससे पहले राजस्व सिकरेट्री रह चुके हैं। इस हैसियत से वे पूरे स्टेट के राजस्व मामले की सुनवाई करते थे। अब संभाग के आयुक्त बन गए हैं। इस तरह की कुर्सी तोड़ने वाली पोस्टिंग उनके स्वभाव में नहीं। हालांकि, ये क्लियर नहीं कि वे कमिश्नर की पोस्टिंग से वाकई खुश नहीं हैं मगर ब्यूरोक्रेसी में कहा तो ऐसा ही जा रहा है।

छोटी लिस्ट

छत्तीसगढ़ में आईएएस, आईपीएस ट्रांसफर की एक लिस्ट आने की चर्चा बड़ी तेज है। चार-पांच दिन से लोग डेट के भी दावे कर रहे...9-10 अगस्त तक आदेश निकल जाएगा। खैर चर्चाओं में कुछ दम तो नजर आ रहा। एक छोटी लिस्ट आ सकती है। इनमें दो-एक आईएएस और लगभग इतने ही आईपीएस होंगे। मगर डेट का अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, ट्रांसफर का इतना हल्ला हो गया है कि हो सकता है डेट आगे टल जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ओबीसी कल्याण आयोग के अध्यक्ष के लिए रिटायर आईएएस आरएस विश्वकर्मा को ढ़ूंढ कर क्यों निकाला गया?

2. आठ महीना गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार के कई मंत्रियों का लाइन और लेंग्थ क्यों नहीं सुधर रहा?


रविवार, 4 अगस्त 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: साहूकार मालामाल, और छत्तीसगढ़ियां...?

तरकश, 4 अगस्त 2024

संजय के, दीक्षित

साहूकार मालामाल, और छत्तीसगढ़ियां...?

छत्तीसगढ़ में हायर एजुकेशन का एक शर्मनाक आंकड़ा सामने आया है। भारत सरकार की एजेंसी के अनुसार सूबे में 18 से 23 वर्ष के बीच सिर्फ 19.6 फीसदी युवा ही उच्च शिक्षा की देहरी तक पहुंच पा रहे हैं। इस श्रेणी में देश में नीचे तीसरे नंबर पर है छत्तीसगढ़। सबसे नीचे हैं असम। उसके बाद बिहार और फिर अपना छत्तीसगढ़। जिस राज्य के मानव संसाधन का ये हाल होगा...जहां 80 फीसद से अधिक यूथ उच्च तालिम से वंचित हों... उस राज्य की तरक्की की क्या उम्मीद की जा सकती है। असल में, मध्यप्रदेश के समय छत्तीसगढ़ का बुरा हाल तो रहा ही, राज्य बनने के बाद की सरकारों ने कभी स्किल डेवलपमेंट पर जोर नहीं दिया, सिवाय सरकार बनाने के लिए फ्री की चीजें बांटने के। अलबत्ता, फर्जी डिग्री बांटने वाले प्रायवेट कालेज, यूनिवर्सिटी खुलते गए और युवाओं की जेब काट मानव संसाधन का कबाड़ा करते गए। हद तो यह कि सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति जुदा नहीं है। 365 सरकारी कॉलेजों में एक भी प्रोफेसर नहीं हैं। लायब्रेरी, लेबोरेटरी ये सब तो दूर की चीजें हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ का विकास नहीं हुआ। डेवलपमेंट हुआ मगर एक खास सेक्टर में। स्टील, कोल, पावर, राईस और रियल इस्टेट में बूम आया और इससे जुड़े लोगों ने दिन-दुनी और रात चौगुनी टाईप तरक्की की। सूबे के सेठ-साहूकार मालामाल होते गए और आम आदमी नेताओं के मुंह से छत्तीसगढ़ियां...सबले बढ़ियां सुन गदगद होते रहे।

अंधा सिस्टम, ब्लाइंड अफसर

छत्तीसगढ़ के स्कूलों में 13 हजार से अधिक टीचर मक्ख्यिं मार रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है...वे जोर-जुगाड़ या फिर धन के बल पर शहरों के उन स्कूलों में ठस गए हैं, जहां पहले से शिक्षक भरे पडे़ हैं। दुर्ग शहर इसकी बानगी है, जहां एक मीडिल स्कूल में 90 बच्चों पर 11 शिक्षक तैनात हैं। दरअसल, छत्तीसगढ़ बनने के बाद पैसे और पहुंच के बल पर ये खेल प्रारंभ हुआ। चूकि दूरस्थ इलाकों में कंपीटिशन कम होता है इसलिए वहां अप्लाई करके पहले नौकरी हथिया लो और फिर स्कूल शिक्षा के खटराल अफसरों को भेंट-पूजा देकर शहरों में घर के पास ट्रांसफर करा लो। अब जरा सोचिए! जिस स्टेट में 13 हजार अतिशेष शिक्ष़्ाक, वहां सालां से यह प्रचारित किया जाता रहा...स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी है। विधानसभा के हर सत्र में सवाल लगते हैं और मंत्री का जवाब आता है...इतने स्कूल शिक्षक विहीन हैं और इतने सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे। बात सही भी है..एक तरफ शिक्षक स्कूलों में जबरिया कुर्सी तोड़ रहे और दूसरी तरफ गांवों के 300 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं तथा 5500 स्कूल सिंगल टीचर के भरोसे संचालित हो रहे। विष्णुदेव साय सरकार ने इसके लिए स्कूलों और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरणक करने का फैसला किया है। मगर देखना है कि सरकार इसमें कितना कामयाब हो पाती है। क्योंकि, स्कूल शिक्षा और हेल्थ में भ्रष्ट अफसरों और घाघ नेताओं की ऐसी पैठ है कि सरकारें सुधार के कदम वापिस खींच लेती हैं। लिहाजा, छत्तीसगढ़ में अगर स्कूलों और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण 80 परसेंट भी सफल हो गया, तो एक नजीर कायम होगा। क्यांकि, सिर्फ वोट बैंक के लिए नेताओं ने पांच हजार से अधिक ऐसे स्कूल खोलवा डाले हैं, जहां राष्ट्रीय मानक से आधे बच्चे भी नहीं हैं। कई स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चे चार-पांच हैं तो शिक्षक पांच-सात। चूकि इस समय शिक्षा विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है। उन्होंने युक्तियुक्तकरण के लिए अफसरों को गो कह दिया है। इसलिए उम्मीद तो बनती है।

पुलिस को ट्रेनिंग

देश के कानून में कई अहम बदलाव किए गए हैं। इसके बारे में छत्तीसगढ़ में पुलिस अधिकारियों को अवगत कराने पुलिस मुख्यालय से लेकर जिलों तक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए गए। मगर कोई काम नहीं आया...ट्रेनिंग पर खर्च किया पैसा बेकार गया। कई जिले के पुलिस अधिकारियों को यह भी नहीं पता कि पास्को में एफआईआर पहले किया जाता है या प्रारंभिक विवेचना। कई जिलों में पास्को जैसे संवेदनशील मामलों में जबदर्स्त लापरवाही की जा रही। पास्को में स्पष्ट है कि मामला गलत हो या सही, सबसे पहले एफआईआर करना है। अगर बच्ची के मां-बाप मुकदमा दर्ज नहीं करा रहे तो उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज हो सकती है। पुलिस को अगर-मगर करना ही नहीं है। मगर छत्तीसगढ़ में पुलिस अधिकारी खुद ही जांच कर आरोपों को खारिज कर दे रहे। डीजीपी साब को इसे संज्ञान लेकर पास्को की संजीदगी के बारे में अफसरों को ट्रेनिंग की व्यवस्था करानी चाहिए।

छत्तीसगढ़ पुलिस, यूपी स्टाईल

यूपी में लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है...सावन में जब कांवर यात्री निकलते हैं तो स्टेट की पुलिस उनका स्वागत करती है...फूल बरसाती है। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में पिछले दिनों इसी तरह का दृश्य देखने में आया। एसपी के नेतृत्व में पुलिस अधिकारी कांवरियों को आरती उतार उन पर फूल बरसाये। पुलिस की इस नई और अटपटी परंपरा को देख छत्तीसगढ़ के लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। वो इसलिए कि यूपी का अनुसरण ठीक नहीं। कम-से-कम फोर्स को जाति, धर्म से अलग रखना चाहिए। हाल ही में बलौदा बाजार में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हुई, उसमें भी पुलिस और जाति को लेकर कुछ बातें हुई थीं। खैर, कवर्धा पुलिस ने जिस तरह से और जैसे भी किया...उसकी फोटो हजम नहीं हुई।

कलेक्टरों की एक लिस्ट और

सरकार ने 20 आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर किया या फिर उनकी जिम्मेदारियों में बदलाव किया। इनमें कोरिया, महासमुंद और बीजापुर के कलेक्टर भी बदले गए। हालांकि, कलेक्टर बनने वालों की सूची में सर्वेश भूरे, कुंदन कुमार, चंदन कुमार, ऋतुराज रघुवंशी जैसे और आईएएस अफसरों के नाम थे। मगर ऐन वक्त पर सरकार ने तय किया कि फिलहाल तीन ही कलेक्टरों को बदल जाए। इस चक्कर में बाकी का मामला गड़बड़ा गया। महासमुंद कलेक्टर प्रभात मलिक का गुड गर्वनेंस में अत्यधिक दिलचस्पी दिखाना आ बैल मुझे मार...जैसा हाल हो गया। सरकार ने उन्हें कलेक्टरी के ट्रेक से वापिस बुला गुड गर्वनेंस में ज्वाइंट सिकरेट्री बना दिया। हालांकि, उन्हें चिप्स के सीईओ का दायित्व दिया गया है। लेकिन, कलेक्टरी तो चली गई। इसको लेकर ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही है। दरअसल, अब के आईएएस को कलेक्टर से नीचे कोई पोस्टिंग पसंद नहीं आती। उपर से गुड गवर्नेंस...। अरे भाई जब गवर्नेंस गुड हो जाएगा तो नौकरशाहों को पइसा-कौड़ी कहां से मिलेगा...इसलिए जितने दुखी प्रभात मलिक नहीं होंगे, उनसे अधिक उनकी गुड गवर्नेंस की पोस्टिंग पर दूसरे आईएएस परेशान हैं। बहरहाल, एकाध महीने में फिर एक लिस्ट निकल सकती है। मुंगेली और जगदलपुर कलेक्टर भी बदेलेंगे या फिर इधर-से-उधर किए जाएंगे। लिस्ट में नाम जशपुर कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल का भी था, मगर अब सुनने में आ रहा कि नगरीय निकाय चुनाव तक रवि को जशपुर में ही रखने का फैसला किया गया है।

एक प्लस, एक माइनस

आईएएस अधिकारियों के फेरबदल में एसीएस मनोज पिंगुआ को एक हैंड दिया गया और दूसरे को ले लिया गया। मनोज के पास होम और हेल्थ है। उनके विभाग में किरण कौशल को कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन बनाया गया है। मगर होम से नीलम एक्का माइनस कर दिए गए। नीलम को बिलासपुर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। हालांकि, होम में अरुण गौतम हैं मगर उनके पास और दो-तीन चार्ज हैं। और फिर डीजी रैंक के आईपीएस। 92 बैच के सीनियर आईपीएस। बहरहाल, लगता है सरकार भी समझ गई है कि मनोज पिंगुआ का कंधा मजबूत है।

बस्तर आईजी डेपुटेशन पर

बस्तर के आईजी सुंदरराज लंबे समय बाद माओवादग्रस्त इलाके से लौट रहे हैं। वे करीब एक दशक से बस्तर में पोस्टेड हैं। इस दौरान थोड़े दिनो के लिए जरूर रायपुर लौटे थे मगर यहां भी उन्हें नक्सल विभाग ही मिला था। वे बस्तर में डीआईजी रहे और अब आईजी हैं। उन्होंने पिछली सरकार में भी डेपुटेशन के लिए अनुमति मांगी थी मगर बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को देखते उन्हें एनओसी नहीं दिया गया। बहरहाल, पता चला है कि सुंदरराज को नई सरकार से एनओसी मिल गया है। उनकी एनआईए में पोस्टिंग हो रही है। सुंदरराज के प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद जाहिर है आईजी की एक लिस्ट जल्द ही निकलेगी। इसमें पांच में से तीन-से-चार पुलिस रेंज के आईजी बदल सकते हैं। पुलिस मुख्यालय में खाली बैठे एकाध आईजी का भी किसी रेंज में नंबर लग सकता है।

राप्रसे अधिकारियों को झटका

आईएएस अवार्ड के लिए पिछले दो बरस से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को अभी आईएएस अवार्ड के लिए और वेट करना होगा। उनके लिए 5 अगस्त को यूपीएससी में डीपीसी रखी गई थी। मुख्य सचिव समेत सभी अधिकारियों ने जाने की तैयारी कर ली थी। मगर मामला गड़बड़ा गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कौन बनेगा बस्तर का नया पुलिस महानिरीक्षक?

2. सरकार की योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए दक्ष कलेक्टरों का होना क्यों जरूरी होता है?