शनिवार, 14 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

 तरकश, 15 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

काम-धाम, वर्क कल्चर और तरक्की के मामले में मध्यप्रदेश भले ही छत्तीसगढ़ से आगे हो मगर करप्शन के रेट में काफी पीछे है। शुक्रवार की की ही बात है...मउगंज के अपर कलेक्टर पांच हजार रिश्वत लेते पकड़े गए। जमीन बंटवारे के केस में फैसला देने के लिए उन्होंने 20 हजार मांगा और पांच हजार लेते ट्रेप हो गए। जबकि, उससे एक दिन पहले छत्तीसगढ़ की एसीबी ने बाबू को एक लाख रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ा था। अब आप समझ सकते हैं...छत्तीसगढ़ का बाबू एक लाख और एमपी में एडिशनल कलेक्टर पांच हजार...। दरअसल, सूबे में करप्शन का लेवल इतना बढ़ गया है कि बिना पैसे के आप वाजिब काम की भी कल्पना नही ंकर सकते। मुलाजिमों को छोड़िये...ठेका, सप्लाई में कई मंत्री 35 परसेंट के रेट से नीचे जाने तैयार नहीं। रमन और भूपेश सरकार में दो-एक मंत्रियों ने अपने खर्चे को देखते रेट 35 से 40 फीसदी तक बढ़ा दिया था, इस समय भी कुछ मंत्री पुराने रेट को कम करने तैयार नहीं।

जेलों में जगह नहीं

एमपी में 5 हजार रुपए के चक्कर में मउगंज के अपर कलेक्टर के निबट जाने की खबर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोगों ने खूब मौज ली। एक ने लिखा, छत्तीसगढ़ में अगर पांच हजार रिश्वत वालों को पकड़ना शुरू कर दिया जाए तो जेलों में जगह कम पड़ जाएगी...वैसे भी छत्तीसगढ़ की जेलों में क्षमता से दोगुने, तीगुने कैदी हैं। किसी ने लिखा...सरकार को नए जेल बनवाने पड़ेंगे। देर रात एसीबी के एक अफसर ने भी चुटकी ली...पांच हजार रुपए वालों को हमलोग चाय-पानी का खर्चा मान छोड़ देते हैं, ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करते। जाहिर है, विष्णुदेव से फ्री हैंड मिलने के बाद छत्तीसगढ़ की एसीबी इस समय फुल मोड में है। छह महीने में 35 अधिकारियों, कर्मचारियों को जेल भेज चुकी है। इनमें एसडीएम से लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और टीआई, एसआई तक शामिल हैं।

मंत्रियों को मर्यादा की पाठ

कई मंत्रियों की कारगुजारियों से छत्तीसगढ़ सरकार की छबि को लेकर अच्छे संदेश नहीं जा रहे हैं। लिहाजा, संगठन मंत्री पवन साय को मंत्रियों को मर्यादा को याद दिलाना चाहिए। क्योंकि, ये आवश्यक नहीं कि जो मुख्यमंत्री करें, वो मंत्री भी करने लगें। मुख्यमंत्री निवास में तीजा महोत्सव मना तो एक मंत्रीजी ने भी अपने सरकारी बंगले में धूमधाम से तीज उत्सव का आयोजन कर डाले। मुख्यमंत्री किसी मंत्री के इलाके में जाए और वहां के मंत्री उस कार्यक्रम से गोल रहे तो ये सीधे-सीधे प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। ये तो हुई अदब और प्रोटोकॉल की बात। करप्शन में दो-तीन मंत्री पिछली सरकारों के अपने भाइयों को पीछे छोड़ दिए हैं। ट्रांसफर में मुलाजिमों के पास मंत्रियों के करिंदों के फोन जा रहे...कुर्सी पर टिके रहना है तो इतना पेटी पहुंचा दो। अगर पैसे देने में इधर-उधर किए तो फिर तबादला। सीधे तौर पर कहें तो पोस्टिंग की बोली लग रही है। रेट भी बेहद हाई। सरकार की सेहत के लिए ये ठीक नहीं। मुख्यमंत्री गुड गवर्नेंस के लिए दो दिन सर्किट हाउस में कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों की क्लास लेते रहे मगर मंत्रियों को इससे कोई वास्ता नहीं। उन्हें चाहिए सिर्फ पेटी। पवन साय जी को थोड़ा कड़क होना पड़ेगा, जरूरी हुआ तो डंडे भी चलाएं...क्योंकि मोदी की गारंटी और विष्णु के सुशासन के लिए इस टाईप के मंत्रियों को टाईट करने रखना होगा।

टी ब्रेक केंसिल

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने एक चीज स्पष्ट कर दिया कि काम नहीं करोगे तो उसके जिम्मेदार आप होगे...गड़बड़ी करने वालों को आप जेल नहीं भेजोगे तो हम कार्रवाई करेंगे। जाहिर है, सीएम ने कलेक्टर-एसपी को बड़ा टास्क दे दिया है। डीएम-एसपी के पद को सिर्फ पैसा कमाने का जरिया समझने वालों को इससे मायूसी हुई होगी। बता दें, दो दिन के कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस को सीएम ने इतना इम्पॉर्टेंस दिया कि दो दिन वे वहां से हिले नहीं। प्रोग्राम में दोनों दिन टी ब्रेक था, सीएम ने उसे रोकवा दिया। बोले, चाय की जरूरत नहीं। लिहाजा, अफसरों को भी चाय का ब्रेक नहीं मिल पाया। सीएम ने दोनों दिन सर्किट हाउस में ही खाना खाया। जबकि, चार कदम पर सीएम हाउस है। सबसे अहम बात कलेक्टर-एसपी से आई कंटेक्ट। किसी भी अफसर के प्रेजेंटेशन को उन्होंने अनसूना नहीं किया। पूरे समय उन्होंने रिस्पांस दिया और प्रेजेंटेशन देने वाले अफसर को सुनते रहे। कलेक्टर्स, एसपी को अब डर सता रहा कि सीएम साब ने इतना ध्यान से उनके प्रेजेंटेशन को सुना है तो अगली बार अगर कोई चूक हुई तो फिर क्या होगा?

अधिकारियों, कर्मचारियों का डेटा

नगरीय प्रशासन विभाग ने इस हफ्ते एक ऐसे कार्यपालन अभियंता का ट्रांसफर कर दिया, जिसका फरवरी में रिटायरमेंट है। उसे कोरबा से बिलासपुर ट्रांसफर किया गया। आमतौर पर ट्रांसफर से छह महीने पहले ट्रांसफर नहीं किया जाता। फिर नगर निगमों के मुलाजिम मूल पदास्थापना से ही रिटायर होते हैं। ईई का मूल पोस्टिंग कोरबा है। और इसी आधार पर ट्रांसफर के तीसरे दिन ही बिलासपुर हाई कोर्ट से उन्हें स्टे मिल गया। छत्तीसगढ़ सरकार को गुड गवर्नेंस के प्रयासों के बीच कर्मचारियों और अधिकारियों का एक डेटा तैयार कराना चाहिए। ताकि, मालूम रहे कि किसका कब रिटायरमेंट है, उसकी मूल पोस्टिंग कहां है। वरना, इस तरह तबादले से विभागों के साथ ही सरकार की छबि धूमिल होती है।

नया ट्रांसफर मॉडल

पिछले महीने पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने सरकारी खजाने को डेढ़ करोड़ का चूना लगाने के मामले में तीन रजिस्ट्री अधिकारियों को सस्पेंड किया था। इस कार्रवाई के खिलाफ पंजीयन अधिकारियों ने प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत हड़ताल पर उतरने की तैयारी कर लिया था। मगर इस बार कोई मौका नहीं मिला। तीन दिन की छुट्टी शुरू होने के दिन पंजीयन विभाग ने 60 अधिकारियों, कर्मचारियों को एक झटके में बदल दिया। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के सारे स्टाफ हटा दिए गए। इससे पहले हाई कोर्ट में केवियेट दायर हो चुका था। ट्रांसफर के कुछ घंटे के भीतर उसी दिन सभी को रिलीव कर दिया गया। ठीक ही कहा गया है...सरकार, सरकार होती है।

7 दिन का टाईम क्यों?

मध्यप्रदेश बड़ा राज्य था। ग्वालियर से लेकर दंतेवाड़ा और जशपुर तक। इसलिए वहां अधिकारियों, कर्मचारियों के ट्रांसफर में कार्यभार ग्रहण करने के लिए सात दिन का टाईम दिया जाता था। छत्तीसगढ़ में भोपालपटनम से बलरामपुर भी सुबह निकलकर शाम तक पहुंचा जा सकता है। नई ज्वाईनिंग के लिए सात दिवस का समय दिए जाने से होता ये है कि अधिकांश तबादलों पर स्टे मिल जा रहा। ट्रांसफर आदेश निकलते ही लोग बिलासपुर में अपने परिचित वकील को फोन लगाते हैं और अगली सुबह पहुंचकर वहां अर्जी दाखिल हो जाती है। एमपी के समय जबलपुर हाई कोर्ट था। तब रोड कनेक्टिविटी भी पुअर रहा। इसलिए, वहां जाने के पहले सोचना पड़ता था। बहरहाल, जानकारों का कहना है कि छोटे राज्य में ज्वाईनिंग के लिए तीन दिन का टाईम काफी है। मगर यह भी सही है कि ट्रांसफर के पीछे किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।

देर आए दुरुस्त आए

रायपुर कलेक्टर रहे डॉ0 सर्वेश भूरे को सरकार ने जलग्रहण मिशन का सीईओ बनाया है। सर्वेश के पास नौ महीने से अल्पज्ञात विभाग था...राज्य निर्वाचन आयुक्त के सचिव का। चलिये, देरी से हुआ मगर सरकार ने उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। करीब 25 हजार करोड़ के जलग्रहण मिशन के तहत घर-घर को नलजल से जोड़ने की योजना है। सरकार का बेहद फोकस वाला यह मिशन है।

बड़ा फैसला

हाल में आईएएस अफसरों के फेरबदल में सरकार ने एसीएस ऋचा शर्मा को खाद्य विभाग की कमान सौंपी है। उनके पास फॉरेस्ट भी रहेगा। ऋचा पहले भी खाद्य विभाग संभाल चुकी है। छत्तीसगढ़ में राईस माफियाओं पर अंकुश लगाने में उनका अहम योगदान रहा है। कई बड़े-बड़े नाम वाले फूड सिकरेट्री जो नही ंकर पाए, उसे ऋचा ने किया था। वैसे भी, देखा गया है कि कई मामलों में लेडी अफसर माफिया तंत्र पर भारी पड़ जाती है। सामने अगर तेज महिला अफसर है तो बड़े रसूखदार लोग भी पांव पीछे खींच लेते हैं। अब सरकार ने दूसरी बार ऋचा को फूड की कमान सौंपी है तो कुछ तो बात होगी। हो सकता है कि पिछली सरकार में मिलिंग चार्ज तीगुना किया गया था, उसे कम किया जाए। मिलिंग चार्ज का करोड़ों रुपए राईस मिलरों की जेब में जा रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री के जोरु का भाई ट्रांसफर का खाता-बही लेकर काउंटर खोल दिया है?

2. वास्तव में अभी लाल बत्ती दी जाएगी या फिर अफवाहें फैलाई जा रही?

रविवार, 8 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अमेरिका का वीजा और संयोग



 तरकश, 8 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अमेरिका का वीजा और संयोग

छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री को अमेरिका का वीजा न मिलने से मायूस होकर रायपुर लौटना पड़ गया। वीजा क्लियर न होने में गफलत कहां पर हुआ, ये पता नहीं...हो सकता है सरकार इसकी जांच करवा रही हो। मगर लोगों का क्या? इसे शगुन और संयोग से जोड़ना शुरू कर दिया। आखिर, गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नरेंद्र मोदी ने कई बार अमेरिका जाने का प्रयास किया था मगर उन्हें वीजा नहीं मिला। इसलिए, छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री को इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। किस्मत को कौन जानता है। मोदीजी का तब कितना मन दुखित हुआ होगा। बाद में वे जैसे ही प्रधानमंत्री बनें, अमेरिका ने तुरंत उनका वीजा जारी कर दिया। और अब तो उनके लिए वहां लाल जाजम बिछाया जाता है। सही भी है, आदमी की किस्मत का क्या भरोसा? उप मुख्यमंत्रीजी जवां हैं...पूरी उम्र बाकी है।

टॉप लेवल, डबल वैकेंसी

एसएस बजाज ने छत्तीसगढ़ साइंस एंड टेक्नालॉजी कौंसिल के डायरेक्टर जनरल और न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। पीसीसीएफ से रिटायर होने के बाद बजाज को सरकार ने सीजी कॉस्ट का डीजी बनाया था। बाद में आरपी मंडल जब एनआरडीए से हटाए गए तो बजाज को उसका एडिशनल चार्ज सौंपा गया। साफ-सुथरी छबि के बजाज को पिछली सरकार ने बिना कसूर का सस्पेंड कर दिया था। मगर बाद में चूक का अहसास होने पर उसकी भरपाई करने का प्रयास किया। बहरहाल, बजाज के इस्तीफे से एक साथ दो पद खाली हो गए हैं। इसमें सीजी कॉस्ट का डीजी कुलपति रैंक का पद है। पीसीसीएफ मुदित कुमार भी इस पद पर काम कर चुके हैं। चूकि इसमें 70 साल की एज लिमिट है, लिहाजा कई रिटायर ब्यूरोक्रेट्स भी इसके लिए प्रयास प्रारंभ कर दिए हैं। अब सवाल एनआरडीए का है। सरकार के स्तर पर नया रायपुर का तेजी से विस्तार करने की प्लानिंग की जा रही है। आईटी सेक्टर को डेवलप किया जाना है। मेट्रो ट्रेन भी दौड़ानी है। मगर पैसे का टोटा है। एनआरडीए में ऐसा आदमी चाहिए, जो दिल्ली से प्रोजेक्ट के लिए पैसा ला सकें। इसके लिए रिटायर कोई आईएएस पात्र नहीं दिखाई पड़ रहा। रमन सिंह सरकार के समय बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह जैसे अफसर इसके चेयरमैन रहे हैं। ऐसे में, दिल्ली से लौटे रजत कुमार सरकार की बेस्ट च्वाइस हो सकते हैं। रजत एनआरडीए के सीईओ रह चुके हैं। नया रायपुर में पर्यावास और सीबीडी जैसे भवन बनाने में रजत की भूमिका अहम रही। लिहाजा, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी विभाग का सचिव बनाने के साथ रजत को एनआरडीए का एडिशनल चार्ज दिया जाए। मगर ये कयास और अटकलें हैं। फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि मुख्यमंत्री क्या सोचते हैं।

आईएएस की छोटी लिस्ट

सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे आईएएस रजत कुमार को राज्य सरकार आजकल में किसी विभाग की जिम्मेदारी सौंपेगी। जानकारों का कहना है, दो-तीन दिन से लगातार छुट्टियां चल रही हैं, इसलिए आदेश नहीं निकल पा रहा होगा। रजत को विभाग देने के लिए आईएएस की एक लिस्ट निकलेगी। हालांकि, नाम ज्यादा नहीं होंगे। लिस्ट छोटी होगी। बड़ी लिस्ट निकलेगी अक्टूबर फर्स्ट वीक में। तब डॉ0 रोहित यादव डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटेंगे। हेल्थ में अगर अभी कोई चेंज नहीं हुआ तो फिर रोहित के लौटने के बाद होगा।

600 करोड़ का फायदा

छत्तीसगढ़ सरकार ने एक झटके में शराब के लायसेंसी यानी बिचौलिया सिस्टम पर ब्रेक लगा कर लोगों को चौंका दिया था। इसके फायदे तीन महीने में ही नजर आ गए। शराब के नए टेंडर से 600 करोड़ का राजस्व मिला है। ये पूरे पैसे बिचौलियों के जेब में जाते थे। दूसरा, अब प्रदेश में सभी ब्रांड के वाइन, बीयर, व्हीस्की, रम, वोदका, स्कॉच उपलब्ध होंगे। इसलिए टारगेट भी ढाई हजार करोड़ बढ़ा दिया गया है। पिछले साल 8500 करोड़ का लक्ष्य था। उसे बढ़ाकर इस बार 11 हजार करोड़ रुपए किया गया है। याने 2500 करोड़ की बढ़त। वो भी तब जब इस वित्तीय वर्ष में छह महीने निकल चुका है। अगर पुरा साल होता तो पांच हजार से उपर जाता। अफसरों को उम्मीद है कि सारे ब्रांड उपलब्ध हो जाने पर शराब से राजस्व बढ़ेगा।

शराब और टूरिज्म

एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि जहां टूरिज्म बढ़ा है या आईटी सेक्टर में ग्रोथ हुआ है, वहां शराब की एवेबिलिटी अच्छी होती है। छत्तीसगढ़ सरकार भी प्रदेश का टूरिज्म बढ़ाने बीयर-बार का लायसेंस सिस्टम सरल करने पर विचार कर रही है। जाहिर है, नया रायपुर को आईटी हब के तौर पर विकसित करने का काम प्रारंभ हो गया है। दो-तीन आईटी कंपनियां आईं हैं, उसमें हजार के करीब इम्प्लाई हैं। इसमें और इजाफा ही होगा। इसको देखते शराब का ऐप बनाने पर भी विचार किया जा रहा ताकि कौन सी दुकान किस लोकेशन पर है और वहां कौन-कौन से ब्रांड उपलब्ध हैं, बाहर से आए लोगों को मोबाइल से पता चल जाए। मगर एक्साइज विभाग के अफसर हिचकिचा भी रहे हैं कि कहीं इसे गलत तरीके से प्रचारित मत किया जाए। मसलन, स्टेट में शराब को बढ़ावा दिया जा रहा है। बहरहाल, सिस्टम अगर फैसले लेने की स्थिति में आ गया तो मंझोले होटलों, रेस्टोरेंटों को बीयर-बार का लायसेंस दिया जा सकता है। इससे होटल इंडस्ट्री काफी खुश है। क्योंकि बार का लायसेंस न होने से कई लोग चोरी-छुपे ये काम करते हैं मगर इसके लिए पुलिस और एक्साइज विभाग के साहबों को हर महीने मोटी रकम देनी पड़ती है।

दवा और दारु

छत्तीसगढ़ के मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के पास स्वास्थ्य कल्याण विभाग है। इसके साथ वे आबकारी विभाग का कामकाज भी देख रहे हैं। दरअसल, राजनीतिक नियुक्ति होने तक सरकार ने उन्हें ब्रेवरेज कारपोरेशन के चेयरमैन का दायित्व सौंपा है। नई नीति के तहत इस समय वेंडरों से शराब खरीदी चल रही है। सरकार ने लायसेंसी सिस्टम खतम कर ब्रेवरेज कारपोरेशन को शराब सप्लाई का जिम्मेदारी दी है। लिहाजा, श्याम बिहारी इस समय ब्रेवरेज को भी टाईम दे रहे हैं। हालांकि, आबकारी विभाग मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के पास है। मगर राज्य के मुखिया के पास उतना समय होता नहीं। उनके पास माईनिंग, ट्रांसपोर्ट, सामान्य प्रशासन विभाग, सुशासन और जनसंपर्क विभाग भी है। इसलिए रुटीन के काम हेल्थ मिनिस्टर संभाल रहे हैं। ऐसे में, श्याम बिहारी के करीबी लोग खूब चुटकी ले रहे हैं...अपने श्याम भैया के पास दवा और दारु...दोनों है। ठीक भी है...कई बार दवा असर न करने पर दारु काम कर जाता है।

कलेक्टर का सम्मान

सरकार ने एक ठेकेदार बीजेपी नेता से विवाद के बाद बीजापुर कलेक्टर को हटा दिया था। इसके बाद बीजेपी नेता के खिलाफ एफआईआर हुआ और उन्हें जेल भेजा गया। बता दें, कलेक्टर का 31 अगस्त को रिटायरमेंट था। आमतौर पर रिटायरमेंट के मंथ में किसी का ट्रांसफर नहीं किया जाता। अत्यधिक गंभीर केस हो तभी चला-चली के मौके पर किसी का ट्रांसफर या सस्पेंशन होता है। मगर ब्यूरोक्रेसी के लिए सुखद यह रहा कि कलेक्टर को हटाने के बाद रिलीव नहीं किया गया। वे 31 अगस्त को रिटायर होकर रायपुर लौटे। नए कलेक्टर भी उनके सेवानिवृत होने पर ही बीजापुर पहुंचे। याद होगा, तरकश में हमने एक सवाल पूछा था कि क्या कारण है कि कलेक्टर की छुट्टी के बाद आईएएस लॉबी मौन है? कहीं उसका असर तो नहीं!

सीएस साहब मैं भी...

2003 बैच की सिकरेट्री रैंक की आईएएस रीना बाबा कंगाले का मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बने तीन साल से अधिक हो गया है। इस दरम्यान उन्होंने विधानसभा का चुनाव कराया और फिर लोकसभा का भी। विधानसभा में बीजेपी ने 15 से 51 सीट पर पहुंच धमाकेदार वापसी की। लोकसभा चुनाव भी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में एकतरफा ही रहा। कांग्रेस को 11 में से सिर्फ कोरबा लोकसभा सीट से संतोष करना पड़ा। मगर बात अब मुद्दे की...आमतौर पर सरकार के पक्ष में जब फैसले आते हैं तो चीफ इलेक्शन आफिसर को अच्छी पोस्टिंग मिलती है। 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा के समय सुब्रत साहू सीईओ थे। उन्हें एसीएस टू सीएम बनाया गया था। मगर लगता है रीना को चीफ सिकरेट्री भूल गए हैं। जाहिर है, आईएएस की जब भी लिस्ट निकलने की चर्चाएं होती होगी, निश्चित तौर पर रीना की उम्मीदें बंधती होगी। रही बात, चुनाव आयोग से परमिशन के, तो दो चुनाव कराने वाली रीना के लिए आयोग से परमिशन मिलना कठिन थोड़े ही होगा। वैसे भी छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी से चुनाव आयोग के अच्छे संबंध हैं। ऐसे में, जब भी आईएएस की पोस्टिंग होती होगी, रीना का जी मचलता होगा...सीएस साब, मैं भी हूं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि ब्यूरोक्रेट्स अगर पोस्टिंग और पैसे की चिंता करना छोड़ दें तो कोई ताकत उसे झुका नहीं सकती?

2. क्या नगरीय और पंचायत चुनाव एक साथ जनवरी-फरवरी में होंगे?

रविवार, 1 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: धर्म, आईएएस और खतरे

 


तरकश, 1 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

धर्म, आईएएस और खतरे

आईएएस जैसी देश की सर्वोच्च सर्विस के लोग अगर धर्म, जाति देखकर फैसले लेने लगे तो समझा जा सकता है सिस्टम किधर जा रहा है। छत्तीसगढ़ के एक आईएएस ने जो किया, वाकई स्तब्ध करने वाला है। हम बात कर रहे हैं, बिलासपुर के निर्वतमान डिविजनल कमिश्नर की। सरकार ने भले ही एक झटके में उनकी छुट्टी कर दी। मगर विषय इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। मिशनरीज संस्था को उन्होंने करीब 1000 करोड़ के मूल्य वाले कब्जे को बिना सोचे-समझे स्टे दे दिया। बताते चले, मध्यप्रदेश के दौरान 1962 में सरकार ने बिलासपुर शहर के प्राइम लोकेशन पर मिशन अस्पताल के लिए साढ़े 10 एकड़ लैंड दिया था। आज की तारीख में इस जमीन की कीमत 20 से 25 हजार रुपए फुट होगी। इतनी कीमती जमीन का 1992 के बाद लीज का रिनीवल नहीं हुआ। अलबत्ता, संस्था के लोग लैंड का कामर्सियल उपयोग कर सालों से लाखों रुपए किराया वसूल रहे थे। दिसंबर 2023 में सूबे में नई सरकार बनने के बाद जिला प्रशासन ने अवैध कब्जे को हटाने की कोशिशें शुरू की। मिशनरीज ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट की शरण ली। वहां से याचिका खारिज हो गई। संस्था ने कहीं कोई रास्ता न देख कलेक्टर से कब्जा खाली करने के लिए टाईम मांगा। उसने लगभग 75 परसेंट काम समेट भी लिया था। इसी दौरान अचानक इसमें कमिश्नर की इंट्री हुई और उन्होंने पहली पेशी में ही हजार करोड़ की बेशकीमती जमीन पर संस्था के पक्ष में स्टे दे दिया। छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी के लिए दो-दो आईएएस के जेल जाने से भी ये ज्यादा शर्मनाक घटना होगी। इस पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो छत्तीसगढ़ का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा।

स्टेराइड का इस्तेमाल

छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन की गति बढ़ने पर पहले भी इसी स्तंभ में हम सिस्टम को आगाह कर चुके हैं। मगर अब जो सुनने में आ रहा वह और खतरनाक है। धर्म परिवर्तन के लिए आयोजित की जाने वाली मजलिसों में दुखी, पीड़ितों को स्टेराइड का घोल पिलाया जा रहा है। दरअसल, धार्मिक सभाओं में बीमारी से परेशान लोग भी पहुंचते हैं। धर्म गुरू कुछ मंत्र पढ़ने का अभिनय कर स्टेराइड पिला देते हैं। फिर बताते हैं, कैसे और किसने किया चमत्कार। इसकी आड़ में अपना मकसद साधा जा रहा है। अभी तक धर्म परिवर्तन के मामले सरगुजा और बस्तर संभागों में ही सुनने को मिलते थे। मगर अब स्थिति इतनी विकट हो गई कि मैदानी इलाकों में भी सभाएं आयोजित की जाने लगी हैं और ओबीसी तथा दलित समुदायों के लोग भी ऐसे तत्वों के मोहपाश के शिकार बनते जा रहे हैं। जांजगीर, सारंगढ़, सराईपाली, बलौदा बाजार, कोरबा, मुंगेली में बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन का खेल शुरू हो गया है। सरकार के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।

टीम अमिताभ

सेंट्रल डेपुटेशन से आईएएस अफसरों का लगातार लौटना जारी है। हफ्ते भर के भीतर डॉ0 रोहित यादव और रजत कुमार छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। 2004 बैच के अमित कटारिया का भी सात साल पूरा हो गया है। मगर वे लौट रहे या अभी वहां रुकेंगे, क्लियरिटी नहीं है। सुबोध सिंह भी आएंगे ही। इनसे पहिले ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रीतू सैन, मुकेश बंसल, अविनाश चंपावत छत्तीसगढ़ लौट चुके हैं। अलेक्स पॉल मेनन के भी लौटने की खबरें आ रहीं हैं। कुल मिलाकर इस साल करीब दर्जन भर आईएएस छत्तीसगढ़ में आमद देंगे। याने अमिताभ जैन की टीम अब मजबूत होने वाली है। अब उनके पास बेस्ट ओपनर के साथ मध्यक्रम के भी मजबूत बैट्समैन का च्वाइस रहेगा। कुछ प्लेयर एक्सट्रा भी उनके पास रहेंगे। आखिर, इतने सारे सचिवों के लिए अमिताभ जैन विभाग कहां से लाएंगे।

कमिश्नर का टोटा

दर्जनों सचिव होने के बाद सरकार के सामने दिक्कत यह है कि ढंग का कमिश्नर नहीं मिल रहा। संजय अलंग को रायपुर के साथ बिलासपुर का चार्ज दिया गया था। घूम-फिर कर अब वही स्थिति आ गई है। महादेव कांवरे रायपुर के साथ बिलासपुर संभालेंगे। अलंग के बाद सरकार ने एक को झाड़-पोंछकर बिलासपुर भेजा मगर वे हिट विकेट होकर 28 दिन में ही पेवेलियन लौट गए। दूसरे कमिश्नर का दो घंटे में आदेश बदल गया। बेचारे का आम सहमति का एक पुराना मामला अलग से उखड़ गया। दरअसल, सिकरेट्रीज की फौज तो बड़ी है मगर सरकार आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को कमिश्नर बनाना नहीं चाहती। उसकी सबसे बड़ी वजह है प्रमोटी आईएएस की दुकान छोटी होती है। मगर आरआर वाले शोरुम खोलकर बैठ जाते हैं। कुछ आरआर वालों को सरकारों ने कमिश्नर बनाया मगर उसके अनुभव अच्छे नहीं रहे। फिर जिलों के कलेक्टर भी नहीं चाहते कि उनके उपर कोई आरआर वाला आकर बैठ जाए। प्रमोटी कमिश्नर उन्हें भी सुहाता है। आरआर कलेक्टरों के जोर से नमस्ते कर देने भर से प्रमोटी कमिश्नर खुश हो जाते हैं। कलेक्टर जरा सा खुशामद कर ए प्लस सीआर लिखवा लेते हैं। मगर आरआर वालों को रिझाना कठिन होता है।

जरूरी है कमिश्नर सिस्टम?

छत्तीसगढ़ के फर्स्ट सीएम अजीत जोगी खुद ब्यूरोक्रेट रहे थे। वे जानते थे कि राजस्व मामलों में अपील की एक सीढ़ी और होने से आम पब्लिक को परेशानी में डालने के अलावा कोई मतलब नहीं। इसीलिए उन्होंने कमिश्नर सिस्टम खत्म कर दिया था। मगर बाद मे बीजेपी सरकार ने कमिश्नर प्रणाली फिर से प्रारंभ कर दिया। तब सरकार का तर्क दिया था कि राजस्व बोर्ड से पहले कलेक्टर के फैसले पर एक अपीलीय संस्था और होनी चाहिए। दूसरा, कलेक्टरों के खिलाफ कोई शिकायत आए तो उसकी जांच कौन करेगा। इसके लिए कमिश्नर सिस्टम फिर से चालू कर दिया गया। मगर सवाल उठता है कि पिछले 10 साल में किस कमिश्नर ने किस कलेक्टर को जांच कर दोषी ठहराया है। अगर कलेक्टर के खिलाफ कोई मामला आता है तो जीएडी जांच अधिकारी अपाइंट कर सकता है। फिर राजस्व मामलों की कमिश्नर कोर्ट में अपील करने से कितने लोगों को फायदा होता है? कमिश्नर कोर्ट के 95 परसेंट से अधिक मामले हाई कोर्ट जाते हैं। ऐसे में, न्याय मिलने में और टाईम लगता है। लोगों की जेब पर डाका पड़ता है, सो अलग। सिस्टम को इस पर एक बार विचार करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ का अपमान?

छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम अरुण साव और उनके पीडब्लूडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह दिल्ली में चार दिन प्रतीक्षा कर वापिस लौट आए मगर अमेरिकी एंबेसी ने उन्हें लगातार बुलाने के बाद भी वीजा क्लियर नहीं किया। कायदे से यह राज्य का अपमान है। छत्तीसगढ़ भारत के टॉप टेन राज्यों में शामिल है। अरुण साव की हैसियत भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर की है। सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि चूक कहां पर हुई। अमेरिका दौरा को प्रायोजित करने वाली एशियाई डेवलपमेंट बैंक ने पहले से अगर वीजा का बंदोबस्त कर लिया होता तो डिप्टी सीएम जैसे शख्सियत को दिल्ली में चार दिन नहीं वेट नहीं करना पड़ता। अरुण साव पीडब्लूडी, नगरीय प्रशासन और पीएचई जैसे बड़े विभाग के मिनिस्टर हैं, कमलप्रीत भी सीनियर सिकरेट्री हैं, मगर अमेरिकी अधिकारियों ने कोई अदब नहीं दिखाई।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

सरकार ने शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का फैसला वापिस ले लिया है। इस मसले पर बीजेपी और कांग्रेस नेता एक राय हो गए थे। बीजेपी नेता सरकार को पत्र लिख रहे थे, तो कांग्रेस नेताओं का लगातार बयान आ रहे थे। मगर किसी ने यह नहीं सोचा कि सूबे के रिमोट इलाकों में स्थित शिक्षक विहीन उन 5781 स्कूलों का क्या होगा? 13 हजार सरप्लस शिक्षक एक तरफ पैसे और एप्रोच के बल पर बिना पोस्ट के शहर के स्कूलों में कुर्सी तोड़ रहे हैं, और उधर 5781 गांवों के गरीब बच्चे एक अदद शिक्षक के लिए तरह रहे हैं। आखिर उन बच्चों का क्या कसूर? कसूर यही कि वे पिछड़े इलाके में पैदा हुए। सवाल उठता है, उनकी कौन सुनेगा? सुधार के काम में अगर इसी तरह सियासत होगी तो फिर रिफर्म की कल्पना मत कीजिए। वैसे भी काम करने से चुनाव नहीं जीता जाता।

सत्ताधारी पाटी को वोट क्यों नहीं

राजनेताओं को इस पर सर्वे कराना चाहिए कि कर्मचारी संगठन सत्ताधारी पार्टी को वोट क्यों नहीं देते। छत्तीसगढ़ में यही देखने में आ रहा। रमन सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षाकर्मियों के संविलियन का फैसला किया, तब नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुनिल कुमार ने उन्हें बहुत समझाया कि संविलियन करना ठीक नहीं, इससे आपको वोट नहीं मिलेंगे। मगर रमन सिंह ने कहा, मैंने प्रॉमिस किया है तो इस बार करना ही होगा। और चुनाव हुआ तो 15 साल की सरकार 15 सीटों पर सिमट आई। भूपेश बघेल की सरकार ने भी डीए छोड़ दें, तो बाकी कोई कमी नहीं की। शिक्षाकर्मियों के संविलियन में रमन सरकार ने जो टाईम की शर्ते रखी थी, भूपेश सरकार ने उसे भी समाप्त कर सबको मर्ज कर दिया। फाइव डे वीक का फैसला भी उसी सरकार में हुआ। इसके अलावा छुट्टियों की झड़ी लगा दी। डीए भी लास्ट-लास्ट में दिया ही। तब भूपेश बघेल इस गफलत में रह गए कि कर्मचारियों को इतनी छुट्टियां दे दिए हैं, किसानों को हजारों करोड़ रुपए दे रहे हैं, वो भी उनके परिवार में ही जा रहा है। मगर रिजल्ट आया तो पासा पलट गया था। राजनेताओं को किसी नेशनल एजेंसी से इस पर काम करवाना चाहिए कि आखिर क्या बात है कि कर्मचारी सत्ताधारी पार्टी को वोट नहीं देते? कहां पर चूक होती है? इससे राजनेताओं को ही फायदा होगा...इससे बड़ा वोट बैंक को साधने का रास्ता भी निकलेगा।

किस्मत अपनी-अपनी

98 बैच रापुसे अधिकारी प्रफुल्ल ठाकुर को आईपीएस अवार्ड हो गया मगर उनके एक रैंक उपर राजेंद्र भैया का लिफाफा बंद हो गया। उनके खिलाफ कोई मामला है, जिससे उनको आईपीएस नहीं मिला। प्रफुल्ल के बाद 99 बैच खाली है। इसके बाद 2000 बैच के विजय पाण्डेय का नंबर लग गया। इस तरह प्रफुल्ल और विजय के रूप में छत्तीसगढ़ में दो आईपीएस और बढ़ गए। वैसे रापुसे का 98 बैच किस्मत वाला है। विजय अग्रवाल एसपी के तौर पर चौथा जिला बलौदा बाजार कर रहे हैं। रजनेश सिंह धमतरी, नारायणपुर के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इसी तरह राजेश अग्रवाल, रामकृष्ण साहू का तीसरा जिला चल रहा है। मगर इन सबसे आगे हैं, प्रफुल्ल ठाकुर। वे बिना आईपीएस हुए ही चार जिले के एसपी रह चुके हैं। जबकि, इस बैच के चार आईपीएस को अभी तक कोई जिला नहीं मिला है। चलिये किस्मत अपनी-अपनी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ में बड़ा प्रशासनिक बदलाव होने वाला है?

2. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ में अब सहकारिता के कामों में तेजी आने वाला है?