रविवार, 6 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash: लालफीताशाही का नमूना

 तरकश, 6 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

लालफीताशाही का नमूना

छत्तीसगढ़ में डॉयल 112 की गाड़ियां डेढ़-डेढ़, दो-दो लाख किलोमीटर चलकर अंतिम समय में पहुंच गई है। वहीं, अधिकांश थानों की गाड़ियां कंडम हो चुकी हैं। मगर इसका दूसरा स्याह पहलू यह है कि रायपुर से लगे अमलेश्वर बटालियन में 600 से अधिक नई बोलेरो गाड़ियां दो साल से रखे-रखे सड़ रही हैं। वजह यह कि 365 बोलेरो खरीद तो ली गई मगर डॉयल 112 सर्विस को ऑपरेट करने के लिए वेंडर फायनल नहीं हो पाया। तब तक थानों की गाड़ियों को रिप्लेस करने के लिए 300 नई बोलेरो और आ गईं। पीएचक्यू के अधिकारियों ने एक्स्ट्रा दिमाग लगाते हुए तय किया कि थानों के लिए आई गाड़ियों को डॉयल 112 के लिए रख लिया जाए और डॉयल 112 के नाम से दो साल पहले ली गई 370 बोलेरो को थानों को दे दिया जाए। पीएचक्यू के अफसर चाहते तो ये काम खुद ही कर सकते थे...इसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। मगर पीएचक्यू ने अपना भार टालने के लिए मंत्रालय को लिख मारा। अब स्थिति यह है कि महीनों से नोटशीट किधर घूम रही है, ये बताने कोई तैयार नहीं। किन गाड़ियों को थाने को दिया जाए और किसे डॉयल 112 को, जब तक यह वीराट फैसला होगा, तब तक उन गाड़ियों की स्थिति क्या होगी, आप समझ सकते हैं। इसे ही कहते हैं लालफीताशाही...जनता की गाढ़ी कमाई का 50-100 करोड़ स्वाहा भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है।

रायपुर टॉप पर

किराये की गाड़ियां दौड़ाने के मामले में कवर्धा और राजनांदगांव के बाद रायपुर पुलिस अब टॉप पर आ गया है। रायपुर में हर महीने साढ़े छह सौ से सात सौ गाड़ियां किराये पर ली जा रही हैं। डीजीपी अशोक जुनेजा और खुफिया चीफ अमित कुमार की पुलिस अधीक्षकों की क्लास के बाद हालाकि, कुछ जिलों में किराये की गाड़ियों में कमी आई थी। मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोई कप्तान बुरा नहीं बनना चाहता। दरअसल, पुलिस महकमे में किराये में चलने वाली 80 परसेंट से अधिक गाड़ियां पुलिस परिवारों की है। आरआई से लेकर मुंशी, दरोगा, डीएसपी सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में दौड़ रही है। वेतन से चार गुना, पांच गुना इंकम इन गाड़ियों से आ रहा। कुछ अफसरों ने तो बकायदा ट्रेव्लर्स कंपनी बना लिया है। अब आप समझ सकते हैं...एसपी आखिर अपने ही घर में कितने लोगों से बुरा बनें...आखिर पोलिसिंग का काम भी उन्हीं लोगों से लेना है। ऐसे में, वित्त को ही कुछ करना होगा। हालांकि, फायनेंस सिकरेट्री मुकेश बंसल ने कुछ महीने पहले वाहनों की गड़बड़ियों के मामले में पीएचक्यू से कैफियत मांगी थी। पता नहीं, क्या जवाब आया।

अफसरों की क्लास

सुशासन तिहार में मैदानी इलाकों का हकीकत जानने के बाद सीएम विष्णुदेव साय योजनाओं के क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति परखने विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। सीएम का रिव्यू इस बार जरा दबाकर हो रहा है। वैसे भी डेढ़ साल में सीएम अब अफसरों और विभागों को काफी समझ चुके हैं तो सीएम सचिवालय के अफसरों का भी होमवर्क तगड़ा है...सो, इधर-उधर होने पर टोक दिया जा रहा। इस रिव्यू की सबसे खास बात यह है कि विभागों के अफसर आंकड़ों की बाजीगरी नहीं दिखा पा रहे। क्योंकि, सीएमओ के पास पहले से डायरेक्ट्रेट से लेकर जिलों तक का पूरा डेटा आ चुका है।

एक्सटेंशन का रिकार्ड

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के नाम एक और रिकार्ड दर्ज हो गया। फर्स्ट एक्सटेंशन का। छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी मुख्य सचिव का सेवा विस्तार नहीं हुआ था। मगर क्रीटिकल सिचुएशन में ही सही, अमिताभ को तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। इससे पहले सुनील कुजूर और आरपी मंडल के एक्सटेंशन के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। पर मंजूरी मिली नहीं। बहरहाल, अमिताभ के तीन महीने बढ़ने की वजह से उनका कार्यकाल अब चार साल 10 महीने हो जाएगा। संभवतः यह भी अपने आप में एक रिकार्ड होगा। नेट पर सर्च करने पर इतनी लंबी अवधि वाले किसी मुख्य सचिव का नाम मिला नहीं।

अगला चीफ सिकरेट्री

अब यह पब्लिक डोमेन में आ चुका है कि दिल्ली से आए एक फोन कॉल के बाद किस तरह सिचुएशन ने यूटर्न लिया और चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को विदाई की बेला में तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। मगर सवाल उठता है, तीन महीने बाद कौन? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में कोई नहीं है। कारण कि गेंद अब केंद्र के पाले में जा चुका है। हो सकता है, बदले हालात में भारत सरकार अब अमित अग्रवाल को डेपुटेशन ब्रेक कर छत्तीसगढ़ भेज दे। या फिर विकासशील को मनीला से वापिस बुला लिया जाए। चर्चाएं विकासशील को बुलाने की भी हैं। विकासशील इस समय एशियाई विकास बैंक मनीला में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। विकासशील को फिलिपिंस से वापिस बुलाने वालों का तर्क यह है कि किसी भी आईएएस को पहले अपना कैडर देखना चाहिए, च्वाइस की सर्विस इसके बाद आती है। इन दोनों का अगर नही हुआ तो फिर मनोज पिंगुआ को सरकार आजमा सकती है। हालांकि, रेखाएं अगर सुब्रत साहू के हाथों में होगी तो फिर उन्हें कौन रोक पाएगा। हालांकि, कुल जमा सार यह है कि पहली बार में जब छत्तीसगढ़ के अफसरों को दरकिनार कर अगर अमिताभ को एक्सटेंशन दिया गया, तो उससे मैसेज तो यही निकला कि अब उपर से ही कोई आएगा।

इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन

डॉक्टर डे के दिन रायपुर में एक ऐसी घटना हुई, जिसे होना नहीं था। और 25 साल में ऐसा कभी हुआ भी नहीं। असल में, कार्यक्र्रम के कोआर्डिनेशन में चूक हुई। कार्यक्रम हो रहा था मेडिकल कॉलेज में, मगर कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन को पूछा नहीं गया। इसलिए, वे पहुंची भी नहीं। डॉक्टर डे के कार्यक्रम में कॉलेज के डीन नीचे कहीं कोने में बैठे हुए थे और जिनका उस कार्यक्रम से कोई नाता नहीं, वे नेता मंचासीन थे। बेशक, इसमें विरोधियों का हाथ रहा होगा, मगर इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन की चूक से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

हाल-बेहाल

पिछले पांच साल में कई स्वास्थ्य मंत्री, सिकरेट्री और डायरेक्टर की आंबेडकर अस्पताल का मुआयना करती फोटूएं मीडिया में आई होंगी, मगर किसी ने उन होनहारों के हॉस्टल का जायजा लेने की जरूरत नहीं समझी कि वे किस हाल में रह रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के शौचालयों से ज्यादा बुरी स्थिति में मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के शौचालय हैं। जाहिर है, मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट प्रदेश के क्रीम होते हैं, उसमें भी सूबे के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रायपुर के। याने क्रीम में क्रीम। उनका ये हाल तो बाकी मेडिकल कॉलेज का आप समझ सकते हैं...भगवान ही मालिक होंगे।

रमन-धर्मजीत की जोड़ी

वैसे तो विधानसभा उपाध्यक्ष की खास जरूरत पड़ती नहीं। सभापति के पैनल से काम चला लिया जाता है। मध्यप्रदेश में 2020 के बाद कोई उपाध्यक्ष नहीं बना है। छत्तीसगढ़ में फिर भी लगभग हर विधानसभा में उपाध्यक्ष रहे हैं। उपाध्यक्ष का पद पहले विपक्ष को दिया जाता था। अजीत जोगी सरकार के दौरान बीजेपी के बनवारी लाल अग्रवाल उपाध्यक्ष रहे। मगर किसी बात पर आवेश में आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, उसके बाद यह पद विपक्ष से छीन गया। बहरहाल, इस छठवीं विधानसभा में अभी तक उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। पलड़ा धर्मजीत सिंह का भारी लग रहा है। सतीश भैया के नाम से जाने जाने वाले धर्मजीत पहले भी विस उपाध्यक्ष रह चुके हैं। उनके साथ विडंबना यह रही कि जिस हाइट के वे हैं, सियासत में उन्हें वह मुकाम मिला नहीं। मध्यप्रदेश विधानसभा में उन्हें उत्कृष्ठ विधायक का सम्मान मिला था। उनके सामने जन्म लिए लोग आज डिप्टी सीएम और मंत्री हैं, मगर सतीश भैया विधायक से उपर नहीं पहुंच पाए। असल में, रेखाओं का खेल कहें कि उनकी राजनीति हमेशा उल्टी दिशा में बहती रही। जब दिग्विजय सिंह का राज था, तो वे विद्याचरण के खेमे में थे। अजीत जोगी उन्हें छोटे भाई कहते रहे मगर कुछ दिया नहीं। 2018 में जब कांग्रेस का राज आया तो वे अजीत जोगी के साथ रहे। कांग्रेस में अगर होते भी तो उन्हें कुछ मिलता नहीं, क्योंकि भूपेश बघेल के साथ उनके गुण मिलते नहीं। और अब बीजेपी में आए तो बीजेपी वाले उन्हें अपना मानने तैयार नहीं। अलबत्ता, बीजेपी में मारामारी के बीच धर्मजीत ने कोई बड़ी ख्वाहिश पाली नहीं होगी। वैसे, विस उपाध्यक्ष के लिए धर्मजीत से कोई बेस्ट कंडिडेट हो भी नहीं सकता। सबसे अनुभवी, प्रखर वक्ता। स्पीकर डॉ0 रमन सिंह के साथ जोड़ेगी जमेगी भी। दोनों की केमेस्ट्री पुरानी है। 98 में रमन सिंह के पास जब अचानक केंद्रीय राज्य मंत्री का शपथ लेने के लिए फोन आया तो उनके पास ठीकठाक कुर्ता नहीं था। रेडिमेड उस समय इतना प्रचलित नहीं हुआ था और न रमन सिंह के साइज का कुर्ता मिल पाता। रमन के डीलडौल के धर्मजीत सिंह वहां थे। उनके पास एक नया कुर्ता था। बताते हैं, रमन सिंह ने उसे पहन केंद्रीय राज्य मंत्री की शपथ ली थी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. साढ़े छह साल के लंबे कार्यकाल के बाद भी आईपीएस पवनदेव पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं?

2. सफेद हाथी बनता जा रहा चिप्स की क्या कोई उपयोगिता रह गई है?

Chhattisgarh Tarkash 2025: रेखाओं का खेल है मुकद्दर...

 तरकश, 29 जून 2025

संजय के. दीक्षित

रेखाओं का खेल है मुकद्दर...

जगजीत सिंह का ये मशहूर गजल, छत्तीसगढ़ के राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के लिए मौजू है। अब देखिए न, दिसंबर 2023 में जब सरकार बदली थी तो लोग दावे कर रहे थे, मुख्य सचिव अमिताभ जैन को हटाकर रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन बनाया जा रहा है। मगर अमिताभ, पूरे अमिताभ निकले। उन्होंने बचा डेढ़ साल कंप्लीट किया। और अब? रेखाओं का खेल देखिए, जिन अफसरों की नए सीएस बनने की अटकलें थी, उन्हें अब रेवेन्यू बोर्ड में दिन गुजारना पड़ेगा। जाहिर है, ब्यूरोक्रेसी में इससे पहले बीकेएस रे, पी राघवन, बीके कपूर, नारायण सिंह और सीके खेतान जैसे आईएएस रेखाओं से मात खा चुके हैं। इसी तरह राजनीति में भी...। रेखाओं के फेर में दिलीप सिंह जूदेव रमन सिंह से पिछड़ गए। वरना, ट्रेप कांड नहीं हुआ होता तो हो सकता था कि जूदेव सीएम बने होते। टीएस सिंहदेव का तो ताजा उदाहरण है। रेखाओं के मारे टीएस बंद कमरे में सिर्फ तीन लोगों के बीच भी ये नहीं कह सके कि मेरी उम्र हो रही है...मुझे पहले मौका दे दिया जाए। जाहिर है, वे इतना भर बोल गए होते तो छत्तीसगढ़ की राजनीति आज अलग दिशा में होती। मगर रेखाएं भूपेश बघेल की हथेली में थीं। इसी तरह सांसद के बाद हवाई जहाज के टेकऑफ की तरह प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने वाले अरुण साव ने कभी कहां सोचा था कि बगीया गांव से विष्णुदेव साय आ जाएंगे। 15 साल सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके डॉ. रमन सिंह भी कम उम्मीद से थोड़े थे। मगर इस बार मुकद्दर ने साथ नहीं दिया। टंकराम वर्मा तथा श्याम बिहारी जायसवाल मंत्री बनेंगे और बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत मंत्रिमंडल से बाहर बैठेंगे, ये भी कहां किसी ने सोचा था? जगजीत सिंह की गजल की पंक्तियां सही इन सभी पर सही बैठती है...रेखाओं का खेल है मुकद्दर....रेखाओं से मात खा रहे हो...।

CS बड़ा या CM सचिवालय?

चीफ सिकरेट्री राज्य का प्रशासनिक मुखिया होता है। कैबिनेट का सिकरेट्री भी। मुख्य सचिव के पावर को इससे समझा जा सकता है कि सीएम तक जाने वाली कोई भी फाइल बिना सीएस के अनुमोदन के नहीं जाती। मगर वक्त के साथ प्रशासनिक स्वरूप बदलता गया। खासकर, पिछले डेढ़-दो दशक में...राज्यों में सीएम सचिवालय ताकतवर होता गया। छत्तीसगढ़ में ही देखें तो सुनिल कुमार, विवेक ढांड, शिवराज सिंह के सिकरेट्री टू सीएम रहने तक सीएम सचिवालय को कोई जानता नहीं था। 2008 के बाद बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह और सुबोध सिंह जैसे अधिकारियों से सीएम सचिवालय का ग्लेमर बढ़ा। बावजूद इसके विवेक ढांड तक सीएस का वजूद कुछ हद तक बचा रहा। ढांड अपने पसंद का काम करा लेते थे, तो आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर में उनके चहेते अफसरों का नाम नोटशीट में जुड़ जाता था। मगर मार्च 2018 में उनके रिटायर होने के बाद छत्तीसगढ़ में सीएस नाम की संस्था गौण होती चली गई। सीएम सचिवालयों के भारी पड़ने की वजहें भी हैं। राज्य में सारे अधिकार सीएम में समाहित होते हैं। उस सीएम के साथ उनके सचिव 12 से 15 घंटे साथ रहते हैं। कई बार कोई मीटिंग या सीएम को दौरा पर निकलना हो तो सिकरेट्री सुबह आठ बजे हाउस पहुंच जाते हैं। सरकारी मीटिंगों के बाद सीएम से अहम चर्चाओं में कई बार आधी रात हो जाती है। सीएम से जुड़ी बारीक चीजों पर भी सीएम सचिवालय के अधिकारियों की पैनी नजरें होती हैं। जाहिर है, इतना क्लोजनेस के बाद पावर तो बढ़ेगा ही।

लिफाफे में नाम बंद

छत्तीसगढ़ के नए चीफ सिकरेट्री के नाम को लेकर भले ही संशय की स्थिति दिखलाई पड़ रही है मगर दबी जुबां से यह स्वीकार करने वालों की कमी नहीं है कि नाम का लिफाफा बंद हो चुका है। दरअसल, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय हाल में दिल्ली गए थे। अमित शाह के साथ बीएसएफ की फ्लाइट से वाराणसी गए और उसके बाद वहां से दिल्ली। इस दरम्यान ऐसा कुछ हुआ कि हाईकमान ने सरकार की पसंद पर मुहर लगा दी। अब सवाल है कि सरकार की पसंद कौन? तो इसका जवाब मुख्यमंत्री के स्वभाव और उनके च्वाइस से आप अंदाज लगा सकते हैं कि किस तरह के अफसर उन्हें पसंद होंगे...वही इस सवाल का उत्तर होगा। हां, ये इशारा अवश्य है कि नया सीएस साफ-सुथरी छबि का होगा। इसके बाद भी आप अंदाज नहीं लगा पा रहे तो फिर 30 घंटे का वेट कर लीजिए। इसके भीतर ही नए सीएस का नाम सामने आ जाएगा।

CS का बेटा CS?

छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री के लिए पांच दावेदार हैं, उनमें सुब्रत साहू के पिता पड़ोसी राज्य ओड़िसा के चीफ सिकरेट्री रह चुके हैं। सीनियरिटी में सुब्रत रेणु पिल्ले के बाद दूसरे नंबर पर है। अगर वे सीएस बनेंगे तो देश में पहली बार ऐसा होगा कि सीएस का बेटा सीएस बना। हालांकि, रेणु पिल्ले के पिता भी आंध्रप्रदेश के नामचीन आईएएस अधिकारी रहे हैं। वे एडिशनल चीफ सिकरेट्री से रिटायर हुए। चीफ सिकरेट्री के मजबूत दावेदारों में से एक मनोज पिंगुआ के पिता राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं तो उन्हीं की बैच की ऋचा शर्मा के पिता रायपुर में जेलर रहे। अब देखते हैं इनमें से किसको सूबे के प्रशासनिक मुखिया की कुर्सी मिलती है।

सुखी मंत्री

छत्तीसगढ़ में अभी हैं तो 10 मंत्री मगर इनमें से दो-तीन ही सुखी याने अफसरशाही की दृष्टि से कंफर्टेबल होंगे। बाकी मंत्रियों का न तो अपना पारफर्मेंस ठीक है और न ही वे जो करना चाह रहे, सिकरेट्री उन्हें करने दे रहे। कुछ मंत्री अपनी महिला सचिवों से संतुष्ट नहीं हैं...वे अपनी चलाना चाहते हैं मगर सख्त महिला अधिकारी उनकी चलने नहीं दे रहीं। डेपुटेशन से लौटे एक तेज-तर्रार सिकरेट्री ने एक मंत्रीजी के सपनों को तोड़ दिया। मंत्रीजी अब खुद ही रजिस्टर लेकर 10-10, 20-20 हजार का हिसाब देख रहे। कंफर्टेबल मंत्रियों में आप अरुण साव, ओपी चौधरी, टंकराम वर्मा को मान सकते हैं। अरुण साव के सिकरेट्री कमलप्रीत सिंह की खासियत यह है कि जिसके साथ उन्हें लगा दो, मंत्री को दिक्कत नहीं होती। ओपी चौधरी के सचिवों की तो बात ही अलग है...चेले, दोस्त, यार जो बोल लो। अविनाश चंपावत भी टंकराम वर्मा को कभी दुखी नहीं होने देते।

CM के सिकरेट्री CS

मुख्यमंत्री के सचिव रहने के बाद राज्य का चीफ सिकरेट्री बनने वाले आईएएस अधिकारियों की बात करें, तो चार अफसरों के नाम जेहन में आते हैं। इनमें शिवराज सिंह, सुनिल कुमार और विवेक ढांड का नाम प्रमुख है। रमन सिंह की पहली पारी में दिल्ली डेपुटेशन से लौटने के बाद शिवराज सिंह प्रमुख सचिव टू सीएम बनाए गए, फिर आरपी बगाई के रिटायर होने पर 2007 में चीफ सिकरेट्री बने। इसके बाद 2011 में सुनिल कुमार मुख्य सचिव बनाए गए। इससे पहले 2000 से 2003 तक वे अजीत जोगी के सचिव रह चुके थे। सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद 2014 में विवेक ढांड मुख्य सचिव नियुक्त किए गए। वे भी रमन सिंह की पहली पारी में उनके सिकरेट्री रहे। यद्यपि, शिवराज सिंह के दिल्ली से आने के बाद ढांड के उपर शिवराज प्रमुख सचिव टू सीएम बन गए थे। उधर, आरपी मंडल अजीत जोगी सचिवालय में सिकरेट्री तो नहीं, पर डिप्टी सिकरेट्री जरूर रहे। सीएम सचिवालय से उन्हें बिलासपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा गया था। इस समय सीएस बनने वाले पांच दावेदारों में सिर्फ सुब्रत साहू सीएम सचिवालय में काम कर चुके हैं। गौरव द्विवेदी को हटाने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुब्रत को अपने सचिवालय में पहले प्रमुख सचिव बनाया। फिर टाईम से करीब डेढ़ साल पहले प्रमोशन देते हुए उन्हें एसीएस बनाया गया। इतना जानने के बाद अब स्वाभावित उत्सुकता होगी कि शिवराज, सुनिल, विवेक और मंडल की तरह क्या सुब्रत भी मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंच पाएंगे।

आधे घंटे में पोस्टिंग

चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के बाद अब तक जिन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली है, उनमें शिवराज सिंह, सुनिल कुमार, विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर और आरपी मंडल शामिल हैं। शिवराज सिंह को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था। हालांकि, वहां उनका मन नहीं लगा तो फिर सरकार ने बिजली कंपनियों का चेयरमैन अपाइंट कर दिया। इसके बाद सुनिल कुमार राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष बनाए गए। मगर उनका आर्डर करीब तीन महीने बाद निकला। विवेक ढांड रेरा सीएस रहते रेरा के चेयरमैन सलेक्ट हो गए थे, इसलिए उन्हें पोस्टिंग का इंतजार नहीं करना पड़ा। अजय सिंह को सीएस से हटाकर भूपेश बघेल सरकार ने प्लानिंग कमीशन भेज दिया था, सो रिटायरमेंट के बाद वे वहीं कंटीन्यू हो गए थे। उनके बाद आए सुनील कुजूर को भी रिटायरमेंट के करीब छह महीने बाद सहकारिता निर्वाचन का कमिश्नर बनाया गया। सुनील कुजूर की ताजपोशी में वक्त इसलिए लगा क्योंकि, सरकार को निर्वाचन से जीएस मिश्रा को हटाने में वक्त लगा। इन सभी में सबसे अधिक किस्मती रहे आरपी मंडल। 30 नवंबर 2020 को रिटायर होने के बाद भूपेश सरकार ने शाम 04.35 बजे अमिताभ जैन का सीएस बनाने का आदेश निकाला और उसके ठीक 10 मिनट बाद 04.45 बजे मंडल को नया रायपुर विकास प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त करने का आर्डर जारी हो गया। बताते हैं, अमिताभ की नियुक्ति और मंडल को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग आदेश एक साथ तैयार हुआ था, जारी करने में 10 मिनट का गैप हुआ। इस बार भी तैयारी कुछ ऐसी ही थी। मगर सीआईसी का मामला हाई कोर्ट में फंस गया। जीएडी ने आखिरी मौके पर हाथ-पैर खुब चलाया मगर हाई कोर्ट में केस की लिस्टिंग नहीं हो सकी।

प्रमोशन के बाद झटका

कई महीनों की मशक्कत के बाद सूबे के 46 इंस्पेक्टर प्रमोट होकर डीएसपी बने। इस प्रमोशन के लिए उन्हें बड़े पापड़ बेलने पड़े। दावेदारों से व्यवस्था कर पांच-छह पेटी खर्च किया गया। जाहिर है, दरोगा हो या डीएसपी, आजकल बिना लक्ष्मीनारायण का काम कहां होता है। ऐसे में, पीएससी से लेकर मंत्रालय तक फाइल खिसकाने के लिए स्पेशल एफर्ट करना पड़ा। मगर सरकार ने उनके इस संघर्ष का सम्मान नहीं किया। 46 में से 21 को एक झटके में बस्तर भेज दिया। दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर जाकर बेचारे पछता रहे हैं...इससे बढ़ियां तो बिना प्रमोशन के थे। अफसरी करने का शौक ले डूबा...थानेदारी गई ही, उपर से बस्तर पटक दिया गया।

ऑनलाइन वसूली

एसीबी के एक्शन मोड में आने के बाद भी भ्रष्ट तंत्र पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। पुलिस महकमे के कुछ लोग अब नया इनोवेशन किए हैं...ऑनलाईन करप्शन का। आपको याद होगा, पिछले साल दो-तीन ऐसे मामले आए थे, जिसमें मुंशी और सब इंस्पेक्टर ने एकाउंट में ऑनलाइन रिश्वत ले ली थी। महकमे के लोग अब सिस्टमेटिक ढंग से इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। खासकर, गाड़ियों की चेकिंग में। असल में, कई बार लोगों के पास फाईन पटाने के लिए कैश नहीं होते। उपर से पुलिस वालों की कोशिश होती है कि पेमेंट ऑनलाईन हो जाए। हाल में एक जिले से होकर गुजरना हुआ, वहां क्यूआर कोड के जरिये फाईन लिया जा रहा था। पता करने पर लोगों ने बताया कि डिजिटल युग में डिजिटल रिश्वत का ये नया आईडिया है। इसमें पूरी ईमानदारी बरती जाती है। प्रायवेट व्यक्ति थाने से किसी-न-किसी रुप में जुर्म-जरायम के जरिये जुड़ा होता है। जुर्माने से आए पैसे वो पूरी ईमानदारी के साथ पुलिस को दे देता है। उसमें से 10 परसेंट कमीशन उसे मिल जाता है। इसके अलावा पुलिस वाले से संबंध प्रगाढ़ होने से वह जुर्म की दुनिया का दो-चार काम थाने वालों से करा लेता है, वह अलग है। पुलिस मुख्यालय को इसके लिए कप्तान साहबों के नाम सर्कुलर जारी करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. 30 जून को छत्तीसगढ़ रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन किस आईएएस अधिकारी को बनाया जाएगा?

2. क्या ये सही है कि मंत्रीपरिषद के अचानक विस्तार की सूचना देकर सरकार लोगों को चौंकाने वाली है?