रविवार, 13 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: कमीशनखोरी का चिप्स

 तरकश, 13 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

कमीशनखोरी का चिप्स

छत्तीसगढ़ बनने के दो साल बाद सीएम अजीत जोगी ने स्टेट में आईटी के बेहतर इस्तेमाल के लिए छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाईटी याने ’चिप्स’ का गठन किया था। आईएएस अमित अग्रवाल इसके फर्स्ट सीईओ बनाए गए। बाद में रमन सिंह के कार्यकाल में रायपुर के सिविल लाईन में चार मंजिला भव्य ऑफिस बनाया गया। मगर पिछले कुछ सालों में स्थिति यह है कि चिप्स अब सफेद हाथी बनकर रह गया है। इस संस्था का रिकार्ड इतना खराब हो चुका है कि अब उस पर मंत्रालय के सिकरेट्री भी भरोसा नहीं कर रहे...कोई अहम काम चिप्स को नहीं सौंपा जा रहा। क्योंकि, एक तो अनाप-शनाप चार्ज बता दिया जाएगा, फिर टाईम पर होगा नहीं और हुआ तो कब तक काम करेगा, कहा नहीं जा सकता। जाहिर है, भारत सरकार का साफ्टवेयर नहीं होता तो सूबे में मंत्रालय से लेकर जिलों तक ई-ऑफिस लागू नहीं हो पाता। चिप्स के चलते ही पुलिस इंस्पेक्टरों की भर्ती व्यापम में लटकी रही। थक-हारकार गृह विभाग को पीएससी से बात करनी पड़ी। दरअसल, चिप्स भाई-भतीजावाद और कमीशनखोरी का अड्डा बनकर रह गया है। साफ्टवेयर तैयार करने में अपनों को उपकृत करना या फिर भारी कमीशन की डिमांड...ऐसे में चिप्स से क्वालिटी वर्क की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। हालांकि, सरकार ने एक आईएफएस अधिकारी मयंक अग्रवाल को चिप्स का सीओओ बनाया है। मगर यह भी सही है कि चिप्स के वर्तमान सीईओ प्रभात मलिक के पास तीन-तीन एडिशनल चार्ज है। चिप्स के सीईओ के अतिरिक्त ज्वाइंट सिकरेट्री आईटी, ज्वाइंट सिकरेट्री गुड गवर्नेंस और डायरेक्टर इंडर्स्ट्री। बहरहाल, आईटी के दौर में अब वक्त आ गया है कि चिप्स को पटरी पर लाया जाए।

खजाने को करोड़ों की बचत

जाहिर है, टेक्नोलॉजी में दुनिया कहां से कहां जा रही है...ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने अपने देश में बैठे-बैठे पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को सटिक निशाना लगाते हुए उन्हें उड़ा दिया था। और छत्तीसगढ़ में ये हाल है कि धान के लिए पटवारी से रिपोर्ट मांगी जाती है। और पटवारी पैसे लेकर बंजर और परती जमीन में भी 21 क्विंटल धान उपजा देते हैं। चिप्स अगर साफ्टवेयर तैयार कर दे तो रायपुर में बैठे-बैठे बताया जा सकेगा कि किस किसान के खेत में कितना बोया गया है और कहां नहीं। चिप्स चाहे तो ये भी पता चल सकता है कि कितना धान दूसरे राज्यों से आ रहा तो कितना धान बिचौलिये और राईस मिलर अलटी-पलटी कर सरकार के खजाने को चूना लगा दे रहे हैं। एक मोटे अनुमान के तहत मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं होने की वजह से सरकार को 30 परसेंट एक्स्ट्रा धान खरीदना पड़ता है। 2024-25 में 149 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया, ये सब कलाबाजियां नहीं होती तो सरकार को कम-से-कम 40 से 50 मीट्रिक टन कम परचेज करना पड़ता। याने चार से पांच करोड़ क्विंटल। पांच करोड़ क्विंटल से अगर 3100 से गुणा करें तो 1.55 खरब रुपए होता है। इससे समझा जा सकता है कि खजाने का कितना पैसा बचता। यह पैसा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल पर व्यय होता, जो माफियाओं की जेब में जा रहा है। टेक्नोलॉजी की मदद से राईस मिलरों के झोल का पता लगाया जा सकता है कि कितने वॉट बिजली का उपयोग किया गया। अधिकांश राईस मिलों की जितनी कैपिसिटी नहीं होती, उससे अधिक मिलिंग दिखा दिया जाता है। कहने का आशय यह है कि चिप्स को अगर स्ट्रांग कर दिया जाए तो पारदर्शिता के साथ भ्रष्टाचार को रोकने में भारी मदद मिल सकती है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी चोट

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने इस हफ्ते एक प्रेस नोट जारी किया, उसके मजमूं से लगता है कि सरकार अब जीरो टॉलरेंस को लेकर काफी अग्रेसिव मोड में आ गई है। प्रेस नोट के कंटेंट और भाषा से प्रतीत हो ही रहा...सरकार के करीबी लोगों का भी मानना है कि विधानसभा सत्र के बाद सरकार करप्शन पर प्रभावी चोट करेगी। 22 एक्साइज अफसरों का निलंबन इसी का हिस्सा था। एसीबी को भी सरकार ने फ्री हैंड दिया है। राज्य बनने के बाद यह पहली बार हुआ कि चार-चार आईएएस अधिकारी को पूछताछ के लिए एसीबी मुख्यालय बुलाया जा चुका है। सीजीएमएससी घोटाले में सीजीएमएससी की वर्तमान और पूर्व एमडी, पूर्व हेल्थ डायरेक्टर और एनएचएम की एमडी से एसीबी हेडक्वार्टर में घंटों की पूछताछ की गई। इनमें सिर्फ एक प्रमोटी आईएएस है। बाकी तीन आरआर आईएएस अफसर हैं। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरह 2023 के विधानसभा चुनाव में करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा रहा, उसी तरह 2028 के चुनाव में करप्शन पर जीरो टॉलरेंस को मुद्दा बनाया जाएगा। अनेक स्टडी में ये बात सामने आई भी है कि विकास कार्य एक बार ना भी हो तो चलेगा मगर करप्शन पर प्रहार जनता को प्रभावित करता है। पड़ोसी राज्य ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हर साल कुछ अफसरों को कौवा मारकर लटका देते थे...और चुनाव जीतते रहे। छत्तीसगढ़ में भी अब जीरो टॉलरेंस को टॉप प्रायरिटी बनाया जाएगा।

डीजीपी को भरोसा?

छत्तीसगढ़ में पूर्णकालिक डीजीपी न होने से परेशानियां अब परिलक्षित होने लगी है। जिला पुलिस को पेटी कंट्रक्शन रिपेयरिंग के नाम पर हर साल पांच से 10 लाख रुपए का बजट जारी किया जाता था, अभी तक वह नहीं हो पाया है। इस पैसे से थानों या पुलिस के भवनों की मरम्मत के छोटे-मोटे काम होते थे। वैसे प्रभारी डीजीपी अरुणदेव के फ्रंट फुट पर नहीं खेलने की जायज वजहें भी हैं। आखिर, दूध का जला...मुहावरा है ही। सितंबर 2024 में गौतम को प्रभारी डीजीपी बनाने प्रॉसेज प्रारंभ होने वाला था कि दिल्ली से फोन आ गया...अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव भेजिए। एसीएस होम मनोज पिंगुआ ने प्रस्ताव भेजा और 15 घंटे के भीतर दिल्ली से ओके होकर आ गया। फिर, 30 जून को चीफ सिकरेट्री नियुक्ति एपिसोड में जो हुआ, उससे गौतम क्या...प्रदेश की जनता अनभिज्ञ नहीं है। ऐसे में, कोई यह समझे कि गौतम देश के बाकी प्रभारी डीजीपी की तरह छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग में जान लगा दें तो यह भला कैसे संभव है। यद्यपि, यूपी ऐसा स्टेट है कि पिछले तीन बार से वहां प्रभारी डीजीपी अपाइंट हो रहे और वे अपना कार्यकाल पूरा कर रिटायर हो रहे। बहरहाल, छत्तीसगढ़ की बात करें तो सिस्टम को दो काम करना होगा। या तो पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति की जाए या फिर गौतम को कोई खतरा नहीं का भरोसा दिया जाए।

5 विभागों के लिए एक बिल

विधानसभा के मानसून सत्र में इस बार अब तक का सबसे महत्वपूर्ण विधेयक आने वाला है, वह है जनविश्वास अधिनियम विधेयक। यह पहला बिल है, जिसमें एक साथ पांच विभागों के नियम बदलेंगे। इनमें नगरीय प्रशासन, पंचायत, गृह और सहकारिता जैसे विभाग शामिल हैं। यह बिल अलग इस मायने में भी है अलग है कि इसे तैयार करने का दायित्व इन पांचों से अलग किसी तीसरे विभाग को सौंपा गया है। राज्य सरकार ने उद्योग विभाग को इसका नोडल डिपार्टमेंट बनाया है। विभाग के सिकरेट्री रजत कुमार ने पखवाड़े भर के भीतर इस बिल को तैयार कर डाला। बता दें, भारत सरकार के कंसेप्ट पर राज्यों में अंग्रेजों के टाईम के नियम बदले जा रहे हैं।

पेनाल्टी नहीं, अब अर्थदंड

जनविश्वास बिल के पारित होने के बाद छत्तीसगढ़ में छोटे-छोटे मामलों में अब पेनाल्टी या जुर्माना शब्द का उपयोग हमेशा के लिए सामाप्त हो जाएगा। मसलन, अभी तक वाहन चालक अगर चौक पर जेब्रा लाइन को क्रॉस कर गया, या गाड़ी में लायसेंस नहीं है या फिर सड़क पर पंडाल बना दिया, नाली पर स्लैब डालने पर उसे फाईन करने का अधिकार संबंधित संस्थाओं को दिया गया था। आश्चर्य की बात ये कि इन विभाग ने नियम बना दिया था कि फलां नियम को ओवरलुक करने पर इतने साल की सजा और इतने का जुर्माना किया जाएगा। मगर भारतीय दंड विधान में उसका प्रावधान नहीं था। लिहाजा, इस तरह की स्थिति अगर निर्मित हुई तो पहले परिवाद दायर करना होगा। सीजेएम के आदेश पर फिर एफआईआर किया जाएगा। जनविश्वास अधिनियम में इन पेचीदगियों को खतम कर दिया गया है। एक तो अब जुर्माना या पेनाल्टी की बजाए अब अर्थदंड किया जाएगा। इसके पीछे मंशा यह है कि छोटे-छोटे ये मामले अपराध की श्रेणी में नहीं आते और फिर यह भी कि जुर्माना या पेनाल्टी लगाने का अधिकार सिर्फ कोर्ट को है, विभागों को नहीं। जनविश्वास अधिनियम में 50 से लेकर 200, 300 के जुर्माने को हटाकर राशि को बढा दी गई है। पहले निगम कमिश्नरों को जुर्माना करने का अधिकार दिया गया था, उसमें लिखा था कि 5000 रुपए तक निगम आयुक्त या सीएमओ पेनाल्टी कर सकते हैं। इससे प्रभावशाली लोग घोखे से फंस भी गए तो मामूली पेनाल्टी कराकर बच जाते थे। मगर अब इसे 5 हजार फिक्स कर दिया गया है। याने सबके उपर यह लागू होगा। इससे सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। फिर 100 साल पुराने हिसाब से 50 से 100 रुपए पेनाल्टी की नोटिस भेजने में भी अफसरों को हिचक आती थी...उससे अधिक नोटिस पहुंचाने में कर्मचारियों का पेट्रोल जल जाता था। ऐसे में, इसे बड़ा रिफार्म समझा जाना चाहिए।

आखिरी सत्र

विधानसभा का पांच दिन का मानसून सत्र कल 14 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा। विधानसभा के इस टेम्पोरेरी बिल्डिंग का यह आखिरी सेशन होगा। इसके बाद अब 25 साल की यादें शेष रह जाएंगी। अगला शीतकालीन सत्र नवा रायपुर के नवा विधानसभा भवन में होगा। नई एसेंबली को अंतिम रूप देने जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गई है। राज्योत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नए विधानसभा भवन का लोकार्पण कराने की तैयारी चल रही है। विस अध्यक्ष डॉ0 रमन सिंह इसके लिए पीएम मोदी को आमंत्रण देकर आ चुके हैं।

एकमात्र विधायक

छत्तीसगढ़ बनने के बाद प्रथम विधानसभा सत्र से लेकर छठवे तक सिर्फ एक नेता हमेशा विधानसभा में पहुंचता रहा, वो रहे रायपुर के विधायक बृजमोहन अग्रवाल। 1989 में बृजमोहन पहली बार विधायक बनकर एमपी विधानसभा में पहुंचे थे। फिर नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद राजकुमार कॉलेज में पहला सत्र हुआ था, उसमें भी वे मौजूद रहे और जनवरी 2024 के छठवें सत्र में भी। ये अलग बात है कि उनकी इच्छा के विरूद्ध उन्हें प्रमोशन देकर अब लोकसभा भेज दिया गया है। मगर यह कीर्तिमान उनके नाम दर्ज रहेगा कि पहले से लेकर छठवी विधानसभा तक पहुंचते-पहुंचते कई बड़े दिग्गज चुनाव हारे मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने रहे। अलबत्ता, रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे बृजमोहन अग्रवाल के समकक्ष होते।

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