शनिवार, 16 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

 तरकश, 17 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

अब जबकि यह साफ हो चुका है कि दो-एक दिन में विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा, नए मंत्रियों के नामों पर सरगर्मियां बढ़ गईं हैं। शपथ लेने वाले मंत्रियों में गजेंद्र यादव का नाम सबसे उपर बताया जा रहा है मगर उनके बाद दो मंत्रियों का नाम क्लियर नहीं है। सत्ता के गलियारों में पांच नाम अवश्य तैर रहे हैं। मगर वो भी ’इफ’ और ’बट’ के साथ। इन पांच में अमर अग्रवाल, संपत अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, लता उसेंडी और खुशवंत साहेब हैं। चर्चाएं ये भी हैं कि दो नाम यहां से दिल्ली भेजे गए, उनमें खुशवंत साहेब और संपत अग्रवाल शामिल थे। जातीय समीकरण के हिसाब से खुशवंत साहेब का नाम महत्वपूर्ण है तो पार्टी के कोष प्रबंधन की दृष्टि से संपत अग्रवाल का। अलबत्ता, खुशवंत पर अगर मुहर लग गई तो फिर संपत अग्रवाल का दावा कमजोर हो जाएगा। बहरहाल, इन दोनों के अलावे शपथ लेने वाले संभावितों में अमर अग्रवाल, लता उसेंडी और राजेश अग्रवाल का नाम भी प्रमुख है। राजेश अग्रवाल को मंत्री बनाने में एक पेंच ये आएगा कि सरगुजा संभाग से चार मंत्री हो जाएंगे। रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े इस समय सरगुजा से मंत्री हैं। राजनीतिक दृष्टि से अगर इसे समझने की कोशिश करें तो खुशवंत साहेब अगर मंत्री बनते हैं तो फिर लता उसेंडी और संपत अग्रवाल की दावेदारी कमजोर पड़ेगी। फिर सरगुजा से चार मंत्री का इश्यू है ही। ऐसे में, अमर अग्रवाल का पलड़ा भारी होगा। वैसे भी एक बड़ा वर्ग मानता है कि नाम चाहे कोई भी हो...मंत्रिमंडल में एक अनुभवी मंत्री होना चाहिए। मगर होगा वहीं, जो पार्टी और मुख्यमंत्री चाहेंगे। इसके लिए लिफाफा खुलने की प्रतीक्षा करनी होगी। बहरहाल, ये तो एक विश्लेषण हुआ...इस समय चर्चाएं गजेंद्र, खुशवंत और राजेश अग्रवाल की तेज है।

देर आए, दुरूस्त आए

छत्तीसगढ़ में भी अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ हो जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाषण देते हुए इसका ऐलान किया। जाहिर है, देश में बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे गिने-चुने राज्य बचे हैं, जहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हुआ है। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और ओड़िसा तक में इसकी शुरूआत हो चुकी है। यूपी, पश्चिम बंगाल में पहले से लागू है और साउथ के स्टेट में तो 20 साल से ज्यादा हो गया। अब बात करें छत्तीसगढ़ की, तो यहां पुलिस जिस तरह डिरेल्ड हुई है, उसमें कमिश्नर सिस्टम बहुत पहले लागू हो जाना चाहिए था। हालांकि, रमन सरकार के आखिरी टाईम में भी इसकी बात चली थी। पिछली कांग्रेस सरकार में भी सुगबुगाहट हुई थी, मगर कुछ हुआ नहीं। चलिये देर आए, दुरूस्त आए। छत्तीसगढ़ भी अब कमिश्नर सिस्टम वाले राज्य में शामिल हो गया है। बीजेपी सरकार ने पुलिस में रिफार्म की शुरूआत कर दी है। मगर यह भी सही है कि सिर्फ पुलिस कमिश्नर बिठाने से नहीं होगा। रायपुर में जिस तरह क्राईम बढ़ा है, उससे कोई भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। इसके लिए पुलिस कमिश्नर को फ्री हैंड देना होगा। रायपुर में इस समय सबसे बड़ी जरूरत लॉ एंड आर्डर को ठीक करने का है। और यह कड़वा सत्य है कि जब तक राजनीतिक हस्तक्षेप रहेगा, ये हो नहीं पाएगा। पिछली सरकार में पेड और रिचार्ज पोस्टिंगों ने पुलिस का कबाड़ा किया और इस सरकार में पेड के साथ भाई साहब वाली पोस्टिंगें पोलिसिंग को खराब कर कर रही है। कई जिलों में ऐसा हो रहा कि सिफारिशी अफसर एसपी आईजी की सुनना पसंद नहीं कर रहे। पुलिस के इस रिफार्म को सफल बनाने के लिए सिस्टम को कठोर फैसला लेना होगा।

खतरे का अलार्म

राजधानी रायपुर में कानून-व्यवस्था को लेकर खतरे का अलार्म तब बज गया था, जब 2022 में एक लड़की ने नशे में एक युवक को चाकुओं से गोदकर मार डाला था। उसके तुरंत बाद हुए कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने इस घटना का जिक्र करते हुए पोलिसिंग पर सवाल उठाया था। कांफ्रेंस के बाद पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू करने पर सरकार गंभीर भी दिखी थी...फर्स्ट कमिश्नर कौन होगा, इस पर मंथन भी प्रारंभ हो गया था। मगर परदे के पीछे पता नहीं क्या हुआ कि सरकार ने उसे ड्रॉप कर दिया। बहरहाल, रायपुर में जिस तरह की घटनाएं बढ़ी है, उससे हर छोटा-बड़ा हर आदमी असुरक्षित महसूस कर रहा है। रायपुर में तीन युवाओं की अकारण बेरहमी से की गई हत्या और आरोपियों द्वारा विक्ट्री साइन दिखाने के बाद तो बड़े लोग भी सहम गए हैं। एक आईएएस अफसर ने कहा, हमारे पास गन मैन भी नहीं। न गाड़ी में बत्ती। राह चलते किसी की बाइक कार से टकरा जाए और नशे में चाकू चला दे, कोई भरोसा नहीं। सही है...2022 में लड़की की चाकूबाजी के बाद ही सिस्टम की आखें अगर खुल गई होती तो राजधानी की पोलिसिंग आज शीर्षासन नहीं कर रही होती।

कौन होगा फर्स्ट कमिश्नर?

दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में डीजी लेवल के आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर होते हैं। रायपुर में किस स्तर के अफसर को कमिश्नर बनाया जाएगा, सरकार के तरफ से अभी कोई संकेत नहीं है। मगर यह तय है कि यहां आईजी या एडीजी लेवल का ही कोई कमिश्नर होगा। एडीजी में प्रदीप गुप्ता, विवेकानंद, अमित कुमार और दीपांशु काबरा में से कोई नाम हो सकता है। वैसे सबसे बेस्ट स्थिति यह होगी कि इन एडीजी, आईजी में से किसी को कमिश्नर बना उनके नीचे एक तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी को एडिशनल कमिश्नर बिठा दिया जाए। रायपुर के एक पड़ोसी जिले में एक कप्तान से आजकल अपराधी से लेकर पुलिस महकमा त्रस्त महसूस कर रहा है। अपराधियों से गलबहियां करने वाली उस जिले की पुलिस को एसपी की अतिसक्रियता रास नहीं आ रही। रायपुर को इस वक्त इसी तरह के अधिकारियों की दरकार है। कमिश्नर के लिए अमरेश बढ़ियां च्वाइस हो सकते थे मगर ईओडब्लू और एसीबी में उनके पास ऐसे दायित्व हैं कि सरकार वहां से छोड़ना नहीं चाहेगी। जाहिर है, पुलिस कमिश्नर का सलेक्शन सरकार के लिए कठिन टास्क होगा।

रिफार्म पर करप्शन भारी!

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का 35 साल का राजनीतिक जीवन साफ-सुथरा रहा है, मुख्यमंत्री के तौर पर डेढ़ साल का उनके टेन्योर पर भी कोई उंगलियां नहीं उठी है। मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों की छबि भी ऑनेस्ट और निर्विवाद है। फिर सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि सूबे में करप्शन कम नहीं हो पा रहा बल्कि लेवल और बढ़ता जा रहा। सप्लाई, खरीदी, ठेका का कमीशन 35 परसेंट तक पहुंच गया है। मंत्री खुलेआम अपना 20 परसेंट मांग रहे। वो भी एडवांस। अगर एडवांस पेमेंट नहीं हुआ तो टेंडर या सप्लाई की फाइल आगे नहीं बढ़ेगी। विभागों को अगर रायपुर से परचेजिंग का आदेश जारी कराना है तो पहले कमीशन एडवांस में पे करना होगा। छत्तीसगढ़ के अधिकांश विभागों की यही स्थिति है। इसके बाद विधायकों का अपना परसेंटेज। उस इलाके में सत्ताधारी पार्टी का कोई बड़ा नेता है, तो उसे भी चाहिए। ऐसे में, क्वालिटी की उम्मीद कैसे की जा सकती है। फिर तो 32 हजार में जग खरीदने का टेंडर भरना ही होगा। यह सही है कि करप्शन कभी कम नहीं हो सकता। लेकिन, वह शिष्टाचार तक सीमित रहे तो ठीक है...लूटमारी में बदल जाए तो मामला गड़बड़ समझा जाएगा। सिस्टम के रणनीतिकारों को यह ध्यान रखना होगा कि 72 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी पांच साल में ही क्यों सत्ता से बाहर हो गई? ऐसा नहीं है कि विष्णुदेव सरकार काम नहीं कर रही। रिफार्म पर कई दूरगामी परिणाम वाले बड़े काम हुए हैं। राजस्व, पंजीयन के बाद पुलिस कमिश्नर सिस्टम भी शुरू होने जा रहा है। नगरीय प्रशासन में भी कई फैसले हुए हैं। मगर हाई रेट के करप्शन के चलते सरकार के रिफार्म के काम कमजोर पड़ जा रहे हैं।

प्रभारी डीजीपी का साइड इफेक्ट

छत्तीसगढ़ में यह पहली दफा हुआ कि राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों के आईपीएस अवार्ड के लिए यूपीएससी की डीपीसी में डीजीपी अरुणदेव गौतम शामिल नहीं हो पाए। जबकि, डीपीसी में संबंधित राज्य के चीफ सिकरेट्री, एसीएस होम और डीजीपी मेंबर होते हैं। इससे पहले सभी डीपीसी में डीजीपी दिल्ली जाते रहे हैं। दरअसल, यूपीएससी का नियम है कि प्रभारी डीजीपी को वह डीपीसी का मेंबर नहीं बनाता। सीधे तौर पर कहें तो यूपीएससी प्रभारी अफसर को मान्यता नहीं देता। हालांकि, अशोक जुनेजा भी 11 महीने तक प्रभारी डीजीपी रहे। मगर उस दौरान कोई डीपीसी नहीं हुई। इसलिए चल गया। मगर इस बार डीपीसी में सिर्फ चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और एसीएस होम मनोज पिंगुआ शिरकत कर पाए।

मंत्री का भतीजा

एक मिनिस्टर के भतीजे ने टुच्चई करते हुए पेट्रोल पंप के कर्मचारियों से मारपीट कर दी। उपर से धौंस भी जमाया...जानते नहीं, चचा हमारे मंत्री हैं। मगर पुलिस प्रेशर में नहीं आई। महिला कप्तान ने दबंगई दिखाते हुए न केवल गैर जमानती धाराओं में केस दर्ज कराया बल्कि गिरफ्तार कर जेल भी भिजवा दिया। पुलिस की छबि ऐसी कार्रवाइयों से दुरूस्त होगी। और अपराधियों का हौसला पस्त भी।

सीएम का फर्स्ट विदेश प्रवास

सीएम विष्णुदेव साय 21 अगस्त को प्रथम विदेश प्रवास पर रवाना हो रहे हैं। वे जापान में ओसाका वर्ल्ड एक्सपो में हिस्सा लेंगे। इसमें उन्हें आमंत्रित किया गया है। उनके साथ उनके प्रमुख सचिव सुबोध सिंह, उद्योग सचिव रजत कुमार, सीएसआईडीसी एमडी विश्वेष कुमार रहेंगे। कुल मिलाकर टीम काफी छोटी होगी। इंडस्ट्रीज फ्रेंडली नई उद्योग नीति लांच करने के बाद इस एक्सपो से छत्तीसगढ़ में इंवेस्टमेंट की काफी उम्मीदें रहेंगी।

छुट्टी के दिन एक्शन में PHQ

15 अगस्त की थकाउ कार्यक्रम और आज जन्माष्टमी की छुट्टी के बाद आज पुलिस मुख्यालय के एक कॉल से आईजी साहब लोग घबरा गए। एक लाइन का मैसेज था, 12 बजे पूरी तैयारी के साथ वीसी में कनेक्ट होइये। डीजीपी अरुणदेव गौतम के साथ वीसी में खुफिया चीफ अमित कुमार भी मौजूद थे। डीजीपी ने सभी आईजी की क्लास ली। विषय था बढ़ती चाकूबाजी। मीटिंग के तुरंत बाद आईजी ने सभी एसपी को निर्देश जारी कर दिए। आज रात से ही चौक-चौराहों पर पुलिस तैनात होनी शुरू हो गई है। कल से वाहनों की चेकिंग और बढ़ जाएगी। मगर इसके साथ जरूरी यह भी झुग्गी-झोपड़ी बहुल इलाकों में जाकर सघन चेकिंग करना, पता करना कि कौन-कौन नशा कर रहा है। यह काम कोई कठिन नहीं। बस्तियों में लोगों को पता रहता है कि कौन क्या कर रहा है...थानों की पुलिस भी इससे भिज्ञ होती है। मगर जब थानेदारों के संरक्षण में ही नशे का धंधा फल-फूल रहा तो फिर चौराहों पर चेंकिंग से क्या होगा। पुलिस महकमे में आखिर किसको नहीं पता कि स्पा की आड़ में क्या हो रहा और पान दुकानों में क्या बिक रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक महिला डीएसपी ने पत्र के जरिये गृह विभाग की ट्रांसफर पॉलिसी को खूला चैलेंज कर दिया है, इसे किस अर्थ में लेना चाहिए?

2. छत्तीसगढ़ के पांचों आईजी जब निर्विवाद और साफ-सुथरी छबि के हैं, फिर भी पोलिसिंग पटरी पर क्यों नहीं आ पा रही?


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