तरकश, 3 अगस्त, 2025
संजय के. दीक्षित
25 सालः बिना करप्शन एकमात्र काम
छत्तीसगढ़ में 25 गुना, 30 गुना अधिक दर पर सरकारी खरीदी एपिसोड के बाद सरकार ने अफसरों को टाईट करना शुरू किया है। मगर यह शाश्वत सत्य है कि सरकारी खरीदी या निर्माण कार्य युगों से ऐसी ही होता आ रहा है। सिर्फ एक मौके को छोड़....जब 33 करोड़ का काम 29 करोड़ में हो गया था। बात 2013 की है। रायपुर के क्रिकेट स्टेडियम में पहला आईपीएल होना था। समय कम था और स्टेडियम का सिर्फ सिविल वर्क हुआ था। सीटिंग अरेंजमेंट से लेकर तमाम काम बचे हुए थे। उस समय सुनिल कुमार चीफ सिकरेट्री थे। तत्कालीन सीएम रमन सिंह ने उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी। सुनिल ने तब के स्पोर्ट्स कमिश्नर आईपीएस राजकुमार देवांगन से एस्टीमेट मंगाया। उन्होंने खर्च बताया 65 करोड़। तब तक रायपुर के कुछ सप्लायर माफिया भी एक्टिव हो गए थे। वे 2200 में कुर्सी खरीदने का लगे प्रेशर बनाने। सीएस ने सबसे पहले देवांगन को हटाकर जीतेंद्र शुक्ला को कमिश्नर बनाया। आरपी मंडल पहले से सिकरेट्री स्पोर्ट्स थे। सुनिल कुमार ने दोनों को बुलाकर अपनी मंशा बता दी। कम खर्च में कैसे काम ज्यादा हो जाए, इसके लिए कई दौर की मंथन हुई। सीएस ने कहा कि बिचौलियों से 2200 की कुर्सी खरीदने की बजाए क्यों न मैन्युफैक्चरर्स से बात की जाए। और यही हुआ। मैन्युफैक्चरर से 800 में कुर्सी मिल गई। उपर से कंपनी पर प्रेशर डाल 500 से अधिक कुर्सी ले ली गई कि कही ट्रांसपोर्टिंग में टूट हुई तो कौन क्लेम करने आएगा, उससे अच्छा है कि पहले ही 500 चेयर अधिक दे दो। आईपीएल शुरू होने से हफ्ता भर पहले मंडल और जीतेंद्र न जब सुनिल कुमार को खर्च की रिपोर्ट सौंपी तो पता चला 33 करोड़ की जगह 29 करोड़ में कुर्सी से लेकर सारी गैलरीज बनकर तैयार हो गईं। याने बजट से चार करोड़ कम में काम हो गया। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद 25 साल में निर्माण और सप्लाई का पहला काम होगा, जो बजट से कम में हो गया।
भावी मंत्रियों को गुड न्यूज!
मुख्यमंत्री जैसे राज्यों के प्रमुखों को भी प्रधानमंत्री से मिलना आसान नहीं होता। वो भी मोदी जैसे पीएम से तो और मुश्किल। तभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को साल में दो-एक बार ही पीएम से मिलने का अवसर मिल पाता है। मगर छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय शपथ लेने के बाद डेढ़ साल में पांच बार पीएम मोदी से वन-टू-वन मिल चुके हैं। हर दो-तीन महीने में उनकी पीएम और गृह मंत्री से मुलाकात हो जाती है। जाहिर है, उनके समकक्षों को यह जानने की उत्सुकता होगी कि विष्णुदेव को पीएमओ से टाईम कैसे मिल जाता है...आखिर वो चैनल कौन-सा है? बहरहाल, पिछले छह महीने में जितने बार विष्णुदेव पीएम मोदी और अमित शाह से मिले हैं, हर बार मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें तेज हुई है। हर बार लगता है...सीएम ने जरूर इस पर बात की होगी। इस बार भी लोगों को लग रहा कि कुछ होगा। हालांकि, दिल्ली से लौटने पर सीएम ने मीडिया से कहा, इंतजार कीजिए, मगर उनके बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि इस बार कुछ खास होगा...भावी मंत्रियों को जल्द गुड न्यूज मिल सकता है।
चीफ सिकरेट्री का गुस्सा
शीर्षक आपको अटपटा लगेगा...सोचेंगे मुख्य सचिव अमिताभ जैन कभी गुस्सा भी करते हैं? मगर बुधवार को रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर 18 गायों की दर्दनाक मौत पर अमिताभ ने कलेक्टर, और एसपी के व्हाट्सएप ग्रुप में जो लिखा, वह हैरान करने वाला था। दो मिनट के भीतर धड़ाधड़ भेजे चार मैसेज से सूबे के कलेक्टर, एसपी हिल गए। कई कलेक्टर, एसपी ऑफिस और घरों से निकलकर शहरों में गायों को देखने चले गए। एक जिले की पुलिस ने घंटे भर के भीतर दो मवेशी मालिकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बता दें, छत्तीसगढ़ की गोठान बनी सड़कें हाई कोर्ट के संज्ञान में है। हर महीने चीफ सिकरेट्री को होई कोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट देनी होती है। बावजूद इसके हफ्ते भर में 90 से अधिक गायों की मौत हो गई, तो सीएस को गुस्सा तो आएगा ही।
छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य
छत्तीसगढ़ में 95 परसेंट से अधिक हिन्दू हैं। अब हिन्दू धर्म में गायों का क्या स्थान है, इसे बताने की जरूरत नहीं। मगर दुर्भाग्य यह है कि सड़क हादसों में गायें अगर सबसे अधिक जान गंवा रही है तो वह छत्तीसगढ़ है। पिछले एक हफ्ते में चार अलग-अलग दुर्घटनाओं में 90 गायों की मौत हो चुकी हैं। इन गायों को ट्रकों और हाईवा ने बेरहमी से कुचल दिया। यही नहीं, गायों से टकराकर वाहन चालक भी हादसे का शिकार हो रहे हैं...जान गंवा रहे हैं। दरअसल, सूबे में गोवंश को लेकर गांवों से लेकर शहरों तक हालत बेहद खराब है। देश के किसी भी राज्य में आप गो माता के प्रति इतनी निर्दयता नहीं देखेंगे कि दूध देना बंद कर दिया तो उन्हें सड़कों पर अवारा घूमने के लिए छोड़ दिया। राजधानी रायपुर के चकाचौंध वाले इलाकों में भी आपको सड़कें घेर कर बैठी गायें मिल जाएंगी...कवर करके बनाया गया केनाल और वीआईपी रोड तक इससे अछूता नहीं है। जरा सोचिए, बाहर से आने वाले लोग छत्तीसगढ़ की क्या छबि लेकर जाते होंगे। दरअसल, मवेशियों को अवारा छोड़ना छत्तीसगढ़ में यह सामाजिक समस्या बनता जा रहा है। छत्तीसगढ़ का नाम खराब होने से बचाने प्रशासन के साथ हिन्दू संगठनों को भी आगे आना होगा।
ये तीन उपाय
छत्तीसगढ़ में सिस्टम इतना बेपटरी हो चुका है कि जिस काम में पैसा नहीं, उधर सरकारी मुलाजिमों को देखना गवारा नहीं। अब गायों की रोकथाम करने से क्या मिलने वाला। उपर से कार्रवाई कर दिए तो फिर धरना, प्रदर्शन, घेराव की सियासत झेलो। पिछली सरकार ने गोठान जैसी अच्छी योजना शुरू की थी मगर सही क्रियान्वयन के अभाव में इसने दम तोड़ दिया। सिस्टम अगर वाकई ईमानदारी से इस सामाजिक समस्या का निराकरण चाहता है तो उसे कांजीहाउस की व्यवस्था फिर से दुरूस्त करनी होगी। ढाई-तीन दशक पहले नगरीय निकायों से लेकर ग्राम पंचायतों में कांजी हाउस इतना सक्रिया होता था कि लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ने में घबराते थे। दूसरा, जुर्माना के प्रावधान को कड़ा किया जाए, और तीसरा...ग्राम पंचायतों के सचिव जी लोगों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाए। जनपद पंचायतों के सीईओ की मॉनिटरिंग में ग्राम पंचायतों के सचिव मवेशियों पर नजर रखें। ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए का बजट आता है, सरपंच, सचिव दिन भर वन टू के फोर...खेल में लगे रहते हैं। लगभग सभी जिलों में वेटनरी की टीम है। उनकी भी एकाउंटबिलिटी बनती है। रही बात शहरी इलाकों की तो कलेक्टरों को रिर्चाज किया जाए...दो-चार बार वे खुद फोटो खिंचकर निगम कमिश्नर और नगरपालिका के सीएमओ को भेज देंगे, उतने में काम हो जाएगा। लेकिन, उसके लिए कलेक्टरों को अवेयर होना पड़ेगा। उसके बाद सड़कों पर न तो गाय मरेंगी, न वाहन चालक हादसों के शिकार होंगे...न कोर्ट का समय खराब होगा।
मंत्री को एक और डिप्टी कलेक्टर
राज्य सरकार ने स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के स्टाफ में एक और डिप्टी कलेक्टर दिया है। श्यामबिहारी के पास पहले से राप्रसे अधिकारी हिमांचल साहू विशेष सहायक थे। अब 2021 बैच के राप्रसे अफसर कमल किशोर को उनका ओएसडी बनाया गया है। आमतौर पर मंत्रियों के निजी स्टाफ में एकाध डिप्टी कलेक्टर होते हैं। राप्रसे अधिकारियों को विशेष सहायक बनाने की परंपरा पिछली सरकार में चालू हुई। रमन सरकार में भी सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल के पास राप्रसे अधिकारी विशेष सहायक थीं। मगर अब तो सभी मंत्रियों के स्टाफ में राप्रसे अधिकारी हैं तो किसी के पास दो-दो। असल में, छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों की स्थिति चना-मुर्रा की तरह हो गई है। इतने छोटे स्टेट में संख्या 500 को क्रॉस कर गया है। 2013 बैच के बाद वालों की तादात इतनी है कि बेचारों को आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। बहरहाल, मंत्री के स्टाफ में काम करने का अपना अलग आकर्षण होता है। मंत्रियों के पीएस लोगों का जलवा देख ही रहे हैं...कई पीएस मंत्री को चला रहे हैं।
सीईओ पोस्टिंग का मापदंड
'तरकश' में हमने गरियाबंद और जीपीएम जिले में पीएम आवास योजना की बदहाली का जिक्र किया था। यह भी बताया था कि बालोद में संजय कन्नौजे के कलेक्टर बनकर जाने के बाद तीन महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है। राज्य सरकार ने राप्रसे अधिकारियों के 75 लोगों का लिस्ट निकाला, उसमें गरियाबंद और जीपीएम के सीईओ को हटा दिया, वहीं बालोद में नए सीईओ की तैनाती कर दी। मगर इससे के सिस्टम को चिंतन करना चाहिए कि सिर्फ उपकृत करने के लिए जिला पंचायत जैसे महत्वपूर्ण संस्था में किसी की भी नियुक्ति न कर दें। जाहिर है, सरकार की सारी जमीनी योजनाएं जिला पंचायतों के जरिये संचालित होती है। मध्यप्रदेश के जमाने में जब डीआरडीए होता था, उस समय भी डायरेक्ट आईएएस की पोस्टिंग होती थी। छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि नायब तहसीलदार से प्रमोट होकर डिप्टी कलेक्टर बने अधिकारियों को जिला पंचायतों का सीईओ बना दिया जा रहा। पोस्टिंग का लेवल इतना गिर जाएगा, कोई सोचा नहीं होगा। गनीमत है, सरकार ने अब इस विसंगति को दूर कर दिया है। मगर पीएम आवास जैसी योजनाओं को बदहाली से बचाने आगे इसे ध्यान रखना होगा।
ऐसे भी अफसरः 172 करोड़ का MOU
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी देश में बदनाम जरूर हो गई है मगर इसका मतलब यह नहीं कि सारे-के-सारे अफसर पथभ्रष्ट हो चुके हैं। आखिर, 25 साल में राज्य ने तरक्की किया है तो उसमें अच्छे अधिकारियों का योगदान रहा। इस समय भी कई ब्यूरोक्रेट्स साइलेंटली ऐसा काम कर रहे, जो पब्लिक डोमेन में नहीं आ रहा। रायपुर से लगे पड़ोसी जिले के एक आईआईटीयन कलेक्टर ने रायपुर में निगम कमिश्नर रहते ऐसी पहल करी कि अगले हफ्ते एक बड़ा एमओयू होने जा रहा है। आईएएस ने नेट पर सर्च कर पता किया कि छत्तीसगढ़ का कौन सा उद्योगपति राज्य के लिए कुछ कर सकता है। देश के टॉप की इंवेस्टमेंट कंपनी मोतीलाल फाउंडेशन के मालिक रामदेव आरंग के रहने वाले हैं। इस समय वे 1.7 बिलियन डॉलर की कंपनी के वे मालिक हैं। आईएएस की पहल पर रामदेव अग्रवाल रायपुर आईआईएम को 101 करोड़ और एनआईटी को 71 करोड़ रुपए देने जा रहे हैं। कुल 172 करोड़। प्रवासी भारतीय सम्मेलन की तरह छत्तीसगढ़ सरकार को रायपुर में एक प्रवासी छत्तीसगढ़ियां का एक सम्मेलन कराना चाहिए। बीएसपी की वजह से भिलाई में पले-बढ़े कई लोग देश-विदेश में बडा काम कर रहे हैं। उन्हें यदि बुलाकर उनके काम को सम्मान दिया जाएगा तो उससे राज्य को काफी लाभ होगा। ब्रांडिंग होगी, सो अलग।
बाढ़े पूत पिता के धरमे
पुरानी कहावत है, बाढ़े पूत पिता के धरमे...याने पिता के पुण्य का लाभ उसके संतान को मिलता है। मगर वर्तमान दौर में यह कहावत निरर्थक हो चली है। जमाना अब वृद्धाश्रम का आ रहा है। पिता अगर घर में हैं भी तो पुराने सामान की तरह कमरे में उपेक्षित पड़े होते हैं। बेटों का लगता है, वे पिता को साथ रखकर परिवार पर अहसान कर रहे हैं। ऐसे समय में बिलासपुर नगर निगम के एक रिटायर चीफ इंजीनियर द्वारा हाल ही में अपने पिता का 95वें जन्मदिन पर भव्य आयोजन करना युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन सकता है। वक्त की जरूरत है कि ऐसे आयोजनों की संख्या बढ़नी चाहिए...पिता की लंबी आयु के चलते अगर बेटों को ऐसा मौका मिलता है, तो उसे इनकैश कर समाज को एक मैसेज देना चाहिए, कम-से-कम इससे कुछ बुजुर्गो को सम्मान तो मिलेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ के एक प्रभावशाली मंत्री 30 जुलाई की रात नौ बजे हाई कोर्ट परिसर क्यों पहुंचे थे?
2. आईएएस की ट्रांसफर लिस्ट निकलते-निकलते क्यों और कहां रुक गई?
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