रविवार, 1 अप्रैल 2012

तरकश, 1 अप्रैल


शर्मनाक

छत्तीसगढ़ विधानसभा संसदीय मर्यादाओं के लिए जाना जाता है। 11 साल में यहां कभी कुर्सी और मेज पलटने की घटना नहीं हुई। गर्भ गृह में आने पर स्वयमेव निलंबित होने का विधान सिर्फ अपने यहां ही है। और शायद यही वजह है, राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने मुंबई विधानसभा के गोल्डन जुबली समारोह में देश के अन्य विधानसभाओं को छत्तीसगढ़ विस का अनुशरण करने की नसीहत दी थी। मगर अबकी विधानसभा में जो कुछ हुआ, उसके अच्छे संदेश नहीं गए। मर्यादाओं को लांघने में दोनों पक्षों में लगा मानों होड़ मच गई हो। राजधानी में भाजपा नेताओं की अश्लील नृत्य पार्टी का मामला उठाते हुए धरमजीत सिंह ने सीडी दिखाई तो बृजमोहन अग्रवाल ने आवेश में ऐसी टिप्पणी कर दी कि लोग आवाक रह गए। अब धरमजीत कहां चूकने वाले थे......नहले पर दहला जड़ दिया। दर्शक दीर्घा में स्कूल-कालेज की छात्राएं बैठी थी। सदन में महिला विधायक तो थीं हीं, कार्यवाहियों को नोट करने वाली विधानसभा की महिला कर्मी भी थी। नजरें नीची करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। खुद स्पीकर भी भौंचक रह गए। उन्होंने फौरन पूरे प्रसंग को विलोपित करा दिया। विलोपित न होता तो भी वह छपने लायक नहीं था। ऐसे में संसद और विधानसभाओं के बारे में अरबिंद केजरीवाल का कथन गलत प्रतीत नहीं होता।  

क्या होगा?

कांग्रेस में एका की जितनी बातें की जा रही, गुटीय खाई उतनी ही बढ़ती जा रही है। बजट सत्र में लोग इसे महसूस भी कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है, विधायक दल एक नहीं, दो-तीन हो गया है। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे, मोहम्मद अकबर और धरमजीत एक साथ। दूसरी ओर अजीत जोगी, शिव डहरिया, अमरजीत भगत और कवासी लखमा। नंदकुमार पटेल का अपना अलग। सत्र के दौरान पटेल का दिल्ली जाना भी खाई बढ़ाने का ही काम किया। विधानसभा की लाबी में कांग्रेस विधायक ही चुटकी लेते रहे, सीएम दिल्ली से तय होता है, इसलिए पटेलजी अभी से दिल्ली दौरा तेज कर दिए हैं। और भी कई तरह की बातें। दूसरी झलक देखिए, विभागीय चर्चा पर जवाब देते समय मुख्यमंत्री ने पटेल पर एक टिप्पणी की, उस समय किसी भी सदस्य ने उसका विरोध करना जरूरी नहीं समझा। जबकि, इस दौरान सदन में विपक्ष के लगभग सभी वरिष्ठ विधायक बैठे थे। रविंद्र चैबे से लेकर अकबर, धरमजीत तक। मगर विपक्षी विधायकों को अध्यक्षजी का इनसल्ट होने का अहसास अगले दिन हुआ। 19 घंटे बाद। प्रश्नकाल में धरमजीत सिंह ने इस मामले को उठाया। कांग्रेस के ही एक विधायक बताते हैं, पटेल बड़े क्षुब्ध थे और रात में कई विधायकों को अपनी भावना से अवगत कराया। जाहिर है, पार्टी में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। और अजीत जोगी राज्यपाल बनकर चले भी जाएं तब भी पार्टी की स्थिति सुधरने की उम्मीद नहीं दिखती।

मंत्री घिरे

जवाब तैयार करने में अफसरों की लापरवाही की वजह से सदन में गृह मंत्री ननकीराम कंवर और राजस्व मंत्री दयालदास बघेल की जमकर भद पिटी। कोरबा में लेंको की जनसुनवाई पर ध्यानाकर्षण में गृह एवं पुलिस महकमे के अधिकारियों ने जो जवाब तैयार किया, उसमें कंवर फंस गए। जवाब में लिखा था, ग्रामीणों ने फोर्स पर पथराव किया और उसमें धारा लगा थी, डकैती की। अकबर ने उसे पकड़ लिया। अब काटो तो खून नहीं वाला हाल था। इसी तरह दुर्ग के धमधा में एक सीमेंट प्लांट को जमीन देने के मामले में बघेल ने जवाब पढ़ा, गड़बड़ी हुई है और एसडीओ प्रथम दृष्टया दोषी हैं। और कार्रवाई के लिए कलेक्टर को लिखा गया है। विपक्ष ने घेरा, एसडीएम को सरकार जब प्रथम दृष्टया दोषी मान रही है तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की। अधिकारी जवाब तैयार करते हैं और मंत्रीजी लोग बिना दिमाग लगाए उसे पढ़ देते हैं, तो ऐसा होगा ही।   

वाया होम गार्ड

यह महज संयोग हो सकता है मगर यह जारी रहा तो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी संतकुमार पासवान को डीजीपी बनने का मौका मिल सकता है। इससे पहले, वीके दास से लेकर अशोक दरबारी और अब अनिल नवानी, सभी वाया होम गार्ड ही डीजीपी बनें। याने पुलिस प्रमुख बनने के पहले होमगार्ड में रहे। पासवान भी अब होमगार्ड में पहुंच गए हैं। वैसे 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद पासवान को होमगार्ढ और नवानी को जेल मिला था। मगर दो दिन में ही आर्डर चेंज कराके नवानी होमगार्ड चले गए थे। बहरहाल, सीनियरिटी में नवानी के बाद पासवान ही हंै। फिर छत्तीसगढ़ में लंबी सेवा भी दी है। पुराने रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव जिले के एसपी, बस्तर के आईजी, इंटेलिजेंस चीफ.....और भी कई। ऐसे में नवंबर में नवानी के रिटायर होने के बाद पासवान का दावा तो बनता ही है। 

मेहरबानी

छत्तीसगढ़ का दोहन करने में बड़े आईएएस अधिकारी भी पीछे नहीं है। 87 बैच के आईएएस एसवी प्रभात राज्य बनने के बाद साल भर से अधिक यहां नहीं रहे होंगे। वो भी दो-तीन किश्तों में। दो-तीन महीने रहने के बाद जुगाड़ लगाकर हमेशा डेपुटेशन पर निकल गए। अगले महीने उनका रिटायरमेंट है और खबर है, इस महीने या अगले महीने मध्य तक तक यहां आ जाएंगे। वे इसलिए नहीं आ रहे हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ उन्हें याद आने लगा है। वे आ रहे हैं प्रमोशन पाकर एसीएस बनने के लिए। प्रींसिपल सिकरेट्री में अभी उनका 67 हजार का पे स्केल है, एसीएस बनते ही 80 हजार हो जाएगा। उसके बाद जिंदगी भर की मौज। मगर छत्तीसगढ़ सरकार भी गजब करती है। एक तरफ डेपुटेशन से न लौटने वाले अधिकारियों को पेंशन आदि रोकने पर विचार कर रही है और दूसरी ओर प्रभात का लाल जाजम बिछा कर इंतजार कर रही है। वे आएं और आते ही उन्हें कितने जल्द एसीएस बना दें। छत्तीसगढ़ से भागे-भागे फिरने वाले अधिकारी के प्रति आखिर, इतनी मेहरबानी क्यों? ऐसा ही रहा तो सुब्रमण्यिम राज्य बनने के पहले से दिल्ली में हैं और वे सीएस बनने के लिए छत्तीसगढ़ लौटेंगे। वैसे भी, सुब्रमण्यिम का पीएमओ में फिर डेपुटेशन मिल गया है। 

कलेक्टरों की शामत

बिना सूचना दिए जिला छोड़ना कलेक्टरों को अब भारी पड़ सकता है। इस बारे में राज्य सरकार एक सख्त फारमान जारी करने जा रही है। सीएस के यहां से नोटशीट एपूव्ह हो गया है। और दो-एक दिन में आर्डर निकल जाएगा। इसमें कलेक्टरों से कहा गया है, चीफ सिकरेट्री या कमिश्नर को बताए बगैर जिला छोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। सरकार को अरसे से शिकायत मिल रही थी कि जिला छोड़कर कलेक्टर दो-दो दिन गायब रहते हैं। खासकर नए जिले के कलेक्टर। मुंगेली के कलेक्टर के खिलाफ भी शिकायत थी, जो शाम को बिलासपुर  चले जाते थे।  

अंत में दो सवाल आपसे

1 नंदकुमार पटेल पर मुख्यमंत्री की टिप्पणी का विरोध जताने में कांग्रेस विधायक      दल को 19 घंटे कैसे लग गए?
2 आनंद तिवारी संविदा पाने में कामयाब हो गए मगर विश्वरंजन कैसे चूक गए?


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