रविवार, 20 मई 2012

तरकश, 20 मर्इ


जय और बीरु

आपको याद होगा, रमन सरकार के शुरूआती दिनों में रायपुर के कलेक्टर राजेंद्र प्रसाद मंडल और एसएसपी अशोक जुनेजा की जोड़ी जय-बीरु के रूप में खूब चर्चित हुर्इ थी। मंडल या जुनेजा शायद ही कभी, दौरे में या बैठकों में अकेले दिखे होंगे.......दोनों में अदभूत समन्वय था। सत्ता के दो ताकतवर अफसरों की टयूनिंग के बारे में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही कहा जा रहा है। बात हो रही है राज्य सरकार में सबसे प्रभावशाली एवं सीएम के भरोसेमंद अफसर अमन सिंह और प्रींसिपल सिकरेट्री टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार की। सुनील कुमार को सीएस बनाने के लिए आपरेशन पी जाय उम्मेन और आपरेशन नारायण सिंह की स्टे्रटज्डी दोनों ने ही तैयार की थी। आला अधिकारियों की पोसिटंग से लेकर किन योजनाओं से सीएम को पालीटिकल माइलेजा मिलेगा, दोनों तय करते हैं। देखा नहीं आपने, शुक्रवार को कांग्रेस के स्टार नेता राहुल राजधानी में थे और प्रिट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रमन सिंह छाये हुए थे। नौ नए जिले का खाका दोनों ने ही तैयार किया था। सीएम हाउस जाना हो या किसी अहम बैठक में, दोनों साथ दिखेंगे। वैसे भी, बैजेंद्र की सिंहों के साथ केमेस्ट्री खूब जमती है। दिवंगत अजर्ुन सिंह हो या दिगिवजय सिंह और अब रमन सिंह। सिंहों के ही आखिर प्रिय रहे हैं। सो, अमन के साथ जोड़ी स्वभाविक है।

राहत

कलेक्टरों के लिए राहत की बात हो सकती है कि तत्काल कोर्इ लिस्ट नहीं निकलने जा रही और जो खबर चल रही है, वह हवा-हवार्इ ही है। सरकार के निकटवर्ती सूत्रों की मानें तो जिलों में मानसून सत्र के बाद ही चेंजेज हाेंगे। इससे पहले, कलेक्ट्रेट कांफें्रंस में उनके पारफारमेंस देखे जाएंगे। जिनका पारफारमेंस अच्छा होगा और विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के तीन साल के रेंज में नहीं आ रहे हाेंगे, तो उन्हें बरकरार रखा जाएगा। पता चला है, चार-पांच जिलों के कलेक्टरों से सरकार संतुष्ट नहीं है। ऐसे में उनकी छुटटी हो जाए तो आश्चर्य नहीं। इनमें नए जिलों के कलेक्टर भी शामिल हैं।

चेंज 

आर्इएएस मेंं न सही, मगर पुलिस महकमे में अगले हफते तक एक छोटी लिस्ट निकलने की पुख्ता खबर है। इनमें कुछ एडिशनल एसपी और दो-तीन एसपी होंगे। इनमें एक बड़े जिले के कप्तान के भी प्रभावित होने की खबर है। बाकी, 88 बैच के तीन अफसरों की डीपीसी के बाद ही पीएचक्यू और रेंज में कोर्इ बदलाव होंगे। तीनों का जनवरी में प्रमोशन डयू है। सुनने में आया है, पांच पोस्ट खाली रहने की वजह से समय पूर्व प्रमोशन के लिए कवायद शुरू हो गर्इ है। मगर इस बीच ये खबर भी चर्चा में है कि भारत सरकार ने पूछ दिया है कि पांच एडीजी होने के बाद भी जल्दबाजी क्या है। राज्य सरकार हालांकि छह महीने पहिले डीपीसी कर सकती है। अगर ऐसा हुआ तो जुलार्इ तक डीपीसी हो जाएगी।

टकराव

बात हो रही, पुलिस के प्रमोशन की तो तीन साल पहले डेपुटेशन पर गए डीआर्इजी प्रदीप गुप्ता ने आर्इजी बनने के लिए कोर्इ कसर नहीं उठा रख रहे हैं। स्वागत दास को प्रोफार्मा प्रमोशन देकर एडीजी बनाने के बाद तो गुप्ता की सिफारिशें और तेज हो गर्इ है। हवाला दिया जा रहा है दास का। दास छत्तीसगढ़ में कभी नहंी रहे मगर उन पर मेहरबानियां बरस रही हैं। और पुलिस मुख्यालय का कहना है, छत्तीसगढ़ लौटे बिना प्रमोशन नहीं मिलेगा। गुप्ता के रिटायर आर्इएएस ससुर अब राज्य के बड़े आर्इएएस अधिकारियों को फोन कर हेल्प मांग रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा, राज्य के आर्इएएस आर्इपीएस अफसरों के बीच में गुप्ता की कितनी मदद कर पाते हैं।

सौ चूहे.....

राज्य के आर्इएफएस अधिकारी इन दिनों प्रींसिपल सिकरेट्री डीएस मिश्रा से बेहद खफा हैं। पिछले हफते कैम्पा की बैठक में मिश्रा आर्इएफएस अफसरों को डोमिनेट करने के लिए टिवटर से कागज डाउनलोड करके लाए थे। सीएस सुनील कुमार की मौजूदगी में कैम्पा की भर्राशाही पर उन्होंने अफसरों की जमकर खींचार्इ की। मिश्रा का गुस्सा हालांकि गलत नहीं था। कैम्पा के लिए केंद्र से मिले ढार्इ सौ करोड़ में तफरी के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। उसी पैसे से जंबो टीम विदेश भी घूम आर्इ। अफसरों ने करोड़ों रुपए का वाट लगा दिया। लेकिन वन अफसरों की बातों में भी दम है। आर्इएफएस कहते हैं, मिश्रा को पहले अपनी ओर देखना चाहिए। दूसरों को 5 लाख तक की गाड़ी की बंदिशें हैं और खुद चलते हैं, 12 लाख की गाड़ी में। कृषि विभाग से हटने के बाद भी लंबे समय तक बीज विकास निगम की टवेटा रखे रहे। यहीं नहीं, एक्जीक्यूटिव क्लास में कर्इ बार विदेश घूम आए। सीएम और सीएस से भी बढि़यां चेम्बर है मिश्राजी का। याने सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।

अजूबा-2

पौल्यूशन बोर्ड कोरबा के रिजनल आफिसर बीएस ठाकुर का मामला राज्य के लिए अजूबा ही होगा। अजूबा इसलिए कि वे अपने परिवार के अकेले आदिवासी हैं। इनको छोड़कर पूरा परिवार सामान्य है और सबने सामान्य वर्ग से ही नौकरी पार्इ है। उनके पिता रायपुर में ही लंबे समय तक सामान्य कोटे से लेबर विभाग में काम किए और फिलहाल उनके भार्इ रायपुर एलआर्इसी आफिस में जनरल कोटे से हैं। दरअसल, नागपुर तरफ आदिवासी ठाकुर लिखते हैं। सो,  उन्होंने बुद्धि लगाकर आदिवासी का सर्टिफिकेट बनवाया और भोपाल में नौकरी हथिया ली। शिकायत हुर्इ तब तक छत्तीसगढ़ बन गया था और वे यहां तो सब चलता है। कौन पूछने वाला है। पौल्यूशन बोर्ड में शिकायतों की मोटी फाइल पर धूल की परतें बैठ गर्इ है। ठाकुर से जब पूछा गया कि आपके बच्चे भी आदिवासी कोटे का लाभ ले रहे होंगे, तो उनका जवाब सुनिये, मेरे बच्चे सामान्य वर्ग में हैं। अब पिता भी सामान्य और बच्चे भी सामान्य। सिर्फ वे एक आदिवासी। है ना अजूबा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. राहुल गांधी के नाम पर राजधानी के अफसरों से कितने पेटी का चंदा वसूला गया?
2. लोकसभा में एंग्लो-इंडियन कोटे से मनोनित सदस्य इंगे्रड मैक्लाउड की नाराजगी से कांग्रेस को कुछ फर्क पड़ेगा? 

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