शनिवार, 5 मई 2012

तरकश, 6 मई



क्रायसिस मैनेजमेंट-1

एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के बाद क्रायसिस मैनेजमेंट में रमन के तीन अफसरों की भूमिका सबसे अहम रही। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार, प्रींसिपल सिकरेट्री बैजेंद्र कुमार और सरकार के सबसे भरोसेमंद एवं प्रभावशाली अधिकारी अमन सिंह ने ऐसी स्टे्रटेज्डी बनाई कि नक्सलियों के वार्ताकारों की ज्यादा चल नहीं सकी। कहां महीने भर के पहले रिहाई न होने का दावा किया जा रहा था। आखिर, ओड़िसा के विधायक झीन हिकाका की 33 वें दिन ही रिहाई हो सकी। 30 अप्रैल की रात 8.20 बजे प्रमुख सचिव गृह एनके असवाल समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए मंत्रालय से पहुना के लिए रवाना हुए, उस समय भी किसी को यकीं नहीं हुआ। मगर 15 मिनट बार जब रिहाई की बात आई तो सब अवाक थे। तीनों अधिकारियों ने रणनीति के तहत नक्सलियों की ओर से वार्ताकारों के नाम आने का इंतजार किया। 57 बैच के रिटायर आईएएस अधिकारी बीडी शर्मा का नाम आया तो उनकी काट के लिए मध्यप्रदेश की रिटायर चीफ सिकरेट्री निर्मला बुच को आगे बढ़ा दिया गया। बुच को आयरन लेडी माना जाता है। सो, स्टे्रटज्डी सफल रही। तीन दिन की पांच दौर की चर्चा में मामला ओके हो गया। जो देरी हुई वह नक्सलियों की ओर से वार्ताकारों के चयन और उनके रायपुर आने मंे।

क्रायसिस मैनेजमेंट-2

सुकमा कलेक्टर की रिहाई के प्रयास तो एक साथ कई स्तर पर चल रहे थे मगर सरकार के रणनीतिकारों ने एहतियात के तौर पर इसका पूरा नियंत्रण अपने पास रखा। अलबत्ता, ओड़िसा सरकार से नसीहत लेते हुए नक्सलियों के मध्यस्थों से खुद बात करने के बजाए फौरन वार्ताकार अपाइंट कर दिया। दरअसल, ओड़िसा सरकार से यही चूक हुई थी। वहां के होम सिकरेट्री नक्सली वार्ताकारों से बात करते रहे और मामला लंबा खींच गया। आपने वाच किया होगा, आपरेशन एलेक्स में इस बात का बखूबी ध्यान रखा गया कि मामला बिगड़े तो सीएम पर कोई बात न आए। और इसी रणनीति के तहत मंत्रिमंडलीय उपसमिति बना दी गई। उपसमिति सदैव मध्यस्थों के संपर्क में रही।

टीआरपी

3 मई को जिस समय एलेक्स की रिहाई होने पर सुकमा में दिवाली मनाई जा रही थी, उस समय उनके सुरक्षाकर्मी किशन कुजूर की तेरहीं चल रही थी। एलेक्स को बचाने के लिए एके-47 से गोलियां बरसाकर एक नक्सली को मार गिराने वाले अमजद अली खान के धमतरी स्थित घर मेें मातम छाया हुआ था। मगर संवेदनहीनता की पराकाष्ठा......इन 13 दिनों में किसी का भी ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बे्रकिंग न्यूज में होड़ लेने वाले चैनलों का और न ही विश्वसनीयता का दावा करने वाले प्रिंट मीडिया का। नक्सलियों से घिर जाने के बाद भी अदम्य बहादुरी दिखाने वाले वीर जवान अमजद की पत्नी की किसी ने सुध ली और न ही उनके बच्चों की। चैनलों के एंकर एलेक्स की पत्नी आशा के धैर्य की तारीफ के पुल बांधकर थके जा रहे थे। आशा तक पल-पल की सूचना पहुंचाकर उसका श्रेय लुटे जा रहे थे। काश, कोई अमजद की पत्नी से भी पूछा होता, अब उसके घर कैसे चलेंगे, उसके बच्चों की परवरिश कैसे होंगी। मगर ये बात भी तो सही है, कुजूर और अमजद के टूटे-फूटे घर दिखाने से टीआरपी थोड़े ही बढ़ती।

कलेक्टर साब

छत्तीसगढ़ के लोगों ने कई तेज कलेक्टरों को देखा है, जिनका जिले में नाम चलता था। मगर अब दिलीप वासनीकर जैसे भी कलेक्टर हैं........। मंत्रालय में पोस्टेड रहने के दौरान सरकारी फोन के 28 सौ रुपए बकाये के लिए एक प्रायवेट टेलीफोन कंपनी ने वासनीकर को तंगा डाला। जनवरी में गरियाबंद के कलेक्टर बन जाने के बाद भी बिल के लिए कंपनी के शोहदे उनके पीछे पडे रहे। पिछले हफ्ते कंपनी के वकील ने उन्हें फोन करके कहा, आपके नाम से दिल्ली हाईकोर्ट से गैर जमानती वारंट निकला है। हाईकोर्ट का नाम क्या सुनना था, वासनीकर को मानों तिहाड़ जेल नजर आने लगा। उन्होंने रायपुर में अपने परिजनों को फोन कर तत्काल बिल जमा करवा दिया। कलेक्टर जिले का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी होता है। इस नाते उसके पास असीमित अधिकार होते हैं। मगर अधिकार का प्रयोग करना भी तो आना चाहिए। सुनील कुमार को ऐसे आईएएस के लिए रिफे्रशर कोर्स चलाना चाहिए।    

बड़ी उपलब्धि

सुकमा कलेक्टर के अगवा होने का एक लाभ जरूर हुआ, वह है, मनीष कुंजाम के रूप में सरकार को एक लोकल चैनल मिल गया है। कंजाम हां-ना करते हुए मेनन को दवाइयां पहुंचाने के साथ एक रात जंगल में भी बिता आए। मध्यस्थता नहीं करूंगा, नहीं करूंगा कहते-कहते एलेक्स को लेने के लिए जंगल भी चले गए। लिखने की बात नहीं है, आप समझ सकते हैं, नक्सलियों के साथ उनकी केमेस्ट्री कैसी होगी। अब आगे ऐसी कोई नौबत आई तो अग्निवेश जैसे लोगों की ओर मुंह ताकना नहीं पड़ेगा। इससे पहले 2005 में बस्तर में इंस्पेक्टर प्रकाश सोनी का अपहरण हुआ था तो उन्हें रिहा कराने के लिए सरकार को आंध्र के क्रांतिकारी कवि गदर और बारबड़ा राव की सहायता लेनी पड़ी थी। इसके बाद चार जवानों का मामला हुआ तो अग्निवेश ने मध्यस्थता की। देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित राज्य में हमेशा यह कमी महसूस की जा रही थी कि उसके पास नक्सलियों से बातचीत करने के लिए कोई लोकल चैनल नहीं है। मगर अब ऐसा नहीं होगा।

रेंज में बदलाव

88 बैच के तीनों आईपीएस अधिकारियों का समय से पहले अगर प्रमोशन हो जाए तो आश्चर्य नहीं। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज जैसे पावरफुल अफसर जो हैं इस बैच में। वैसे, तीनों का जनवरी मे ंप्रमोशन ड्यू है। एडीजी के 10 में से पांच पोस्ट खाली भी हंै। और रोड़़ा सिर्फ भारत सरकार की अनुमति का है। इसकी भी प्रक्रिया शुरू हो गई है। संकेत हैं, अगले महीने तक इस पर मुहर लग जाए। गुप्ता और विज के एडीजी बनने की खबर के बाद रायपुर और दुर्ग के आईजी बनने के लिए पीएचक्यू में अभी से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। प्रमोशन के बाद पुलिस महकमे में जून अंत में एक बड़ा बदलाव भी होगा। गुप्ता का इंटेलिजेंस और पिल्ले का वित्त और प्रबंध बना रह सकता है। विज को प्रशासन देने की खबर है। पवनदेव को अब रेंज में जाएंगे। रेंज के लिए ंअशोक जूनेजा, अरूणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के भी नाम हैं। अंदर की खबर है, जूनेजा बिलासपुर के बजाए रायपुर या दुर्ग संभालना चाहेंगे। बिलासपुर रेंज पैसा-कौड़ी के हिसाब से तो ठीक है मगर उसे मेन स्ट्रीम का रेंज नहीं माना जाता।

अजूबा

ऐसा अजूबा छत्तीसगढ़ में ही संभव है। आदमी एक और पगार दो-दो जगह से। सूचना आयोग का एक कर्मचारी आयोग के साथ ही मंत्रालय से भी वेतन ले रहा है। आयोग का यह कर्मचारी सामान्य प्रशासन विभाग के एक डिप्टी सिकरेट्री के घर तैनात है। और जीएडी में अतिरिक्त कुछ है नहीं। सो, साब ने दिमाग लगा डाला। बताते हैं, वाउचर पर कर्मचारी से हस्ताक्षर करवाकर पैसा अंदर हो जा रहा है। सूचना के अधिकार में इसकी जानकारी मांगे जाने के बाद से डिप्टी सिकरेट्री के हाथ-पांव फुल गए है। आरटीआई लगाने वाला चूकि कांग्रेसी हैं, इसलिए मामले को रफा-दफा कराने के लिए डिप्टी सिकरेट्री जोगी सरकार के एक पूर्व मंत्री की शरण में हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ग्राम सुराज की सबसे अधिक पब्लिसिटी किसे मिली, रमन को या एलेक्स मेनन को ?
2. स्वास्थ्य का हवाला देते हुए किस निगम के चेयरमैन ने सरकार से 27 लाख की कार मांगी है ?

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