शनिवार, 2 मार्च 2013

तरकश, 3 मार्च

कुर्सी का खेल

आईपीएल हो और उसमें खेल की कोशिश न हो, यह भला हो सकता है। आईपीएल का ऐलान होते ही नेताओं से जुड़े कई सप्लायरों के लार टपकने शुरू हो गए थे। खास कर कुर्सी सप्लाई के लिए। कुर्सी सप्लाई बोले तो माल चोखा। 50,000 कुर्सी में एक पर, गिरे हालत में 200 रुपए भी बचा, तो एक करोड़ अंदर। फिलहाल, आरटीआई एक्टिविस्ट यह जानने के लिए एक्टिव हो गए हैं कि 1200 रुपए में कुर्सी का टेंडर हुआ है, उसमें किस नेता की कितनी चली है और कितना अंदर होगा। वजह, नागपुर स्टेडियम में बीसीसीआई ने पिछले साल 450 रुपए में कुर्सी लगवाई है। नागपुर स्टेडियम बीसीसीआई का है और वह हल्की चीज तो खरीदेगा नहीं। फिर, साल में दो-एक मैच वहां होते ही हैं। और यहां 1200, तो आरटीआई वालों का माथा ठनकना स्वाभाविक है।   

बुरे फंसे

रेलवे एसपी केसी अग्रवाल के सामने, मिलकर भी ना मिलने वाली स्थिति निर्मित हो गई है। दरअसल, सरकार ने पिछले दिनों आईपीएस की मेजर सर्जरी की थी, उसमें उन्हें मुंगेली का एसपी बनाया गया था। मगर पोस्टिंग के समय चूक हो गई। मुंगेली उनका गृह जिला है, इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। वे उसी जिले के पथरिया के रहने वाले हैं। सो, चुनाव आयोग उन्हें छोड़ेगा नहीं। अब, अग्रवाल ने सरकार से आग्रह किया है कि उन्हें दूसरा कोई जिला दे दिया जाए। और सरकार के सामने असमंजस यह है कि जिन 18 जिलों के एसपी बदले गए थे, उनमें से सभी ज्वाईन कर लिए हैं। अब, अग्रवाल को कहां एडजस्ट किया जाए, कठिन प्रश्न हो गया है। इस चक्कर में पखवाड़े भर से मुंगेली जिला भी खाली है। वहां के एसपी कोटवानी रिलीव होकर चले गए हैं। अब खबर आ रही है, मुंगेली में अब नया एसपी पोस्ट किया जाएगा और संभवतः अग्रवाल को रेलवे एसपी यथावत रखा जाए।

पुअर पारफारमेंस

चुनावी साल होने की वजह से बजट सत्र में अबकी कांगे्रस से अग्रेसिव पारफारमेंस की उम्मीद की जा रही थी। मगर दिख उल्टा रहा है। आठ दिन की कार्रवाइयों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जब विपक्ष, सरकार को बगले झांकने पर मजबूर किया हो। कुछ गंभीर मुद्दे भी आए, तो आक्रमण करने वाला दस्ता सदन से नदारत था। राज्य बनने के 12 साल में गुरूवार को पहली बार लोगों ने देखा, गृह विभाग की अनुदान पर चर्चा ढाई घंटे में सिमट गई। सत्ता पक्ष की ओर सीएम और मंत्रियों को मिलाकर 24 सदस्य थे, वहीं विपक्ष के मात्र आठ। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नंदकुमार पटेल, अजीत जोगी जैसे सभी गैर हाजिर। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कटाक्ष करने का मौका मिल गया, गृह विभाग का काम इतना बढि़यां चल रहा है कि पहले इस पर आठ-आठ घंटा चर्चा होती थी, इस बार ढाई घंटे में ही गृह मंत्री की बोलने की बारी आ गई। आश्चर्य तो तब हुआ, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष के भाषण के समय सदन में एक चैथाई से भी कम सदस्य बच गए थे। कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।

मौजा-ही-मौजा

विधानसभा के समय अधिकांश अफसरों के मजे हो जाते हैं। साब, भले ही बंगले में आराम फरमा रहे हों, आफिस में जवाब मिलेगा, विधानसभा गए हैं। मगर इस बार, तो मत पूछिए, मंत्रालय के नया रायपुर में शिफ्थ होने के बाद, मौजा-ही-मौजा है। एक तो विपक्ष के तेवर अबकी हमलावर नहीं हैं, इसलिए बेफिक्री है। उपर से, 10 मिनट के लिए भी विधानसभा आए तो उसके बाद 30 किलोमीटर बियाबान में क्यों जाना, अफसर घर का रुख कर ले रहे हैं। बुधवार को दो-तीन बड़े अफसर ही मंत्रालय में थे। बाकी, बताया गया विधानसभा। स्तंभकार ने मंत्रालय से विधानसभा का रुख किया, तो वहां चार-पांच अफसर ही दिखे। बाकी आप समझ जाइये।

एसएमएस का असर

राज्य सरकार ने पिछले साल 108 एंबूलेंस योजना चालू की थी, तब एक एसएमएस खूब फारवर्ड हुआ था। यमराज, यमदूत से पूछता है, आजकल मौतंे क्यों नहीं हो रही है, यमदूत कहता है, क्या करें सरकार, हमारे पहुंचने से पहले 108 पहुंच जाता है। इस एसएमएस की थीम पर जनसंपर्क विभाग ने एक लधु फिल्म बनवाया है, जो काफी अपील कर रहा है। इसमें सड़क हादसा होने पर यमदूत मौके पर पहंुचता है, उससे पहले 108 पहंुच जाता है। निराश होकर लौटते वक्त यमदूत दूसरे वाहन से खुद जख्मी हो जाता है और उसे अस्पताल ले जाने के लिए 108 पहुंच जाता है। और वह थैंक्स 108 बोलता है। इसे देखकर होठों पर मुस्कुराहट तैर जाती है।

पहली बार

वैसे तो सूबे के कई नौकरशाहों ने किताबें लिखी है मगर फायनेंस सिकरेट्री आरएस विश्वकर्मा की हाल में आई प्रशासनिक संवदेनशीलता, किताब हीट हो गई है। रोचक और सहज शैली की वजह से किताब खूब पढ़ी जा रही है। इसमें उन्होंने अपने अनुभवों को बांटा है। और बताया है कि विपरीत हालात और विभिन्न हस्तक्षेपों के बावजूद अफसर चाहे, तो जनहित के काम किए जा सकते हंै। किताब की खासियत है, घटना से लेकर पात्र तक वास्तविक है। जब वे बस्तर के कमिश्नर थे, तो एक डेम में ईई की गड़बड़ी उन्होंने पकड़ी थी और और जेल जाने के भय से ईई ने अपने जेब से 16 लाख रुपए का डेम कैसे बनाया, जैसी कई घटनाआंे का विवरण है और साथ में सलाह भी। जबलपुर ननि कमिश्नर रहने के दौरान उन पर बम फेंका गया, इसके बाद भी वे पीछे नहीं हटे। अपना इगो छोड़ते हुए उन अफसरों को यह किताब पढ़ना चाहिए, जिनमें सिर्फ और सिर्फ लाल-हरे कागज के प्रति संवेदनशीलता बच गई है।   

हफ्ते का एसएमएस

एक आदमी ने फिश पकड़ी। घर आया तो देखा न गैस है, न आयल, न अनाज, न सब्जी। आदमी वापिस जाकर फिश को नदी में फेंक आया। फिश चिल्लाई, कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद, जिंदाबाज।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    आईपीएल के लिए स्टेडियम तैयार करने का बजट सरकार ने पीडल्लूडी के बजाए खेल विभाग को क्यों दिया गया, जबकि, स्टेडियम पीडब्लूडी के अंतर्गत आता है?
2.    किस मंत्री को रमन भक्त हनुमान कहा जाता है?

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