शनिवार, 1 जून 2013

तरकश, 2 जून

पैसा इतना और काम....

खुफिया पुलिस बढि़यां से काम करें, इसलिए रमन सरकार ने गोपनीय सूचनाओं की राशि बढ़ाकर साढ़े छह करोड़ कर दी मगर वह काम किस तरह कर रही है, दरभा हमले में इसकी पोल खुल गई। इससे कम राशि में आंध्रप्रदेश ने नक्सलियों का सफाया कर दिया। बस्तर में कोई घटना होती है, तो आंध्र को पहले खबर मिलती है, अपने को बाद में। आंध्र के मुखबिर बस्तर में जगह-जगह फैले हुए हैं। मगर जरा छत्तीसगढ़ का हाल देखिए, कांग्रेस काफिले पर हमले के दो दिन पहले से दरभा इलाके में नक्सलियों का मूवमेंट था। मगर खुफिया पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लग सकी। आपको बता दें, गोपनीय सेवा राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं होता और ना ही आडिट। सूचना देने वालों को पुलिस अपने हिसाब से भुगतान करती है। छत्तीसगढ़ जब बना था, तब इसका बजट मात्र 5 लाख रुपए था। 2005 में सलवा-जुडूम प्रारंभ हुआ, तब तक यह बढ़कर 40 लाख पहुंचा था। और अब ये बढ़कर साढ़े छह करोड़ हो गया है। याने राज्य बनने के बाद इसमें 130 फीसदी का इजाफा हुआ है। और इसी हिसाब से नक्सली हिंसा भी बढ़ी है। 

होइहे सोई जो....

डीजीपी की कुर्सी संभालने के बाद रामनिवास ने आखिर क्या नहीं किया था। अवधूत शिवानंद महाराज ने रायपुर आकर य़ज्ञ किया। अभिषेक का जल पुलिस मुख्यालय में छिड़का गया। अवधूत बाबा खुद डीजीपी के कमरे में गए। वास्तु के हिसाब से डीजीपी के चेम्बर का दरवाजा से लेकर पीए रुम तक का नक्शा बदला गया। मगर कुछ काम नहीं आया। नक्सल इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना छत्तीसगढ़ में हो गई। पूरा देश हिल गया। ट्रेन को हाईजैक कर कुख्यात अपराधी को भगा ले जाने की वारदात भी छत्तीसगढ़ में ही हुई। इस मामले में पूर्व डीजीपी अनिल नवानी किस्मती रहे। उनके 17 महीने के कार्यकाल में कोई बड़ी घटना नहीं हुई। पीएचक्यू के लोग अब काका को याद कर रहे हैं। 

दीया तले अंधेरा

राज्य की लालफीताशाही से पुलिस के आला अधिकारी भी नहीं बच पा रहे। आठ महीने बाद डीजीपी की कुर्सी संभालने वाले गिरधारी नायक भी इससे जूझ रहे हैं। नायक डीजी के लिए 30 साल की सेवा की अर्हता पूरी कर लिए हैं और संतकुमार पासवान के रिटायरमेंट के बाद डीजी की एक पोस्ट भी खाली है। इसके बाद भी उन्हें दो महीने से झुलाया जा रहा है। जबकि, आईएएस का प्रमोशन टाईम से दो-चार महीने पहले हो जाता है। टाईम से पहले नहीं हुआ तो उनके लिए यह प्रेस्टिज इश्यू बन जाता है। खैर, नायक तो एक बानगी हैं। ऐसे ढेरों केस हैं। ऐसे में पुलिस नक्सलियों से किस उत्साह से लडेंगी, समझा जा सकता है।

अलग-थलग

दरभा नक्सली हमले के बाद सबसे बड़ा खतरा बस्तर का अलग-थलग पड़ने का दिख रहा है। डेढ़ दशक में 2 हजार से अधिक नागरिकों और सुरक्षा बलों को मारने पर भी माओवादी आम लोगों में भय पैदा करने में कामयाब नहीं हो पाए थे। लोगों में धारणा थी कि माओवादी आम आदमी और जनप्रतिनिधियों को आमतौर पर निशाना नहीं बनाते। मगर दरभा के बाद यह धारणा टूट गई है। अब तो लोग बस्तर जाने की सोच कर कांप जा रहे। भय अफसरों में भी है। एक सीनियर आईएएस ने दो टूक कहा, अब तो कांकेर के आगे जाना ही नहीं है। जान है तो जहां है। सरकार हेलीकाप्टर देगी तब ही बस्तर जाया जाएंगे। मगर इस ओर किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नहीं है। सभी आरोपी-प्रत्यारोप में लगी हुई हैं।  

सेंसेटिव मंथ

नक्सली हमले के हिसाब से फरवरी से मई तक का समय काफी संवेदनशील माना जाता है। अप्रैल और मई तो और भी ज्यादा। नक्सलियों ने बस्तर में पहला ब्लास्ट राजीव गांधी की मौत के दो दिन पहले 19 मई 1990 को किया था। तब आठ जवान शहीद हुए थे। देश को दहला देने वाली ताड़मेटला की घटना में 6 अप्रैल को हुई। दरभा हमला भी 25 मई को हुआ। आंकड़ों पर गौर करें तो बस्तर में 70 फीसदी से अधिक घटनाएं मार्च से मई के बीच हुई हैं। इसके बाद भी अगर खुफिया तंत्र सजग नहीं था तो फिर राज्य का भगवान ही मालिक हैं।

ब्लैक आपरेशन

आपरेशन ग्रीन हंट छत्तीसगढ़ के लिए ब्लैक आपरेशन बन गया। 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को मार डाला था, तब बस्तर में आपरेशन ग्रीन हंट चालू करने की तैयारी थी। घटना के बाद आपरेशन बंद कर दिया गया। चुनावी साल में नक्सलियों को मारने से सरकार को लाभ होगा, इस अंदेशे से पुलिस महकमा फिर आपरेशन ग्रीन हंट शुरू करने जा रहा था। हालांकि, मीडिया को इससे अनभिज्ञ रखा गया, लेकिन यह सौ फीसदी सही है कि ताड़मेटला कांड के तीन साल बाद फोर्स को जंगल में मूव किया जा रहा था। फोर्स कोई कार्रवाई करती, इससे पहले नक्सलियों ने खूनी हमले को अंजाम दे दिया।

खाता खुला

दरभा नक्सली हमले में रमन सरकार ने जगदलपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव को सस्पेंड कर दिया। सस्पेंड होने वाले वे छत्तीसगढ़ के पहले आईपीएस होंगे। इससे पहले, राज्य बनने के बाद 12 साल में कोई आईपीएस निलंबित नहीं हुआ था। जबकि, तीन आईएएस सस्पेंड हो चुके हैं। और चैथा भी आजकल में सस्पेंड हो सकता है। बहरहाल, आईपीएस अफसरों का खाता खुल गया है। आगे देखिए, चुनावी साल में और किसका-किसका नम्बर लगता है। 

संकट में सौरभ

पीसीसी अघ्यक्ष नंदकुमार पटेल के नहीं रहने से अकलतरा विधायक सौरभ सिंह का कांग्रेस प्रवेश अटक सकता है। सौरभ का न केवल कांग्रेस प्रवेश पक्का हो गया था  बल्कि टिकिट मिलना भी तय था। सौरभ ने भी मन बना लिया था और इसकी जानकारी बताते हैं, उन्होंने बसपा को भी दे दी थी। बस, अब उन्हें कांग्रेस से हरी झंडी का इंतजार था। दरअसल, पटेल ने ही उन्हें अश्वस्त किया था और इसके लिए दिल्ली के नेताओं को राजी भी कर लिए थे। जबकि, अजीत जोगी खेमा सौरभ के कांग्रेस प्रवेश का लगातार विरोध कर रहा है। अब, चूकि जोगी खेमा प्रभावशाली हो गया है, जाहिर है, सौरभ की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    सरगुजा और बस्तर में आईजी रहे एएन उपध्याय के अनुभवों का लाभ नक्सली आपरेशन में क्यों नहीं लिया जा रहा है?
2.    प्रशासन और पुलिस के दो शीर्ष अधिकारी राज्यपाल से किसलिए मिलने गए थे?

















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