शनिवार, 20 जुलाई 2013

तरकश, 21 जुलाई


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दूसरा आईएएस

मूर्ति के बाद आरसी सिनहा राज्य के दूसरे डायरेक्ट आईएएस होंगे, जिन्हें अब सिकरेट्री से ही रिटायर होना पड़ेगा। फूड पार्क घोटाले में सिनहा का दो इंक्रीमेंट रोकने की सजा मिली है। जाहिर है, अगले दो साल तक उनका प्रमोशन नहीं होगा। और सजा की अवधि जब तक पूरी होगी, ठीक उसी समय, जुलाई 2015 में वे रिटायर हो जाएंगे। याने सिकरेट्री से ही। फूडपार्क घोटाला 2004 में उजागर हुआ था। उसकी जांच में नौ साल लग गए। सिनहा 82 बैच के आईएएस हैं। उनके बैच के डीएस मिश्रा एडिशनल चीफ सिकरेट्री बन गए हैं। जांच की लेटलतीफी से आईएएस खुश नहीं हैं। सिनहा की डीई अगर समय पर हो गई होती तो छह साल पहले उन्हें सजा मिल गई होती और आज वे एसीएस होते। इससे पहले, नारायण सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ था। 10 साल बाद उन्हें डिमोशन की सजा मिली थी। आईएफएस अफसरों के आरा मिल कांड में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। 2005 के इस प्रकरण में जांच पूरी होने के बाद भी फाइल इधर-से-उधर घूम रही है। ढाई करोड़ के इस प्रकरण में अफसरों से अब तक पांच करोड़ से अधिक वसूली हो चुकी है। और मामला वहीं का वहीं है।

अब लोक आयोग

लंबे समय तक ग्रह-दशा के शिकार रहे सूबे के सीनियर आईएएस नारायण सिंह के पिछले हफ्ते ही दिन फिरे थे। आदिवासी कार्ड चलते हुए सरकार ने उन्हें राज्य विद्युत नियामक आयोग का चेयरमैन अपाइंट किया था। मगर उनकी परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। डीओपीटी के बाद, उन्हें अब लोक आयोग की जांच का सामना करना पड़ सकता है। तकनीकी शिक्षा सचिव रहने के दौरान प्रदेश के आईटीआईज में बिना टेंडर करोड़ों का ट्रेनिंग प्रोग्राम का ठेका एक पार्टी को देने के मामले में लोक आयोग में शिकायत हो गई है। रायपुर के आरटीआई कार्यकर्ता भाविन जैन ने नारायण के अलावा तकनीकी शिक्षा संचालनालय के दो दर्जन अधिकारियों, कर्मचारियों को पार्टी बनाया है। लोक आयोग के सूत्रों की मानें तो जैन के दस्तावेजों में दम है। सो, अयोग में कभी भी यह मामला दर्ज हो सकता है।

ब्यूरोक्रेटिक मिनिस्टर

अमर अग्रवाल को ब्यूरोक्रेसी के पंसदीदा मिनिस्टर ऐसे ही नहीं  कहा जाता। वे अफसरों का पूरा खयाल रखते हैं। आईएएस अफसर और बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर अवनीश शरण की 13 जुलाई को पटना में शादी हुई, उसमें अमर अपने लोगों के साथ मौजूद थे। अब ऐसे में आईएएस भी उन्हें क्यों नहीं चाहेंगे। आईएएस बताते हैं, वे नाहक प्रेशर नहीं डालते। ना ही ट्रांसफर पोस्टिंग का दबाव रहता है। यही वजह है कि प्रदेश के अधिकांश आईएएस उनके साथ काम करना चाहते हैं।

कमाल का दिमाग

पिछले संडे को वन मंत्री विक्रम उसेंडी सुबह-सुबह लाव-लश्कर के साथ विधानसभा के निकट स्थित राज्य वन अनुसंधान संस्थान-एसएफआरआई-पहुंच गए। साथ में सूटकेस और बैग भी थे। मंत्रीजी के लागेज लेकर  पहुंचने से संस्थान का स्टाफ आवाक था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसेंडी के लोगों को भी निर्देश थे कि कुछ बताना नहीं है। मंत्रीजी ने कैम्पस के सघन वृक्षों  के पास खड़े होकर विभिन्न पोजों में वीडियोग्राफी कराई। कई ड्रेस भी बदलें। बाद में पता चला, मंत्रीजी ने चुनाव प्रचार के लिए फिल्म बनवाई है। अब, नक्सलियों की वजह से वे अपने इलाके में जाकर शूटिंग तो करा नहीं सकते। सो, एसएफआरआई के कृत्रिम जंगलों को पखांजूर का जंगल बताकर वन मंत्री की उपलब्धियांे को फिल्मा लिया गया। है ना कमाल का दिमाग।

सीधा कनेक्शन

रमन सरकार ने बिजली उपकर कम करके राज्य के 32 लाख धरेलू बिजली उपभोक्ताओं से सीधा कनेक्शन जोड़ लिया है। अब, हर साल की तरह बिल बढ़ने के बजाए चार परसेंट तक कम आएंगे। हालांकि, रमन के रणनीतिकार इसे 10 से 12 फीसदी तक बताते हैं। अफसरों का तर्क है, महंगाई 10 फीसदी बढ़ रही है, उस हिसाब से बिजली की दर बढ़ने के बजाए कम हो गए हैं। बताते हैं, सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह और सुबोध सिंह इस काम में कई दिन से लगे थे। देश के कई राज्यों से बिजली उपकर का मिलान किया गया। पता चला, मध्यप्रदेश के समय से छत्तीसगढ़ में 23 फीसदी बिजली उपकर है। दोनों ने मिलकर इसका ड्राफ्ट तैयार किया। और इसका ऐलान हो गया। काश! बिजली की तरह पेट्रोल पर सरकार वेट कम कर देती।

पुअर पारफारमेंस

दरभा नक्सली हमले के बाद मानसून सत्र को ढाई दिन में खतम करवाने के लिए कांग्रेस भले ही अपनी पीठ थपथपा लें। मगर सियासी पंडित भी कांग्रेस के इस स्टैंड से सहमत नहीं है। कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं का भी मानना है कि पार्टी के पास सरकार को एक्सपोज करने का बढि़यां मौका था। नक्सली हमले में जो चूक हुई, विपक्षी विधायक सरकार की बधिया उधेड़ सकते थे। इस ज्वलंत मुद्दे को मीडिया में भी अच्छा कवरेज मिलता। मगर विपक्ष ने मौका गंवा दिया।

शह-मात का खेल

महासमुंद से विद्याचरण शुक्ल की बेटी प्रतिभा पाण्डेय को चुनाव लड़ाने की घोषणा को कांग्रेस में चल रही शह-मात की सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, महासमंुद से अजीत जोगी की दावेदारी करने की तैयारी है। मगर सामने विधानसभा चुनाव होने के चलते उन्होंने अभी पत्ता ओपन नहीं किया है। वे एक बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं। उधर, अमितेश शुक्ल की भी अपने चाचा की इस सीट पर दिलचस्पी थी। प्लान यही था कि राजिम विधानसभा से अमितेश का बेटा भवानी चुनाव लड़ेंगे और वे लोकसभा का। मगर संगठन खेमा ने भारी पड़ गया। अब, प्रतिभा को किनारे करना दोनों के लिए मुश्किल होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कारगुजारियों के लिए बदनाम किन दो पुलिस अधीक्षकों को सरकार हटाने पर विचार कर रही है?
2. ननकीराम कंवर से भिड़ जाने वाले जशपुर कलेक्टर एलएस केन के खिलाफ नोटिस तक इश्यू क्यों नहीं हो पाया?

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