शनिवार, 3 अगस्त 2013

तरकश, 4 अगस्त

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मुश्किल में मंत्रीजी

अक्सर ऐसा कहा जाता है, नाम में क्या रखा है। मगर ऐसा नहीं है, नाम के चक्कर में रमन सरकार के एक सीनियर मंत्री की रात की नींद उड़ गई है। दरअसल, मंत्रीजी ने अपने षहर में एक नर्सिंग होम बनवाया है। उन्होंने उसका जो नाम रखा है, वहीं नाम उनके एक करीबी समर्थक की बिटिया का भी है। अब उसको लेकर मंत्रीजी के इलाके से लेकर राजधानी रायपुर तक पर्चे बंट रहे हैं। लाल-पीले पर्चे में सवाल उठाए गए हैं कि आखिर,मंत्रीजी ने अपने समर्थक की बेटी के नाम पर अस्पताल क्यों खोला है। मामले को नारायणदत्त तिवारी एपीसोड की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसे में मंत्रीजी की परेशानी समझी जा सकती है। वे इन दिनों मीडिया से भी बच रहे हैं। और ना ही उनके बयान ही आ रहे हैं।

बिन मलाई का दूध

पीडब्लूडी के लोगों को एडीबी के तहत बनने वाली सड़कों से बड़ी उम्मीद थी। 300 करोड़ का मामला था। मगर समय जो न कराए। अफसरों ने पलीता लगा दिया। असल में, एडीबी फेज टू के तहत बनने वाली सड़कों के लिए जानबूझकर 1900 करोड़ का एस्टीमेट बनाया था गया था। जबकि, फेज वन 1500 करोड़ का था। षिकायत होने पर चीफ सिकरेट्री ने सुनिल कुमार ने इसकी रेंडम जांच करा दी और साजिश का खुलासा हो गया। इसके बाद सीएस के निर्देश पर पीडब्लूडी सिकरेट्री आरपी मंडल ने सभी सड़कों का सत्यापन कराया। और जो रिपोर्ट आई, अफसरों को पैर के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई। एस्टीमेट में 300 करोड़ रुपए बढ़ा दिया गया था। फाईल वित्त विभाग गई और वहां डीएस मिश्रा ने 1900 करोड़ को 1600 करोड़ कर दिया। याने दूध से पूरी मलाई निकाल ली। अब बिन मलाई का दूध पीना पड़ेगा। 58 करोड़ में बनने वाले स्टेडियम को 21 करोड़ में बनाने के बाद यह दूसरी बड़ी कामयाबी होगी, जब गड़बड़ी होने के पहले ही उसे पकड़कर सरकार ने 300 करोड़ करोड़ रुपए बचा लिया।

टा….टा……

राजस्व अधिकारियों के रवैये से आहत होकर टाटा ग्रुप बस्तर को कहीं टा…टा……. कर दें, तो आश्चर्य नहीं। 250 करोड़ रुपए जमा कराने के बाद भी उसके लिए अभी तक एक इंच जमीन अधिग्रहित नहीं की गई है। और कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अब उसका धैर्य चूक रहा है। हालांकि, यही हाल दीगर जिलों के भी हैं। जांजगीर जिले के सक्ती में एमको पावर प्लांट ने 3 साल पहले मुआवजे के लिए 55 करोड़ रुपए जमा करा दिया था। लेकिन अब वह उद्योग विभाग को पत्र लिखकर अपना पैसा वापिस मांग रहा है। उसके लिए छटाक भर भी भूमि अधिग्रहित नहीं की गई। रमन सिंह ने पिछले साल ही इंवेस्टर मीट किया था। उद्योगपतियों को लाल जाजम बिछाकर स्वागत किया गया। उस पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। मगर अब, अफसर ही सीएम की निवेश योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं। सीएसआईडीसी कलेक्टरों को पत्र लिखकर थक गया, कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सीएम को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की भी कभी-कभार समीक्षा करनी चाहिए कि आखिर, अफसर उसमें क्या कर रहे हैं।

अमिताभ को उद्योग

डेपुटेशन पूरा होने के बाद आईएएस अमिताभ जैन अगले हफ्ते छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। जैन 89 बैच के आईएएस हैं और अभी सिकरेट्री हैं। हालांकि, लंदन दूतावास से दो महीने पहले वे रिलीव हो चुके थे मगर वहां उनके बच्चे की परीक्षा की वजह से रुक गए थे। जैन को उद्योग और वाणिज्य की कमान सौंप कर एन बैजेंद्र कुमार को हल्का किया जाएगा। पिछले फेरबदल में बैजेंद्र को उद्योग और वाणिज्य इसीलिए सौंपा गया था कि जैन के आने पर उन्हें दे दिया जाएगा। उधर, अमित अग्रवाल भारत सरकार से रिलीव हो गए हैं, मगर कुछ दिनों के लिए वे छुट्टी पर चले गए हैं। सो, अग्रवाल के लौटने को लेकर अभी दुविधा की स्थिति है।

तलवार लटकी

पुराने आईजी प्रशासन पवनदेव ने लाख कोषिषों के बाद भी एडिशनल एसपी आईएच खान को रिटायरमेंट के पश्चात संविदा पोस्टिंग से नहीं रोक पाए थे। ईओडब्लू की प्रतिकूल टिप्पणी के बाद भी उपर से वीटो लगवाकर आदेश निकाल दिया गया था। मगर सवाल यह है कि चुनाव आयोग की भृकुटी से अब खान को कौन बचाएगा। खान का रायपुर में तीन साल से अधिक हो गया है। और यह कहकर उन्हें नहीं बचाया जा सकता कि वे संविदा में हैं। क्योंकि, उनकी फील्ड की पोस्टिंग है। सरकार को अपने प्रिय सीएसपी जीएस बाम्बरा के लिए भी कुछ करना पड़ेगा।

……..छोड़ो फार्मूला

हालत से समझौता न करने की ठानी एक सीनियर कांग्रेस नेता ने अब, निर्णायक लड़ाई का खाका तैयार कर लिया है। अगस्त और सितम्बर के लिए उन्होंने तीन सूत्रीय फार्मूला बनाया है। पहला, असहयोग आंदोलन, दूसरा, अवज्ञा आंदोलन और तीसरा ;…….द्ध छोड़ो। गर 15 सितंबर तक कोई पाजीटिव मैसेज नहीं आया, तो छोड़ो वाला चालू कर देंगे। सितंबर लास्ट वीक तक नई पार्टी खड़ी हो जाएगी। सियासी समीक्षकों का कहना है, नेताजी के पास समय बहुत कम है। दो महीना ही तो बचा है। और अब वे पांच साल तक इंतजार कर नहीं सकते। आलाकमान भी पीछे हटना नहीं चाहता। भले ही एक राज्य ना सही। सो, तीसरी पार्टी के चलते विधानसभा चुनाव और दिलचस्प हो सकता है।

रांग पालिसी

पुलिस मुख्यालय की गलत नीति का खामियाजा सरकार और पुलिस प्रशासन को भुगतना पड़ेगा। मालूम है कि चुनाव में तीन साल वाले को हटा दिया जाता है, उसके बाद भी थोक की संख्या में पुलिस अफसरों को एक ही जगह पर रखकर चुनाव का इंतजार किया जाता रहा। अब आलम यह है कि रायपुर समेत अमूमन सभी जिलों के आधे से अधिक एसआई और टीआई बदल गए हैं। और इसी तादात में सीएसपी और एडिशनल एसपी भी बदलने वाले हैं। चुनाव के टाईम में नए अफसर आकर क्या कर पाएंगे। पीएचक्यू चाहता तो पिछले एक साल में फेज वाइज ट्रांसफर कर सकता था। मगर ऐसा नहीं हुआ। सब अपने-अपने में लगे हैं, कानून-व्यवस्था की बेहतरी से किसको मतलब है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीएम सचिवालय के किस अफसर के जमकर हड़काने पर जिंदल ग्रुप ने रायगढ़ इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन चालू किया?
2. दिल्ली में हुई योजना आयोग की बैठक में किस सीनियर आईएएस ने सरकार के कार्यों से अधिक अपना गुणगान किया?

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