शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

तरकश, 6 अक्टूबर

तरकश, 6 अक्टूबर

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जो होता है……

कहते हैं, जो होता है, अच्छा होता है। कम-से-कम प्रींसिपल सिकरेट्री अजय सिंह और एनके असवाल के मामले में तो यह सही उतर रहा है। दोनों को एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनाने के लिए 5 अक्टूबर को रायपुर में डीपीसी होनी थी। मगर दो रोज पहले डीओपीटी सिकरेट्री ने उस दिन रायपुर आने से असमर्थता व्यक्त कर दी। आईएएस लाबी को लगा, अब देरी हुई तो मामला लटक जाएगा। सो, उच्च स्तर पर प्रयास हुआ और एक दिन पहले याने चार अक्टूबर को रायपुर के बजाए दिल्ली में डीपीसी करने का फैसला लिया गया। और डीपीसी के घंटे भर बाद चुनावा आयोग ने बिगुल बजा दिया। जाहिर है, कम-से-कम पांच अक्टूबर को डीपीसी कतई नहीं हो पाती। चुनाव आयोग को लेटर भेज कर इजाजत ली जाती। तब डीओपीटी सिकरेट्री की सुविधा के हिसाब से नया डेट तय होता। मान कर चलिए एकाध महीने तो इसमें निकल ही जाता। कहने का आशय यह है, जो होता है…..।

माटी पुत्रों में जंग

अजय सिंह और एनके असवाल के एसीएस बन जाने के बाद अब चीफ सिकरेट्री की कुर्सी पाने की जंग दिलचस्प हो जाएगी। अगले साल फरवरी में सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद स्वभाविक तौर पर इसके पांच दावेदार हो गए हैं। हालांकि, इनमें एक को तो आउट आफ रेस ही मानिये। एक को फिलहाल इस तरह के सपने नहीं आते। बचें तीन में दो माटी पुत्र हैं। और जबर्दस्त रिसोर्सफुल भी। एक रायपुरिया तो दूसरा बिलासपुरिया। एक जरूरत से ज्यादा धाकड़ तो दूसरे की पत्नी भी तगड़ा एप्रोच वाली है। सो, एक और एक मिलकर ग्यारह हो गया तो छोटे मियां भी सिकंदर बन सकते हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह ने आखिर, सीनियरटी में 12 वें नम्बर के राकेश साहनी को सीएस नहीं बना दिया था।

कौंवा मार कर

हर बार ऐसा होता है, निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथियों का ऐलान करने के साथ ही दो-एक आईएएस, आईपीएस को झटका देकर कड़े रुख का मैसेज देता है। बिल्कुल, कौंवा मारकर टांगने जैसा। उसके बाद अफसर ऐसा सहमते हैं कि चूं से चांए नही होता। ब्यूरोके्रसी में इस बार भी बडी उत्सुकता है कि चुनाव आयोग इस बार किसे कौंवा बनाता है। याद होगा, 2003 के चुनाव में बीएस अनंत जोगी के हेलीकाप्टर पर सवार हो गए थे। इस चक्कर में वे निबटे थे। ऐसे कई नाम हैं, जिनका मामला गंभीर ना होने के बाद भी वे कौंवा बन गए। हालांकि, बिलासपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह का केस कुछ अलग होगा। उनके निकटतम रिश्तेदार आशीष सिंह को तखतपुर से टिकिट लगभग तय दिख रहा है। सो, इस आधार पर बिलासपुर में नया कलेक्टर पोस्ट हो सकता है। वरना, राम सिंह बनें रहंेगे।

हम हैं राजकुमार…..

चार अक्टूबर को चुनाव का ऐलान होते ही अफसरों ने ठंडी आहें भरी। अब ढाई महीने तक मंत्रियों और नेताओं की खुशामद करने का कोई लफड़ा नहंी। न यस सर कहने की बाध्यता। न जी-हुजूरी। याने एकदम आजाद। मंत्री प्रायवेट गाड़ी में और अफसर ठसके से पीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी में। यहां के हम हैं राजकुमार…..जैसे। राजधानी में पोस्टेड एक युवा आईएएस की सुनिये, परीक्षा खतम होने के बाद जिस तरह राहत महसूस होती है, कुछ वैसा ही कल भी लगा।

कांग्रेस फस्र्ट?

सताधारी पार्टी चुनावी तैयारियों में भले ही प्लस होने का दावा करें मगर कांग्रेस की टिकिट पहले धोषित होगी। पता चला है, कांग्रेस की लिस्ट तैयार है। कल सीईसी में अनुमोदन होगा। इसके बाद सुची कभी भी प्रेस को जारी हो सकती है। सियासी सूत्रों की मानंे तो लिस्ट अबकी कुछ चैंकाने वाली होगी। कई बड़े नेताओं को इसमें झटका लगा सकता है। एक आला नेता के परिजन को पार्टी ने कहीं से भी टिकिट देने से दो टूक इंकार कर दिया है।

महिला महापौर

विधानसभा चुनाव में अबकी सूबे के दोनों बड़े नगर रायपुर और बिलासपुर की महिला महापौरों को कांग्रेस ने मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। सूत्रों का कहना है, दोनों की टिकिट लगभग फायनल है। रायपुर दक्षिण से किरणमयी नायक और बिलासपुर से वाणी राव। हालांकि, बिलासपुर में अमर अग्रवाल को जीताने के लिए कांग्रेस के एक प्रभावी गुट ने कमर कस लिया है। मगर रायपुर में मोहन भैया को किरण से परेशानी हो सकती है। किरण जुझारु नेत्री है। सो, उनके समझौता करना भी मुश्किल है। लगता है, रायपुर दक्षिण में अबकी लोगों को रीयल कुश्ती देखने को मिलेगी, नुरा कुश्ती नहीं।

बस्तर में कांग्रेस

बस्तर को लेकर कांग्रेस लाख दावा कर लें, मगर सीनियर कांग्रेसी भी मानते हैं कि वहां स्थिति बहुत ठीक नहीं है। आलम यह है कि 12 सीटों में से पांच पर टिकिट देने के लिए उसे ठीक-ठीक आदमी नहीं मिल रहे। गुटीय लड़ाइयों की वजह से पार्टी जीरम नक्सली हमले को कैश करने में नाकाम रही। उसके पास बस्तर टाईगर महेंद्र कर्मा अब रहे नहीं। उनके परिजनों में कर्मा जैसी बात नहीं है। उल्टे, 2008 में जीती एकमात्र कोंटा सीट भी अबकी हाथ से निकल जाए, तो आश्चर्य नहीं। कांेटा में अबकी मनीष कुंजाम की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस को भानुप्रतापपुर में मनोज मंडावी की एक सीट मिलना निश्चित लग रहा है। ऐसे में, बस्तर में कांग्रेस के दावे गड़बड़ाते दिख रहे हैं। और इसको लेकर कांग्रेस के सीनियर लीडर भी चिंतित दिख रहे हैं। और तभी रमन सिंह भी इतने कांफिडेंट दिख रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1.    प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर मुदित कुमार ने प्रोबेशनर आईएएस के मामले में ऐसा क्या किया कि आईएएस बिरादरी उनसे नाराज हो गया है?
2.    बिलासपुर रेंज के आईजी ने पिछले तीन महीने में कुछ अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की और पुलिस मुख्यालय में उसे पलट दिया। इसके पीछे वजह क्या है?

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