शनिवार, 14 दिसंबर 2013

तरकश, 15 दिसंबर

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रमन एक्सप्रेस

सत्ताधारी पार्टी के लिए यह राहत की बात होगी…….सूबे में अब न आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ पाएगी और ना ही ओबीसी की कोई लामबंदी होगी। दौड़ेगी तो सिर्फ रमन एक्सप्रेस। दरअसल, धरमलाल कौशिक, चंद्रशेखर साहू, हेमचंद यादव और नारायण चंदेल जैसे सत्ताधारी पार्टी के ओबीसी चेहरे चुनाव हार गए। तो शीर्ष आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम और ननकीराम कंवर भी अपनी सीट नहीं बचा सकें। यही नहीं, जिस बस्तर की बदौलत दोनों बार भाजपाकी सरकार बनी थी, वहां पार्टी 11 से चार सीट पर सिमट गई। आदिवासी एक्सप्रेस के डिरेल होने का एक नजारा बुधवार को सीएम हाउस में दिखा। 10 साल तक मंत्रीगिरी किए एक आदिवासी विधायक सीएम के सामने सहमे हुए खड़े थे। तो आदिवासी एक्सप्रेस का शिगुफा छोड़ने वाले नेता रमन से कह रहे थे, डाक्टर साब, केवल आपके चलते पार्टी जीती है। वरना, लुटिया डूब गई होती। अब क्या करें……मजबूरी है…….।

मंत्रियों पर अंकुश

रमन सिंह के चेहरे पर भरोसा करके जनता ने भाजपा को भले ही सिंहासन पर बिठा दिया हो मगर जनता की उम्मीदों पर सरकार खरी नहीं उतरी और मंत्रियों ने अपना काम नहीं सुधारा तो इस बार आधे मंत्री ही हारे हैं, 2018 मेंऔर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। दिल्ली जैसे हालत के खतरे भी होंगे। 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस वहां एक अंक में आ गई। बहरहाल, मंत्री बनने से पहले ही नेताओं ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। राजधानी के एक बड़े हाउस में कुछ अफसरों से चर्चा करते हुए एक नेता खम ठोक रहे थे, अब फिर जीत कर आ गया हूं, और फलां अफसर को छोड़ूंगा नहीं। भाजपा की जीत से मंत्री बौराए मत, इसके लिए सरकार और संगठन दोनों को नजर रखना होगा। खासकर रमन की चुनौती बढ़ गई है। उन्हें लोगो के मन को समझना होगा। लोग चाहते हैं कि मंत्रियों की निरंकुशता पर लगाम लगाई जानी चाहिए। कई मंत्री मैनेजमेट और पैसे के जोर पर भले ही चुनाव निकाल लिए हो, मगर इसे भी ध्यान रखना होगा कि उनके भ्रष्ट कारनामों की वजह से सत्ताधारी पार्टी बदनाम हुई और दूसरी सीटों पर इसका असर भी दिखा। हालांकि, अफसरों की पहली मीटिंग मे सीएम ने भ्रष्टचार के खिलाफ बातें करके अपरोक्ष तौर पर भावी मंत्रियों को कड़ा संदेश देने का काम किया कि अब ऐसा नहीं चलेगा।

बल्ले-बल्ले

डा0 रमन सिंह की हैट्रिक बनने से ब्यूरोक्रेसी में भी जश्न का माहौल है। होगा भी क्यों नहीं, जो मंत्री और विधायक सरकार में अफसरशाही हावी होने का आरोप लगाते रहे, वे सभी निबट गए या मैनेजमेंट करके जीत पाए। पांच मंत्री समेत आठ दिग्गज नेता निबट गए। काम आया रमन का चेहरा और अफसरों द्वारा किए गए विकास के काम।

मैनेजमेंट

पहले चरण की 18 सीटों पर पार्टी के पिछड़ने की रिपोट्र्स रमन सिंह को मिल गई थी। सरगुजा में भी हालात अच्छे नहीं थे। इसलिए, उन्होंने मैदानी इलाके की सीटों पर पूरा फोकस किया। और उनकी रणनीति कामयाब रही। एक-एक सीट को खुद हैंडिल किया। मंत्रियों में अमर अग्रवाल की स्थिति कुछ थी। बाकी सभी अपना किला बचाने में लगे थे। बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री रायपुर दक्षिण से बाहर नहीं निकल सकें। इसलिए, मंत्रियों से कोई सहयोग नहीं मिला। ऐसे में, रायगढ़ में बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री गिरिराज किशोर को, तो दुर्ग, कवर्धा में नागेन्द्र सिंह को बिठाया गया। अमर की जीत में कोई शंका नहीं थी, इसलिए सीएम ने पोलिंग के 24 घंटे पहले अमर को फोन करके बेलतरा और तखतपुर में मदद करने कहा। जाहिर है, इन दोनों सीटों का बड़ा हिस्सा बिलासपुर शहर से लगा है। बेलतरा के 55 हजार वोट बिलासपुर के शहरी इलाके में हैं। दोनों सीटों की स्थिति बुरी थी। और भाजपा की हारने वाली सूची में ये दोनों सीटें सबसे उपर थी। मगर मैनेजमेंट का कमाल कि दोनों ही सीटें भाजपा के खाते में चली गई।

पुराने चेहरे

चूकि सरकार रिपीट हो गई है, इसलिए लोकसभा चुनाव तक नौकरशाही में बड़ा फेरबदल नहीं होने वाला। बहुत हुआ तो एकदम खराब परफारमेंस वाले दो-तीन कलेक्टर, एसपी चेंज हो जाएं। सीएम सचिवालय के चेहरे भी वही होंगे। उधर, भारत सरकार ने रिटायरमेंट दो साल नहीं भी बढ़ाया तो सरकार चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार को फरवरी में रिटायर नहीं करने वाली। रमन चाहते हैं कि कम-से-कम लोकसभा चुनाव तक यहां रहें। पता चला है, उन्हें छह महीने का एक्सटेंशन दिया जाएगा।

गड्ढा खोदा

ठीक ही कहते हैं, दूसरों के लिए गड्ढा नहीं खोदना चाहिए, आदमी उसमें कभी खुद भी गिर सकता है। सरगुजा के एक भाजपा नेता ने पास-पड़ोस की सीटों पर पार्टी की लुटिया डूबाने में कोई कमी नहीं की। कई साथियों को हराने के लिए उन्होंने सुपारी दे दी थी। मगर विरोध की आंधी में खुद भी निबट गए। नेताजी के चलते सामरी जैसी सीट भाजपा लूज कर गई, जहां से कांग्र्रेस आज तक सिर्फ एक बार जीती है। पिछले छह चुनाव से वहां भाजपा जीतते आ रही थी। नेताजी ने रेणुका सिंह को भी हरवा दिया। आलम यह रहा कि भैयालाल रजवाड़े जब रमन सिंह से मिलने सीएम हाउस पहुुंचे तो कहा, मैं जीरम घाटी से बचकर आ रहा हूं, वरना, मुझे मारने के लिए पूरी घेरेबंदी थी।

भावुक हुए रमन

काउंटिंग के दूसरे दिन दुर्ग ग्रामीण की विधायक रमशीला साहू जब सीएम हाउस पहुंची तो उन्हें देखकर रमन सिंह भावुक हो गए। आगंतुक कक्ष में जब सामने रमशीला पड़ी तो उन्होंने कहा, अदृभूत…..रमशीला तुमने तो गजब कर डाला……तुमने तो असंभव को संभव बना डाला। असंभव वाली बात को उन्होंने तीन बार रिपीट किया। जाहिर है, रमशीला को रमन ने ही मैदान मंे उतारा था और लोग छूटते ही कहते थे, रमशीला तीसरे नम्बर पर आएंगी।

 अंत में दो सवाल आपसे

1. बृजमोहन अग्रवाल से 35 हजार वोट से किरणमयी नायक के हारने के पीछे क्या चक्कर था?
2. रमन सिंह के पुराने मंत्रिमंडल के किन दो मंत्रियों को ड्राप करने की चर्चा है?

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