शनिवार, 21 दिसंबर 2013

तरकश, 22 दिसंबर

tarkash logo

पुनर्गठन की तलवार

मंत्रिमंडल में तीन पोस्ट बचाकर सीएम ने विधायकों को सिर्फ लालीपाप नहीं दिखाया बल्कि, मंत्रियों पर भी तलवार लटका दिया है। जाहिर है, लोकसभा चुनाव के बाद जब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होगा तो ऐसा नहीं है कि केवल तीन नए मंत्री ही शामिल होंगे। पुराने के कुछ विभाग खिसक सकते हैं तो कुछ का कद भी बढ़ सकता है। आखिर, नगरीय प्रशासन विभाग सीएम ने अपने पास रखा है, उसे किसी नए मंत्री को तो वे देंगे नहीं। बहरहाल, लोकसभा चुनाव में, जिस मंत्री के इलाके में पार्टी का ग्राफ गिरा, तो वहां कुछ भी हो सकता है। इस खतरे से मंत्रीगण अनजान नहीं हैं। तभी तो, दस का दम दिखाते हुए मुख्यमंत्री ने कई मंत्रियों का कद बौना किया तो किसी ने उह, आह भी नहीं किया। दबंग मगर गंभीर मिजाज के एक मंत्रीजी शपथ ग्रहण के एक दिन पहले शाम को सीएम हाउस पहुंचे थे। विभाग का संदर्भ आया तो बड़ी विनम्रता से उन्होंने कहा, आप मुख्यमंत्री हैं, आप जो विभाग दे दीजिए, मुझे कोई दिक्कत नहीं है। शुक्रवार को मंत्रालय में कार्यभार संभालने के बाद मंत्रीगण मुख्यमंत्री से उनके कक्ष में बुके भेंट कर धन्यवाद देना नहीं भूले।

कत्ल की रात

16 दिसंबर की रात मंत्रिपद के दावेदारों के लिए कत्ल की रात से कम नहीं थी। सीएम दिल्ली से लिफाफा लेकर लौट चुके थे। और मार्केट में तरह-तरह की अफवाहें चल रही थी….. कोई सीनियर मंत्रियों को लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात कर रहा था……कुछ को किनारे करने की अटकलें लगाई जा रही थी। सीएम हाउस से कोई खबर नहीं आ रही थी। सभी अपना मोबाइल आन रखे थे। खासकर व्यक्तिगत मोबाइल की घंटी बजने पर तत्काल लपकते ……शायद सीएम हाउस से बुलौवा होगा। मगर रात में कोई संदेश नहीं आया। मंत्रियों की जान में जान तब आई, जब 17 दिसंबर को सीएम हाउस से फोन आना प्रारंभ हुआ। हालांकि, कुछ को डर उसमें भी लग रहा था कि, डाक्टर साब तसल्ली देने के लिए कहीं न बुलाए हों। आखिर, विक्रम उसेंडी और दयालदास बघेल के साथ ऐसा ही हुआ। सीएम ने जाते ही जिन्हें बधाई दी, उनकी गले में अटकी सांस भीतर गई। असल में, इस बार सिर्फ कहो दिल से……चला था, इसलिए मंत्री सहमे हुए थे कि डाक्टर साब का जो दिल कहेगा, वही करेंगे।

देर आए, दुरुस्त आए

आईपीएस को जीएडी में लाने से आईपीएस लाबी भले ही खुश नहीं है मगर आईएफएस अफसरों को मुंहमांगी मुराद मिल गई है। आईएफएस भले ही डेपुटेशन में अच्छी पोस्टिंग पा जाते हैं मगर पोस्टिंग और प्रमोशन के मामले में उनका बुरा अनुभव रहा है। आईएएस में 97 बैच तक के अफसर सिकरेट्री बन गए हैं। आईएफएस में 90 बैच वाले सीसीएफ नहीं बन पाए हैं। भारत सरकार ने सीसीएफ को सर्किल में पोस्ट करने की अनुमति दे दी है। मगर छत्तीसगढ़ में सीसीएफ धक्के खा रहे हैं और प्रभारी सीएफ मलाई छान रहे हैं। आईपीएस तो बर्दी का रौब दिखाकर ब्यूरोक्रेसी से अपना काम निकाल लेते हैं। उनका काम कभी नहीं रुकता। किन्तु आईएफएस की कोई सुनवाई नहीं होती। बैजेंद्र कुूमार थोड़े दिन के लिए सिकरेट्री रहे तो कुछ आईएफएस का प्रमोशन हो गया वरना, मंत्री और मंत्री के पीए के आगे फाइल बढ़ नहीं पाती थी। अब तो आईएफएस डाक्टर साब की जय-जयकार कर रहे हैं।

इसी हफ्ते

मंत्रिमंडल के गठन के बाद अब, सबकी नजर प्रशासनिक फेरबदल पर टिक गई है। हालांकि, परिवर्तन बहुत बड़ा नहीं होगा। एक तो विकल्प सीमित है। दूसरा, सामने लोकसभा चुनाव है। काम करने के लिए मात्र दो महीना ही बचा है। जनवरी और फरवरी। ऐसे में बडी सर्जरी संभव प्र्रतीत नहीं होता। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों के ट्रांसफर पर वैसे भी रोक लगा दी है। सो, लिस्ट छोटी ही होगी। यद्यपि, सरकार में अभी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन, इस हफ्ते के अंत तक होने के संकेत मिल रहे हैं।

उसेंडी पर विचार

बस्तर और सरगुजा में आदिवासियों के समर्थन के बाद भी कांग्रेस ने ओबीसी के भूपेश बघेल को पीसीसी चीफ अपाइंट कर दिया मगर दूरगामी सोच के तहत भाजपा फिर ट्राईबल कार्ड ही आजमाने पर विचार कर रही है। खबर है, मंत्री बनने से वंचित हुए विक्रम उसेंडी रामसेवक पैकरा की जगह ले सकते हंै। उसेंडी गोंड आदिवासी हैं। और छत्तीसगढ़ में इसी तबके के आदिवासियों की तदाद ज्यादा है। सो, भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, ट्राई पूर्व स्पीकर धरमलाल कौशिक के लिए भी चल रहा है। कौशिक चुनाव हार चुके हैं, इसलिए सरकार के लिए चुनौती भी नहीं बन सकेंगे। मगर पलड़ा उसेंडी का भारी दिखता है। वैैसे भी भाजपा जिस तरह का अध्यक्ष नियुक्त करती है, उसमें उसेंडी ही फीट बैठते हैं।

दूसरी बार

चरणदास महंत के लिए अध्यक्ष पद का ताज दोनों बार कांटो भरा ही साबित हुआ। पहली बार 2005 में उन्हें पीसीसी चीफ बनाया गया था। मगर मई 2008 में अपमानजनक ढंग से उन्हें डिमोट करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। तब सेकेंड लाइन के धनेंद्र साहू को कमान सौंपी गई थी। जीरम नक्सली हमले में नंदकुमार पटेल की मौत के बाद पार्टी ने एक बार फिर भरोसा करते हुए महंत को पीसीसी चीफ बनाया। मगर उनकी दूसरी पारी साढ़े छह महीने में ही खतम हो गई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी ने उन्हें हटाकर भूपेश बघेल को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।

काश! ऐसा ही होता

गुरूवार को नया मंत्रालय पहली बार गुलजार दिखा। मौका था, नए मंत्रियों के कार्यभार ग्रहण का। सीएम मंत्रालय में थे। नौ में से आठ मंत्री भी थे। साथ में बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी। वीरान रहने वाले गलियारे लोगों से भरे थे। 7 नवंबर 2012 को मंत्रालय का उद्घाटन हुआ था और इसके बाद कभी भी मंत्रालय में ऐसा दृश्य नहीं दिखा। 2013 पूरा बीत गया, कैबिनेट की बैठक को छोड़कर शायद ही कोई मंत्री अपने कक्ष में बैठा हो। रायपुर में रहने पर सीएम जरूर हफ्ते में दो-तीन बार मंत्रालय चले जाते थे। लेकिन मंत्रियों को इससे कोई मतलब नहीं था। मंत्रालय की अगर रौनक बनानी हो तो सीएम को कम-से-कम मंत्रियों को मंत्रालय आने ताकीद करनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर में किस मंत्री के पास सबसे अधिक जमीन होगी?
2. युद्धवीर सिंह जूदेव किस वजह से मंत्री बनने से वंचित हो गए?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें