तरकश, 29 दिसंबर
अरबिंद और अमन
दिल्ली के सीएम अरबिंद केजरीवाल और छत्तीसगढ़ में प्रींसिपल सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह। दोनों के नाम सिर्फ अ से शुरू नहीं होते बल्कि और कई समानताएं हैं। दोनों भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। और बैच भी एक ही, 1995। दोनों के लिए 2013 कसौटी भरा रहा। आप नहीं जीतती तो कल्पना कीजिए, अरबिंद आजकहां होते और पालीटिशियन और ब्यूरोक्रेट्स उनके बारे में क्या बोल रहे होते। अमन के लिए भी स्थिति जुदा नहीं थी। एक ने भारतीय राजनीति में नया इतिहास लिखते हुए दिल्ली के सीएम बनें। तो दूसरे ने रमन सिंह की हैट्रिक बनवाने में कोई कसर नहीं उठा रखा। भाजपा अगर नहीं आती तो रमन सिंह नेता प्रतिपक्ष बन जाते। मगर जरा सोचिए, अमन सिंह कहां होते। बहरहाल, अमन ने अपना पूरा बेस्ट झोंक दिया। झलियामरी और जीरम घाटी कांड में जब सरकार डगमगाने लगी थी तब आक्रमक प्रचार अभियान के जरिये सरकार को फिर से पटरी पर लाने में कामयाब रहे। विकास यात्रा का दूसरा चरण जब चालू हुआ तो लगा ही नहीं कि जीरम घाटी जैसा भयानक हादसा हुआ है। मई के बाद अमन ने कभी छुट्टियां नहीं ली। दिन-रात लगे रहे। रात तीन बजे के पहले कभी सोए नहीं। सिर्फ व्यूह तैयार करते रहे। यही वजह थी कि एससी के 10 में से 9 सीटें भाजपा की झोली में आने जैसा अजूबा हो गया। और 2013 में जिस तरह अरबिंद पावरफुल शख्सियत बनें, उसी तरह अमन सूबे के पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स। रमन सिंह ने हैट्रिक बनाने के बाद पहला आर्डर अमन का निकाला पीएस का। सिंगल आर्डर। मंत्रियों के षपथ से कुछ घंटे पहले। इससे अंदाजा लगा सकते हैं रमन केे लिए अमन की अहमियत का। और उनके पावर का।
आम आदमी का 2013
2013 में आम आदमी ने सिर्फ दिल्ली में अपनी ताकत नहीं दिखाई। बल्कि, छत्तीसगढ़ की जनता ने भी राजनेताओं को अपने पावर का अहसास कराया। खास कर उन्हें जो जनता का सेवक के बजाए खुद को उस इलाके का माई-बाप समझ बैठे थे। आम आदमी ने पांच दिग्गज मंत्रियों को कुर्सी से उतार दिया। तो स्पीकर और डिप्टी स्पीकर तक अपनी सीट नहीं बचा पाए। यहीं नहीं, कांग्रेस पार्टी का उपर का पूरा नेतृत्व ही साफ हो गया। मैनेजमेंट के जरिये कुछ मठ्ठाधीश जरूर अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। मगर, ऐसे नेताओं की आखों में भी 2018 का खौफ साफ दिखने लगा है। केजरीवाल ने उम्मीदों का जो दीपक जलाया है, यकीनन उसकी रोशनी यहां भी आएगी। और तब राजनेताओं का क्या होगा?
आम आदमी का डंडा-1
दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ में खासकर सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनौती खड़ी हो गई है। कांग्रेस को ज्यादा फिकर इसलिए नहीं होगा कि उसके पास खोने के लिए अब कुछ बचा नहीं है। मगर भाजपा के पास तो है। अगले साल नगरीय निकाय चुनाव में भी इसका ट्रेलर दिख सकता है। जिस तरह आप की तैयारियां चल रही है, और जिस तरह के लोग उससे जुड़ रहे हैं, कुछ नगर निगमों पर उसका कब्जा हो जाए तो ताज्जुब नहीं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विकल्प की आवश्यकता आम आदमी महसूस कर रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो नोटा में इतने वोट नहीं पड़ते। ऐसे में, सियासी पार्टियों को अपनी स्टेज्डी बदलनी पड़ेगी। ठेकेदार, सप्लयार, खटराल नेताओं के बदले आम आदमी के बीच से पढ़े-लिखे, साफ-सुथरे चेहरों को पार्टी में लाना पड़ेगा। क्योंकि, अब वोटों के ठेकेदार नहीं चलने वाले। अब, चेहरा और काम बोलेगा। राजनीतिक पार्टियां अगर स्टाईल नहीं बदली तो 2018 का चुनाव बुरा हो सकता है। वजह यह कि शहरों के चैक-चैराहों से लेकर गांव के चैपालों तक, मंत्रालय के गलियारों से लेकर ट्रेन और बसों में, सिर्फ एक ही चर्चा है, टीम केजरीवाल की तरह अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए। और ईमानदारी से काम करेंगे, तो जनता हाथोंहाथ लेगी। सो, सावधान।
आम आदमी का डंडा-2
हमारे मंत्रियों को भी टीम केजरीवाल से कुछ नसीहत लेनी चाहिए। और कुछ ना सही, कम-से-कम सादगी ही सही। टीम केजरीवाल मेट्रो में शपथ लेने पहुंची। ना फैब का कुर्ता और ना ही चकाचक जैकेट। कार केट कौन कहंे, लाल बत्ती भी नहीं। प्रायवेट कार से मंत्रालय गए। एक अपने मंत्रीजी लोग हैं। पूरी ताकत शन-शौकत के जुगाड़ में लगा देते हैं। पसंद का पीए, पसंद का गनमैन और पसंद की गाड़ी। वाहन के आगे सायरन बजाते हुए जब तक पुलिस की गाड़ी नहीं चले, तब तक उन्हें यकीन नहीं होता कि वे मंत्री हैं। आगे तो आगे, पीछे भी पुलिस की गाड़ी होनी चाहिए। साथ में, विभाग की कुछ खाली गाडि़यां भी। ताकि, काफिले से लगे के फलां मंत्रीजी जा रहे हैं। काफिला बड़ा है मतलब जलवेदार हैं। जोगी सरकार में लाल बत्ती तो थी ही नहीं, 2003 में रमन सरकार ने सुरक्षा के लिहाज से केवल गृह मंत्री को पायलेटिंग और फालो गाड़ी की सुविधाएं दी थी। मगर बाद में सरकार पर प्रेशर बनाकर कई मंत्रियों ने यह सुविधाएं हथिया ली। अब, मंत्रीजी का काफिला निकलता है, तो पायलट गाड़ी का पुलिस वाला हाथ में डंडा लेकर आम आदमी को ऐसे हकालता है, जैसे किसी जानवर को सड़क से भगा रहा हो। मगर सवाल यह है कि अगले चुनाव में कहीं आम आदमी का डंडा चल गया तो हमारे मंत्रीजी लोगों का क्या होगा।
बड़ा प्लेयर
अशोक जुनेेजा के रूप में एक बड़े प्लेयर की इंट्री से पीएचक्यू में एक नए समीकरण की शुरूआत हो सकती है। आईपीएस में जुनेजा का सबसे हाई सर्विस रिकार्ड रहा है। बिलासपुर और रायगढ़ का एसपी, रायपुर, दुर्ग का एसएसपी, बिलासपुर और दुर्ग का आईजी। होम सिकरेट्री, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर। सेंट्रल डेपुटेशन करके उन्होंने अपनी लकीर और लंबी कर ली है। यही वजह है कि 5 दिसंबर को आर्डर पर सीएम का हस्ताक्षर हो जाने के बाद भी उनका आदेश 28 तारीख तक अटका रहा। बड़ा कश्मकश रहा….जुनेजा को क्या विभाग दिया जाए। फाइल योजना एवं वित्तीय प्रबंध के लिए चली मगर आखिर में उन्हें प्रशासन देने का फैसला किया गया। जुनेजा के बाद एक फरवरी को गिरधारी नायक भी पीएचक्यू पहुंच जाएंगे। उनके साथ अमरनाथ उपध्याय और संजय पिल्ले भी। उम्मीद कीजिए, अरसे बाद पीएचक्यू की साख लौटेगी।
जीपी हुए ताकतवर
आईपीएस के फेरबदल में जीपी सिंह और पावरफुल हो गए हैं। अभी तक वे रायपुर के आईजी के साथ ही पुलिस महकमे का सबसे अहम डिपार्टमेंट योजना और वित्तीय प्रबंध की कमान भी संभाल रहे थे। तब रायपुर रेंज में सिर्फ रायपुर और नया जिला बलौदाबाजार था। मगर सरकार ने रेंज का पुनर्गठन करके रायपुर में धमतरी, महासमंद और गरियाबंद जिले को भी शमिल कर दिया है। याने रायपुर अब, पांच जिलों का रेंज बन गया। और जीपी उसके आईजी।
15 के बाद
अशोक जुनेजा के प्रमोशन के कारण आईपीएस की एक छोटी लिस्ट तो निकल गई मगर आईएएस में चुनाव आयोग का पेंच आ गया है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों को चेंज नहीं करने कहा है। सो, कलेक्टरों के चक्कर में आईएएस की लिस्ट अटक गई है। हालांकि, पहले यह खबर आ रही थी कि आयोग से परमिशन लेकर कुछ कलेक्टरों को बदला जाए। साथ में सिकरेट्रीज को भी। मगर अंदर से जैसी खबरें आ रही हैं, सरकार चाह रही है कि 15 के बाद एक साथ ही सिकरेट्रीज और कलेक्टरों की लिस्ट निकाली जाए। इसलिए, मामला आगे बढ़ सकता है।
अंत में दो सवाल आपसे
1 बस्तर में तैनात जिला पंचायत के एक सीईओ का नाम बताएं, जिनके कारनामों से पब्लिक हलाकान हो गई है?
2. किस सीनियर आईएएस को राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन बनाने की तैयारी की जा रही है?
2. किस सीनियर आईएएस को राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन बनाने की तैयारी की जा रही है?
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