संजय दीक्षित
सत्य साई अस्पताल के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम करीब आधा घंटा डिले हो गया था। एक तो सबका स्पीच लंबा, उपर से हाउसिंग बोर्ड के माडल इस तरह आकर्षक बन गए थे कि मोदी को उन्हें देखने में टाईम लग गए। प्रधानमंत्री को इसके बाद डोंगरगढ़, उड़ीसा, कोलकाता और वहां से यूपी जाना था। जाहिर है, समय के वे बड़े पाबंद हैं। टाईम गड़बड़ाने से उनका मूड कुछ गड़बड़ा गया था। इसकी जानकारी मिलने पर पीएमओ तत्काल हरकत में आया। पीएमओ से ताबड़तोड़ फोन आने लगे कि डोंगरगढ़ के कार्यक्रम को शार्ट किया जाए। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। डोंगरगढ़ में उमड़े जनसमूह को देखकर मोदी गद्गद हो गए। शिड्यूल में उनका भाषण 20 मिनट का था। बोले 40 मिनट। कुंवर बाई से नसीहत लेने का देश के लोगों से आव्हान कर डाला, सो अलग। दरअसल, डोंगरगढ़ के प्र्रोग्राम को सफल बनाने के लिए सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी। लिहाजा, डोंगरगढ़ की सभा छत्तीसगढ़ बनने के बाद किसी प्रधानमंत्री की पहली सभा के रूप में दर्ज हो गई, जिसमें डेढ़ लाख से अधिक भीड उमड़ी हो। जिस ग्राउंड में सभा थी, उसकी कैपिसिटी 80 हजार की थी। ग्राउंड सुबह नौ बजे ही फुल हो गया था। चलिये, पीएम की शाबासी से सरकार को कम-स-कम साल भर के लिए उर्जा भी मिल गई।
सत्य साई अस्पताल के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम करीब आधा घंटा डिले हो गया था। एक तो सबका स्पीच लंबा, उपर से हाउसिंग बोर्ड के माडल इस तरह आकर्षक बन गए थे कि मोदी को उन्हें देखने में टाईम लग गए। प्रधानमंत्री को इसके बाद डोंगरगढ़, उड़ीसा, कोलकाता और वहां से यूपी जाना था। जाहिर है, समय के वे बड़े पाबंद हैं। टाईम गड़बड़ाने से उनका मूड कुछ गड़बड़ा गया था। इसकी जानकारी मिलने पर पीएमओ तत्काल हरकत में आया। पीएमओ से ताबड़तोड़ फोन आने लगे कि डोंगरगढ़ के कार्यक्रम को शार्ट किया जाए। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। डोंगरगढ़ में उमड़े जनसमूह को देखकर मोदी गद्गद हो गए। शिड्यूल में उनका भाषण 20 मिनट का था। बोले 40 मिनट। कुंवर बाई से नसीहत लेने का देश के लोगों से आव्हान कर डाला, सो अलग। दरअसल, डोंगरगढ़ के प्र्रोग्राम को सफल बनाने के लिए सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी। लिहाजा, डोंगरगढ़ की सभा छत्तीसगढ़ बनने के बाद किसी प्रधानमंत्री की पहली सभा के रूप में दर्ज हो गई, जिसमें डेढ़ लाख से अधिक भीड उमड़ी हो। जिस ग्राउंड में सभा थी, उसकी कैपिसिटी 80 हजार की थी। ग्राउंड सुबह नौ बजे ही फुल हो गया था। चलिये, पीएम की शाबासी से सरकार को कम-स-कम साल भर के लिए उर्जा भी मिल गई।
2005 बैच भी प्रसन्न
प्रधानमंत्री के सफल दौरे के बाद 2005 बैच के आईएएस अफसरों की खुशी तो पूछिए मत! इस बैच में छह आईएएस हैं। इनमें से पांच की भूमिका पीएम विजिट में किसी-न-किसी रुप में अहम रही। मुकेश बंसल राजनांदगांव कलेक्टर हैं ही। राजेश टोप्पो डायरेक्टर, पब्लिक रिलेशंस हैं। जाहिर है, पीएम विजिट के प्रचार-प्रसार में उन्हीं का रोल रहा। जांजगीर कलेक्टर ओपी चैधरी को राजनांदगांव में पब्लिक रिलेशंस के लिए सरकार ने तैनात किया था। दुर्ग कलेक्टर आर संगीता ने पीएम की सभा में भीड़ जुटाने में मदद की। ज्वाइंट सिकरेट्री टू सीएम होने के नाते रजत कुमार भी पीएम विजिट की तैयारियों में जुटे रहे। ऐसे में, इस बैच को खुश होना लाजिमी है। दिलचस्प यह भी है कि यह छत्तीसगढ़ का पहला बैच होगा, जिनमें स्वाभाविक इष्र्या नहीं, बल्कि अद्भूत तालमेल देखने को मिलेगा। एक-दूसरे की पोस्टिंग के लिए फील्डिंग भी करते हैं मिलजुल कर। लिहाजा, सभी मजबूत जगहों पर बैठे हैं। एक सीएम के साथ। एक डीपीआर। और, चार कलेक्टर। अब, पीएम विजिट की पार्टी भी सभी साथ करने वाले हैं।
मियां-बीवी
सोशल मीडिया में 21 फरवरी को पीएम विजिट, कुंवर बाई, छत्तीसगढ़ हाउसिंग प्रोजेक्ट के साथ ही राज्य की जिन 10 खबरों को सबसे अधिक ट्रेंड मिला, उनमें सोनी सोढ़ी पर केमिकल हमला भी शामिल रहा। यही वजह है कि सरकार की ओर से मियां-बीवी ने मोर्चा संभाला। मियां बोले तो बीबीआर सुब्रमण्यिम। सूबे के पिं्रसिपल सिकरेट्री होम। और बीवी उनके पत्नी उमा देवी। दिल्ली में छत्तीसगढ़ की रेसिडेंट कमिश्नर। सुब्रमण्यिम सोनी के परिजनों से मिलने दंतेवाड़ा पहुंच गए तो उमादेवी दिल्ली अस्पताल में जाकर सोनी का हालचाल पूछा।
बजट सत्र और बेफिकर सरकार
एक मार्च से प्रारंभ हो रहे विधानसभा का बजट सत्र रमन सिंह की तीसरी पारी का पहला सेशन होगा, जिसमें विपक्ष के पास कोई बड़ा इश्यू नहीं होगा। न नान घोटाला टाईप का कोई मामला है और ना ही कोई नक्सल वारदात, जिस पर सदन ठप्प किया जा सकें। उपर से गृह मंत्री के रुप में सरकार ने अजय चंद्राकर को बिठा दिया है। विपक्ष के लिए वास्तव में यह चिंताजनक स्थिति होगी। एक तो सरकार पर हमला करने वाला यों कहें कि घेरने वाला विपक्ष के पास कोई ढंग का वक्ता नहीं है। दूसरा, गंभीर इश्यू का भी टोटा। उधर, छत्तीसगढ़ विजिट में प्रधानमंत्री के पीठ थपथपाने से सरकार फुल जोश में है ही। सो, नाट फिकर।
कैबिनेट बड़ा या एमआईसी?
सीएम कैबिनेट बोले तो प्रदेश की सर्वोच्च बाडी। सरकार से भी बड़ी। हर नीतिगत फैसले कैबिनेट में ही होते हैं। मगर रायपुर नगर निगम ने कैबिनेट की हैसियत बता दी। उसके फैसले को सिरे से खारिज कर दिया। पूरा माजरा हम आपको बताते हैं। कुछ दिन पहले कैबिनेट ने फैसला किया था कि शहरी निकायों के सभी स्कूलों का संचालन स्कूल शिक्षा विभाग करेगा। प्रदेश के सारे नगरीय निकायों के कमिश्नरों ने आर्डर निकालकर तत्काल उसे लागू भी कर दिया। सिवाय रायपुर के। रायपुर नगर निगम ने डेढ़ होशियारी दिखाते हुए प्रस्ताव को एमआईसी में रख दिया। एमआईसी में पास तो होना नहीं था। प्रस्ताव रिजेक्ट हो गया। सरकार को जब इसकी जानकारी मिली तो हड़कंप मच गया। आला अफसरों ने निगम के एक अफसर को पल्स पोलियो की दो बूंद खुराक दी। तब निगम का अमला हरकत में आया। बड़ी मशक्कत के बाद संकट का समाधान निकाला गया। निगम से राजधानी एक्सप्रेस की रफ्तार से नोटशीट मंगाई गई। सरकार में बुलेट ट्रेन की तरह फाइल दौड़ी और घंटे भर में आर्डर जारी हो गया। इससे सरकार को यह पता चल गया कि रायपुर स्मार्ट क्यों नहीं बन पाया। जिस निगम को कैबिनेट के पावर के बारे में नहीं पता, भला वह शहर को स्मार्ट कैसे बना सकता है।
आईपीएस की गायें
वैसे तो रायपुर एवं रायपुर के आसपास कई नौकरशाहों के फार्म हाउसेज हैं। मगर धमतरी रोड पर एक आईपीएस का फार्म हाउस इन दिनों राजधानी में चर्चा का विषय बना हुआ है। फार्म हाउस में उन्नत एवं विदेशी नस्ल की 150 से अधिक गायें पाली गई हैं। इनकी देखभाल के लिए पुलिस लाइन से जवानों की ड्यूटी लगाई जाती है। खैर, पुलिस के प्रभावशाली अफसर हैं तो इतना तो बनता ही हैं।
मास्टर माइंड
एसीबी और आईएफएस को आमने-सामने लाने वाले मास्टर माइंड का खुलासा हो गया है। बताते हैं, नान घोटाले के मास्टर माइंड आईएफएस ने अपनी गर्दन बचाने के लिए दांव खेला। और, इसमें फंस गए आईएफएस और उनके युवा मंत्री। मास्टर माइंड को पता है कि कभी भी एसीबी उन्हें नाप सकती है। इसलिए, उस पर प्रेशर बनाने के लिए उन्होंने अपने मंत्री को सीएम के यहां चलने की पट्टी पढ़ाई। मंत्री नए हैं, सीधे भी। सो, घनचक्कर में फंस गए। जबकि, कई आईएफएस अफसरों ने नान घोटाले के मास्टर माइंड को सजेस्ट किया था कि एसीबी से इस तरह पंगा लेने का कोई मतलब नहीं है। अगर मंत्रीजी को इस संदर्भ में सीएम से बात करनी हो तो वन-टू-वन भी बात कर सकते हैं। लेकिन, मास्टर माइंड माने नहीं, आईएफएस अफसरों की एसीबी के साथ वैमनस्या तो कराई ही मंत्री की भी फजीहत हो डाली।
दाल-भात केंद्र
प्रदेश के आईएएस, नान आईएएस बाहर में भले ही काजू-बादाम, छप्पन भोग, नोट-पानी खाते होंगे, मगर विधानसभा के समय उनकी शामत आ जाती है। कई बार उन्हें बिस्कुट से काम चलाना पड़ता है तो कभी पेट दबाकर। ऐसा इसलिए होता है कि उनके लिए हाउस में न बैठने की व्यवस्था है और ना ही खाने की। टिफिन लेकर आएं भी तो खाएं कहां पर। मंत्रियों के कमरे भी छोटे हैं। वहां उनके चम्पू बैठे रहते हैं। नौकरशाहों का गुस्सा सातवें आसमान पर तब पहंुच जाता है, जब एनाउंस किया जाता है विधायकों के लिए फलां जगह खाने की व्यवस्था है और पत्रकारों के लिए फलां जगह। आईएएस अफसरों ने अबकी सरकार से गुहार लगाई है कि विस परिसर में उनके लिए कम-से-कम पांच रुपए वाला दाल-भात केंद्र का ही इंतजाम कर दिया जाए। इसका वे भुगतान कर देंगे। इतने के बाद तो उम्मीद तो बनती ही है कि उनके लिए कैंटीन का इंतजाम हो जाए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. डेपुटेशन पूरा होने के बाद छुट्टी पर चल रही आईएएस निहारिक बारिक छत्तीसगढ़ लौटेंगी या दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर बनेंगी?
2. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रायपुर दौरे में होम सिकरेट्री बीबीआर सुब्रमण्यिम से नक्सल मामले में गंभीर चर्चा की या हाल-चाल पूछा?
2. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रायपुर दौरे में होम सिकरेट्री बीबीआर सुब्रमण्यिम से नक्सल मामले में गंभीर चर्चा की या हाल-चाल पूछा?
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