शनिवार, 23 अप्रैल 2016

एटम बम या फूलझड़ी?

तरकश, 24 अप्रैल


संजय दीक्षित
30 अप्रैल को राजस्व बोर्ड के चेयरमैन डीएस मिश्रा रिटायर हो जाएंगे। मिश्रा को पोस्ट रिटायरमेंट सरकार कौन-सा पद देती है और देती भी है कि नहीं ये सेकेंड्री है। सबसे बड़ा सवाल है, राजस्व बोर्ड में उनकी जगह कौन लेगा। पीएस होगा, एसीएस होगा या उससे भी उपर का। इस चक्कर में कई नौकरशाहों की रात की नींद उड़ गई है। नींद आती भी है तो राजस्व बोर्ड के डरावने सपने आने लगते हैं। आंख खुलने पर फिर वही सवाल, 30 को क्या होगा? हालांकि, बाकी राज्यों में भी यह चीफ सिकरेट्री लेवल का पोस्ट है। सरकार जिन आला नौकरशाहों को मेन स्ट्रीम से बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है, उन्हें रेवन्यू बोर्ड में डंप कर देती हैं। अपने यहां डीएस मिश्रा के साथ भी ऐसा ही हुआ। अब, देखना दिलचस्प होगा कि सरकार 30 अप्रैल को एटम बम फोड़ती है या फूलझड़ी से ही काम चला लेगी।

विश्वरंजन, उम्मेन और बोआज

पीसीसीएफ अरबिंद बोआज ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस तरह उनका तख्ता पलट हो जाएगा। वे तो अपने मंत्री के साथ केंद्रीय वन मंत्री के कार्यक्रम में हिस्सा लेने भोपाल गए थे। जब उन्हें हटाने का आर्डर हुआ, वे इंस्टिट्यूट आफ फारेस्ट मैनेजमेंट के कार्यक्रम में थे। सरकार ने जोर का झटका इतना जोर से दिया कि चंद मिनटों में ही वे पीसीसीएफ से एक्स पीसीसीएफ हो गए। क्योंकि, नए पीसीसीएफ बीएल सरन ने फौरन एकतरफा चार्ज ले लिया। इससे पहले, डीजीपी विश्वरंजन और चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन को सरकार ने तब कुर्सी खिसका दी थी, जब वे छुट्टी पर प्रदेश से बाहर थे। विश्वरंजन तो अपनी बेटी से मिलने अहमदाबाद के लिए उड़े थे कि इधर तख्ता पलट हो गया। अहमदाबाद एयरपोर्ट पर तब के सीएस उम्मेन ने उन्हें मोबाइल पर इसकी सूचना दी थी। इसके बाद उम्मेन का भी लगभग ऐसा ही हुआ। मगर फर्क यह है कि विश्वरंजन और उम्मेन तीन साल से अधिक समय तक कुर्सी का सुख भोग चुके थे। बोआज का विकेट तो 10 महीने में ही गिर गया। एक फर्क और है, वन विभाग ने छह महीने में दो बार दीवाली मना लिया।

फुलप्रूफ इंतजाम

पीसीसीएफ एए बोआज को हटाने से पहले सरकार ने पुख्ता इंतजामात कर लिया था। सरकार को आशंका थी कि बोआज कहीं कोर्ट न चले जाएं। क्योंकि, एक पुराने पीसीसीएफ ने सरकार से नजदीकियों का लाभ उठाकर आर्डर करा लिया था कि बिना किसी ठोक केस के हेड आफ फारेस्ट याने पीसीसीएफ को न हटाया जाए। यही वजह है कि बोआज को हटाने के पहले तस्दीक की गई कि बीएल सरन रायपुर में हैं या नहीं। सरन उस दिन रायपुर में ही थे। यही नहीं, आर्डर होने के बाद सरन को फोन करके तुरंत चार्ज लेने के निर्देश दिए गए। सरन ने वैसा ही किया।

सीएम की कटाक्ष

एक्साइज कमिश्नर एवं सिकरेट्री अशोक अग्रवाल का मंत्रालय में जोरदार वेलकम हो गया। हुआ ऐसा कि बुधवार को सीएम ने मंत्रालय में प्रभारी सचिवों की बैठक बुलाई थी। अग्रवाल का जब नम्बर आया, तो उन्होंने बड़े मासूमियत से कह दिया कि मुझे अभी विभाग में आए चार दिन ही हुए हैं, इसलिए मैं अपने जिले में नहीं जा पाया हूं। इस पर सीएम बोले, चलो एक आदमी ऐसा है, जिसने ईमानदारी से बोल दिया। वरना, कई सिकरेट्री यहां ऐसे होंगे, जो अपने जिले का मंुह नहीं देखे होंगे। इस पर कई सचिव बगले झांकने लगे। बताते हैं, सरकार के रणनीतिकारों ने मीटिंग से पहले कलेक्टरों से जानकारी ले ली थी कौन सिकरेट्री कितने बार जिले में आएं हैं। उसमें पता चला था कि कुछ सिकरेट्री पिछले छह महीने से अपने प्रभार वाले जिले में नहीं गए हैं। जबकि, अपनी दूसरी पारी में सीएम ने सचिवों को महीने में एक रात प्रभार वाले जिलों में बिताने के लिए कहा था। इस पर शायद ही किसी सिकरेट्री ने अमल किया होगा। इस पर सीएम की कटाक्ष तो जायज ही है।

साठा या पाठा

64 की उमर में सीएम डा0 रमन सिंह ने सायकिल चलाने में 24 साल वालों को पीछे छोड़ दिया। मौका था, जल संरक्षण के लिए सायकिल रैली का। बड़े-बड़े लोग लोवर, टी शर्ट और कैप पहनकर आए थे सीएम के साथ सायकिल चलाने के लिए। लेकिन, सीएम ने सरपट सायकिल दौड़ाई कि लोगों को मौका ही नहीं मिल पाया। यहां तक कि एनएसजी के कमांडो भी 100 मीटर पीछे रह गए। मेरिन ड्राइव से करीब 200 मीटर दूर शंकर नगर चैक पर जाकर सबसे पहले डीपीआर राजेश टोप्पो ने सीएम को कवर किया। राजेश हाफ पैंट एवं सायकिलिस्ट हेलमेट पहनकर आए थे। उन्होंने जोर लगाया और सीएम के बगल में पहुंच गए। अखबारों में आपने जितनी फोटुएं देखी होंगी, वे सभी पुलिस मुख्यालय के बाद के हैं। शंकर नगर चैक के बाद सबने बजरंग बली का नाम लेकर ताकत झोंकी तब जाकर सीएम के साथ हो पाए। घड़ी चैक पर जब रैली समाप्त हुई, कुछ लोग हांफते हुए कहा, सीएम साब च्यवनप्राश का विज्ञापन कर सकते हैं। तो कुछ ने कहा, पता करते हैं, डाक्टर साब कौन सा च्यवनप्राश खाते हैं।

प्रमोटी पर भरोसा

सीएम के होम डिस्ट्रिक्ट कवर्धा में कभी डायरेक्ट आईएएस ही कलेक्टर होते थे। सोनमणि बोरा, सिद्धार्थ कोमल परदेशी, मुकेश बंसल, एस प्रकाश, पी दयानंद। मगर अब कलेक्टर और एसपी दोनों प्रमोटी हो गए हैं। पहले धनंजय देवांगन को सीएम ने अपने जिले का कलेक्टर बनाया। और अब डी रविशंकर को एसपी। रविशंकर से पहले राहुल भगत डायरेक्ट आईपीएस थे। राहुल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए हैं। इसके बाद सीएम ने डायरेक्ट की बजाए प्रमोटी पर भरोसा किया। वैसे, दोनों की छबि भी ठीक है। चलिये, इससे प्रमोटी आईएएस, आईपीएस का रुतबा बढ़ेगा।

व्हाट्सअप बना जी का जंजाल

हर पंचायत में एक तालाब की साफ-सफाई कर व्हाट्सअप से फोटो भेजने के फरमान से जिला पंचायतों के सीईओज की चैन छिन गई है। मुश्किल यह है कि फोटो एसीएस पंचायत एमके राउत को भी सेंड करना है। दो-तीन जिलों ने रिस्पांस नहीं किया तो राउत ने अपने स्टाईल में सीईओ की क्लास ले डाली। एसीएस ने टारगेट दिया है कि ग्राम सुराज अभियान तक सभी पंचायतों में एक-एक तालाब का कायापलट हो जाना चाहिए। वह भी बिना पैसे का। श्रमदान से। सूबे में 11 हजार पंचायत हैं। एक तालाब की सफाई में 10 हजार रुपए भी मानें तो 11 करोड़ रुपए होता है। ग्राम पंचायतों में 20 परसेंट तक चलता है। याने पंचायत पदाधिकारियों एवं अधिकारियों का दो करोड़ से उपर का नुकसान हो गया, सो अलग से। जिपं के अफसर अब व्हाट्सअप को कोस रहे हैं। ये नहीं होता तो कागजों में 11 करोड़ के काम हो जाते ना।

छत्तीसगढि़यां सबले बढि़यां

पीएससी में अब बाहरी लोगों की भरती की शिकायतें नहीं मिलेगी। बल्कि, आपको जानकर खुशी होगी कि पिछले पीएससी में 165 प्रतिभागी चयनित हुए, 162 छत्तीसगढि़यां हैं। यह इसलिए संभव हो पाया कि पीएससी ने परीक्षा को छत्तीसगढ़ ओरियेंटेड कर दिया है। लिखित से लेकर इंटरव्यू तक में अधिकांश सवाल छत्तीसगढ़ बेस्ड पूछे जा रहे हैं। इससे बाहरी छात्र कट गए। सो, मेंस और इंटरव्यू की तैयारी कर रहे छत्तीसगढ़ के प्रतियोगियों के लिए अब बढि़यां अवसर है। खैर, इसके लिए अपने पीएससी उम्मीदवारों को कम-से-कम एक बार जय विश्वकर्मा बोलना चाहिए। पीएससी के चेयरमैन बनने के बाद आरएस विश्वकर्मा ने परीक्षाओं के पैटर्न को काफी सुधारा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक आईएएस का नाम बताए, जो सीएम सचिवालय में प्रमुख सचिव बनने का ख्वाब देख रहे हैं?
2. किन सीनियर आईएएस अफसरों को राजस्व बोर्ड में पोस्टिंग का भूत सता रहा है?

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