शनिवार, 11 जून 2016

किंगमेकर

संजय दीक्षित

कांग्रेस में हांसिये पर चल रहे अजीत जोगी द्वारा नई पार्टी बनाने की चर्चा तो सालों से चल रही थी। मगर उनके इकलौते बेटे अमित को संगठन खेमे ने जिस दिन पार्टी से निकाला, जोगी…..

खेमा नई पार्टी को लेकर संजीदा हो गया था। उनकी कोर टीम लगातार इस पर काम कर रही थी। नफा-नुकसान का रिव्यू किया जा रहा था। इस बीच बंगाल में कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाई ममता बनर्जी ने दूसरी बार आतिशी जीत दर्ज की। ममता की जीत ने भी जोगी खेमे की हौसला अफजाई की। पत्रकारों ने शनिवार को जोगी से जब पूछा कि कांग्रेस से अलग होकर कोई सफल नहीं हुआ है, तो उन्होंने तपाक से ममता और शरद पवार का नाम लिया। बहरहाल, जोगी की पार्टी की लांचिंग कहां होगी? यह अभी तय नहीं हुआ है। गिरोदपुरी में भी हो सकती है। मरवाही में इसे तय किया जाएगा। बहरहाल, सियासी प्रेक्षकों की मानें तो 2018 के चुनाव के लिए जोगी की रणनीति यही होगी कि किसी तरह पांच से सात सीटें आ जाएं। उतने में वे किंगमेकर बन जाएंगे। और अमित डिप्टी सीएम। भले ही सरकार किसी की भी बनें।

एक रुपए से 1100 तक

अजीत जोगी की नई पार्टी के नाम का ऐलान भले ही अभी नहीं हो पाया है मगर फंडिंग का खाका पूरा तैयार कर लिया गया है। उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी की तरह आम लोगों के सहयोग से धन का इंतजाम करेगी। इसके लिए तय किया गया है के एक रुपए से लेकर 1100 रुपए तक चंदा लिया जाएगा। इससे लोगों का पार्टी से जुड़ाव होगा।

आईजी के लिए 3 नाम

रायपुर आईजी जीपी सिंह का लगभग साढ़े तीन साल पूरा हो गया है। जाहिर है, उनके ट्रांसफर की चर्चा तो होगी ही। मगर उनके बाद रायपुर में किसे आईजी बनाया जाए, इसको लेकर सरकार की गणित गड़बड़ा रही है। असल में, रायपुर के लिए तीन नाम हैं। पवनदेव, प्रदीप गुप्ता और अमित कुमार। अमित कुमार सीबीआई में हैं। सितंबर तक वे वापिस लौटेंगे। मगर उनके पास सुप्रीम कोर्ट के कई केसेज हंै। सो, उनका आना टल भी सकता है। पवनदेव दिसंबर, जनवरी तक एडीजी हो जाएंगे। बचे प्रदीप गुप्ता। ऐसे में, हो सकता है, रायपुर और दुर्ग आईजी में एक्सचेंज हो जाए। याने जीपी दुर्ग और गुप्ता रायपुर। या फिर अमित के लौटने का सरकार अगर इंतजार करती है, तो फिर लिस्ट अभी नहीं निकलेगी। तब तक जीपी यही रहेंगे।

प्रमोटी के साथ भेदभाव?

छत्तीसगढ़ में कभी दस-दस, बारह-बारह प्रमोटी आईएएस कलेक्टर होते थे। बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, रायगढ़, राजनांदगांव और कोरबा जैसे बड़े जिलों में भी। मगर अब प्रमोटी आईएएस का प्रभुत्व कम होते जा रहा है। अभी 27 में से मात्र छह जिले ही प्रमोटी के पास हैं। महासमुंद, गरियाबंद, बेमेतरा, कवर्धा, सूरजपुर और नारायणपुर। सभी छोटे जिले। इनमें से भी सूरजपुर और नारायणपुर का विकेट कभी भी गिर सकता है। हाल में, रायपुर से ठाकुर राम सिंह और मुंगेली से संजय अलंग को हटाया गया। दोनों प्रमोटी थे। मगर दोनों जिला डायरेक्ट आईएएस के खाते में चला गया। इससे पहले, बंगाल और असम चुनाव में सिर्फ प्रमोटी आईएएस को भेजे जाने से वे गुस्से में हैं ही। चुनाव के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने 22 आईएएस के नाम चुनाव आयोग को भेजे थे। इनमें सिर्फ भूवनेश यादव एक डायरेक्ट आईएएस थें। बाकी 21 प्रमोटी। जाहिर है, भेदभाव की शिकायत तो होगी ही।

किस्मत अपनी-अपनी

2002 बैच के आईएएस ब्रजेश मिश्रा रायपुर और दुर्ग के कमिश्नर बन गए। उन्हीं के बैच के दिलीप वासनीकर बस्तर के कमिश्नर हैं। मगर, इसी बैच के अमृत खलको को देखिए, बिलासपुर में एडिशनल कमिश्नर हैं। किस्मत अपनी-अपनी।

नगर का भतीजा

अपने होम टाउन में अफसरी करने के फायदे कम परेशानी ज्यादा है। बिलासपुर नगर निगम के कमिश्नर सौमिल चैबे इससे गुजर रहे हैं। सौमिल शहीद एसपी विनोद चैबे के बेटे और बिलासपुर के रिनाउंड पर्सन स्व0 डीपी चैबे के पोते हैं। उनके सामने परेशानी यह है कि कोई उन्हें कमिश्नर मानने के लिए तैयार नहीं है। सभी यही कह रहे है कि आपके पिताजी के साथ पढ़ा हूं, वे तो हमारे लंगोटिया…..। हमलोग अरपा नदी में नहाते थे। मैं आपका चाचा हूं। कोई उनका दादा बन जा रहा है। लेकिन, सौमिल ने भी आरपी मंडल के स्कूल में ट्रेनिंग ली है। दो साल रायपुर में उनके साथ रहे। उनसे काम सीखा है तो यह भी कि किनको कितना वेट देना है। किनको कितना चढ़ाना है तो किनको कितना उतारना। सौमिल ने नगर निगम के कुछ खटराल अफसरों को कारण बताओ  नोटिस जारी कर दिया है। ठीक भी है, चार डायरेक्टर आईएएस के बाद सरकार ने अगर सौमिल को बिलासपुर निगम की जिम्मेदारी दी है कि उसके लिए सख्त तो होना ही पड़़ेगा ना।

खुल गई पोल

छत्तीसगढ़ के टाईगर रिजर्व और अभयारण्यों में टाईगर को लेकर तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। अचानकमार में कागजों में 29 शेर की गिनती कर ली गई। मगर वस्तुस्थिति यह है कि वन विभागों के अफसरों को भी पिछले दो-तीन साल से टाईगर नहीं दिखा है। प्रिंसिपल सिकरेट्री फारेस्ट आरपी मंडल को शेर दिखाने के लिए अफसरों ने आखिर क्या नहंी किया। लेकिन, हर बार मायूसी ही हाथ आई। भद तो तब पिटी जब इंटरनेट पर अचानकमार में शेर की जानकारी मिलने पर मंडल के कुछ मित्र रायपुर धमक आए। बोले, यार! जंगल विभाग का तू बास है, शेर तो दिखा ही देगा। मंडल को अब काटो तो खून नहीं। बोेले, दो साल में मैं तो देख नहीं पाया। तुमलोगों को क्या दिखाउंगा। फिर, मित्रों के लिए मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ में शेर दिखाने का इंतजाम कराया।

मंत्रीजी के चोटी वाले

एक मंत्रीजी के चोटी वाले समर्थक इन दिनों भागे-भागे फिर रहे हैं। सुबह-शाम उन्हें एसीबी का भूत सता रहा है। असल में, सिंचाई विभाग के एक मामले मेें एसीबी ने उनको भी विवेचना में लिया है। उनके काल डिटेल निकाले जा रहे हैं। दागी अफसरों ने एसीबी में नामजद बयान दिया है कि चोटी वाले अंबिकापुर आकर किसको टेंडर देना है, यह तय करते थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक नगर निगम कमिश्नर का नाम बताइये, जिसने ट्रांसफर के बाद ठेकेदारों से एक हाथ से लिफाफा लेकर दूसरे हाथ से 72 चेक काट डाले?
2. एक रिटायर आईएएस दाढ़ी बढ़ाकर वैराग्य क्यों धारण कर रहे है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें