गुरुवार, 14 सितंबर 2017

त्रिफला का नया ब्रांड

10 सितंबर

त्रिफला का नया ब्रांड


पीएल पुनिया के छत्तीसगढ़ दौरे में सबसे हिट रहा त्रिफला का नया ब्रांड। नए में चरणदास महंत, रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर शामिल हैं। तीनों ने कांग्रेस भवन में नए त्रिफला को लांच करते हुए बकायदा फोटो भी खिंचवाई। नया वाला त्रिफला कई मायने में पुराने से जुदा है। सबसे पहले 2012 में त्रिफला सामने आया था। उसमें प्योर संगठन के लोग थे.....तत्कालीन पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष। नए में दोनों गायब हैं। लिहाजा, भूपेश बघेल को सर्तक हो जाना चाहिए.....त्रिफला उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, संगठन खेमा कम थोड़े ही हैं। त्रिफला का असर कम करने के लिए अगले दिन पुनिया से मिलाने कवर्धा से योगेश्वर राज सिंह को बुलवा लिया। योगेश्वर और अकबर के रिश्ते कैसे हैं, बताने की जरूरत नहीं। अब अकबर को तय करना है, त्रिफला का हिस्सा रहे या फिर अगले चुनाव के लिए टिकिट सुनिश्चित करें।

कांग्रेस का चौथा विकेट


कांग्रेस विधायक रामदयाल उईके के आदिवासी सीएम पर बागी बोल ने पार्टी को उलझन में डाल दिया है। पहली बार सीएम पद को लेकर कोई आदिवासी विधायक ने तीखे तेवर दिखाए हैं। कांग्र्रेस की चिंता इसलिए भी बढ़ गई है कि जोगी कांग्रेस बनने के बाद उसके तीन विधायक पहले ही छिटक चुके हैं। अमित जोगी के अलावा सियाराम कौशिक और आरके राय। अब उईके जिस तरह की भाषा बोल रहें हैं, उससे पार्टी के नेताओं को खटका हो रहा है....उईके कहीं पुराने गुरू की शरण में तो नहीं जा रहे हैं। यही वजह है, पीएल पुनिया ने उईके को तलब कर बंद कमरे में उनसे चर्चा की।  

बिना प्रभार के मंत्री


भैयालाल राजवाड़े, महेश गागड़ा और दयालदास बघेल को मंत्री बने करीब दो साल होने जा रहे हैं। लेकिन, अब तक उन्हें किसी जिले का प्रभार नहीं मिला है। जबकि, कुछ मंत्रियों के पास दो-दो, तीन-तीन जिले का चार्ज है। पार्टी सुप्रीमो अमित शाह ने छत्तीसगढ़ दौरे में जब प्रभारी मंत्रियों को रात बिताने का फरमान जारी किया था तो भैयालाल राजवाड़े ने सीएम के सामने दुखड़ा रोया था....भाई साब! हम तीनों के पास जिला नहीं है। तब सीएम ने कहा था, बहुत जल्द उन्हें जिला मिल जाएगा। लेकिन, तीनों मंत्रियों का इंतजार खतम नहीं हो रहा।


कमजोर हुई आईएएस लॉबी?


बैजेंद्र कुमार के रिलीव होने के बाद ब्यूरोक्रेसी में माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की आईएएस लॉबी कमजोर होगी। एसीएस बनने के बाद बैजेंद्र ने 2014 में आईएएस एसोसियेशन की कमान संभाली थी। इसके बाद एसोसियेशन को उन्होंने चार्ज कर दिया था। हालांकि, साल के शुरूआत में उन्होंने एसोसियेशन की कमान छोड़ दी थी। अजय सिंह को नया अध्यक्ष बनाया गया। बावजूद इसके, एसोसियेशन बैजेंद्र पर निर्भर थी। जीएस मिश्रा-भूपेश बघेल एपीसोड में एसोसियेशन को जब सीएम से मुलाकात का टाईम नहीं मिल रहा था, तब भी बैजेंद्र कुमार का दरवाजा खटखटाया था अफसरों ने। सुनील कुजूर को एसीएस बनाने के लिए हल्ला बैजेंद्र ने ही किया था।
 

यूथ टीम

राज्य सचिवालय की जिम्मेदारी अब धीरे-धीरे यूथ टीम के हाथ में आती जा रही है। जिन विभागों को कभी दिग्गज अफसर संभालते थे, उन विभागों को अब स्पेशल सिकरेट्री देख रहे हैं। ताजा फेरबदल में 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी को पावर दिया गया है। इस विभाग को विवेक ढांड से लेकर अजय सिंह, अमन सिंह, बैजेंद्र कुमार जैसे अफसर संभाल चुके हैं। परदेशी अब स्पेशल सिकरेट्री के रूप में उर्जा विभाग के प्रमुख होंगे। वहीं, 2002 बैच के आईएएस डा0 कमलप्रीत को सरकार ने इंडस्ट्री का जिम्मा दिया है। कमलप्रीत भी अभी सिकरेट्री नहीं बनें हैं। इससे पहिले रीना बाबा कंगाले ट्राईबल, मुकेश बंसल एवियेशन, राजेश सुकुमार टोप्पो जनसंपर्क और आर संगीता जीएडी में आईएएस विंग संभाल रही हैं। ये सभी स्पेशल सिकरेट्री लेवल के अफसर हैं। जाहिर है, इससे सीनियर आफिसरों को पीड़ा तो हो रही होगी।   
फ्यूचर का सिनेरिया
बैजेंद्र कुमार के जाने के बाद जरूरी फेरबदल कर दिए गए। लेकिन, सत्ता के गलियारों में जिस तरह की खबरें निकल कर आ रही हैं, नवंबर में बड़े लेवल पर एक चेंजेस और होंगे। 30 नवंबर को एसीएस एमके राउत रिटायर होंगे। राउत का ग्रामीण और पंचायत विभाग आरपी मंडल को सौंपा जा सकता है। मंडल सरकार के फर्स्ट इनिंग में भी इस विभाग को संभाल चुके हैं। तब भी अजय चंद्राकर उनके मंत्री थे। और, अब भी होंगे। जाहिर है, समन्वय का कोई लफड़ा नहीं होगा। दोनों एक-दूसरे को बखूबी जानते हैं। मंडल के पंचायत में जाने के बाद उनका फारेस्ट और लेबर चित्तरंजन खेतान को मिल सकता है। इस बीच सरकार के साथ खेतान के तालमेल का सेतु मजबूत़ हो जाए, तो ऐसा भी हो सकता है कि नवंबर में उन्हें कोई और अहम विभाग मिल जाए।  
समय की मार
नॉन घोटाले में आईएफएस कौशलेंद्र सिंह बाल-बाल बच गए थे। मगर नान के दूसरे मामले में वे आरोपी बन गए। उन्होंने नियम-कायदों की परवाह किए बिना प्रमोशन दे दिया था। सिस्टम उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करता नहीं। मगर कानून ने उनकी गर्दन पकड़ ली। अदालत के निर्देश पर ईओडब्लू ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है। आपको याद होगा, एसीबी ने जब फारेस्ट अफसरों के यहां ताबड़तोड़ छापा मारा था, तब मंत्री महेश गागड़ा विरोध दर्ज कराने सीएम हाउस पहुंच गए थे। तब इसके पीछे कौशलेंद का ब्रेन माना गया था। अब उसी ईओडब्लू में कौशलेंद्र को चक्कर लगाना पड़ेगा। इसे ही कहते हैं समय की मार।
हफ्ते का व्हाट्सऐप
एमएसजी-मुझे माफ कर दीजिए जब साब!
जज-ठीक है, मगर तुम्हें खुद की मुवी दो बार देखनी होगी।
एमएसजी-ठीक है, जज साब। मुझे तुरंत फांसी दे दीजिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पुरस्कार को लेकर एक ही बैच के दो आईएएस में खटास पैदा हो गई है....दोनों के नाम बताइये? 
2. सिकरेट्री लेवल के अफसर संजय शुक्ला को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का डायरेक्टर क्यों बना दिया गया?

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