3 सितंबर
संजय दीक्षित
एन बैजेंद्र कुमार के एनएमडीसी के चेयरमैन बनने से छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक समीकरण बदल गए हैं। 83 बैच के आईएएस अजय सिंह का चीफ सिकरेट्री बनने का रास्ता साफ समझिए। मौजूदा सीएस विवेक ढांड अगर मार्च में रिटायर होंगे तो एक अप्रैल को अजय सिंह सीएस बन जाएंगे। या कहीं, सरकार ने अगर ढांड को केंद्र से एक्सटेंशन दिला दिया तो ताजपोशी कुछ आगे-पीछे खिसक सकती है। वैसे, छह महीने एक्सटेंशन के प्रावधान हैं। चुनावी साल में कम-से-कम तीनेक महीने का एक्सटेंशन मिल ही सकता है। वैसे, रास्ता को 87 बैच के लिए क्लियर हो गया है। इस बैच में तीन आईएएस हैं। बीबीआर सुब्रमण्यिम, सीके खेतान और आरपी मंडल। एनके असवाल के रिटायर होने से सिर्फ एक पोस्ट खाली था। दावेदार थे तीन। अब नवंबर में एसीएस एमके राउत रिटायर हो जाएंगे। बैजेंद्र एनएमडीसी जा रहे हैं। याने अब तीनों एसीएस बन जाएंगे। यही नहीं, ढांड के रिटायर होने के बाद अब पीएस केडीपी राव भी अगले साल एसीएस प्रमोट हो जाएंगे। वरना, राव के लिए खतरा था।
बुलेट स्पीड
बैजेंद्र कुमार की एनएमडीसी में पोस्टिंग की चकरी 31 अगस्त को इतनी तेजी से घूमी कि राज्य सरकार से एनओसी लेकर भारत सरकार ने महज चार घंटे में नोटशीट क्लियर कर दी। दोपहर 12 बजे कैबिनेट सिकरेट्री ने सीएस को फोन करके बैजेंद्र के नाम पर सहमति मांगी और चार बजे नोटशीट पर प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर कर दिया। और, रात आठ बजे आदेश भी जारी हो गया। बैजेंद्र ने देर रात कहीं लिखा भी…इट जस्ट हैपेन्ड इन बुलेट स्पीड….मे बी इट इज गॉड्स विश! बिन मांगे 80 हजार करोड़ की नवरत्न कंपनी मिल गई तो ईश्वर का शुक्रगुजार तो रहना ही चाहिए। वैसे भी, भारत सरकार ने जिन 15 आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग दी, उस लिस्ट पर आप अगर गौर करें तो सबसे दमदार पोस्टिंग बैजेंद्र की ही होगी।
मौके पर न्याय
मानवाधिकार संगठन भले ही इस पर कोहराम मचा सकते हैं। लेकिन, इस मौके पर न्याय की इन दिनों खूब चर्चा है। माजरा दुर्ग का है….एडिशनल एसपी अजाक्स का रीडर बेहद सामान्य मामले को खतम करने के लिए दो लाख का डिमांड किया था। इसकी जानकारी एक आईपीएस को हो गई। उन्होंने आव देखा, न ताव, पहुंच गए एडिशनल एसपी के दफ्तर। पकड़ लिया रंगे हाथ रीडर को। इसके बाद रीडर की तो लात-घूसों से ऐसी सोटाई की, पूछिए मत! जी नहीं भरा तो पास खड़े पुलिस वाले से डंडा भी ले लिया। मीडिया वालों ने पूछा, साब आपको जांच कराना चाहिए था। आईपीएस ने जवाब भी उसी अंदाज में दिया….जेब में पैसा नहीं मिलता तो जांच कराता….पैसा बरामद होने के बाद जांच काहे का। जनाब कोरबा में भी पुलिस वालों की खूब ठुकाई की थी। आलम यह हुआ कि ट्रांसफर के बाद पुलिस वाले बजरंग बलि को लड्डू चढ़ाए थे। लेकिन, जरा बचके…. पवनदेव ने भी बिलासपुर में पुलिस वालों की खूब निलंबन और बर्खास्तगी की थी। जाल बिछाकर पवनदेव को पुलिस वालों ने ही ठिकाने लगा दिया।
निगरानी…. आईपीएस
अभी तक आपने निगरानीशुदा बदमाश सुना होगा….निगरानीशुदा आईपीएस नहीं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में एक निगरानी आईपीएस हैं। दरअसल, आईपीएस की रिव्यू कमेटी ने तीन अफसरों के नाम भारत सरकार को भेजा था। इनमें से दो की भारत सरकार ने छुट्टी कर दी। एएम जुरी और केसी अग्रवाल को। मगर एडीजी महोदय को इस नोटिंग के साथ बख्श दिया….फिलहाल, पुलिस महकमा इन पर निगरानी रखें। अब, एडीजी पर नजर कौन रखेगा? बराबर या नीचे के अफसर तो नहीं ना। जाहिर तौर पर, डीजीपी को एडीजी की निगरानी करनी पड़ रही होगी। लेकिन, क्लास यह है कि जिस रिव्यू कमेटी ने एडीजी को निकाल बाहर करने की अनुशंसा की थी, डीजीपी भी उसके हिस्सा थे। याने उनकी कमिटी पहिले ही रिकमांड कर चुकी हैं…..एडीजी गड़बड़ है….निकाला जाए। तो अब वे निगरानी क्या करेंगे। लेकिन, मिनिस्ट्री आफ होम का आर्डर को क्या किया जा सकता है।
नई पोस्टिंग
बैजेंद्र कुमार के एनएमडीसी चेयरमैन बनने के घटनाक्रम के बाद प्रिंसिपल सिकरेट्री चित्तरंजन खेतान को ठीक-ठाक पोस्टिंग की संभवनाएं बढ़ गई है। भारत सरकार से लौटने के बाद सरकार ने उन्हें प्रशासन अकादमी का डीजी पोस्ट किया था। जाहिर है, बैजेंद्र के पास सीएम सचिवालय के साथ उर्जा और उद्योग विभाग था। ये दोनों विभाग पीएस अमन सिंह और सिकरेट्री सुबोध सिंह संभाल चुके हैं। मगर अब दोनों के पास इतना वर्क लोड है कि फिर से इन विभागों को चलाना उनके लिए संभव नहीं होगा। इसमें दो बातें सामने आ रही है। या तो दो महीने के लिए टेम्पोरेरी तौर पर अमन और सुबोध को इन विभागों को सरकार सौंप दें। और, नवंबर में होने वाले मेगा फेरबदल में विभागों का पुनर्गठन किया जाए। या फिर, किसी स्पेशल सिकरेट्री को उर्जा और सीएम सचिवालय के लिए पोस्ट किया जाए। अगर ऐसा हुआ तो साफ-सुथरी छबि के सिद्धार्थ कोमल परदेशी को सरकार मंत्रालय बुला सकती है। परदेशी कवर्धा और राजनांदगांव के कलेक्टर रह चुके हैं। जाहिर है, सरकार के लिए वे टेस्टेड अफसर होंगे। लेकिन, ये सिर्फ अटकलें हैं।
गो माता कहां हो?
गायों को लेकर कांग्रेस की सियासत तो सफल रही मगर इसके लिए उन्हें रायपुर में कितने पापड़ बेलने पड़े पूछिए मत! असल में, कांग्रेस को लगा था कि गाये ंतो यूं ही रोड चलते मिल जाएंगी….पकड़ लेंगे। मगर हुआ ऐसा कि नगर निगम के अमले ने सुबह चार बजे से ही सड़क पर छुट्टा घूमने वाली गायों को उठाना चालू कर दिया था। सात बजते तक सारी गायें गायब थीं। पार्टी ने गायों के लिए महापौर को लगाया। दिलचस्प दृश्य था….मेयर और उनकी टीम गायों के लिए मशक्कत कर रही थीं और निगम कर्मी गायों को गायब कर रहे थे। ले देकर लाखे नगर चौक पर कुछ गायें मिलीं तो पकड़ लाए। कांग्रेस को अफसोस इसलिए भी रहा कि पुलिस के चलते प्रदर्शन भी आधा-अधूरा रहा, उपर से गायों के चारा-चोकर पर भी जेब से हजारों रुपए निकल गए। चलिये, गायों को लेकर ऐसे प्रदर्शन होते रहने चाहिए….उन्हें सड़कों पर कागज और झिल्ली की बजाए एकाध दिन चारा-चोकर खाने को मिल जाएंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. विभाग बदलने की आशंका से किन दो मंत्रियों की रात की नींद उड़ी हुई है?
2. किस महिला कलेक्टर ने एक कंपनी से तीन लाख रुपए महीना फिक्स करवा लिया है?
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