27 अगस्त
संजय दीक्षित
क्रवार को सीएम डा0 रमन सिंह राजधानी के आंबेडकर हास्पिटल में डायबिटिक पीड़ित बच्चों को डायबिटिक किट बांटने पहुंचे थे। एक बच्ची किट लेने के बाद कुछ कदम चलकर पीछे पल्टी….सीएम से बोली, सर, आज मेरा बर्थडे है….डायबिटिक पीड़ित बच्ची….खुद बता रही है…मेरा जन्मदिन है….कुछ क्षण के लिए माहौल भावमय हो गया….सीएम भी ठिठके….क्या दें। जेब की ओर हाथ गया….लेकिन, पाकिट में वे पैसा रखते नहीं। फिर, ध्यान आया उपर की जेब में पेन तो है। झट से उन्होंने पार्कर पेन निकाल कर बच्ची के हाथ में दे दिया….लो तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट।
विदेश…ना बाबा
मंत्री अमर अग्रवाल ने जर्मनी जाने का प्लान स्थगित कर दिया है। मंत्री के साथ अफसरों की टीम जाने वाली थी…..स्पेशल सिकरेट्री अरबन रोहित यादव, डायरेक्टर इंडस्ट्री अलरमेल मंगई, एमडी सीएसआईडीसी सुनील मिश्रा। इन्हें कांफ्रेंस में हिस्सा लेने 18 सितंबर को जर्मनी रवाना था। बताते हैं, अमर अग्रवाल ने कल सुनील मिश्रा को बोलकर जीएडी से फाइल वापस मंगा ली। अमर चतुर पालीटिशियन हैं….जानते हैं, एक मंत्री के विदेश घूमने पर किरकिरी हो रही है…विधायकों का विदेश दौरा निरस्त हो गया है। सूखे से किसानों में मचे हाहाकार के बीच विदेश जाने का मैसेज अच्छा नहीं जाएगा।
संवैधानिक संकटराज्य सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल के शपथ में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। सूचना आयोग के नार्म के मुताबिक राज्यपाल मुख्य सूचना आयुक्त को शपथ दिलाते हैं और मुख्य सूचना आयुक्त फिर सूचना आयुक्त को। लेकिन, छत्तीसगढ़ सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद पिछले डेढ़ साल से खाली है। सरमियस मिंज अप्रैल 2016 में रिटायर हुए थे। इसके बाद से मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी खाली पड़ी है। खाली क्यों रखी गई है, सरकार बता सकती है। फिलहाल लाख टके का सवाल अशोक अग्रवाल को शपथ कौन दिलाएगा….सूचना आयोग के अफसर किताबें खंगाल रहे हैं।
13 साल से एक ही व्यक्ति
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल आंबेडकर चिकित्सालय में चार बच्चों की मौत हो गई। मौत की वजह को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। मगर एक सवाल मौजूं है….एक ही व्यक्ति पिछले 13 साल से क्यों? हम बात कर रहे हैं, डा0 विवेक चौधरी की। आंबेडकर के सुपरिटेंडेंट। 2004 से इस पोस्ट पर बैठे हैं। चौधरी जब अस्पताल की कमान संभाले थे…उसी समय आरपी मंडल रायपुर के कलेक्टर पोस्ट हुए थे। मंडल के बाद आठ कलेक्टर बदल चुके हैं। लेकिन, आंबेडकर का अधीक्षक नहीं बदला। हम चौधरी की काबिलियत पर सवाल नहीं कर रहे हैं। वे कैंसर के एक्सपर्ट बताए जाते हैं। लेकिन, प्रशासन का अपना नार्म होता है। एक ही पद पर लंबे समय तक काबिज रहने पर जाहिर है, प्रशासन में जड़ता आ जाती है। पिछले तीन-चार साल मेंं आंबेडकर की घटनाएं विचलित कर रही है। सरकार और उसके हेल्थ मिनिस्टर को इस पर सोचना चाहिए।
गृह विभाग ने फंसवाया
एक झटके में 47 पुलिस वालों को फोर्सली रिटायर कर गृह विभाग ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। वजह है, सूची में 35 से अधिक पुलिस वालों का रिजर्व केटेगरी का होना। प्रदेश में वैसे ही आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ाने की कोशिश हो रही है….गृह विभाग ने उसे ईंधन-पानी मुहैया करा दिया। पता चला है, अफसरों ने सरकार को विश्वास में नहीं लिया। गृह विभाग ने डीजीपी एएन उपध्याय, डीजी नक्सल डीएम अवस्थी और गृह विभाग के उप सचिव डीके माथुर की कमेटी बनाई थी। कमेटी ने रिकमांड किया और गृह विभाग ने यह कहते हुए उसे मंत्री रामसेवक पैकरा से दस्तखत करा लिया कि मोदी आईएएस, आईपीएस की छुट्टी कर रहे हैं, इसे रोकना ठीक नहीं होगा। बताते हैं, मोदीजी का नाम सुनते ही गृह मंत्री ने चिड़िया बिठा दिया। जबकि, ऐसे फैसले सरकार की बिना सहमति के होते नहीं। और बात बहुत साफ है, सरकार की नोटिस में आती तो यह लिस्ट नहीं निकलती। क्योंकि, सरकारें राजनीतिक नफा-नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए फैसले लेती हैं। वो भी जब विधानसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है। हालांकि, लिस्ट गलत नहीं है। सूरजपुर के एक टीआई कुकर्म करके फरार है। अंबिकापुर के एक टीआई को वहां के आईजी पहले ही बर्खास्त कर चुके हैं। हल्ला मचाने वाली एक महिला टीआई को सिर्फ बर्खास्त आईजी राजकुमार देवांगन ने ईमानदार अफसर बताते हुए सीआर में टॉप ग्रेड दिया है। उनके अलावा 17 आईपीएस अफसरों ने सीआर में सबसे खराब कोडिंग की है…ग और घ। उनमें से 14 एससी और एसटी केटेगरी के आईपीएस हैं। लेकिन, गृह विभाग के अफसरों को वोट बैंक की संवदेनशीलता तो समझना चाहिए।
सरकार का ब्रेक
47 इंस्पेक्टर्स, सब इंस्पेक्टर्स की छुट्टी करने के बाद गृह विभाग इतना उतावला था कि डीएसपी की छंटनी के लिए मीटिंग कर डाली। यही नहीं, पांच डीएसपी को रिटायर करने की अनुशंसा भी। लेकिन, इंस्पेक्टरों की छुट्टी पर चौतरफा हमले से घबराए सरकार ने फिलहाल इस पर ब्रेक लगा दिया है। सो, राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को घबराने की जरूरत नहीं है।
किस्मत हो तो….
आईएएस अशोक अग्रवाल की सूचना आयुक्त बनाने के बाद ब्युरोक्रेसी चकित है….सिरे से मान रहे हैं…किस्मत हो तो अशोक अग्रवाल जैसा। अधिकांश पोस्टिंग रायपुर में की। इसके बाद कोरबा, रायगढ़ और बाद में वीवीआईपी जिला राजनांदगांव की कलेक्टरी। फिर, रायपुर और दुर्ग का कमिश्नर। वहां से फिर आबकारी में ताजपोशी….आबकारी कमिश्नर का मतलब बताने की जरूरत नहीं है। और अब सूचना आयुक्त। पूरे पांच साल के लिए। वो भी अभी आबकारी से रिलीव नहीं होंगे। अभी लगेंगे दो-एक महीने। सरकार ने सिर्फ सूचना आयोग की सीट बुक की है। ऐसी किस्मत आखिर कितनों को मिलती है। डायरेक्ट आईएएस डीएस मिश्रा डेढ़ साल चक्कर काटने के बाद सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बन पाए हैं, जहां उन्हें बैठने के लिए कुर्सी-टेबल का बंदोबस्त करना होगा।
ननकीराम की याद
सरकार को पुराने मंत्री ननकीराम कंवर की बहुत याद आ रही है….वे हर साल बारिश के लिए यज्ञ कराते थे। इतेफाक कहें या….अकाल भी कभी नहीं पड़ा। मगर पिछले तीन साल से सूबे में बारिश कम होती जा रही है। इस साल तो इंतेहा हो गई….गंगरेल में मात्र 10 परसेंट पानी है। ऐसे में, रमन सिंह को ननकी की कमी खलना स्वाभाविक है।
आखिरी बात हौले से
अनाचारी बाबा राम रहीम को जेल भेजकर सिस्टम ने देश को कड़ा संदेश दिया है…अब लोगों में अंध श्रद्धा पैदा कर साम्राज्य चलाने और फतवा जारी करने वालों की अब खैर नहीं। हरियाण पंजाब में भले ही िंहंसा भड़क उठी, मगर अब बाबाओं और इमामों की सिट्टी-पिटी गुम हो गई है….बढ़ियां है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. भारत सरकार ने गैर हिन्दी भाषी आईपीएस को रिव्यू कमेटी की सिफारिश के बाद भी क्यों नहीं हटाया?
2. भूपेश बघेल नेता प्रतिपक्ष बनेंगे और टीएस सिंहदेव पीसीसी चीफ…इसमें कोई सच्चाई है या विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही महज अफवाह?
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