29 अप्रैल
गृह विभाग ने एकमुश्त 47 पुलिस इंस्पेक्टरों को नौकरी से बाहर कर दिया था, कैबिनेट ने उनकी वापसी की गुंजाइश बनाने की कोशिशें की है। निकाले गए लोगों के लिए अब सरकार एक अपील कमेटी बनाएगी। कमेटी क्या करेगी, यह अंडरस्टूड है। असल में, अतिउत्साह में गृह विभाग के अफसरों ने पुअर पारफारमेंस के आधार पर कार्रवाई करते हुए यह ध्यान नहीं दिया कि उसमें किस वर्ग के अफसर शामिल हैं और इससे सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ेगा। जाहिर है, 47 में से 40 से अधिक अनुसूचित जाति, जनजाति के पुलिस अधिकारी थे। ऐसे में, बवाल तो मचना ही था। सरगुजा से लेकर बस्तर तक से सरकार पर सामाजिक प्रेशर था। कैट ने आईएएस, आईपीएस के पक्ष़्ा में कुछ फैसले देकर सरकार की उलझन और बढ़ा दी। लिहाजा, अपील कमेटी बनाने के सिवा कोई चारा नहीं था सरकार के पास।
गृह विभाग ने एकमुश्त 47 पुलिस इंस्पेक्टरों को नौकरी से बाहर कर दिया था, कैबिनेट ने उनकी वापसी की गुंजाइश बनाने की कोशिशें की है। निकाले गए लोगों के लिए अब सरकार एक अपील कमेटी बनाएगी। कमेटी क्या करेगी, यह अंडरस्टूड है। असल में, अतिउत्साह में गृह विभाग के अफसरों ने पुअर पारफारमेंस के आधार पर कार्रवाई करते हुए यह ध्यान नहीं दिया कि उसमें किस वर्ग के अफसर शामिल हैं और इससे सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ेगा। जाहिर है, 47 में से 40 से अधिक अनुसूचित जाति, जनजाति के पुलिस अधिकारी थे। ऐसे में, बवाल तो मचना ही था। सरगुजा से लेकर बस्तर तक से सरकार पर सामाजिक प्रेशर था। कैट ने आईएएस, आईपीएस के पक्ष़्ा में कुछ फैसले देकर सरकार की उलझन और बढ़ा दी। लिहाजा, अपील कमेटी बनाने के सिवा कोई चारा नहीं था सरकार के पास।
2011 बैच का दुर्भाग्य
देश के कई राज्यों में 2011 बैच के आईएएस दो-दो जिले की कलेक्टरी कर चुके हैं। लेकिन, छत्तीसगढ़ में इस बैच का खाता भी नहीं खुला है। पिछले साल से आईएएस का यह बैच टकटकी लगाए बैठा है, शायद कुछ हो जाए। लेकिन, अभी 2010 बैच ही कंप्लीट नहीं हुआ है तो फिर 2011 को कौन पूछे। 2010 बैच की रानू साहू का अभी नम्बर नहीं लगा है। और, अब चुनाव का वक्त आ गया है। जाहिर तौर पर सरकार अब कलेक्टरी में प्रमोटी आईएएस की संख्या बढ़ाएगी। क्योंकि, चुनाव में काम तो वे ही आते हैं। ऐसे में, 2011 बैच का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि 2019 से पहिले उनके लिए कोई मौका नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति इसलिए भी आई है कि सूबे में कैडर की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कहां पहले हर साल दो-तीन आईएएस मिलते थे। अब पांच-पांच, छह-छह आ रहे हैं। कलेक्टरी का मौका मिलने में देरी से छत्तीसगढ़ कैडर का जो क्रेज बढ़ा था, वो भी ऐसे में गड़बड़ाएगा।
बिदाई
डिप्टी कलेक्टरों के ट्रांसफर में सीएम सचिवालय से ओएसडी संदीप अग्रवाल की बिदाई हो गई। डा0 रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद साढ़े चौदह साल में अग्रवाल दूसरे अफसर होंगे, जिन्हें वहां से शिफ्थ किया गया है। इससे पहिले स्पेशल सिकरेट्री टू सीएम रोहित यादव को चेंज किया गया था। रोहित और संदीप के अलावा साढ़े चौहद साल में सीएम सचिवालय में जो भी अफसर पोस्ट हुए, काम करके उन्होंने अपनी जगह मुकम्मल कर ली। सीएम सचिवालय से अध्ययन अवकाश पर हावर्ड गए रजत कुमार लौटने वाले हैं। तय है उनकी पोस्टिंग भी सीएम सचिवालय में ही होगी।
पोस्टिंग के लाभ
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुब्रत साहू 10 मई से 25 दिन की छुट्टी में अमेरिका जा रहे हैं। वे अब फर्स्ट वीक ऑफ जून में लौटेंगे। निर्वाचन में पोस्टिंग के ये ही फायदे हैं। अगर वे राज्य सरकार में होते तो किसी भी सूरत में विदेश जाने के लिए उन्हें इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिलती। विकास यात्रा के दौरान तो दो दिन की छुट्टी मिलनी मुश्किल होती है। वैसे भी, विदेश जाने के लिए अनुमति लेने के लिए नौकरशाहों को काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। भले ही पर्सनल ट्रिप क्यों न हो। बिना हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाए काम बनता नहीं। यह इसलिए करना पड़ता है, क्योंकि सरकारें जानती हैं कि विदेश दौरे का कोई तुक नहीं….सैर-सपाटे के लिए दौरा क्रियेट किया गया है। उपर से घरवालों को भी ले जाना है साथ में। विदेश जाने की फाइल जीएडी से चलकर कई जगहां से होते हुए उपर तक पहुंचती है। चुनाव आयोग में ऐसा नहीं है। इलेक्शन कमिश्नर ही वहां सब कुछ होते हैं। तभी तो सुब्रत को दिक्कत नहीं हुई। चलिये, निर्वाचन में पोस्टिंग का अब क्रेज बढ़ेगा…कम-से-कम वहां लंबे विदेश प्रवास की इजाजत तो मिल जाती है।
ब्यूरोक्रेसी में शादियां
ब्यूरोक्रेसी में यह महीना शादियों का रहा। 15 दिन के भीतर तीन शादिया हुई। ट्राईबल सिकरेट्री रीना बाबा कंगाले यूके बेस्ड इंजीनियर के संग सात फेरे ली। तो कवर्धा जिला पंचायत के सीईओ कुंदन कुमार राजस्थान की पारुल के साथ परिणय सूत्र में बंधे। प्रोबेशनर आईएएस गौर का विवाह भी इसी महीने हुआ है।
मंत्री की मुश्किलें?
सरकार के एक कद्दावर मंत्री ने कुछ दिन पहले अपने विधानसभा इलाके के 85 से अधिक समाजों के पदाधिकारियों को भोजन पर बुलाकर विधायक निधि से 25-25 हजार रुपए दिया था। विरोधी पार्टियों को जब इसका पता चला तो उनके कान खड़े हो गए। पता चला है, कुछ नेता इसे इश्यू बनाने की तैयारी कर रहे हैं। मंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग में कांप्लेन करने पर विचार किया जा रहा हैं। विपक्ष का सवाल है, मंत्रीजी को आखिर चुनावी वर्ष में समाज प्रमुखों को खयाल कैसे आया? आपको बता दें, मंत्रीजी रायपुर से बाहर के हैं।
कलेक्टर, एसपी की जोड़ी
गिरिजाशंकर जायसवाल को सरकार ने सूरजपुर का एसपी बनाया है। गिरिजा जशपुर के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर जशपुर से छोटा भी है। जशपुर पांच ब्लॉक का जिला है, सूरजपुर चार ब्लाक का। सूरजपुर अभी तक एसपी के रूप में आईपीएस का पहला जिला रहा है। लेकिन, सरकार ने कलेक्टर की तरह एसपी का भी सूरजपुर दूसरा जिला बना दिया। दंतेवाड़ा कलेक्टर रह चुके देव सेनापति को पहले सूरजपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा और अब गिरिजा को एसपी। सरकार के इस फैसले से कलेक्टर, एसपी का वजन बढ़ा कि कम हुआ नहीं पता, लेकिन इससे सूरजपुर जिले का कद अवश्य बढ़ गया।
दोनों हाथ में लड्डू
अंबिकापुर से विमान सेवा शुरू करने से सत्ताधारी पार्टी को फायदा मिलेगा या कांग्रेस को, दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि, विमान सेवा के लिए सरकार जितना भी पसीना बहा ले, जो कंपनी रायपुर से अंबिकापुर को विमान सेवा से जोड़ने वाली है, उसमें अंबिकापुर के एक कांग्रेस नेता के परिवार की भागीदारी है। सरगुजा में यह बात आम हो गई है कि फलां साब हवाई जहाज चलवाने वाले हैं। इससे कांग्रेस के दोनों हाथ में लड्डू है। एयर सर्विसेज चालू हो गई तो कांग्रेस नेता को क्रेडिट मिलेगा और ना हुआ तो सरकार को कोसने का बढ़ियां मौका।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सूरजपुर के एसपी डीआर आचला की सरकार ने छुट्टी क्यों कर दी?
2. किस जिले के कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ बिहार से हो गए हैं और वो भी पड़ोसी जिले के?
2. किस जिले के कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ बिहार से हो गए हैं और वो भी पड़ोसी जिले के?
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