6 मई 2018
एक बैच के आईएएस एक ही विभाग में सिकरेट्री, ज्वाइंट सिकरेट्री और डायरेक्टर हो, ऐसा आपने नहीं सुना या पढ़ा होगा। मगर छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसा ही हुआ है। बात हो रही समाज कल्याण विभाग का। प्रसन्ना आर इस विभाग के सिकरेट्री हैं। बीएल बंजारे ज्वाइंट डायरेक्टर और डा0 संजय अलंग डायरेक्टर। तीनों 2004 बैच के आईएएस हैं। याने सब बराबर। यह अद्वितीय संयोग हुआ इसलिए क्योंकि संजय अलंग को डायरेक्टर बनाया गया तब सोनमणि बोरा सिकरेट्री थे। बोरा 1999 बैच के आईएएस हैं। और, अलंग 2005 के। बोरा के हटने के बाद आर प्रसन्ना को समाज कल्याण की जिम्मेदारी दी गई। इस दौरान पंजाब हाईकोर्ट के फैसले के बाद अलंग का बैच अपग्रेड होकर 2004 हो गया। इससे सिकरेट्री और डायरेक्टर सेम बैच के हो गए। रही सही कसर बंजारे के आईएएस अवार्ड से पूरी हो गई। भारत सरकार ने उन्हें भी 2004 बैच आबंटित कर दिया। हालांकि, जीएडी के चलते यह विशिष्ट संयोग पिछले साल भी निर्मित हुआ था। जब प्रसन्ना हेल्थ में कमिश्नर थे और उन्हीं के 2004 बैच के एनके शुक्ला को उनके नीचे डायरेक्टर अपाइंट कर दिया गया। लेकिन, शुक्ला माटीपुत्र थे। उन्होंने भिड़ के अपना आर्डर चेंज कराकर नान में चले गए। लेकिन, बेचारे अलंग और बंजारे क्या करें…कोई बैकिंग तो है नहीं।
एक बैच के आईएएस एक ही विभाग में सिकरेट्री, ज्वाइंट सिकरेट्री और डायरेक्टर हो, ऐसा आपने नहीं सुना या पढ़ा होगा। मगर छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसा ही हुआ है। बात हो रही समाज कल्याण विभाग का। प्रसन्ना आर इस विभाग के सिकरेट्री हैं। बीएल बंजारे ज्वाइंट डायरेक्टर और डा0 संजय अलंग डायरेक्टर। तीनों 2004 बैच के आईएएस हैं। याने सब बराबर। यह अद्वितीय संयोग हुआ इसलिए क्योंकि संजय अलंग को डायरेक्टर बनाया गया तब सोनमणि बोरा सिकरेट्री थे। बोरा 1999 बैच के आईएएस हैं। और, अलंग 2005 के। बोरा के हटने के बाद आर प्रसन्ना को समाज कल्याण की जिम्मेदारी दी गई। इस दौरान पंजाब हाईकोर्ट के फैसले के बाद अलंग का बैच अपग्रेड होकर 2004 हो गया। इससे सिकरेट्री और डायरेक्टर सेम बैच के हो गए। रही सही कसर बंजारे के आईएएस अवार्ड से पूरी हो गई। भारत सरकार ने उन्हें भी 2004 बैच आबंटित कर दिया। हालांकि, जीएडी के चलते यह विशिष्ट संयोग पिछले साल भी निर्मित हुआ था। जब प्रसन्ना हेल्थ में कमिश्नर थे और उन्हीं के 2004 बैच के एनके शुक्ला को उनके नीचे डायरेक्टर अपाइंट कर दिया गया। लेकिन, शुक्ला माटीपुत्र थे। उन्होंने भिड़ के अपना आर्डर चेंज कराकर नान में चले गए। लेकिन, बेचारे अलंग और बंजारे क्या करें…कोई बैकिंग तो है नहीं।
सिस्टम का फेल्योरनेस या….
जीएडी में केके बाजपेयी, आबकारी में समुद्र सिंह और परिवहन में बीएल धु्रव। बाजपेयी स्पेशल सिकरेट्री हैं, तहसीलदार से राज्य प्रशासनिक सेवा में आए। बाकी दोनों विभागीय अफसर थे और फिलहाल अपने-अपने विभाग में ओएसडी। तीनों में समानता यह है कि तीनों 10 से 12 साल पहले रिटायर हो चुके हैं लेकिन फिर भी क्रीज पर मजबूती से जमे हुए हैं। तीनों को अपने-अपने विभाग का कीड़ा कहा जाता है और यह भी कि वे अगर हट गए तो विभाग का काम ठप हो जाएगा। तीनों के नॉलेज और कर्मठता को एप्रीसियेट करना चाहिए। ऐसे लोग भी हैं सरकारी सेवा में। इनमें से आखिरी दो तो आदिवासी अफसर हैं। लेकिन, जरा सोचिए्! सिस्टम का यह फेल्योरनेस ही तो है। राज्य बनने के 18 साल में सिस्टम में स्किल्ड डेवलप नहीं कर पाए। ये तीन विभाग तो एक बानगी है। कई ऐसे महकमे हैं, जो पुराने और रिटायर अफसरों के भरोसे ही चल रहे हैं। वजह यह कि नए अफसर काम सीखने के फालतू पचड़े में पड़ना नहीं चाहते। वे बापू की फोटो वाले हरे, गुलाबी कागजों की मोह-माया में फंस जा रहे हैं। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।
हार्ड लक
प्रधानमंत्री अवार्ड के मामले में छत्तीसगढ़ का अबकी हार्ड लक रहा। तीन केटेगरी के फायनल स्क्रीनिंग में पहुंचने के बाद भी नतीजा सिफर रहा। पीएम अवार्ड के लिए नारायणपुर, कवर्धा और नगरीय विकास विभाग की मजबूत दावेदारी थी। नारायणपुर जिले का नाम इनोवेशन केटेगरी में चुना गया था। इसके अलावा कवर्धा का प्रधानमंत्री आवास योजना में था। जबकि, पिछले साल दंतेवाड़ा जिले के कलेक्टर सौरभ कुमार को पालनार को कैशलेस करने के लिए पीएम अवार्ड मिला था। उससे पहिले दंतेवाड़ा कलेक्टर ओपी चौधरी को एजुकेशन सिटी के लिए।
हेल्थ में आईएफएस
एक ओर आईएएस एसोसियेशन आईएफएस अफसरों को वन विभाग में वापिस भेजने की बात करते हैं दूसरी ओर आईएफएस की मंत्रालय में पोस्टिंगें भी होती जा रही है। आईएफएस विश्वेश कुमार को सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में डिप्टी सिकरेट्री बनाया है। विश्वेश जांजगीर में जिपं सीईओ थे। उसके बाद बलौदा बाजार के डीएफओ बनें। बताते हैं, वे खुद भी मंत्रालय आने के इच्छुक नहीं थे। पोस्टिंग से पहले उनसे पूछा भी नहीं गया। जबकि, पहले परंपरा रही है, डेपुटेशन में किसी अफसर को अगर लिया जाता था तो उसे कम-से-कम सूचित तो किया ही जाता था। वैसे, आईएएस में भी अफसरों की कमी नहीं है। मंत्रालय में ही डिप्टी सिकरेट्री रैंक के कई ऐसे नाम है, जिनके पास नाम के विभाग हैं। लेकिन, सिस्टम को उन पर भरोसा नहीं।
भूपेश की मजबूरी?
पीसीसी चीफ भूपेश बघेल ने ट्वीट के जरिये साफ किया है कि वे पाटन से ही चुनाव लडें़गे….कोई अफवाह न फैलाए कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। भूपेश से पहिले चरणदास महंत ने आधा दर्जन से अधिक सीटों के नाम गिनाते हुए ऐलान किया था कि आलाकमान के कहने पर वे इनमें से कहीं से भी चुनाव लड़ लेंगे। तो क्या इसे भूपेश की मजबूरी मानी जाए। क्योंकि, सभी जानते हैं कि उन्होंने अपनी पार्टी से लेकर बाहर तक अपने मित्रों की संख्या किस कदर बढ़ा ली है। जाहिर है, अबकी विधानसभा चुनाव में भूपेश को निबटाने के लिए 89 सीट एक तरफ और पाटन एक तरफ होगा। ऐसे में, पीसीसी चीफ के समक्ष खतरे तो रहेंगे।
बस्तर की पोस्टिंग
उन अफसरों के लिए राहत वाली खबर होगी, जो बस्तर पोस्टिंग में डिस्टेंस का रोना रोते थे। जगदलपुर-रायपुर के बीच विमान सेवा शुरू होने पर अब वे 35 से 40 मिनट में एक-दूसरे जगह पर पहुंच जाएंगे। यही नहीं, सैर-सपाटे के लिए उनके लिए अब विशाखापटनम जाने का भी विकल्प रहेगा। क्योंकि, यह फ्लाइट विशाखापटनम तक जाएगी। खासकर, साउथ के अफसरों के लिए तो बस्तर की पोस्टिंग अब सोने में सुहागा हो जाएगा। अब कुछ घंटे में वे अपने गांव-घर पहुंच जाएंगे।
राजपरिवार के ये दिन?
जिस एयर ओडिसा कंपनी को छत्तीसगढ़ में घरेलू विमान सेवा संचालित करने का काम मिला है, उसमें राजनीतिक पार्टी से जुड़े एक राजपरिवार की भी भागीदारी है। हिस्सेदारी के रूप में परिवार के लाड़ले को हवाई जहाज का टिकिट बेचने का काम मिला है। रायपुर, जगदलपुर, बिलासपुर और अंबिकापुर में टिकिट बेचने का काम उनके पास होगा। अब लोग भले ही इस पर चुटकी लें कि राजपरिवार के पास अब ये ही काम बच गया था, मगर टिकिट में कमीशन बढ़ियां है। और, आखिर सबसे बड़ा रुपैया ही होता है।
ब्रेन वॉश?
पत्थलगड़ी कांड में जशपुर पुलिस ने रिटायर आईएएस एचपी किंडो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस खबर को जिसने भी सुना, मुंह से बरबस निकल गया, किंडो ऐसे नहीं थे। बात सही भी है। किंडो लंबे समय तक बिलासपुर में पोस्टेड रहे। फिर, रायपुर मंत्रालय में। उनका आईएएस अवार्ड जब रुक गया था, तब भी वे धैर्य नहीं खोए। लेकिन, जशपुर में उन्होंने कानून को हाथ में ले लिया। बताते हैं, छत्तीसगढ़ के रिटायर आदिवासी अफसरों पर अलगाववादी शक्तियां डोरे डाल रही हैं। उन्हें पता है कि रिटायर अफसरों का उनके समाज में काफी सम्मान होता है। पत्थलगड़ी में रिटायर अफसरों की संलिप्तता इसी की बानगी है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. संजय पिल्ले को सरकार डीजी बनाएगी या 88 बैच के तीनों अफसरों को एक साथ प्रमोट करने के लिए अगले साल गिरधारी नायक और एएन उपध्याय के रिटायर होने की प्रतीक्षा करेगी?
2. अंबिकापुर संभाग के किन दो कलेक्टरों की कुर्सी हिल रही है?
2. अंबिकापुर संभाग के किन दो कलेक्टरों की कुर्सी हिल रही है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें