शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

वो सात घंटे!

2 सितंबर 2018
इलेक्शन कमीशन ने चुनावी तैयारी के लिए कलेक्टर, एसपी, आईजी, कमिश्नरों की लंबी बैठक ली। सवा दो बजे से रात नौ बजे तक। याने पूरे सात घंटे। एक जगह पर बिना हिले-डुले बैठना…..आप समझ सकते हैं। आयोग के अफसरों ने बैठक प्रारंभ होते ही ऐसा हड़का दिया कि लोगों को कंपा देने वाले कलेक्टर, एसपी भीतर से कांप गए! कहीं राडार पर आ गए तो निबटने में देर नहीं लगेगी। यही वजह है कि जब तक मीटिंग चलती रही, किसी अफसर ने जबर्दस्त जरूरत पड़ने के बाद भी वाशरुम जाने की हिमाकत नहीं की। दरअसल, दिल्ली से आए निर्वाचन आयोग के अफसरों ने मीटिंग प्रारंभ होते ही कलेक्टर, एसपी पर ऐसा खौफ जमा दिया कि पूछिए मत! सबसे पहिले एक कमिश्नर ने यह बोलकर कि यहां बैठे कई सीनियर अफसर उंघ रहे हैं, अधिकारियों की नींद भगा डाली। इसके बाद बारी आई एसपी की। सरगुजा संभाग के एक एसपी उतरे सलामी बल्लेबाजी के लिए। मगर वे पहली बॉल पर आउट हो गए। आयोग ने उनसे पूछा अगस्त में वे कितनी वारंट तामिल कराए। वे लगे साल का बताने। उनके पास मंथली डेटा नहीं था। इससे झल्लाकर इलेक्शन कमिश्नर ने उन्हें यह कहते हुए बाहर भेज दिया कि आप पता करके आईये। सरगुजा संभाग के ही दूसरे एसपी खड़े हुए, वे भी आंकडों मे ंउलझ गए। बताते हैं, अधिकांश एसपी साल का फिगर लेकर आए थे। उनके पास मंथली फिगर नहीं थे। लेकिन, सरगुजा संभाग के दो ओपनर बैट्समैन को देखकर बाकी एसपी सतर्क हो गए। और, लगे मातहतों को व्हाट्सएप भेजने। मोबाइल का कमाल था कि बाकी के पास तुरंत महीने का डेटा आ गया। और, लगा जान बची, लाखों पाए। बहरहाल, वो सात घंटे के बाद अफसर जब बाहर निकले तो उनका चेहरा देखने लायक था।

धोखे में कलेक्टरी?

बलौदा बाजार से कलेक्टरी से हटने के बाद बसव राजू ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे राजधानी रायपुर के कलेक्टर बन सकते हैं। वे तो कहां इंटर स्टेट डेपुटेशन पर अपने होम स्टेट जाने के लिए लगेज तैयार कर रहे थे। दिल्ली से भी उन्हें एप्रूवल मिल चुका था। बस, आखिरी चरण की कुछ प्रक्रियाएं चल रही थी। याने किसी भी दिन डीओपीटी से उनका आर्डर आ जाता। लेकिन, ओपी चौधरी के इस्तीफे के बाद घटनाक्रम कुछ यूं घूमा कि उनके प्रोफाइल में रायपुर जैसे जिले की कलेक्टरी जुड़ गई। दरअसल, पहली बार जीएडी ने अंकित आनंद का नाम आयोग को भेजा था। लेकिन, आयोग ने कुछ और नाम मांग लिए। दूसरी बार बताते हैं, अंकित के साथ ही दंतेवाड़ा कलेक्टर सौरभ कुमार और बसव राजू का नाम था। जीएडी को लगा कि सौरभ ऑलरेडी कलेक्टर हैं और बसव का डेपुटेशन क्लियर हो गया है, लिहाजा अंकित का हो जाएगा। लेकिन, आयोग ने दोनों का नाम छोड़कर बसव के नाम पर मुहर लगा दी।

सजा अंकित को

जीएडी की चूक की सजा आखिरकार आईएएस अंकित आनंद को भुगतनी पड़ी। जीएडी ने सरकार को बिना इंफार्म कए अंकित का नाम डेपुटेशन के लिए भारत सरकार को भेज दिया। इसी चलते चुनाव आयोग ने उन्हें रायपुर कलेक्टर बनाने पर राजी नहीं हुआ। आयोग का कहना था, जिस अफसर को भारत सरकार ने ले लिया है, उसे कलेक्टर नहीं बनाया जा सकता। अंकित जशपुर और जगदलपुर के कलेक्टर रह चुके थे। रायपुर उनका तीसरा जिला होता। लेकिन, वे कलेक्टर बनते-बनते रह गए।

आयोग सख्त

चीफ इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत सौम्य और शालीन नौकरशाह माने जाते हैं। मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस होने के कारण छत्तीसगढ़ से उनका स्वाभाविक जुड़ाव माना जा रहा था। लेकिन, शुरूआती झटके से सूबे के अफसर हतप्रभ हैं। अंकित आनंद को उन्होंने रायपुर कलेक्टर बनाने के लिए तैयार नहीं हुए वहीं, रायपुर आईजी प्रदीप गुप्ता और अंबिकापुपर कलेक्टर किरण कौशल के मामले में उन्होंने कोई राहत नहीं दी। प्रदीप का रायपुर होम डिस्ट्रिक्ट था। सरकार ने कई बार आग्रह किया कि राज्य में आईजी की कमी है। सिर्फ एक आईजी पीएचक्यू में हैं। लेकिन, आयोग टस-से-मस नहीं हुआ। आखिरकार, प्रदीप गुप्ता को बिलासपुर शिफ्थ करना पड़ा।

नो कमेंट्स

जी चुरेंद्र को सरकार ने रायपुर संभाग का कमिश्नर बना दिया है। चुरेंद्र वहीं हैं, जिन्हें पिछले साल लोक सुराज के दौरान सरकार ने गंदे ढंग से हटा दिया था। बीजेपी गवर्नमेंट के 15 साल में पहला मौका था, जब सीएम ने किसी कलेक्टर को हटाने का ऐलान हेलीपैड पर मीडिया के सामने किया होगा। बताते हैं, सरकार चुरेंद्र के पारफारमेंस से खुश नहीं थी। उन्हीं चुरेंद्र को सरकार ने रायपुर का कमिश्नर बना दिया है। खैर, ये भी एक संयोग ही है कि पहली बार पांचों कमिश्नर प्रमोटी आईएएस हैं। उस पर भी, सब एक से बढ़कर एक। अंबिकापुर कमिश्नर के खिलाफ तो डीई चल रही है। चुरेंद्र के खिलाफ भी गंभीर मामले थे। पांचों में बस्तर के धनंजय देवांगन को छोड़ दे ंतो बाकी सभी कमिश्नर प्रातः स्मरणीय हैं।

तलवार की धार

कलेक्टरों और एसपी के लिए चुनाव में काम करना वास्तव में तलवार की धार पर चलने जैसे होता है। इलेक्शन कमिश्नर घुड़की दे गए हैं कि किसी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित होकर काम किये तो खैर नहीं। और, ज्यादा नियम-कायदे दिखाए और सरकार कहीं बैक हो गई तो क्या होगा, इसे सोच कर ही अफसर सिहर जा रहे हैं। इनमें भी लंबे समय से जो कलेक्टरी और कप्तानी कर रहे हैं, वे तो पर्याप्त पर्याप्त सुख-सुविधा भोग चुके हैं। नए कलेक्टरों का भला क्या कसूर… बेचारों को चुनाव के दौरान सरकार ने कलेक्टर बना दिया।

सीधे सुप्रीम कोर्ट

2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने पहले फेज में जांजगीर के कलेक्टर एमआर सारथी और जशपुर कलेक्टर अनंत की छुट्टी कर दी थी। आयोग के फैसले के खिलाफ दोनों हाईकोर्ट से स्टे ले आए थे। लेकिन, इलेक्शन कमीशन पीछे नहीं हटा। अगले दिन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और उसी दिन शाम को हाईकोर्ट के स्टे पर स्टे ले आया था। इसके बाद तो फिर किसी नौकरशाह ने आयोग के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की हिमाकत नहीं की। अनंत और सारथी के बाद आयोग ने पिछले तीनों चुनाव में आधा दर्जन कलेक्टर्स और एसपी को हटाया लेकिन, किसी ने भी उसे चैलेंज नहीं किया।

कहा सो किया

कांग्रेस इस महीने की 15 तारीख तक कुछ टिकिटों का ऐलान कर सकती है। खासकर, जिन सीटों पर सिंगल नाम हैं। मसलन, रायपुर ग्रामीण, दुर्ग शहर, कवर्धा, अंबिकापुर, अभनपुर, साजा, राजिम, आरंग, कोंटा। हालांकि, पीसीसी से तो अनेक सीटों पर सिंगल नाम तय कर दिए हैं। लेकिन, आलाकमान से अभी उस पर मुहर नही लगा है। जाहिर है, जिन सीटों के दावेदारों का नाम दिल्ली से ओके नहीं हुआ है, उसमें अभी टाईम लगेगा। बाकी, दस से बारह सीटों पर दावेदारों के नाम की घोषणा 15 सितंबर तक कर दी जाएगी। इससे कांग्रेस नेताओं को ये कहने के लिए हो जाएगा कि जो कहा, सो किया। जाहिर है, कांग्रेस ने अगस्त तक प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने का दावा किया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस पार्टी के दावेदार ने 20 करोड़ में अपना टिकिट पक्का किया है?
2. ओपी चौधरी की तोड़ निकालने के लिए कांग्रेस ने आरपीएस त्यागी को पार्टी में लाया है, इसमें वो कितना सफल होगी?

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