शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

एक सीट कांग्रेस को!

9 सितंबर
विधानसभा चुनावों में पहिले बीजेपी और कांग्रेस में तीन-चार सीटों का गिव एंड टेक होता था। याने तू मुझे जीता, मैं तूझे….। दरअसल, उन सीटों पर जानबूझकर कमजोर प्रत्याशी उतारे जाते थे। ताकि, डील न गड़बड़ाए। रायपुर की एक सीट पर एक बड़े नेता के खिलाफ विरोधी पार्टी पिछले कई चुनाव से डमी प्रत्याशी उतार रही है। मगर इस दफा चुनाव में मुकाबला इतना टफ और नजदीकी रहेगा कि कोई पार्टी रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। भले ही सामने वाले नेता कितना करीबी और उपयोगी क्यों न हो। हां, कोरबा में बीजेपी जरूर कांग्रेस को जीताने का प्रयास कर सकती है। इसके पीछे मिथक यह है कि वहां जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, राज्य में उसके विरोधी दल की सरकार बनती है। जय सिंह अग्रवाल दो बार से कोरबा से कांग्रेस के विधायक हैं। इससे पहिले 2003 में कटघोरा विस मे कोरबा आता था, तब कांग्रेस के बोधराम कंवर वहां से जीते थे। तब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी। 1998 में बीजेपी के बनवारी लाल अग्रवाल जीते, तो अविभाजित मध्यप्रदेश में सरकार कांग्रेस की बन गई थी। ऐसे में, कोरबा से जय सिंह अग्रवाल खड़े हों या आरपीएस त्यागी, सत्ताधारी पार्टी कैसे नहीं चाहेगी कि कांग्रेस वहां से जीत जाए।

भूपेश का फेस

कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भले ही अलग-अलग दावे और अटकलें लगाई जा रही हों मगर सर्वे के आधार पर बात करें तो पीसीसी चीफ भूपेश बघेल का पलड़ा भारी होता जा रहा है। अभी तक जितने सर्वे हुए हैं, सबमें पसंदीदा मुख्यमंत्रियों में डा0 रमन सिंह के बाद भूपेश का नाम प्रमुखता से आ रहा है। हालांकि, कांग्रेस में दावेदारों की कमी नहीं है। भूपेश के साथ टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत, रविंद्र चौबे, धनेंद्र साहू, सत्यनारायण शर्मा अग्रिम पंक्ति के अनुभवी लीडर हैं। आदिवासियों में चार बार के विधायक रामदयाल उईके भी कम आशान्वित नहीं हैं। दिल्ली की राजनीति में सांसद ताम्रध्वज साहू अलग अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो मानते हैं कि पार्टी कहीं सत्ता में आई तो भूपेश की बजाए फलां को सीएम बनाया जाएगा….एक बड़े वर्ग का ये भी विश्वास है कि मुख्यमंत्री हमेशा दिल्ली से आता है। याने सांसद सीएम बनता है। जाहिर है, इशारा ताम्रध्वज की ओर है। लेकिन, सर्वे एकतरफा भूपेश की ओर जा रहा है। सियासी पंडितों का कहना है, इससे पार्टी के भीतर भूपेश की न केवल दावेदारी मजबूत हो रही है बल्कि कांग्रेस के अपने समकक्ष नेताओं में एक बड़े फेस के रूप में वे स्थापित हो रहे हैं।

कलेक्टर्स….हिट विकेट?

विधानसभा चुनाव में अबकी कलेक्टरों के हिट विकेट होने की आशंका से सरकार भी चिंतित है। चार दिन की सुबह से शाम तक की ट्रेनिंग और परीक्षा पास करने के बाद भी भारत निर्वाचन आयोग के फुल कमीशन के समक्ष कलेक्टर्स और एसपी का पारफारमेंस कैसा रहा आखिर सबने देखा ही। दो कलेक्टर्स और एक एसपी की कमीशन ने जमकर क्लास ले डाली। असल में, सूबे के 27 में से सिर्फ एक बिलासपुर को छोड़कर बाकी सभी नए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में 26 कलेक्टरों का ये पहला विधानसभा चुनाव होगा। राजनांदगांवक कलेक्टर भीम सिंह लोकसभा चुनाव के दौरान नाइट वाचमैन के तौर पर जरूर धमतरी के कलेक्टर बनाए गए थे। लेकिन, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बड़ा फर्क होता है। बहरहाल, बिलासपुर कलेक्टर दयानंद ऐसे डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन आफिसर होंगे, जिन्हें 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव कराने का तजुर्बा है। 2013 में वे कवर्धा कलेक्टर थे। ये उनका दूसरा विधानसभा चुनाव होगा।

सिद्धार्थ और दयानंद

बात कलेक्टर और इलेक्शन की निकली तो सिद्धार्थ कोमल परदेशी का जिक्र स्वाभाविक है। 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ ने लगातार चार जिलों की कलेक्टरी की ही है। इनमें वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट कवर्धा और राजनांदगांव के साथ ही रायपुर और बिलासपुर जैसे पहले और दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा जिला शामिल हैं। यही नहीं, सिद्धार्थ छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे कलेक्टर रहे, जिन्हें दो विधानसभा और दो लोकसभा इलेक्शन कराने का अवसर मिला। उन्होंने 2008 और 2013 के विधानसभा और 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव करवाया। अलबत्ता, बिलासपुर कलेक्टर दयानंद अपने तीन बरस सीनियर सिद्धार्थ का बड़ी तेजी से पीछा कर रहे हैं। उन्होंने परदेशी के लगातार चार जिलों में कलेक्टर रहने की बराबरी कर ली है, अगर लोकसभा चुनाव तक बिलासपुर में टिक गए तो सबसे अधिक चुनाव कराने वाले सिद्धार्थ की बराबरी कर लेंगे।

बंद कमरे में परीक्षा

चुनाव आयोग की परीक्षा में फेल तीन कलेक्टरों के नामों का खुलासा न हो सकें, इसके लिए आयोग के अफसरों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। नीचे से लेकर उपर तक फारमान जारी किया गया, किसी भी सूरत में नाम बाहर नहीं जाना चाहिए। वरना, आईएएस बिरादरी की बदनामी होगी। हाल ही में फेल कलेक्टरों के लिए आयोग ने दोबारा परीक्षा आरगेनाइज की। निमोरा स्थित प्रशासन अकादमी में ऐसी व्यवस्था की गई कि फेल्योर कलेक्टर पीछे के दरवाजे से आए और बंद कमरे में एग्जाम देकर निकल लिए। इसे कहते हैं, यूनिटी। ये आईएएस में ही संभव है।

उल्टा-पुलटा

सरकार ने शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर जीतेंद्र शुक्ला को पंचायत में आरपी मंडल के पास भेज कर गुरू-शिष्य को फिर से एक साथ कर दिया। लेकिन, सरकार ने ऐसा करके जितेंद्र के साथ अन्याय कर दिया। नगरीय प्रशासन के अनुभवी इस ब्राम्हण अफसर को कलेक्टर बनाने की बजाए सरकार शराब बिकवाती रही और, चुनाव का समय आया तो पंचायत में भेज दिया। जबकि, जीतेंद्र को नगरीय प्रशासन का खासा अनुभव है। पंचायत में वे कभी रहे नहीं। बिलासपुर, रायपुर और कोरबा के वे नगर निगम कमिश्नर रहे। मंत्रालय में भी इसी विभाग के डिप्टी कमिश्नर रहे। उधर, तारण सिनहा, जिन्हें पंचायत का तजुर्बा है, उन्हें शराब और संस्कृति में भेज दिया। याने पूरे ही उल्टा-पुलटा।

मौके का फायदा

सरकार चुनावी कसरत में जुटी है तो कुछ अफसर मौके का फायदा उठाने में नहीं चूक रहे। आदिवासी संभाग के एक एसपी ने तो उगाही का संगठित कारोबार चालू कर दिया है। हाल ही में उसने एक कोयला व्यापारी की नस पकड़ी तो पूरे पेटी खोखा वसूल लिया। काले कोटधारी एक विचौलिये को उन्होंने इसी काम के लिए लगा दिया है। हालांकि, एसपी से तब रांग नम्बर डायल हो गया, जब उन्होंने एक दूसरे कोयला व्यापारी की गर्दन पकड़़ते हुए 50 पेटी की डिमांड कर डाली। उन्हें पता नहीं था कि जिस व्यापारी से वे अपने बिकने का रेट बताएं हैं, वह भाजपा ज्वाईन कर चुका है। अब एसपी को काटो तो खून नहीं। फिर, लगे माफी पर माफी मांगने।

पतली गली से….

इसे ही कहते हैं, पतली गली से निकलना। आईपीएस अभिषेक शांडिल्य का डेपुटेशन पर सीबीआई में हुआ था। लेकिन, राजभवन में एडीसी से वे रिलीव नहीं हो पा रहे थे। राज्यपाल बलरामदास टंडन का इस बीच देहावसान हो गया। और, अभिषेक चुपके से सीबीआई के लिए रिलीव होकर निकल लिए दिल्ली।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चुनाव आयोग के हिट लिस्ट में किस कलेक्टर का नाम सबसे उपर है?
2. उम्र के आधार पर कहीं टिकिट न कट जाए, इस खौफ से कांग्रेस के किस वयोवृद्ध नेता ने अपना 82वां जन्मदिन नहीं मनाया?

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