30 सितंबर
नौकर-चाकर के नाम पर इंवेस्ट करने वाले नेताओं और अफसरों के लिए ये घटना चेतावनी हो सकती है। कुछ साल पहिले पीडब्लूडी के एक ईई ने अपने ड्राईवर के नाम 80 लाख रुपए में दस एकड़ जमीन खरीदकर कागज अपने पास रख ली थी। ड्राईवर को लगा इस काले-पीले में उसका भी कुछ हिस्सा बनता है। इसी महीने उसने ईई से 50 हजार रुपए उधारी मांगा। ईई कुछ दिन टरकाते रहे। एक दिन ड्राईवर ने बंगले में बवाल कर दिया….पैसा दो नहीं तो ंकाला चिठ्ठा खोल दूंगा। दूसरे रोज नशे में धुत होकर फिर पहुंच गया और एमाउंट पांच लाख बढ़ाते हुए धमकी दे दी कि होशियारी की तो अपनी पत्नी के साथ अनाचार की रिपोर्ट लिखवा दूंगा। इस पर ईई ने ड्राईवर के हाथ-पैर जोड़कर दो लाख रुपए में समझौता किया। दरअसल, राजधानी बनने के बाद रायपुर में बड़ी संख्या में नेताओं और अफसरों ने नौकर-चाकरों, साले-सालियों के नाम पर जमीन और मकानों में पैसा लगाया है। एक नौकरशाह ने 2005 में नया रायपुर से लगे एरिया में अपने साले के नाम पर 60 एकड़ जमीन खरीदी थी। राजधानी बनने के बाद जमीन का रेट करोड़ों हुआ तो साले की नीयत डोल गई। अत्यधिक लोभ के चक्कर में अफसर की जमीन चली गई और ससुराल भी। ससुराल से उनका संबंध खतम हो गया। इन घटनाओं से नेताओं और अफसरों को सबक लेना चाहिए।
नौकर-चाकर के नाम पर इंवेस्ट करने वाले नेताओं और अफसरों के लिए ये घटना चेतावनी हो सकती है। कुछ साल पहिले पीडब्लूडी के एक ईई ने अपने ड्राईवर के नाम 80 लाख रुपए में दस एकड़ जमीन खरीदकर कागज अपने पास रख ली थी। ड्राईवर को लगा इस काले-पीले में उसका भी कुछ हिस्सा बनता है। इसी महीने उसने ईई से 50 हजार रुपए उधारी मांगा। ईई कुछ दिन टरकाते रहे। एक दिन ड्राईवर ने बंगले में बवाल कर दिया….पैसा दो नहीं तो ंकाला चिठ्ठा खोल दूंगा। दूसरे रोज नशे में धुत होकर फिर पहुंच गया और एमाउंट पांच लाख बढ़ाते हुए धमकी दे दी कि होशियारी की तो अपनी पत्नी के साथ अनाचार की रिपोर्ट लिखवा दूंगा। इस पर ईई ने ड्राईवर के हाथ-पैर जोड़कर दो लाख रुपए में समझौता किया। दरअसल, राजधानी बनने के बाद रायपुर में बड़ी संख्या में नेताओं और अफसरों ने नौकर-चाकरों, साले-सालियों के नाम पर जमीन और मकानों में पैसा लगाया है। एक नौकरशाह ने 2005 में नया रायपुर से लगे एरिया में अपने साले के नाम पर 60 एकड़ जमीन खरीदी थी। राजधानी बनने के बाद जमीन का रेट करोड़ों हुआ तो साले की नीयत डोल गई। अत्यधिक लोभ के चक्कर में अफसर की जमीन चली गई और ससुराल भी। ससुराल से उनका संबंध खतम हो गया। इन घटनाओं से नेताओं और अफसरों को सबक लेना चाहिए।
जीएडी का ये कैसा तराजू?
आईएएस अमिताभ जैन को पीएस से एसीएस बनाने कल मंत्रालय में डीपीसी हुई और जीएडी ने तुरंत उनका आदेश निकाल दिया। डीपीसी के बाद ऐसी तत्परता होनी भी चाहिए। आखिर, टकटकी क्यों लगवाना। लेकिन, मंत्रालय में खासकर आईएफएस के साथ ऐसा हो रहा है। पीसीसीएफ केसी यादव के डीपीसी के साढ़े तीन महीने बाद पोस्टिंग का आदेश निकला। इसी तरह डीएफओ से सीएफ और सीएफ से सीसीएफ बनाने एक दर्जन से अधिक आईएफएस की 20 जुलाई को डीपीसी हुई थी। दो महीने से अधिक हो गए, आदेश के लिए फाइल घूम रही है। आखिर, जीएडी के न्याय का ये कैसा तराजू है। आईएएस, आईपीएस का आर्डर डीपीसी के सेम डे और, आईएफएस को महीनों चक्कर लगाना पड़े। जीएडी पर अफसरों का विश्वास कायम रहे, सरकार को कुछ करना चाहिए।
कलेक्टरों पर खतरा
मतदाता पुनरीक्षण का काम खतम होने के बाद अफसरों के ट्रांसफर पर से चुनाव आयोग का प्रतिबंध समाप्त हो गया है। आयोग ने 27 सितंबर तक पांच विभागों के अफसरों और कर्मचारियों के ट्रांसफर पर रोक लगा रखी थी। इनमें कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर प्रमुख थे। बैन हटते ही अफसरों पर अब ट्रांसफर की तलवार लटक गई है। खास तौर से कलेक्टरों पर। आचार संहिता प्रभावशील होते तक सरकार अब इन अफसरों का तबादला करने के लिए फ्री है। अब कलेक्टरों को बदलने के लिए तीन नामों की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे, रायपुर कलेक्टर का मामला पेनल के चक्कर में गड़बड़या था। ओपी चौधरी ने जब इस्तीफा दिया था तक चुनाव आयोग का प्रतिबंध लगा था। लिहाजा, चौधरी की जगह पर सरकार अंकित आनंद को कलेक्टर बनाना चाहती थी। लेकिन, पेनल के चक्कर में सरकार को अंकित के साथ दो नाम और भेजने पड़े। और, आयोग ने बसव राजू के नाम पर टिक लगा दिया था। मगर अब सरकार के हाथ खुल गए हैं। ऐसे में, ट्रांसफर हो या न हो….कलेक्टरों में खौफ तो रहेगा ही।
मुदित जीत
मुदित कुमार आखिरकार हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनने में कामयाब हो गए। आरके सिंह के आज रिटायर होने के बाद वे पदभार ग्रहण करेंगे। पिछले साल जब सिंह की नियुक्ति हो रही थी, उस दौरान मुदित भी इस पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन, एक बड़े नौकरशाह ने ऐसा रोड़ा लगाया कि सरकार को हाथ पीछे खींच लेना पड़ा। लेकिन, वक्त बलवान होता है। इस बार सिंह के रिटायरमेंट के महीने भर पहले ही सरकार ने मुदित का नाम डिसाइड कर दिया था। हालांकि, सीनियरिटी में शिरीष अग्रवाल उपर थे। लेकिन, डीपीसी ने मुदित का नाम ओके कर दिया। बहरहाल, मुदित की ताजपोशी के बाद जाहिर है, माटी पुत्र राकेश चतुर्वेदी को अभी वेट करना पड़ेगा। राकेश को एडिशनल पीसीसीएफ से पीसीसीएफ प्रमोट करने 3 अक्टूबर को डीपीसी होने जा रही है।
रात वाली का कमाल
अपने ही एक विधायक से सरकार इन दिनों बड़ा परेशान है। वे सोशल मीडिया में ऐसा पोस्ट डाल दे रहे हैं कि पार्टी को जवाब देते नहीं सूझ रहा। हाल ही में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को बेहतर सीएम होने की भविष्यवाणी कर डाली। मीडियावालों ने इस पर सीएम डा0 रमन सिंह से सवाल कर डाला। सीएम भी क्या बोलते, जिसकी जैसी सोच…बोलकर आगे बढ़ गए। विधायकजी चूकि शौकीन तबीयत के हैं….फिर, विवादित पोस्ट वे रात 11 से 1 बजे के बीच करते हैं। सो, पार्टी नेताओं को यह समझने में देर नहीं लगी कि ये गड़बड़ कहां से हो रहा है।
जोगी फायदे में
जोगी कांग्रेस और बीएसपी के गठबंधन से दोनों पार्टियों को कितना फायदा होता है, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन, ये जरूर है कि सीटों के गुणाभाग में जोगीजी बसपा पर भारी पड़े। छजपा ने बीएसपी को 35 सीटें दी है। लेकिन, उसे कई आधा दर्जन से अधिक ऐसी सीटें टिका दी, जहां पिछले चुनाव में उसे दो से ढाई हजार वोट मिले। यही नहीं, आधा दर्जन से अधिक आदिवासी सीटें भी बसपा के खाते में चली गई। उन सीटों पर बीएसपी का कोई वजूद नहीं है। अलबत्ता, छजपा कुछ ऐसी सीटें लेने में कामयाब रही, जहां पिछले चुनाव में बीएसपी को 15 हजार से अधिक वोट मिले थे। जाहिर है, सीटों के तालमेल में भी जोगीजी ने जादू दिखा दी।
10 के बाद
छत्तीसगढ़ बनने के बाद वैसे तो तीनों विधानसभा चुनावों के लिए अक्टूबर के फर्स्ट वीक में आचार संहिता लगी है। लेकिन, इस बार तेलांगना का चुनाव आ जाने के कारण बताते हैं, टाईम कुछ आगे बढ़ सकता है। जिस तरह से संकेत मिल रहे हैं, 10 से पहिले तो आचार संहिता नहीं ही लगेगी। 9 अक्टूबर को सरकार ने भी बहुत सारे शिलान्यास और लोकार्पण के कार्यक्रम रख डाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम भी हो सकता है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रिटायर आईएएस डीएस मिश्रा और आईएफएस मुदित कुमार की धमाकेदार वापसी के पीछे का समीकरण क्या हैं?
2. प्रधानमंत्री के जांजगीर आने के बाद भी जांजगीर में स्थापित साढ़े नौ हजार करोड़ के मड़वा पावर प्लांट का लोकार्पण क्यों नहीं कराया गया?
2. प्रधानमंत्री के जांजगीर आने के बाद भी जांजगीर में स्थापित साढ़े नौ हजार करोड़ के मड़वा पावर प्लांट का लोकार्पण क्यों नहीं कराया गया?
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